1 शरीरम ॥
हटन्त-सयर श्रथ साय
. -- नवध ॥ ॥ जिसको भीमान् पं० दखुयानपरसादं जी सर्पा , - अपरतनिक उपदेशक) शिवर्त, जिला कानपुर ने रचा क. + शीर
सहाशय रयामलाल जा वस्म्।
ध्राय्य बुक्रसेत्तर, ररत ञे सखनर-निवशधी भीमाद् १० चन्िक्ाप्रणद् जी ख से णद्ध कराकर भङारिपत किया ।
---न-श्द्छ७-+-- 1 411 "18 एकष्य ^ पचम यार < मरव्य 21} › ३००० | सय १६२२ ४० | खंलिल्छ न)
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यः
छपगयाहै! ` ` , क्षपगयाहे' ५ दृष्टान्तस्य ..द्रिताय भाग
आ्य-नमत् के परिचित जौर लखनऊ के सुभसिद दिदी-लेखर श्रीप्रान १० चन्दिका, प्रसाद् युप् विखित जिसमे यत्यन्त मनोष्ठर, रोचक उपदरेश-पूणं जीर शिक्षा दशन्तो का सुन्दर संग्रह है, सिनको षार २ पठते परभ आपकी ठन्ति नद्ध हेगी~कभी आप॑ हस्त पडेमे, कभी आच्र्ययं में इघ जायंगे, कभी , दया से स्रापक्रा चित्त भर वेया, कमी ओश्त से उमे मारने ङगेमा, रमौ चतुरे की चलुरता से आप दातो तले अंयुदधौ दवा चे, मूर्खो की मुखता पर साप को दय कर्णा से, कातर दो नीयया ! यदि आपको संसारः छा कठिन भअयुभव प्राक्त करना है, यदि खाप क्पे थोडा पदकर ` चुन जानना दै, यदिः भापको समाचतुर मौर सुवक्ता यनना ' दै, यदि मापको पने दिन भरके कामस निष दोकर , प्ेश्चाम > समय विशुद्ध मनोरंजन के साथ २ द्धभव-पू्णं उषदेश्च प्रास करना. तो सापदस पुस्तम कौ यव्य सजि स्धण विप भौर अयते पुन् पुत्रिय क्ते पट्ट । ढाई सौ से ऊपर पठ बालो पुस्तर कामूल्य १ श्यामन्ाल्ल वमा, ` . र “^ ) ` भ्माय-पुस्तकाल्लय करेली {२ \ ८ ्
1९
१.
॥ ]
५.4 9 1 दवितीय संस्करण मेँ संशोषक का । निवेदन
॥ शा्न्यो सी गभ्भीर मरति जिनका यथाय म्म हनम कजिकति निषे शीत्मति श्ाल्लभ्यास्तिर्यो को वधो प्रयान करना प्ता, कभी-कभी लौकिक दृण से ्ननायास हौ समफमश्रावती ह मरौर साधाप्य मनुर के चित प्रतोण्मी ्रभ्तिद्यो जाती कषिवेग्रपने सिद्धात् तक पल्य कते उनक जीवनक करावे बदल चाने है श्रौ भासाम्यासियों को शरसाक्ता पर विश्वास करने मे -दद्ायतरा मिलती ई ] इसी सिये, पाखकार् अपनी चारों फो स्ट करने क किये, सौमिक उदादरण्ते का ग्राव ग्रहय कते ह ८ दीवि दशान कहो कसे)
श्वागी'पुर्पो की ष्टि म, य मतार् विम्वविधातय दहै | इसकी प्रत्ैक) घटना पिच्ाकषे परिपूरय रै, इतक भये, मस्तु उषयेवमे मरी है पतर इकर मक यम क्ञामाभनिके प्रदीप्त कलवान ह मितु प्राकयक्ता रै प्स पिता पगा शद्रा तकरय श्रिचाधिवों की, भर्वोततियरि' श्ररकप्यषहीश्ुदन षोगाततो मुपदेणो सेशे मनुष्य च्डेहीश्र4ं प्रष्प नमा} उसी एक कोका तसेस्षानी पुश्प शको जीवको स्मुगत वनता रौर मतं उमकोश्नौर् फा परर ष्ट समनः ज्ये जीवाकामाय मा देता, इम घ्वुदुष्टा्ेषे मी रधरयोग क्नेकेम्ि पमे छानी युरो क प्रादण्वकता दातोदैनो प्रधम दष्टा करा उत्तम दार्छ त श्डिङर मावनके ननन बनानैमें माफ । 4 ट
इस सप्रह्म, प्राय समी -श्ष्वश परिषुय पर्, २०३ दृशानो फि थरा समी मेदे मनोरजक ण्यै रिचाप्रद र आर भिनकौ श्रास्थायिक्रयि चुरीकी एव॒ यिततमें चुभनेदरह्ठी ६ सौर समी यह दै रिप्रणेक्र दु्टान्त के ` नात उसका उपयौयभिवर वदी श्रोखोर्वनमै मापा मृदार्टातस्पमर्यीचा गया
द मिष्धिवे श्रौ मी मदरखकेदहोग्येर | प्क भरौर् श्रनोापन इस पुस्वक म
॥
॥ ण्ह ६.१९ स्ते भाय. समी दुष -मेिक सिद्वा ॐ पोष कःनेवति द
भु उनमे विर नररा दै1' +
1 ष
५ ;
निवेदन ध् , न्विदेन , , ५!
दृत कौ संमा पर समनी मे दिव्ये मे अयम्मरने बद् रण्शो परनोः न्वर् किप रवा र कि -त्यपरपि यद दुष्टा श्रम पर उप्योती निमे किप् तवा ५१ नयति ब्रविक्राग दु्टाद्रढम मका निति गरक पने मे उनकी परास्याचिकयि निदि ममदः नरी तस पडी, वेपन् सत्यवटना शक योर मान्य जात पनी दै! न्ति सत्व घटना का उस रतै र , उपक प्प्णाम राक्ररजो उप] रिया जाता दै उना चि पएजना तुत (लक्षण परमाव पडता ई तत्ता कषुोशकिपत, स्रमन्म् श्वर पपतभ वत्ति कशोर चयेत । मयकार ने इन मतरा ययाशप्य प्यान ससाद भर् पेदे दृ्टा्तो की -नोररता की नौ विड मे वाया द| \ एक कोर विप्रा जिने इक आात्व्ःविङामों का मौन्द्यं त्रसानि मे सष्गता,मी.2 दषठन्तो के मध्व सौग समाति पर उदपा "कने साक चमा.व्प-एत वैय, नीति ण्व प्षानप्त पृ दे नौर प्राह्यापिनन्रं त सपं उमा उद्परन होगर सोनि्मे उमग्पकेम्नदे) दुश्टार्तोकेन, इन कल्को फ समह् करेन ` ध यकर्ाने बा दरिथम कियाद शौर कध्ना' पठता द किन श्लोकों मे कारय य्ह सव्र रिकोपरेय ग्रौर पववत सी यैनी, काना एक भ्रनय वन गया दै जिपेतत प्रये पुतङाक््लोका-मेहा विप्राद् के " सवद कर्ने तया विदास्याप्ती चालक बाजिकरनर कोउपद्दाप मेँदेने योग्ये गाद! ॥ ष 1५ 1 दस पुरतमरन का भयम सरकरण सन् १९१० र्ये ध्दिवाकर प्रेस मुरादामाद से निकक चुके, भिदु जहातत हमारा श्रनुमानदैयातो त्रत पी अलाबधोनी प्रया सोभ सदोदय के प्रमाद वा पपोष घन्गश्चू्यताने , । सुलक्र ओ णक प्रकार चौपर दी कर दिया या, धद तक स्ति नेक स्वक्ष प्र् ' पटेन " उसका कुदं अय द्ी व्यकतिनदोत्ताया, स्तथापि यद खनद गष्मादी पाठको निदे त्चिकर् इम > उसे रयम सस्करय की कुल कापया निक मई करं पाठे कौ माग दने दर यद भराव्र्यकतता दुद्धं नि इसका दसा मर्क निका नाय | आरये-दुस्तकालम्, वरेदी के ष्या वाथ श्यामसासब्र्ा
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निवेदन ५
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ने, प्रकी वार्, इत पुत$ को नद कंलनञ ॐ पां मिन प्रेमे तपन फोपिय्) तो उन्दने इने माषादोपदूग कोऊ मायके दिवा। भनक सममकर कि यद् खी इड मिताव रै, इयन कदा ग्रधिरे सुथार मी छन् भ्यकता न दोणी, इतत भार का म्वीक्रकर निभा! मित्त निप ्तम्यमरे पास दृसके श्फश्रानेखयेतो सुभे उने वडा ष्टी मद्दड द्य प्डायदात्कनि युत्तफ करसे शिखी जने याच्य जानपदी, सितु प्रकाशत मदोश्य् दसद निषु भमर "ये, इम कीर्ण फो मष्टीजो ऊच दो मका धवार शिया गया) जिन मह्या कौ द्िदीके प्रेतो मे पुस्त छपानि का मवत मिञ लेगा मनी माति नानत मि परेम गूफ म अभिक कोन निकाण्ने संङ्िवना दाकर कणे दै रीर चिपक उम इथामजवर रि उनम कामग्रीन दपर केरदेनेकावादा नियागया दी डलयादि कार्यो से पुर्तक कौ मषा, मारित ' श्रौ८टसङ्ा रिषयन्म उश््लतोकियाःनजास्का, भितु उतत वा्तक्ा २ अयन क्षिया शा है कि पुस्तक लित माधा के श्रवयेकत वाक्य का मभ हृदवयम केने मपाटर्ण को की श्रयकनानप्डे! म्हातोरौभीयत्र एत्र चोढा गषत भाद. गथा, प्र प्रषिक्ा गशोक यते मे सि टी क्त गे ई, उमे पणवेन नीं किया ण्या।.निः, दृष्टान्ता ११ ङ्त शरोफकनर्् दयाया चेतपर् शरीदुक देकर सकरी मिष्य मीव्नादुी टुं दै पिनि पाठको का धमिषा ष्टोगी । पदे स्नपय मे दुष्टन्डो की सस्पा १९४ य जिन्व॒ इत्च वाम् २५३. ६, इमे पाठक यद् न समेति ष्व कार दृत मम दि भ्ये, शन्त उतने टी द, केक उनङ्की चद्पा टक दोमोखेवे २०३ षेम्वे , अव विश्य ङ्व ककर दम पाठ्कोंमेप्कबाग दपर पुरनकके" 'पवणोक कस्त का सुग क्रदं ,
पण पनर म चद्धिक्रसादं स ।
दर एन्त-सागर कै हितीय थीर वतीय स्स्प्स्णकी
र्णुक्रा वक्तव्य ' ,
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श्नवं प्रिया चिक गष सन्तु गुणादौ पाठक-पाटिकाथा क पाठ पिपासा की यव मी परिनृ्ि नदीं हु यह श्स्भंथकौ उप्येशिता भौर खव-प्रियता खा उज्ज्वङ उदाहरण है । दमं
आशानथी पि पस वारके साधारण संशोधने बाद् ' नने शीघ्र इख प्रधरलं ञे पचम संस्करण का य्तय लिष्ने
का सौभाग्य होगा । इस गुण प्रहिता कै चिये पाठक-पौरि' काभों क्ता चघाई है अर साथ हौ गर्य्य-पुस्त जाख्य)-`घरेलो फे अध्यक्न यवु प्यामखारु वम्माक भौ धन्य्रद्है जा ए्गज फे इसं करा यकारे समये भौ पाषटकाखी -पूर्तिं के चये पुव पुनः इस पुस्तकके छपा कर प्रकोा- ' शित कस्ते दहै । श्ल यःस्भो इसत पुस्तक में छक चिशेय परि यर्तन नटीं {प्या गया, मेख द्वन्त फे शीपक् सुच छोटे क्र दिये गप ह मौर क्य कं, क्ट सुधार भीकर द्विया शया द किन्नु ह्मे यह सूचना देत्तेद्ुदहधषशतादटक्िप्खमा द्विनीय मागमो तैयार हैस्दारहै जे परमत्मादी वाये, ,
ष्रीघ्रही पाठक पाटिकार्योकी भट किया नाया 1, शः ह, वे प्रथम भागकी भोति दसै भौ अपना कर हमारी त्न
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ष्ठि करगे । किमधिकम्
्थागतग्ज, छन }
५-द६-१६२०
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चद्धिक्प्रपाद यप्र. ,
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` “ , विषय-सूची
ॐ ५ ऋ्छॐ3 प) ल
सिषय पृष्ठ | विधय पृष्ठ “ संगलाचस्प ४ ११ | २३२४ रहिता ६५६८ ~ १ $श्वर-विश्यास ११ | २ मास-मेक्तस ५. ६य
६ परममपि फी परिया
> भूरे भाडम्वर म सा ध्यान १४
३ जो चाहो वद मिते १६ ४ दैव जो फरता रे प्रच्छा दीक्सा १७
ॐ ह्वर मार! सुख न देख सका १६ ६ सत्थ कोष की प्राप्ति २० ७४मकेमिवाकोैःाथो नर्हा २४ प परमात्मा सथ देखते £ पापो ` सेवचो ३० रि ३३ १० छु भरागे के लियेमीमेजिये ३५
११ वेराम्य ,. ३६ १२ भपकतेनतवके देयः १३ वेदम खुशली ज ° ३६
१४ चेदकषेते हए विदद माम कये ०४० १९ विषयो की भ्रसतलियत ४१ १६ मवत ४३ , १७ क्या कर फुरष नदी मिलती ४५ ` १८ छऋपि-सन्तानों का सवाग १६ महात्मा क्रेयट का त्याग ४६ \ >० एक त्रीक्षण ५, ८० २१ भतिधि-सतकार र २२ पार्थि राज्य ५. ६४
४७" '
२६ दिम्मत मौर शती , , ६६
ग्छच्तमा र~ , , जे रेर्दम पि ७६ २६ एक मदात्मा „+ ७७ ३० स्तेय ध ७९. ३१ शौच ७६९. ३२ शन्द्रिय-निग्रह ८१ े३ेधी „+ ८२ ३४ विया र [1 ३छोगकीवातकातिस्त्कारनकरो < ३६ सत्य ७ ३७ प्कोय ६० ३८ यसत् कर्म भवेय मोग्नेपदरगे९२ ३६ व््मचर्य ५ ६४
४० विना परीक्ता के याद , ६५
४१ जैसा कसना वै मरना ६८ ४२ सूर्य ६६ ४३ मूौ के ममाजर्मे विद्वानों
की दुर्मसि + १०१
४४ भूर्या फे समाज म पितो कदश्व १५४
५४५ मूस उल्टा दो समता ३१०६
७६ चिपयामक्ति से चेममम्े १०८
८
विषय पृष्ठ ४७ निद भूना सिसामो चष प्ठने दौद्ते दै ` ,१०६ अप्त मत्य तृचन महारज . ११० ८९ द्रसमवका सभवकर दिखाना१११ ५० याप दादे से चली भाती द ११२ ६१ फचियुगम = ०८ = ११३ ‰२ गुद सेवा ‰ -5५.-११४ ५३ यदी खीर + . ११६ ‰४ शेखचिल्ली ,, ५० ११६ 4४ मूर्खतादीषद्री ११६
५६ ईरयर विरवासीपापनक्षरेगा११७ ‰८७-८८ व्यथ् विवाद . ११६ ‰६ मनुय पच से वन सकत १२० ६० प्वा्थं भौर परसताप' . १२३ £१ सुदयङ्गी से सर्वनाश १२७ ९२ अधनी अपनी उदाना. १२६. ३ भधिर सोया ^ १३० ६४ नमान समय टा पाडित्य १३१ ६५ वतमान समय के रोता १३३ ६६ चे ध्ररसरकी पात १३४ ६७ गाठ वि शष्ता केनर्धी ममनता“ --. . ६८ भद्ध करनात्तो सष्टज दपर सौपा देनाकटिनिदे . १३६ ६६ सारसोरिश्राद्ध कराना १४१
१३७
६.२ विदया-दम्भ $
॥ -------------
विधय पृष ७० अन्ध परम्परया / , «१४१ ७१ वयां चे त्रिसे मानरैठे १५२
७> खुशामदियो से दुगा = 1४2 ७३ धर्मध्जी ॐ १५६ ७ गृहचला, , न १४४
७ चेले का दष्तीफा ' ,,* १४८ " १४८
७३ भारवाही ,* ७५७ विदा वी दढ „ १६२ ७८ छुनघ्रता ,.. , १६४ ७६. ममल के भिना लोग पठि . | नही चलते . . . १८६ ८० मेल से लाम... .. १९५ ८१ प्रदाहतसे नाश +,» १६७ स्य मेद्धियाधसानी,, ,.. १९६ ८3 ससोश्वर' ., ,* १६६ ४ सात्तिनि षा देवता , १६२ ८४ समाई पा स्वभाव १६३ प्६ नीचकीनाचता ,, १६८
८७ जाति फनी पर्दी क्िपती १६१ ८८ ठनगनं ( तकल्लुपफ़ ).., १६६ ८६ दिल्लगी मखोल ,,,।१६४ ६० क्षट-भय से पेर्व्य.नि दा १६६ ६१ चाकी निन्दा -,. १६७ १६७ ६३ एकधार््य मीर उस्ने पौरा ' `
क् भावनकी वार्ता १६
प्निषथ पृष ९४ एक प्राप्यं ष्ट ^ १७० ६६ भस्ताभिर्यो भरक्ले . १७२ ६६ तत्वं पदार्थं छो पुदधिया १५९३ ९७ परिचर से दुर्दशा = » १५६ ६८ बहुत्त चालादी पे पर्वनार १४८ ६६ भ्या = , १५६ १०० यथा राजा तथा प्रजा १८० १०१ यागा मे निरार। १८६२
१०२ बुद्धि भीरं भाग्य +, १८२ १०३ नाफ की भोरमे पजेर्वर१८६ १०२ प्रकृति दी पस्मेरवर के राप करानि मेमाधनदे १८१ १०६ कहिघरुम म चर्म दही फलता १९० १०६ ट्वसूरतो भीर बुद्धि १६३ १०४ र्वोको दमी डुरा वनातेदे१६२ न्त काठक रत्लू १९४ १२. एककेकरने सेत्त्या शेगा १६१
११० पल्लद काट ~ १६६ १११ मजस्लं का तमर्छक १६६ १०३ सुद्धिया भावा , ,* १६५ ११२ परेज्नी की लियाकत षष्ट १९४ उदू वीवी, * १६६, १५६ पएटसंद्ानि ५ २००
११६ उजवक् ,,
7;
२०३
पिपयनसूची (3
चिपय पृष्ठ ११७ र्यो के परदे से दानि २०६ ११२ यर्तमान सियो की विया २०७ ११६ वेवाक्धियो का युल्य धर्म ००७ १२० भर्तमव कमी सच नदीं २०८ १२१ तन वद्नका हग नदीं १२० ववोरषी दर्म तिन १२३ प्राजफलकीस्ती १२४ पिना सम्बन्धक वर्ता १२६ पिना योग्यता के फाम १२६ प्रत्यन्त लोभ वे नि १२७ कर्पा „ २१३ १२८ ग्रञजयन्दा पावला ,, रप४ १२६ दोच्यदिकरनेवालेकीदुर्दरा २१५ १२३० रण्डीवाजे को उपदेश २१६ १३१ चार धोता २१६ १३२ षदियतेसे दूर रदो २१५ १३३ परमेश्वर कौ रक्षा ०१८ १३४ चिना परीक्नाकाक्म २१६ १३८ विनाघुदधिकपिवानिष्फनदे २२० १३६ मेषवारी ५. १३७ परोसीगुण दोव जानना >३ १३८ इपोलदन्व २२४ १३९ मनयिक्रार चेष्या २१७ १४० विपत्ति मँ युद वची २२ १४१य२्फेखकेकी चार बति २न्य
११५ >११
1 1
१०
विषय पृष्ठ १४२ राजामोजका वियाकीौक२२३ १४२ पुरानेका्त मे य्तश भचार २३६ १४४ पटले दमा यदौ प्रधर्मी-ये२३६ १८५ चा्नविकाह् ,,, , . २३५ १४६ पूर्वं सियो की विधा २२८ १४४ प्रन्धेरनगती सनव राजा२४० १४८ प्रयोभ्य,भोता 1 १४६ उल्लु यदत २४४ १६० उल्ला दादा उल्लूपिद र्ट १५१ दुनिया खव बदरी गत १४९
१५२ रमखुदेया ० २६२ १९२ एक पतित्रता ,, >३ १६४ प्रमे खाना ,,. = २५६ १६८ वेरदमी , २५६६ १५६ निन्यानवे कार् .. २६ १६७ तपस्वी श्रौर चार चोर २६५ १९६८ रपचियगोफीखगी ००, देद्य
। १६९. लाल वुमङडध + २६१
, १६० परम लाली =" २६२
॥। ॥
#
दषान्त-मागर--प्रथम भाग,
॥ ६
खिपय पृष्ठ १६१ युगत्निम्मत कौन है 2 २६३. १६२ ध्ययोग्य मन्त्री ` ६४ १६३ भार फे शूखीर ,.“ ०६५ १६४ प्राय पपे ८, ^ २६६
१६६ भारत ,,- २६६ १६६ गल्ल › ५५५ »७० १६७ सन्तोष ०५ ०७४
१६८ दब्यूपनेचे ष्वष्प-विष्टति५४ १६९ शान्तिमेलाम २५५ १४० दो किट पास सहीति २५४६ ` १७१ वनावरी भदात्मा , २५५ १७२ दु ते र्यो की घम-रक्ना२५५ १७३ खुरिकषित माता का त्रिया २८१ १७४ सवसे यदा देवता छौन ४ प्र् १७५ खुदा को दीमक खा गदे २८६ १७६ शुद्र एरसक्तादै२८४ - १७७ श्रमृत नदी +, ० २८६ २७८ सनातनधर्म की गारी २८६
५ ॥
॥ श्चोक्प्र ॥ हृटान्व-सागर अर्ल चान्न
\ न= भेयृद्धाचरख विश्वानि दैवम दैन जग~र्सतार माथ शणायरप् ^ टमु ग व्यसन पाप नरु सन्ताप इरा सयं भजनम् ॥ ~ कल्याणकारी चसु ग स्सादिं साधन दायम् । , स्वप्रकाणर्प् प्रकागष्युन खुरयाि मरु लव लाधघक्षम् ॥ + भरण जगद रे उत्पथ योने पुवम॑पि थे उक्तम् । ही मात्मसाल शरीर यादिकः शक्ति फे ठादा परम् ॥ खच ध्यन,धस्ते चछेगि क्तानी देव प सुनि सादिकूम् । ` पापं पस्मपद मोश्च जो टै जन्म सद्ण तिनाराकम् ॥ षस दास कतो निज भक्त जानि कद फसो दारुण्य अस्य् । सच दुख दारिट दरि कर राद्ध पारण शरणागतम् ॥
क
< विः -दश्वर विग्याप्त परमरशरमा पर समया तेम र्यते रै जो महुष्य उरू पर खषा
विषयात स्वा है उतर पुरपार्यं दारन्य है उन्दी सम्पूण यमि- खः्पसे श्षो पस्मेन्दर पूणं दरे ट! यय
अ, ५।५
२२ दष्ान्त सागर--श्थम भाग गा 1
टक घनःध वेवा खौ जल्यन्त रौ रीन आीर्धर्मशथी। ॐ चालक ये--पप ६ वप सा, दुखसा ८ वषं फा | कैचास येया दीनता के फछारण दुसरे पुरषो कौ सेवा, पीसना कूटना सके पै खडके क्ता पालन पोपण किघा कर्नौ धी पसु य्वौ फो नित्य दुध्र यनायोततथा उम भोजन सिखाया कस्नी थौ यर उसने उनके पठे आदि षा पूणं प्रयन्ध तधा पषात कै व्यय खाभारभी उटा स्फ्या धा, सीर अपना ¶र्वाह केवर सूल सेच्थि से ष्स्ती यो । भौर किसी किसी दिन चद् भी पेट नर नरी भिल्ती यी! द्वं पडे धर्मत्मा भौर रुर ये 1 निद भिन्त समप वे पाटयां पाठ पटु छर अत्तिते। सत्तिही मतिासै दूध पतात मांगने धे | पत भनि रेता अवस्तर यायाकिम्तारोन्दौीं समनग क स्तःस्ण फु पं भिका क्षर व्यो मे पाटशछासे यातैही निल नी शादि मातासे दध बनारोमाभे ! माना मै उत्तरः दिया पि "ष्या, भ्यते मेरे पाल छ नद्ध है माज तेः ग्ड परमीन्व ेदूव खना दरैमा ते पामे, वहीं सो मेस पद खदाय गर वन्धो छरा "माता पर्मेग्यरर कीन 2१, सादामैकटा भ्ये घद् सयस्ा पिनागसंचनप पाटन पोषण सूरतेहाःरा है 1" यट रुन मग वर्यो ने कटा- भयो माता षड् हमें दुध चपशेङेगां 7 गत्ता मे रद" "गमरय।' अदो यश्य फेस सखा चि- यवखद गयादिःमाता द्धी दृध वदः देने दादी नदी किन्तु मनाद्ते इर अर टुररः परमेए्दर् भौ नेधारा रै । वन्ते मे पुग, श्ना दे पु कि--भ्माता, वह् परमेष्ठ रूटा र्ता । रः प्राताने साध्ारग ली उपरक्नो उगद्ौ उख्दी। वं चुन, श युस्त उष षर दाद्गन्छापमे ख ति पोर सामं परमप दषा गष यद् सम्मद्तिस्सये स्तेये ~ गद, उत रेष्ठयनयां उपर ~व सिज दसस दूध दनण्ये सारे” |
~
॥ 1 ॐ ५ ॥
ए-.वर~विश्वासं द
पसर न पदा मर्ण, ऊरर पदनः ते कठिन परन्तु हमने पष त् दनी डेक्िपरीः्ररश्मो ह्म तुम दोन प्क चष्ट रें शौर परिरत जी कते सुद नाग चक ष्छर उकम डाल सरे 1 पटले मे दाष्टा--""्यह् चद्ुव दी ठीक है 1" दौने। प्ठ- खाद्छा पटच पत्र छिनने टगे-
"द्विना परमात्मा 1 वाप सवकते पाचनं पोपण कस्नेदारे हे, प्म दैक भा आपके नमस्कार कस्ते टै मीर प्रार्थना करते गकि भथ यैर दुध थौर पक्त छटार याद म दैनं भाद येप द्धया कर नित्य अरैज दिया कोजिये, हम यापक चच्ये ~} { 3 ए) (ब टं ताने ययायादे इशे दमाय पान मी कयीजियै। अस्थु!
आपके रोय, दा वच्चे, जिनके मपि जानते । लि कग सिस्तामा यानी पता यद व7-- चि पर्दे पिता पस्मषत्मा कै पास
च प्ररिडितिजौ चेदु गाग पोर अपफिस मे चि डण्टतरगय । उशन वतू सै एश्रा-- चारूजी यष चिष्टी गदा ल्ग ११ दात्रू मै फटा-- डम सटर्पाफष भँ यारदी।"
खटकेय पव शरीर छीटा था भीर छेटर्वाप्स अचरे पर गडा हया श्वा । 7च्ये उपर उख्ख उछ क चिद्धी डटर पस्न्ु वे उसे ठेटस्वारस्मे न उालसदे । वन्रू ने ल्डश्षौ सः किर श्र पए" "दण्नो द्म तुम्हन्ये चिद्धि उ देम यच्च य च्छिद छै । चब पा थं ऊे पता प॒द्रकरथत्य
स्तष्टी वक्षित हा धार उसने सव्ये व्मी नेस्दैला। यये सगरे दिन कै यूते मद्टीन खुसर सदि -ितय | चबमै कदा “नुम किसके वेड दि, यद निद £ क्रे लिपी है 2" धव्वें ने कटु,--"्मजुकशेता ठ कडठे दष धर म मित्य दथ चतरे पने ये, दनद मः धरगये भौर मता से दूध
५
१ &*
६ ~ १ >
१४ टप्रान्व-दानर--प्रधम भाय
भ चत्तगे मागे नो मत्ता ने खदा--ष्वेा यान ते तुम्दै परमेश्वर द्द वनने देगा ते मिरे नदीं ते मेरे पास नद्यं । ह भनी नै आजं ऊुक मेसन भी नही खाया रपर सेभूतेही पाजनाय ओओ चख दिये गीर पाटशसटा मेँ सार लम देषां नै पिता परमात्माौस्ि यद् पन्न छिला धा.सा डरने सये चे 1"
चातरू-तुम जानने डा परमेश्वर फां है ? न वच्चै--मातासे वनायारै सि ऊपर । चःवू-ष्या हम तुम्दरे स पश्च का शोल कर पटे £ वच्चै--ं वल्रू की, पदु खरिष्ये । 46 दष्तू ने पत्र सोर कर पदा घौर वर्च्चोके दुष्त देख कटा -फ-- "तुम डि नित्य आघ खेर दूच शौर एक छ्य पता मेहम सेखे ताया सो 1, ५ त्प्यं नाति चेष्टेत साहि त्तानि निर्थिता ! , ' - मर्हुसपततिरो जातौ मातु भक्तममस्तन ॥ . `
ड । २-शूषटे माडम्वर मे सच्चा ध्यान् '
एकत दुस्डष्ट सा सुवा कटका णन राजा कै यदा पाच ठेभे गयः । चटा शटाजा द्धे जुचती मनसेष्टनी सजपुत्री क) छत पष देख वह चकितं ह गया शीर उसके दय मेँ हस परस्पर काम चार गे छि घर अग्र वह् उस मोदनी रे शौर मैं व्याकु त रहा स्मीयच्यान प्न समी शता चार सेवक उस्र इनु-टरी के थ्वानर्मो्एयष्टायस्यमे खण 1 उसके ध्रर्कै प्त पूर्ण खोगों नै उससे पुखा कि--"ठस्दारपे कवा दशा &, तुमने! - च्या हे गया, क्त्या छु रोग द॑ ?* परु युकम कितनीसे छेनषदा। येडी देर कैः वट उसब्डी मात्य नै उससे पृष्टा हे उस्ने पनी माता से सच्छा सम्या छत्तान्त फट द्युनध्या
२ भरू धाडस्वरमें सथा च्यान १५
स्ति" माज रजा वां पाय धेने गया धा, यहा ससपुत्री कै दैप यह् मयो णाद म, स चाहे मेरे प्राण च्छे ज्यं परन्तु चच रय सु उस रायपुश्री के पुन दर्शन न मिन लव तक भेजननफरगा1' मनि > कष्टा--""उटी माज मओज्न चसे । आजने ६ मात कै गच्यात् मे तुम कफे सजपुती का दश्चकसद्गी) मतव नरन के पश्चान् उसरी मतान सष कितु यदास्ते क्षी ६ मायने चिदेष्परे जामो जोर देमरटीने यद जव याकते समर् का भवस्य करर बना जोर चाकर सजा की फुलवारी $ स्ट्स्मा तुच्छ ससपुनी फै दल दो जाये ।' एम्हारके वच्येनेयैसाक्ी-खा। स्व ६ मरने पश्चान् रागा क बाह्रा मे साभ नायाते उरी प मसुप्य फ द्वारा भप नी माता न्तेदुखया कर पाछा दि" "यय सजयपु्री णे दर्शन कमो 1" माना > कदा -- ठन साखे दनद करके व्यान सै यड जशो, मे तुम्दे भमी दशंन फराती ह ।'' उस म्हारी मतान गात्र भर मं यदा कर दिया "पक यडे पटच एए मदसा वाये ई नीर उसे ञएथगोने देनै र 1" यर स्दनेघ्रामक्र ख पूर्ण नर मासी जानि । चर् चात राजा चथा सञ मरटछों म मौ पषुची । राजा यपनी रनौ तथा राजपु लेन मदात्मा दे द्ननोंषते गये । ज्योादी गक, रानींसौर रः पु्ो स दे सामने पये तो छुम्डारकी माचार्पीेसे स कदस कदा ष्ि- “वे राजा समी भीर यजपुन्यी सामे डे हट मव द्एानषस् खा छम्दास्के कटके सचाफि जाऊ जय किशरा साघु त्मारना दज टत्वं तेः मेरे जागे तमास गाय ऊ नरः नशर त्थधारजा री बौर रजथुगी स्डीरे रग्रयदि म द्वा न्व मदहत्मा चन उङ् तोल जम सुभेष्या २ पछ परा
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१८ दश्म्त-सागिर--दथस भाग
ट गरू 1) मन्दी ने कहा--"्परमेन्वर जो छख करता है" अच्छी फरना है" सजा यह वासव सुन वहन , भध्रलन द्ये धर उन्म कदा कि--' दमासे ते अंयुती कट म ओर वयह कटवा रै क्ति प्समेययप्जो गुच्छ ष्पा है यच्छी सस्ता 1" यहं कह कर गन्नीच्धे उस्म खप्रय निकरं दिया । अन्ती यन से जपने घर छट गया | राजा पकर चि खयर खेखते २ एम दूसरे सज्ये पटच । ठा के रजकी यद्िव्दानक ल्यि एक मनुष्य चमे वायध्यम्हा थो ।गटरूत न रजाजो चमे पकडलेगये। जव वहरकै पर्ठिनो ने श्न राज!ङीदोद्रेखा तो इन की अशुन्टी वदी एई पई +: परितं मे कहा--““यद ती मपय अत्न भङ्ग । यद्गुभद्न की चद्िनही ठी जाती |" जत राजाजी छोड द्विदै गये! अौर प्राण खेर ये अपनैघर को चले । मार्गम राजानि सोचा क्षि सन्त्य सच कता यो चि--परमेण्वरजो कु फर्नः. है सच्छाद्दी फरार 1 यदि मेरी,गयुदी यज कस्य ग दती तो मेरा दचिद्ान खर दिता जाता।* घर अते ही उसने मन्त ष्टो सुखाय । मनी उपप उ ते क्िसजासजनैसफे क्या ष्रमे, रपजसमट मै सये र परमाम चरर यैर गये । तक राङा यै मन्न सै फहा-- -""रन्ी तुम्हुष्य यद्द् कहना नितान्त स्सयद्रै किरन्स जो छु करता है जच्छःष्टी स्तादे ष्मो सिः जय मनै यन से जाप स्तो निकार धिया ते दम भाखर खेरते खेकते एक राज्य मे पट्धुचे । वद्य के राता णोयचिप्रपषनके लिगि मनुष्य क्क , अगचद्यकूता थी , इम्दसे उसके दूत सुखे पकड छे गये ! मेरी अगु करी हिनिसेवदाके परठतः ने ख़ ङ्घ भदत जान छोड दिया 1 मेरी ल्गुखी कट्नेसेते ईज्य सै जच्या यह. ऋ बुद्ध समव परे मद ओर् नीच लोभौ स यष परिणी भो
प--ईण्वर हमारा सुग नद्यस ४६
स्यि ङिमेरे ध-णयने ण्ट जरन्तेजो मेमि निन्त्यं दिद भौर इतने षिन तक नीयसे से पथ कयात थाव के ल्य श्वर मे कया अच्छा श्लिया १ मन्यी ने क~ मास यदि अपि सृके न मिका दते सोर मै जपे ख्य र्दाते जगन तो थङ्गभद्र हने कै कारण विव्दान से वचय, पर में
अड भद्ध नदेन से वद्धिप्दानसते ममी न चनता।”
¢, ऋ ~ है ५ ५~इ्व् हमाग खन दख मदा एफ सिपाहीरस २० वपं नीररी फर धरया सये । धरकतेल्वियि पक क्च्येरद्भषी सुगरी असती खी चित सौर च्च्चेष्ीस्य ञे चिकन कमै टपसिके षषी छ यनपेभीखास्दैये। परमाप वर्णा हैमे ख्णी पवत्ति , पादीरयम फौ छुनसं भीग लिद्ीन ऋ रभे षु द्र श्र्वरः > खगा जीर वतो सव पानीमें घु गै | यर दण देम क्िपारीराम ने कदा--'सुरी ययी रासा कसति यये | पवय 1 ९० वर्षं के याठ तो पा गव्यी चुनरी, खिद्थैते चीर ख वताते वद्या फो खये वह भी परमेन्र्से देखा नभम 1" धौरीद्दीषूस्वेच्छेथेसिश्या रखते दैकि्फयानेमं द्ी षू वेषे दें जौरःचे षन परयब्दुक शी गोक्ली चल, रैप । पर वकटक सोदीद्रार ह अर पानीहेष्ने ते फार चट्भरजल खागई, गोरो नदी चटनी । तसं ठो क्ते द-नन्य रा प्ट माच्मो यदि स समय वर्पनदहि रते हमारे वायद्ये जनै आर म मरने चारुचच्वे जेमुखभौन वख पत्ति। यदन्युत्य च्िदौने यदीं पडे रदते 1 अव टय विप्रत्ति वे ठुट्यारा सय को म सकुगकू भने घर पटु वेर् बाल दच्च स मिदटूगा। हस चछिये है भगत । यैन अश्णताये वप्ये छुट ग्द
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५, हय ससार वथम् जः ' `
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थ 4 --खमरीके पतप क्ते परे यह्द्ार ऊप रि कैं नीचे भीतरी हृदय कोय अचिधादि द्रो से रहित निरवयव नैम शुद्धे ड व्योलियेा मा भो ज्योत्ति विद्धाः क्षै जन्मे थेष्य ‰, यने विषट^जस खपे ह । पुव विवेकाथ्म जौ पि। कटं जप्य घर जु उदपा सार व्रसःनन्द् रथी घुच्य केप वर्करः मेष खुष्द मेँ यान वरे खे ! इसे जत्य छग भो चिव माधम री भानि हदय सग्मन्दिरस्ह् परेष्व को प्रां फौलजिये । देद्धिधै पक भावके कविः स्था यचा कहा ६
व्पाणम त्र्य सुदा मद ठौर्। व्पर्यं चर धामे द्धी दौर.॥' क्षुम क्य हर नेर उधारि। कमिधा लद्द गर मोहारि॥
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९ भ ए; द ५ ४१ # ७--ध^ भैः किया कोहं समधी न्यः .. णक स्लाट पर क्या रटधतं चेदा दुरचारी था। एम द्विलं उ्तश्गी पनग दर स्तर उदुतै २ पक मदात्मा के पात ण्व्य सजा निरो । वह खाह्ष्छार कः ठञन्बा पत्रे पीठे मटन्सरा ~ -ज) फे पास पटच आर महःत्म। देः देख पतङ्ग थर गद्न्मा जी करै सामे हाय सेड फर खडाहै गयः । नछ कः अ ज मद्न्याजीने ध्यणयसेनेत्र सोद्ेते। श्लकी स्मर्उनसी हि पडो । इते हाय.जो धे देख मदात्रा न पूजा {कि "वयथ, तम्र म्यी दे यटा फा बधि ८ मदलत्पाकी देख सहकार से वेेफेष्टठय गे ऊक भधा उत्पन दहो गई मौर यस्मे सपूर्ण स्वा रच, ग्चन्ति कन दिर जर अन्त ओं देच चद भेर के गहु डु टो चोखा सिमप) जुम न्यो पेखः उपाय चव्य कि जसरु छर्स्मो से व्व समो" कां
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ति छ७--धर्म ङ मिवा कर् सगथ नटीं ८५
यनुष्ठान कर †” गदात्पा ने कदहा--"वन्या, ससा पर इख समय मेरेसाममे सव्य वो दौ पेसा ही स्च, सर्द तीरा सरो । यदी चुर्दं खम्पूणः दुष्कर्म स वखायेगः 1'* सखाहकार फे छडके ने घी से ध्रत्तिठा षी कि--"्याज से चदहिफुर्टय हले, गसव्य कभी म सोद्टूगा !" दुसरे दिं धर था शसव कम घोल दे सायकारी को दत्तान कौ चत्वा । मागं मे उसका वडा भा भिखा भीर उसने इससे कटा-- "भया, फ तिष्ट , ए प्रप्न के रोते दी इसे घडा उक्र दुगा । समे सोच पि मै यदि सद्य कटता ह तो भाई जो फीता करेगे ओर भढ यहा ट तो त खता है गत, उत्तर नदे वर्हीसे कौट आपा इसी प्रकार सोखर दिन वद वेश्या के धर जारसाधा। मरनं मे चचा भिदा । उसमे कष्दा--"वेटा, स्ह जाति ही?" यर फिर उसी प्रकार फ भसलपजम में पडा ओर उत्तसनदे रद आया । दसो भरमार धरे घरे इसके स पूगः दुराचम्र हट यथे । दुखाचार द्वै ष्टी श्सङेहटव्यमे कुठ नायका धकाश दमा सीर इसने सोचा करि जिस मद्ासमा की कूगासेये चव इश्वर छे हे, उन्दी व्ही खवा मँ चं ओर उनसे प्रते ग्पज, भय म धमा करे 1 साहष्नार का चेष्ट महान्भां फते पासं गया फर क्रम पूर्वक धने श्रण्न पूता स्ह मराख्मभे टस श्टी 7, ठन्त नावन, स्न सन्धा, अर प्चेनोर, आरि पन्द- , यन्न, पचदस पूजा, मना, पिना, शुर, अत्तियि, दष्वर धनद "फ यना । पुन अष्ठ्धि योग सिद्धाना प्रारम्भ रिया) खन कार स्ता चेटः सत्त भद्ध तक्तो उरा ना भया घ्ाच्वैं _ अङ्ग खमाधि ॐ लिये सटष््मा नै टाः, रुमाधि ठक वव, चर.ड"ा्िञ्वत् देरी-प्णक दात गघ्लरेगा 1 गाहसार ' के वेर तरं जह." एटात्मा की, करिये | मद्यत्या जीने कदा कि~्ुम राज्ञ अपने घर त्ान्यपनौ माना घादि से नट
५८ ॥
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भद दश्रन्द्सायर--प्रथम नाग
साः मान्षलो म्नो दमे छण नं नह, सेमरोमसे निग्रहे यदि मेरे जीचनर्मे कुर वता गावे तौ जव लक अभस मर्म उगी क्ये जो नघुग्र वनं सहते ईन दुखा मतव तक मेरे गव के नेजने टेना)' पेल। खद् प्रणायाम कणा नेद जाना)" स्वकर कते चेरे मेघर भार चैसाद्ी' जिया । भा सै -महा “मा. जज्ञं मेरे पाण सेम सेमसैः सनि निन र्डैहै।' माताये नटः" चेढा, यष्ट च्या पुच्छ ' चौर स्दैटो? पस्ेश्वर तुश्दरि णचरुरोसी मौत कदे 1" ये मे कषा तरि-“नन्ःचिच् ेखादटौ जाय ती ज्व तक्ष यपु ॐ प्रटात्ना पो षुक खम्नसतेष दुखा ठेना,- हमारा सुतञ परर न ऊनि दैन 1 देता रूद् प्राणायाम छमा घ्पानमे स्पे मया ! सकार कत वेषे की भाता, विका, स्मो छदन सय गै उस्र सी यद यवख। देख व्याङ्ट रौ रोता, पीटा ध्रारस्म च्म) रोने की ध्वनि सुन खोखा मदछठाफै योग मो साह फार कै धनिक हीमे कै कार्ण वदष्ुन इछ इक्र दयोगयैः 1 चसो छोरी मोरी अमावास्या क्ता सा मेषा दका होया अर खय प सव थदनौ सपनी कह रोने खन । माता वोली "पेता हृष्य । जु अभासिनी कौ मीव मौ नहीं क्षीर चुम्दम्टी यद दशा । हाय । वादे मँ मर जारी प्रर तुभ चच जाति। दस्पीनाति पिदशी, बल्य, यख, सषद्वाचोखे मी उद् दह फर शौ रदे से) पश्चप्त् य् टहरौ कि अव इस फे गप को द्रमशथान ` लेन्यं । द् सोष्च उसके पित तथा पडेाश्ियेः नै चिमाय दवा उस पम याह्करद वैदे च्छो स्य उसे उखा कर सेर सिः दतकषे मे साहकास्केयेरे कौमा यो काद्र आया आर उखये ढा फि- भाप छो कपा कर छु क्छ दस श्चन रण्यं यक्यि योर उस्ने अप्य पदि से क्या" ने -. मस्ते चसद श कह्याकि यदिमौ मर अरन्ये यछत -
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छ--धमं फे सिवा टौ सायो नरी २३
स्यानं से सुक मदात्मा ष्टी जव तस्त न घुत्वा सेना तव तक मेख शनक शरीर शमशान कौ न जनै देना ।*" पिता यदु सुने छर नभे पैरो महटत्मा जी फे पास दौडा। पर माता जी टी यनैसष्टी जानते ये, दतर उन्दने एम पुडियार्मे आलय पाय भिसो वटुत वारौ पीस फर रण्व छदी थो । साह क्र भा मदात्मा जी फैचर्णेों म गिर पडा आर ध्सने कदा- ("सदाय मेरे येष घ्या यष्ट ष्टमा । उसमै मरते समय कम्मथाकिञवतकरथापफोन सुखा छेना, तव तरू टारे सपन शरीर श्म एमशान नं जनिद्चा । म्नौ महाराज, यदि अपक्ते पाख ऊुख उपाय तौ तो कीलिये । महाराज उसवेद के चिनाष्मणा सव माश हमा जाताः} मदह्यासत, चाह घ्म मर जं पर घ्गासा वेटा घना रटे!” मदात्माजी मे करा-"“धीर्न श्रो घयहामो नदीं म भभी दता हं 1" अय लो मदात्माञी भि-रीःश्धी प्रुडिया उढा खाह्कार के साथ चल दिये मदालसा जी ज्योंही क्षण्टुसार फे धर भायै त्योही उस गरेर की मा, पदन, सखौ कुटम्बी, परोखी सभी गने सीर यर व्द्टे क भि~, मदात्मा चै टम छोग मर आत पर्य खड सी जाय 1” ˆ मदात्माजी ने सव को धैर्य्यदै कदा क्रि“ व्यथं सेर कपिला गौकादृध्र रीघ टेधामो। ज्व दूध ययते जो पिस दं मिरी की दुदिवा मह्यत्मारजी कैषा शो, सय को दिलाङूर मटात्माजीनै चाकि यद् सपिया ६" गीर उच दूधर्ेडालं प्रथम च्डकेकी म्वा च्छो दुखा कैर कूटा कि तुम यथी नहली थीकति चष्ट टम मर जाथ पर हमासा पेखा जी जाय, श्सपे दम जदरः कीष्ठमपीखी सो तुम अमी मर जायी पर वुम्दाया वेदा ङी जाया 1 माता मे क्स“ र्हास, माग सन्मपनी तोद्ैणी, हमारे भोर येष हये या न्य £ महात्माजी नै
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५८ दष्न्त-सागर-- प्रथम यप
~~~ ~~~ ~~~ शः का तुमे दसै जी मास पटं मे रक्षया मौर पाला पोपारैः ण्ुलसे "कनिया का जाय स्नैर पेट फा मासा" वाली चा मन करो 1 उख दूध को पो ।'' मग्वा ने कदा" भमहासज हेमे भाप पदे यद् कात यना दे क्षि नारे ओौरवटे टैगेय, सही?" मरात्वाजी मै समभर दिया स्ियह दूध नदष सकती, वतारे खार र्दोषै, मत. माता टम क~ गिता को बुलाया मौर खदा कि--"यापर हमारे यहा दौः गे थे भैर कषटतेये रि दष्टे हम मरर्जाय पर दास चे ञी ज्ञाय, श्छ चयि पद्म दूगफो पीठे । पतो भमी मर ज्ये पर् चेरा आपका डी जायगा 1?" पित्ता ने कदा-- ' ""महायाज, हमारी अवसा तो अभी शसं प्रकारकी दपि ओर च्चे दो सकते ई 1" मदात्मा ने दन्द भी पौरे हटा खकार के वेटे री खी को युलवाकर रदा परि-"ुमने हल. के साथ भवर फेरी रे ओीर वेष्टारो शोमा दसी सै दै भौर चम भी अभी यदी कहती थी कि चै ह्म मर ज्य पर, माया पति जी जाय, इस चयि तुम शख दूध्रकोपीखो। चम तौ अनी मर जाभोगी ओर व्या पति जी उठेगा 1 खी ने कद्ा--'“मदायज, यदजया भ्या टमा मां वाप, फे यदा घदुत घन ₹, हम चटा चौ यपय॑गी भीर चदं अपनः जीवन व्यतीत स्परे द्गी 1, मदात्मा नै उसे मी सखग पिया । अच नचेखा स्ट्यावाखा मे सोचा कि सकार खे माता पिता स्रौ सद सेतौ दात्या कद चुके, सव दम खोगिकी यन्री सार, रख कारण खव कै लसी र्य रये । जव केवत वद्धा प्ुष्प शेष सद गयै--मदत्मः साद का वेटा, उस्तफ्द माता; पिना, स्मौ! वयक्तो महाव्माजीः रयाव, देख नद्धा कि--्वुयद्म फल] माता पितादिन्नि = उक्र न्वा चि“मदापज, महपसों का कौ प्से -7- कदी
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छ-- चम ॐ सिया कौर साथी नदीं २६ च्थियि जीवन घ्ना" तय महाव्यामैयेषे की माताखे कद्ा-"भ्यद्धि तुम यह प्रतितरा क्सये कि यद्दि माय वेटाजी खडेगा तौ यद् सव यथार्थं वृत्तान्त हम ययने वेर से कट् देगी, तोद्मद्रूधपौद्धे 1" माने प्रतिना की । मदात्मानेमिती प्रा दरूय वदे मानन्दसेपी खिया गौर साहफारकफेषेरेको प्राणायाम से जा दिया अर उसस्यी माता से फटा फि-- ५यय द्रस्से घृत्तान्त यवार्थं यदरार्थं कटो }' माताने कदने मे सकोन स्लिया । मदान्मा ने कदा" यदि तुम छुच्छ सकोच फरैगी नो शाप देर तुम, तम्हयरे पनि, वह नथा षसयेषै ' सयो मनी भस्प्र करः दुगा 1" पैसा खन साहकारकेयेटे कमारो चिव दौ सव फटना पडा! चच्चेने सुन कर यट समभ दिया-- ~ , एकः पपानि कुरुते फल यक्ते परधाजनः । भोक्तारो विषुपन्ते क्ता दोपेण लिप्यते ॥ ससार मे सिवा धर्म के तथा ईऽवर छे 'सचघुच समना को$ नदी । फेला जान चनसे मोद खोड मदात्माजी के साथ जा समाधि सौख, खमाधि दया उसने मोश्च छत को प्रा जिया। सच है भन्हदरिजी ते कदा ट कि-- प्रप्ता; चिवः सकलकाम दुवाप्तत दच पट शिरि विद्धिपिता तत क्पर् । सन्मानिता ग्रश॒पिनो विभवेष्ततः कि, |, दस्यं स्तत च्तुपना तवभिप्त्तः क्षिप् ॥ ` सर्थत्--श्न नश्वर रीरधारियै ने लयं प्ामनामोकी दडनेवादी लक्ष्मी पा नो व्वा, शरन्रु-गें क शिर पर पम द्िया ल्प षमा, चन से मियो खा सन्ने द्धि तो क्वाफिरश्स 5 से करप भर लिये ले क्या द्या, पर्दधौक न चनायातो म् स्यि!
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३० दन्त सागस्-प्रथम भाग त
जीरा कथा तत श्नि हिपमपरसपट पद्घून तततः क्रि, ' णका भार्या ततः गि द्यकरिपुणयैरख्ो वा तत कप्। भक्त भुतः तन. ज्जि कदशनपयत्रा वाप्तराते त क्रिः व्यक्ताञ्पातिै्षातर्मयितभवमय परमवं चा पत. [कम् ॥ अ्थति-परानो शुदडौ धास्ण फी तो' कष्या, उञ्ज्वल निर्मल वसं वा पीतावर धास्ण क्यातो ष्या, पक टीखी पास स्हीष्ठी क्या, यववा घोडे दवौ खद्टिने करोड सिया ण्टींतो श्या, अच्छे व्यसन मोजन प्पियि षा छर्कितं अश्न स्ायद्धुार को खाया ती क्त्या, जिस से भव-मय नष्ट होजाय सी त्रमक्षी ज्योति द्यम नजयोतौ षडा चिभवरष्ी पायातो कष्या?
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म च) श
स~-परमाप्मा सव देखते है; पापों से इचो पकर मालीौ नै एक वाग बहुत द्धी सच्छा कभा रक्खाथा जिस मे हर प्रकार के फएरूपएख उपदि ये मौर माच्मै खय -मेव अपने वाग कता रक्षक धा । पफ यातू सादय-पक वटट ही भच्छा कोट जिसय र्ट् णक पादिट, मीतरौन्चोरगत्खेत्था फर पाकिर याष्टर सी थे ओर पतल्यून भी यहिया परिप टप पक फीमद्ती सेपी दिये तथा धर्मी लिय षुण उस
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यागरीचे को देखने के च्य पहुचे भौर मारी से पूना कि,
"हम अ!पये वीये कौ दैखना चाहते ष्ट?” मारी ने कहा- “भप वामीचे चमे परसन्रत "पृक्त देखिये परन्ठ भाप छपा उधम कोर फल पल न तोद ।*› वाच सलाटव ने कटा-""वाहजप,, यह मी को$ भखेमानसे ष्टी वातं ह, भला यत् लाप स्याः कते ९, कथ पवा दौ खरता दै ”' चाव सष्ठव ह क्रतद भा" सया पर टदक्ये खे जीर "नना प्रकार ॐ व
= ~ १1
<--पस्मास्मा सव देखते ह, पापा से यचच ३१
पकः पुष्य, प्ख देख वाव सादव फा मन दङ्याया मौर चाब सूरह ने यष्ट सोचा कि यदि हम कुर फुरु तोड अपने भीतसे सोरगस्छामें ररत यरा मरी किसी भतिन दैव सकेगा, थत घाव साह्य नै फट तोड तोड भीतस चोरमत्मे -सीखूपषही सहल कर्भरः लिये मौर वाद्धिरी पाकिम यष समभ कि यदि म इनमें कु फर डालसेगेतो यष भाद्धूम पेया कि कपडा पुटा भा दै, कछ फ उन्म भी तोड़ तोढ फर डा वरगीचे से चल कर निकलने लये तो चगौश्चै का मादी धगीचे कै दरषाजे पर चैठा था, उसने › फा ्वाषू साहद, दस वरगिखे का यद् नियम किलो मचुष्य देखने जता, धिन 1 भारा दिये नद्धं जने पाताह। वारु साद्व ने कदा--““आाप दै छोजिय, मै यदा ह ।*° तव तमे भासी मै कद्ा--“ इस प्रकारः रासा नटीं खिया जाता, यां तो आप ६स कोट की उतार कर अरग रसिये स्मर भँ इसके पण्डः प्राकिट मँ दाय डालकर दैखूःगा1** गवतो यावृ साहव रद क्सने लगे । मादी ने करा-ष्डेर्हसे फु न ह्येगा । एस कीट फी उतारियि ।* अत दाच खादय को विवश ` ह फोट उतारना पडा सीर मादी ने पाक्िटि मे दाथ डाष्ध देषा तर फूट मीजृद हयी थे । घव तो माली ने वाम खाद्यको पकड अपने नियम के अनुसार उण्ड दै पुरिस ऊ दवाखे कर जेर छो मेज दिया । ~ पकी, दर्टान्त तो यष षमा षरन्तु दार्णान्त इस्ता यह ई कि पर्मात्मारूपी मारी सौर श्रटतिख्प जीच फो ठे -- अजामेशा र ्तिुष्लरप्या, बदयी प्रजाः सृनपरानामस्पा । , अजेदेको जपमाणोऽुरेते, णदत्येना सत्तमा पमजोऽन्य ॥
नाना भाति ष्ठा स्रंसारखफी प्रयीचा रख कर यमेव अपक शाप ही संसार का रक्षका दी र्ट द 1 यद्र जीवात्मा
॥
+ नः 4 ॥ ४!
1 र ' ८ द्र्टन्त-खागर--प्रथम भाग । ॥ ९५ ॥ ८ 1
० . शसौररूपी कोट परिनि वागोचे की सैर करने याता है, परन्तु
उस सादी रै (यअ ४० रे) कष्टा थाकि-- - ङृशावाश्यमिदमल्यं यत्किञ्च स्ना जगत् । । तैन ल्यक्तेन यंजीथा मगध कस्य सिविदधनम् ॥ ,
मीना के देखने जाते ही पर यह जे कुक संसाररूपी वाग् दै सथ सुस भरा है, यत बागीचे र्म जा किसी वस
' दर हाथ न डाखना । देखा कह पुन आशा दी कि--
वन्मेवे€ कर्माणि जिजीविसेच्छत < बधाः |
, „ एव स्यि नान्ययेऽतोस्ति न कमं हिष्यते नरे ॥ चेखा जान कार यद् स्मरण करते हुये कि वागीचेमें किसी वस्तु फोन दये सैर कर "आधये , पर इसने यदं आः „नाना भाति मे मद्य, मास, हिस, षयोरी, जारी लादि कुकर्म से खूब ष्टी पेट रूप चोर गदे भरे । प्रमे सोचा कि यद ‰ सुभे कोई देखनेवाखङा थोडष्टी दै, यह न सोया कि-~ "
~ एकोदमस्मीत्यास्मान यच्च कल्याण मन्यसे । = ,'
` | नित्य हुयन्त सेषु पुण्यपापेत्नित्ता सुनि ॥'
` वह परमात्मा सर्वत्र तथा आत्मा मे भी पुख्य पापक दे्नेवाखा मौजूद है, जीवात्मःरूप याव षागीते करे वार गचछकर नाना भाति के रूप पना यपमै को यद दर्णाकर किरम चखा धर्मात्मः हं यागीचे से धची तरह निकलना च'हता है, पर यर साधास्ण मचुरप्यो मे तो चख जाती है कि चाहे ससे अधर्मं घसो पर एक उच्चम रुपुरद् पोशार पहने, खूप बनाने, धन हने से स्वासारिकःखोग भति्ठा दे दिया फरते दै क्थे। कि सासारिक मदुष्य तो ष्यापक नरौ दुम्टःरी मीदस् दुखा ऊन सक, पिन्तु परमा फे यदा यष्ट याडस्यर गु
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६--पारसर सणि खी वधया देर
यन्ता 1 जिस समयम संसारस्पी घागीचे फे चिता रूप दधार परः मदुष्य पटचसा ए को ससलफा शरीर्रप्यै कोट माखी उतरवा कर अम र्प्वा छता ह, यषि कैर चेरी नही उसे पारितापिक यीर्यदि फुर एक ए तशी मेँ बरामद द्यते दण्ड दे नाना प्रकार के येनिरूपी जरुपानों मेँ सपने नियमस्े दूते के याथ मेज फर्म का फकटेताषएटे।
१-पारस मसिद्यी बथ्या
णक महत्माने एक म्दाहुकार फो एफ पेखी प्रास्समणयि चऋ्ी.यदियादी कि ज्खिक्तेा खोरे मे द्युभातेष्टी खोदा सेना यन जाता था, परन्तु मष्टाल्मा मे र फटा था कि वधया उन्दः सात दिनके लिये देता ह, सात दिन परे देने परे तुकसेयद वरियाखेद्छमा। सहकार ने दिया पतेष्टी सोचा किमेरेधर्मंतेखोदासिादहसिया, युरपी, फावदय, ' कुदार ओर ई द्यी नष मौर दिया केवट सात हीदिनिशनि मिरी है मत, उसने सेष्वा पि जभी दिनतोखातपडेषै तमै ॐ खोदा खरीद कर याखकतारै पेखा समभ प भादेमी क लका, दुखा तम्ब मजा सौर उन आदमिर्यो से कदा फि लोदा जस्त खरीद कर खना । दो दिन र्मे गाडी षःलङ््चा आई, ख या हा दिन ॐ वच्य पष्टसी । पुन चटा ` लोला म्पीदते, गाडरथे मे दखादते दुष दिन कीन गये) पुन दौ दिनम फिर यहा रेख्माङ्या माई । इस भत्ति द्वस यीत गये । श्डातरपे दिनि सादकार ने मालया से मारु उतस्वा कार स्वा कि थदि यद्ध पार्स पथरी दुग्धे
दिते हसो ताभिया भो या दर्रा खरीये खण सव दुर रुगे, घ्न छोहे फेोए.घर भर खर तव पारस्य पृथरो छुरय, फेला प्षमम खोदा शटगादियेः मं ससा घर खाये । घरमे दर्मा '
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दै . दष्न्त सायर-प्रयम भाग
से खोदा यैलगाद्धियेों से उतरवा उतरा घर्मे भर शपथे { यद् समय खत्तद् दिनि दार वनै सातकाथा) तव तर महात्मा सी चय्थि केने रे छिषट आ गये | सखष्टुक्नारनै महात्मा जी का दष्त कुक भद्रर सत्कार किया । महास्मजी. मै कदटा-- वह् बसि ख्ये ।' साहू मार ने फटा-- "महा - रज, शव तक तो हम खोदा टी खरीदते र्दे, फक्छ कारणम ग्वाद्ये 1" महात्मा जी यै कटा-- "मे एरु मिनट भी नदीगम ग्ला सकता, घटिया ङद्रये 1 खाहकारने का---“"महाराज, ` अच्छाहम अभी जाकर गोदे में छुभाये छने है 1'' महातमा जौ फरा--""वस, आपष्ली सवव ष मै, भव वयिया चरे खीजिये 1 खाष्टनारने का--'"सच्छा यैलो, हम दुष ' छेते है 1” महात्मा ने हाथ पकड षटिघा छीन खी । इस टृान्त क दान्त यह दै कि जीवात्मा सप सहकारः के! पस्मात्मारूपी मरोत्मा नै यह् शरीररूपी पास्समणि फी च्धियासात दिन के लिये (सात दिनि का तात्पन्य चह ह फिदधितं सतीष्ट) दीथीकिरदसर पारसमणि पथरीसेमाया जेजाङ विषयैः से गग ह मेश्छरूपी सेना वना सेना । पर यट जीवात्मारूपी साकार खाते दिने यानी सैव छेषा ही स्रीदता र्हा अथात् चिप्यें मेष्टौ फला रहा । जय मदात्मा इनसे अवपि अमै पर वयिया लेने गया चवं ते & परमैश्वरः ढो वर्पयाषएक वपं याङकैमासर दी सौर जयुदेताष्टमं सृ नवा ख, य्न कर ङ, योग साधन करे परन्तु वहां अवधि दै पश्चाच् पक मिमय की सी मादरुन नरी, जलल किख कवि चै कहा दै-- ५, "५ ५
स्वक्ा्यमस्य ङर्वति पूर्वादिके चापराहणकम् } नषि पवन्ते मृत्युः छतमष्यान्पथा स्तम् ॥ ^
॥ \
१०- छु बणे के लिये भी मेजिये २५
: जौ काम करना र उसकी अपि फी प्रतीक्षा न करके अभो करे कर्मकर मैत यद नष्ठीं दरेलती पि शसा यह काम शेप पटा है, खसे रसे शने दिन प्रे पश्चान् मस्षेण करेगो । श्रत दरस पारसमरःग पथरी फोयेा दी व्यथै मन खोरयै । यद्र ' मदुष्यं शरीर वार षार नहीं भिक । देखिये फिसी कविने कटा 2-- कललन्मेदं य-व्यता नीत मवभोगोप्रह्िप्मपा । , काचप्न्येन व्रिकरीते इन्त चिन्तमािमया ॥ अश्र॑-यद जन्म सास।रिक् भोगो की छारा से यन्यन ये राख दिया । हाय ! यने चिन्तममःय्रक्ते फाच ठे सतन येच छाखा । दुखस कचि कटा ईै-- "महता पुण्यपण्येन कौतेय साप्रनोस्तया ] पार द् खोदपेगन्तु स्वपयागनमिःयते ॥ ` अर्थ-वडी पुण्यरूपं हार से ये यद सलु य रेदङ्थी चच ससार खपी सषु से पार जने पे खयि च्य थी जदनर यह ` द्रेष्नजायतय नक्त दस सयुष्र से पार जाने फा शीघ्र श्व यद फर ।
र १०-कु प्रमि के न्निष भी कीजिये
एक राज्यम यद् नियम धा कि उसका ध्रसयेक सजा १० वर्षराज्य ग्नय्मैले पश्चात् वय दे मेज दिया जाना चा । ऊरटूएप् राजा उस गही पर वैदे परन्तु दस दुपसेये इनमे दुखी वै किः जिसका पारावार नटीं मीर सेचते स्ते धे ङि यष्ट खय ` सामान यर फेदण षटमारे पाल € य्व, २ चष ? पदर, मास्त) (3 खे उना आन्त पी मीर धानन्व् नन
1
१
६ दषान्द-सगस्--प्यम नाग ~ ' `
बन्द ये । अन्यास एफ याजा साव फे यदा ए ठ महात्मा गये । महात्मा मै कटा--““साय, तू स्तना इस्त "व्यो दै 1 राजा नै कहा-- “महाराज, ६ मास के पश्चाद् बन कोम दिया जागा शौर वे शज्य फे सम्पूर्णं पदार्थं क्ट जाये तव मुर यडा फष्ट होगा । सी कारण दुखी रहता ह । मदात्मा नै कदा--' सगन., उसङ्ते सिये शनन दुख प्यं फर {गे यह स्पे थोहो खौ वात यपो ६ मास कै वाद् प यतपपेजानाहै भमी सेराज्य के सम्म पटार्थं कप प्रसं ध्पैरचीरेउसवा वमे मेजदरैतैषही ताकि वद्य क्ष मे 1" सजाने चैसादी ख्या अतैर वष्टवत नै जा आतः गोगनै खगा , = द्रसग् ्न्तय्धिषेकिघ्स जीधात्माङपे राजा को तुः चैनो के पश्यम् अन्य यन्यि चा अन्य शरीरय फी प्री \ र्दी ्ै आर वह् शरीर तशा शरीर फे साथ उ्रल्ध्र पदु ग प्र सम्बन्धे के हट जये के शो क ॐ शीरिति होता' फे जसे दूसरे जन्म में सिके या नदी 1, ती उसके किष वः नया कि यश्ष्टि तथा दान ध्वम द्याया पनी न तू लपने पदा मीरे रे न्य प्रसार पटच दै मवि तुके पुनर्जन्मर्भे वै सपू एदाथं प्राप्यं । ध ५ ( , "य उज्जीयेन तत् छरय्यात् यनात दुख भवेद् ।
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| ष्ए्~वेैरार्व ,- , `
एकक रजा का मन्त्रौ अच्यन्त सोम्य नीर षडा ष्टी चतुर च त्रिया महष्पज चती सेना मौ चो प्रय मीर पुर धी । गम पना काम घडे नियत् समश पर किया कस्तेथे परन्तु मन्त ॐ पाटसीचाज्ञ द्येन ष्भर वस्गरूने से सम्पूणं सेनः मन्त्री २ श्वि गद यौ तिसखसेरासा कोहर समबन्य सदाथ?
{३ १--वैराम्य २७
जाने किस समय यद मन्दी सेना छे सुकर पर धावा फरदे। एक दिनि यजा रानी धोने भानन्दर्गे देटेष्ट्यैयेदोरनीसी गै महारज से फदा सि--""महाराज, मन्नो का चिसद्ध रहना अच्छान्ध, न जाते सिस समय वष सेना धद) यरद । दसस फार भात फाठ माप सपन वेट फो मेये कि घर् मन्धी उीकै मखो हदा दै न्मैर षह याप से दिसेध दसनाम आपकर शवुद्घेख ष्टो जाय 1"
सका दान्त यद है सि जीवात्मा स्प राला रा गनरूषी मनी वडादी योग्य ओर चुर दहै, सिसफैष्य छा सन्पू कम्रं जीयके ष्टो. ह । इन्द्रिय कूपसेना से मनस्य मत्रा पिस प्रकार चादता है कर्मं कराना ट । परस्तु सद् मन दना रंय है क्वि इसके ये एदा है--
यचल हि गन छ्ृष्णा मायि इदयःदृढम् । तस्याह निग्रद भन्ये वायोर प्रम् ॥
दैविधे फो दैषरे तती सटकङिल्यय वी प्ये छुनिधे पयो दौरे सो रसिक सरनाजदै। सू च्रिचेमो दौरे णध्रायन सगन्ध करिसपष्येकोष्ठौरेसोन धवि गदासयख् रै भोगिये न्ये सरे तो तपति हस कह दोय नुमल ठे पाष्ठी मेमन खाज ई । दाषफो च को स्सरे, जननो षी देत धरे मनसां न कोड ष्टमदैष्यो द्गावाजष्टौ १६५
यख, इस मन्दी >े दन्वियरूप सैना धपरै वशीभूत कर ज्व लीषारखारूप राजा पर धाया करना चाहा ती घुदिल्पीखीनं जीवात्मा खय सा से कदा--' महाराज याप यथने यट चेदय भ्य क्ते मन्मी मन के पास सेजिये वारिः येदा चैराम्ब जार मन्दी के मनके को हटादै आर मन्परी मापे सचुद्द
५ ॥
~+
^ ८ हृएान्त-सागर- प्रथम भाष `
हो जाय । रेसाष्ी हुमा | घेरे फे जति षी मन्भरी भनुः गय भौर जीवात्धा रूपी राजा क्षा विजय हमा ।
५ श १) १२-प्रब् कन नषु फ.
ण यार पक राजास धपनै मन्त्री सेका क्ति अप म्य इस तरह के ण्वि कि द तव के सीरदेव ङे भीः यच कैन तय क्रे । यन्म चष प्रश्न सन चकिते गया पः फुर नाट सोत्र से मन्त्री यशराज की सधम मँ शर्ट? अ. ग, अत उन्हैनैश्रामर्ते रर सन्यासी भ पयैनाक्ी करिः परए एर कु पैर चिथ मारे श फ यद्ध तकत उलिये धीर दो जागो कौ युदया फर सं सिधा अरदो हममे तुमं सै ठे जा सजा साम कषटटा--*मद्यसज वे छ ओं मघुष्य घा गये । अहाराज कट्ा--'ष्छामो 1" मन्त्री प्रथम सजात फी खदा फिया २ कष्टा सि--“मदाराज ,यै ठय कै दै यामी पूतं जम्म र्मे कि श्वा स जवमोग रहै दः ।*' पुन. दोन लन्यासी मदात्मार्भौ यडा किया यीर का --""ये यय फ ह पानी अच येयोया यङो काघाख्य कर र्दे दैः जिखक्ना प्तन्ट मागे पावेंगै ५ अं च्म हम्म छम मसे ञे जाकर खड़े फर दियै पीर कटा-- वेम ल्य के, बर्थीच् न दहने पूव जन्म दी खेला दु सरक त्या शा जिससे छ देश्यं रात करते अर -अच : इनके फले द्टी क्म ह कि दूसरे जन्मे भ्व्य पानातौ प योर र्दा रद मङ्धप्य जन्म सी न्दी पास्ते "एकक च्छा वाप द- ॥
ध््रायस्मयोक्ाण भस्येनोमरि न विदन । अजागचस्तगस्यैव तत्य मन्य, निस्यकम् ॥
१३-देह मे शयुजी ३६ ' १३-देदम घुजल्ञी
पक अन्धा किसी चडे भारी सकाम कै मीतर पड गया स्व येचरे को सोर्ग मिना किय हौ गया, परन्तु मम्धे मै पष युक्ति सौचौकियद्रिं दीवार पकडे पशडे सके स्र मै चू नो द्वाज अवध्य सिल जायमा पीर मन्धे नै फेला भित्या । परन्तु दीवार पकडे पर्दे अनो वद् टवाजे के खामने भततातो उसी देहर फेस खुजखी उठती क्रि ब्रह दीम द्थो से दीषार्य्छ सदाय छोड श्वुजलमे रमता । एसी भि उसमें सै.रड यङार ठगयि, पर ह्र पार दरवाजा निस जात्ता था सौर षटये टो राथ मखा रश जता था ।
॥
पल रन्त ये ह शि यद जोचःक्ारूपी भन्दा पुस्पं येगिरप मतान के वेरेमें पडउसते निकमे फा उयौग न्त श्ना द} यद श्चात्ि रहे प्ति योनिर्पी घेरे के चन्दर सै निकटे का दवाजा एक मात्र मष्य योनि री है । पर एसे जीचात्मा ख्प जन्ये फो जय जव मनुष्य योनि पान्न होती है तय नरउस मे दते पञ्च विषय रग स्ठुजद्टी उखा कस्नौ है धीरः पके में ही दस्र्मी उच ध्यत षो जानी है सीर सदुप्य' प्ररोर म्प टर्वानिा निकट जाता टै । इख चिरे सक्लने । चिप्या नेत्य दर्वाजिष्यो न निरखिचे न्तो यौ स्पी मानौ कै त्रेरने ही चढःर साया फसोने । सखा क्ति फति भे एषा है
तृष्णाया विषयैः पूर्मं कश्चित छृगपुरा । > [> न = ५, करिष्यन्ति न चान्येतभागट्प। पवस्त्वभत ॥
"८ ृटान्त-सागर- प्रथम भत
हो जाय] देखा ष्टी हुमा । वैरे के जाते ही मन्डी यनुक शे गय भीर जौवाल्या रूपी रुजा सा विजय दुधा ।
१२-सष् क नतव क ५ पफ यार पकर जामे पने कन्यी से कष्टा पि अप ६ भनुप्य स तरग्हके टाश्वे किदै तवक मीरदेाध्वकै मौस्दै अचकेन तवे । मन्जो यह ध्रपन उन चद्ित ष्टौ गया-परन्तु छ नार सोचे से मण्डी मष्टा नी समभ मे यह बति अग रई, यन उन्हे प्रामर्ये थावर सन्यासी 9 त्मार्भो सै प्रार्थना पिः आप ङृएा फर कुवर्ते मारे , सजा के यर तक चेचिये भीर दो राज्ञाम कौ बुुया फर साथ किथाओरदौहमेतुमर्मे से ॐेजाकर राजा साष्टषसे कहा--''महाराजवे छ ओं मछष्य छा गये 1" महाराजने कशटा--लामो 1" मन्त्री प्रथम.राजायों ठो खडा किया,यीर का कि--'“महाराजं ,यै नथ कै दैः वानी पूवं जन्य मे किया थास अवभोग रहै दै" पुन. दोनै सन्यासी मदात्मार्भीकी खडा क्ति गीर फा --“ये यच के ह पानी अव येयोगादिं यजो ्ाषाखन कर रद रै जिला फलद घ्ागे पावेगे 1१ भौर खोषमर्मेतममे सेद जाकर खड़े कर दिये प्मौर कटा--्ये सयद्ेन नय के, अर्थात् न न्नै पूर्वं जन्मभे ष्टी फेस छु द्धक शया "पा जिसके छख रेश्वर्ययं घाद्न ररते भौर अभी इनके षस ष्ी फमं है क्ति दुसरे अन्यम येश्व््यं पानात प्क
सीर रहा चरन मखुष्य जन्म सौ न्दी पास्ते 1ग्एक कवि चा दाक्ष ६--
घ्यिन्नमपोक्षाशां यस्येरोमि न प्रियते ~ अ चामहस्तग्यय तत्य ज्व निमूर्य्् ॥
५
॥
॥ १२ गेट भे खुजकी ३६; १३-दे६ म खुञल्ली
पङ अन्धा स्लिम यडे मासे मक्राम के भोनसर्पटगया। सय चेचारे को सों मिरना किन ष्टी मया, परन्तु न्प नै एण शुक्तिः सोची कि यदि ठीवार्पर्डे पश्डे सते सष््रे मैं यद्ध नो दवजा गयण्य मिल जायगा सीर धन्धे नेपाले ' पिया । परन्तु कीपार पडे परुडे उभो बद् दवि फे सामने आतप तो उख देह भ्रं रखी सुजलौ उटनी क्रि चद् दोन रथो से दौषः का सदारा छोड खयुललाने रणता । दस्मे भत्ति उसने सैरडोा चक्कर छगाये, पर हर वार दुर्याजा निस्छ लावा थामोरषट्येादी दाथ मर्तारष्टजःनाथा )
द्तका खन्तयेग दै क्षि यद् जोवतत्मारूदी सन्या पुल्प येनिरूप मकान फे चेरे में पड उसके निफख्यै ता उयो सनाद । यह श्चातरदे कि योनिरूगौ घेरे के धन्दर से निकमे का युर्वाजा प्प माद्र महष्य योनिरीदहै। पर एप जीयात्मा खूप जन्धे को जय उव मदुप्य योनि श्रान्त होती है तय तव उत्त में इसे पञ्च चिप्य रू सुयुजदी उड करनी है धीर निप्येो भें ही दसि उश्च ष्यत्ीतदो जानी पै स्तैर मदुप्य सरीर स्प र्वा निक जाता 2 । इख लिपि, सजनो । विप्यैरध्स दर्वलेष्ठौन नि साटिये बी सौो योनि स्यौ मसाने फे चरेम ही चदार खाया फरोने । उसा कि कति मे फटा है--
त्प्णाया रिपवः परतिर्नय कश्चित रवपुरा । करिष्यन्ति न यान्येतमेोगदृष्णा सपम्त्यजेद् ॥
"34 „. टृ्यन्न-सायर- प्रथमं भाग ` ~.
दोजार।रेखाष्टो द्मा । चेरे के जाते रौ मन्त्री गयुकर ह , गया भीर जीदासा रूपी राजा का चिअय हषा । ।
[१ ५ 9 ्र्-प्पकनतच् फ ५ प्यक वार पम राजा मे घपने मन्त्री से कदा क्लि साप.६ , मचुप्य ख तरह के रण्ये कि दै तव के भरदा अवके मीषद सयङेनठवक्ते। मन्त्रौ यह् धग्न दुन च्छित ष्टो गया परन्तु फुछ जार सोचे से मण्डी मदपय नहो समम में यह वात, ग ग, यत उन्दने प्रामर्मे आश्र सन्यासी म दाटमार्मी भयेन तौ पि वाप रुपा फर युक वेर फे दिये मारे याजा के यष्टा तक्त उख्य यर दो यजानं को युखग्रा कर स्थ चिषाओौरढो हममे तुममें खे मे जाकर राजाः साहसे ' याहा“ "महाराजवे छ घं सजुष्य सा गये ।* महाराजने फष्टः--'"छामी । मन्त्री प्रथम राजार्मो छौ सेडा किया भ गीर कदा सि" महासा ,ये तय कते टे वाली पूर्वं जन्य मे किया थास अवमोग रहै दै ।' पुन. दोन सन्यासी मदातमा्मो को खडा किया शीर कदा "ये अव कै दः यानी अय ये योगादि यङ्गो का वाखय दुर र्दे है जिसका पट आगो पा्यगे 1" ओरं चोरमर्मे व॒मषैसे खे जाकर चड़ कर दिये धीर कटा--“ये ययक्रेजतय ङ, मर्थीत् न चन्दने पूर्चं जन्मभे ही फेला छ ष्क पिया धा जिसन्ते छ पवय प्राप्न रते मौर अय भो श परे दी कमं क्ति दुसरे जन्मभे देव्य पाना तौ णक को दय मचत जन्म मी नदीं पा्तर्ते ।"एक कचि पवकामयोन्ताला व्जोमि न विद्ते , जचागलस्तकन्यय तत्य सन्म निस्थशम् ॥ नः
1
१३- रेद् म खुजखी ३६ १३-दे भ खुजली
एक न्धा किसी चडे भारी सक्राम फे मोतर एड गयः अय वेचारे को साग भिख्ना कटिन हो गया, परन्तु मम्धे नै एक युक्ति सोची कि यदरिं दीचार् पकड पडे एलके सद्र में चद् नौ द्बाजा सवश्य भिर जायमा जीर जन्धे ने रेखः! ही किया । परन्तु सकार पकडे परुडे उनी बद द्वाज के सामने जाता तो उस दभ्र केसी खुजली उनी कि बट् सों हथो से दीवार्का सहारा छोड खुजङाने छगता । यम भाति उसमे सैङ्डोा चक्र छययि, पर हर वार दूर्वाजा निर जाता थाोरष्हये दहो हाथमलतारश्जमताथा ।
्रष्लना दन्न येः है पि यद जीवत्मारूपी भन्दा पुल्प येनिरूप मन के चेरे में पड उसे निकमे का उयोग न्न र्ना ए । यद् णात ररे फि योनिरपी चेरे कै पन्यर से निफखने फा यर्नाजा प्प मात्र मद्य योनि सी ई । पर ए लीवाता ख्य जन्ये रो जघ सय मप्य योनि श्रानन होती है तव रव उत्त भें इसे पञ्च विषय सख्य सुजखौ उग्र फस्मी है धीर विपये में ही दसंफयी उघ्न व्यतीत दो जाती है मीर मचुप्य पारीरस्प दरवाजा निष्ट जावा २ । इस किप, सन्न । विप्यार्गेश्ल चनि कौ च निचय नर्तो योगि द्पी मकानो के नेरेमे ही चद्कार खाया केने 1 ऊस कि फपि मे फटा ह-
तृष्णाया पिपवैः पूति सभ्चित इवाधुरा 1 करिष्यन्ति न रान्येरत्भोगतृषप्णा नवम्त्यनेत ॥
[1 ५ <
9 द्श्(न्त-स्वागर--प्रथम माय
1 -- -------
1
पक चार मदाराजजयक जी के मन्व ने उनसे पडा कि | * महर ज, लापके ठह रोते टये भो आपका नाम विरु श हैः ”” महाराजने का~ दस शा उर हम तुम ङु गवि, प दमे ।' जच छ दिणव्यतीव हुये नो मद्राजमे नादि उक्त मन्वो खा निमन्वरष्व या भौर घर मे सम्पूणं पदाथं रेस बनवा्ये शि जिन ज्वी मे मी नसकन पडा था मौर मन्त जो केमे.जन क्रमे फे प्रथम दही पदि ढो इस प्रसार पियवा दिय" जि “णह ४ यञ उक्त मन्त्री यो फंसीदौ जय , गो मीर हि डरा पीडमै वे से कदा कि-“्मन््ौजीके दधार पर तीन वाजं दमा देना कि जिसे मन्न सुन सदै 1“ , रेखा ही भा । पश्चात् दौ बजे महाराज जनक जपने सन्नी को 1 मेलन के निमित्त ुखुवाया थर बडे दुर से मेजन फरप्या। ¦ जव मन्त्री जी भोजम फर शुके तच मट्ारष्ज. जनक जी ने , फटा-मम्न्ीजी, यदि यच मं वत्ता दै कि किस पिस मलम, मे शसा कैखा छण था तो मँ ापजो खुदी से मुक्त धर द" । ६
मन्न्जो मे उत्तर विया कि--"्मदासज, सु मौतकेभय खेय णादनस्टाफि शि माजन तें लवण है, ङ्किस्भे नदी ` में कैसे यताङः ८" लव सो महाराज, जनक जी ने मन्बी सै कदया--""छनिये, जप पी खटी, वम समय चार वजे श्वा भौर, ची चये यप् अजन कस्ते यैठे ये, ओगजन कै नमस से मैत फे खमस तदो घन्टे दतो जिन्दृगे की यापो पूर्णं जश्ायी परन्ह प्र सो अवस्ये खेवण छ कन गसीर, स्मरणशक्तिः छिदा लीग शरान व्यादि दे होते द्ये मी न सदा श्नु खमे तो च्व मिनट भी जिम्ब्गी ब्दी पूर्मं घ्ाणा नहं, अत जिम
र १५--विपयो' छी यसटियत 1
प्रकार तुम दो धरन्दे काममय होते ष्ये भी द्द लतेदये पि दद द गये दसी प्रफरार पक मिनस चेभी वायु समी आदाय रखता दुखा मँ सैन विदेद् रटता ह्र । जनफजी का वाङ्न दै ति~
अनंतवत मेति यस्पमेन स्ति क्किचन । प्रिथिलाया मदीक्तया न मे सचिन दृद्तते ॥
, श्~-विपयों की घ्मल्लियन
पज यजपुत्नर पञ दिनि अदने तामर्मे न्रूतौी मया । एला- पव सजपुष्र -पे टृ्िपसमदेल णते उप्र पदी । मह पर एक सोह चप को कन्या अयन्त दी रूपवती स्नान करकं भपतरै केशा छुखा र्दी वौ । यद् कन्या उसी राजपुत्र > पिना राजा सराह फे मन्ीज्यी की कन्या श्यी । राजपुत्र देख तुस्त दी मूखित्त ष्टौ नया यौर ङ्क कार के पचाच्जय सकी मू जागी तो किर दल की दृष्टि मदर की यर गर परन्तु फिर एसे चटा वष रूगवती न दिखखाई पडो । राजपु अपने धरः छोर भाया" परन्तु घरः आकर वद खव र्न पान पतदम खोड शोकमयन यँ देर रहा । वटुत छ्छ पूछने पर इसने सया २ दार कष्ट दिया । यजाः यपे पुत्र कौ घद द्णा दे वड ही एकर ॐ पड गया । सन्ती राजाजी की यद् दशादेख रपमै घर यया गीर भयनी कन्या से सम्पूणं दुतान्न कदा । कन्या मै अपन पिता से कदः--“"पिला जी उसमे लिये सजा सौर राजपुच् शमो खी श ? धापजा कर सयपुतज सै चद दीन्िये कि थर उदि, स्नान भोजन कील्वि, मैरी कन्य आप से दस्छीं निखेय 1" मन्त्री ते केसा ठी पिय} राजपुत्र गै यद् सन्दर खन खव्यन्त प्रसद्य ह्यो उट रूर स्नान भोजन किरि] मन्नीनी जिस समय अदने धर गवे के उनकी कन्य
॥
८
४२ दश्न्त-सागर--शरथम मर १
> उवसे कदा कि पिता जो, सुभे . एन अमाखगोटा भीर ८० ठे भिद्टधीकै भौर ८० सूम रेशमी माज ष्टौ म गधा छाञ्जिवै ! पिना मै उती समय ये सव चीज्ञं मणचा दा।' र.य-गेनै ज्यो एय जमाखगोडे सा जुह्धाय लिया क्रि उसेद्रस्त परद्र भये प्रासन्य षयो गये । कूप्वती दर पार उन्हीं कटा मे पणखम्डे जाती भ्र र छ् डे पर जिसमे किः वष्ट पालना, द्यो तीप षण्न रेशसी स्मार सोद्ा दिया करशी धा: हस ध्रन्ार वे खभी इडे खञं पये गौर रूपयनी.यते यट दणा ह्य ग कि उसका सम्पूर्णं सर पौरा पड गया भौर श्रतेन दयी षते सष्न्त भनि द्याम मगरी | वष्र से साः पर ठेखी द्रुह धी भौर ठसफे चारीं ओर मवि मिननरस्दी थौ आर मल मुन्र समै रूपे पहमै थी} षस वस्या म सित उस, अपम पिता मन्ी से कदा फि--"“पिता। जी, सव घाप सजपुन्नदो ले आद्ये 1” राजपुत्र पूर्णस्यसैं खज्ञ धज यडी उमग दे साथ मन्म मेसाय यक दिये । जच मचोीजीङरेमर्टी मै चेदा करमै लगे गौर प्यास मीतर . पष्टुचे तो छख इुगंन्थि भाद् । राजपुत्र भे स्मार से गप्रनी , नार दवा कदा--^मन्न। जी दुगन्य कै सी तीह ?' मन्त्री ने कहा--“्ोयी च््सिी योज समै, घाव खद याध्ये?" पर चडी कचिनता से दुगन्ध सहन करने हये सायपुच रूपवती सक पहुचे । रूपवती ष्ती यद दृशा दै र्जणुत्र ङ्ग रह् गथा कि--*"यरे1 इसको दपा दस्ता हो मर । मेनि परस एसी उस स्प्रदेखाथा, यजक्याष्टो यथा? स्पती मे षय "म्ाराड, सादये" परस्तु राजपुत्र को रूप्यलौ के पास जागा सो क्छ चच वलां खड रहने में मिगट मिनट ओ वनी तक परेफष्ौष्दी धी दिः जिसका पायद्ार नी । सूपवदी तै फट पदा्यय, यापक प्रीनि यदिसुकचेधी क्षी यदु
ी २ + +
4
४ १६-अष्ाचक ४३
दासी प की सेचार्मे उप.खरहै यौर्यदिमेरी सूशुरनीसे म्रेममभ्थातो वदहफुडामे मते रन्ली ह ।" परन्तु इस मृद गजयपुत्रफो पतिप्यायोव नष्टम । दस ममा मि खूवपुरनी क्पो$चम्तुहैजो द्र डाय मसो स्क्लो दोग! भौर ऊपर देशी क्तप्र देत हसे व्य। हुआ ऋ ष्ू पचुरो कोई वडो उचम चम्नु होगी जिक्त पर कि-रेयभौ रूम पडे षै! रःजपुत्र जकर ज्यो समार खोरे तो वहा पाना दैख नाक द्या . कर चल दिय! जर इस द्र्य से उसे एेखा वैराग्य हमा फि तमाम उमर उख. योगद अन्नो का पानकर्मोपसुलसो यरण्स फिया। प्रिय सजनी । आप खरग ने ससार 7 पदार्थो की खूवस्र्नी तथा चमकीकेपन की.यसटियत समक खो गी । किसी कवि >^ कहा रै-- कदव्छा स्तम्भे निन्तारे मपरिसाण प्रागण॒म् । य करोति सम्मूढा जलबुदवुद् सन्निभा ॥ संसार गे चमरी पदार्थो मे सर दृ'दवा दसो भत्ति जेषि केरे प्या या करमकट्के उवते जारे, चक्कल ष्टो रकल मिदेमे।
१६--भष्वक्र ¢
पक कषर मदएराज जनक ने पम समाकी भिस वदे चड़ विदानो कनै वुदधाकर कदा कि एमे कोर णेमा उपाय वता- ओ कि भ्सर्मेर घट मे ईभ्वर प्राप्तो जाय । एस शधरगण्र वहा पटुत से परिदत णस ह्ये ये! उसी सभारमे मदायज भश क्रः कै विताभी येवे! अदाराज यष्टायक्र जिख समय पार से धर माये तो अपनी माता से पूछा कि-- “माना जी
॥
४ दवण्रन्त सागर प्रधम भण
यज पिताजी नदौ दखल पड़ते, कहा रथे है ? माताने कहा कि--* "आज् महराज अनक री सभाम एस प्रकारः का विषय उपस्थित है, आप्ते पिता वहां शये द 1" मष्टासज्ञ अष्टा ख्क्र नै कदा-- "माताजी जघ्ठारीतो भोजरऽफे पश्चाच् हम, मी साजा जनक री वह सभा ख अभ्व ९" माताते अषटाच से क्य कि मेदः प्रथमो ठष्डारो अटो साडे ददी ईं हाथ पैर से अयाद्तिज दो कष्टा कषिकते य जग्धो ? दूसरे , ठम्डरै देख सय सेने ।" एर श्ण्ानम जा तो वद्धे विद्धान् गर यत. मतासेासादेपे राज्ञाजनक दसी सभम ला पहुचे! इनफे पडुचते दो इन्द जदो गाऽचेद, देल सम्पूर्णं सभाक स्तण इस पदे, एर मह् रास यदटाव्नजो सभावः टोमोवे गगने हसे । तवत्तो ननाकेखोगोने महरम थटष्वक्र जी मे पू पि ""अत्पक्यो ससे १५ सहास यष्टाधक्र जी' मे सर्जा स्मेरो से कहा-्यापर क्तो" दसो ए स््यके रोगन फटा---"व्टम नो अप्त, यो याट दे स्वदे एसे 1" खव तो महास अवक्र येनहा--श्द्सयो हसे कि तुपरं सव सपार, षयो किष -वमडे की परीश्चा ,चन्मरः ही द्ेदीती ह|” किन्तु राज्ञा जनक नै महागज य्टायनजी -पा पसाही खर-नार किया ओर अपना प्रश्न महाराज अण्चकजी सेभौ शिया । मदासयम यद्यव जीने कदा क्ि-- (सजन, यदिप ' यप्रसोदौो घनम दश्यरप्राश्च कसा देशे तो प हमे दो ' <, र दा॑रज जनक ने का- -“'म तुमको अपना सम्पूर्णं राज्य द देषो ।ध्महासाज णवत ने कदा सि~ व्वा राव्य तुम्दत्स है? पया जिस सम्य नाप चेद हये घे, राप्य साय खयै ते? उ्धप सो साल हाथ वच् यवो कस्ते हये उत्तपन्न दधे मे उद ती " महायान जनकू ने कहा कि--""मदारान राज्य श सिवायती हमारे पास कन नही हम आपके कया द" मारन षन
[१ १ क [ि ज) रि [78 (2.
न्तं सागर--प्रयम भग
च ष्यन् दस्पेदधेवेद्रृह ये! चष्तमङे देएदद्त दार यक्ष पडाभौरजे। फु सन्यत उश्च वह सय चु सया 1 भिल्ात्रर परम नडी, जपतो कडासे अश्वे । उद्र न्तो तभी मिना ए ज्व सेनि यन उग्जतारे। ब्र्यणको । नभोनिष्ट जालो 7 अन पन पष्ुचान रये, पस्तुतोजायथा सभय श्राटार न सिद्छनैसे यह् संव परिवार श्रतेः सरमे खा ग्र परम कण दो व्यं खे सद्न रते ~प ने कालेय ग्या, [र्तुं -सरन कृतयमे नि नर भी अन्तरन सनि द्विव, दुख प्प्वडे उड मेदे ह्लिजातेरै, सार्यापेरकी भूरर से र्परच्छनारस्गीष्ो जाती, पुत्रा पुर्या साथ
छोड अवने घमति की सहर्तेर, मलाभ मै भूय के मुर सथर नवति कितके पतेम वलस दिये वामर्णमे
। ८६ यर धमहल्यवर खो । सत्र महार
चादेयं जगा सए पष्ट निन जीयनम्। पुञ्णाफ पराङ्ष्ट व्ष्टतष्टतर जुषा ॥ [५ क 4 6. रौ अर्थानू-ध्र्धमदोवुगरप,ही दु खदा, नि्यनजीरन धर मीहे एुजदारमस्ण महारण है गौर धृधातो सवेमे सरन -रै! मां्रष्येमे खो पुञ्ची सा मरण देम परशरीर से प्ठिट टो मोजनोपाय शिया धो ठी द्रस दीन ऋह्यण करा परसिरार विचलितदौ जतो क्वा चाश्च्यं है? किन्तु रेसष्नही द्वा । ऋद्येण सप्ती नियत वर्म परसयुटुम्य व्यि रहा 1 यदपि च भीर उसी पसी क्षुश्ात्तं स्ने से सुखकर खटरी रुह मर्द, पर उनका आत्मा चटवन् दा जत्तपन चे पेम चतसेनदिये। उसी अरङारथ्ु्वायुत्रतधुनेगी मर्यादा स्थयी । अस्तु इसी ठे समय ॐ प्क १द्न सेर भः जी पद्य को भाप्र ह्ुए उखनं उनके खनु वनवाये शौर पाय पाचद्तेर खो दुद मै स्ट दिष्ट शेर प्य भर सरन द्धे रपर छेदे रमि इतने म-- 5
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४६ दान्त सागर--प्रथेम भाय
-- नौव का रहमेवाला लटा द्र ठेकिनिस्सीनेनस्ुना। यदा तक किल टन्जी कै धस्वार्टोनेनी न परटिचाना अर छ्य जीवभेनस्तेस्दे। जवचक्क्छा जीनेठेला किञवप्राणदी, जतिष्टत्द भाग स्डेष्ये ओर वनजे जाःएरम्य-नर्े वैड र्दे प्चात् मद्याजी सिक्त भोर काठः भग करगे धे, जाकर लालस से भिदे भोर कदा --""ण्टी काजी ऊरछत ट ? ' सर नो मे महग्टय। से कदा" ष्मह्ययज, हमसे कीसी "कर, हमे तमम द्विन फुस्सर द । पर भव पेखा उपत्य कीजिये , जिले न्ति मै अपन घर तो जाने पाड " मद्तत्माने कदा, फि *"्लो परतिद्धा सूरो कि रम थाज से निय पूजा, पाड, सर्ध्याः श्चिदोच्, परमात्मा का भजन करेगे 1" टराजोमै भ्रतिया की सदात्माजी मे ताजी सते अपने साय ठे उनके धर परह्न्या दिया।
इसका उछान्व ये है करि जीयप्त्मष रूपी काला चो परमात्मा रूपी महारा नै उपदै ट्च था-- `
अहरदसन्न्यायुपासीत तस्तारदयेरात्स्य सयोग त्रम सर्ध्थापुपासीत उद्यन्तपप्त यान्तपादिर्यमविध्याय्रनन तिष्ठति , तुय पूरा साय साय प्रदपतिर्नो पापः प्तः ग्रहपतिनों ।
नित्य भ्रात कार से उटते ह वरहाय, भिटठेय ०, भूतय, चयश् ष्पद खष्चरभे क! पालन, खवसे मेरमिरष्प किया कसे, परः नं ती "आदियस्य गत्ता गर्तैर्टस्डा ' सांस्वारिक कामो तथा चिययो से फूर्सत ह्री नदीं । पर्यात्मा नै स्वोन्दा कि इस्त प्रकार यद न मानिगा अत उसने अतिच््टि, यनाबुष्टि,मत्िणीव, सति- ! उप्छ, नाना प्रकारः कै षछटुंगादि सेगेा के ढष्या५ शस फुरखत न पाने चारे पापी जीचाव्मा गतान को खूव हौ ठीक -कराया । सनदी यह् दुख मँ पड महद्ात्मा कै-्रणयों र िर फर न्मा ५
~ ~ १८-शंपिलन्ताीं का वयां &७
-- "महारस, ओं कही सो रर 1" सीसे आज कल संसार यैसे तो कमी नाम नहीं रेते पर दु ख पडने पर ष्टाय रामर प्म! हे दण्वर। करटी र्था मानते, रूरी रोव मानते, न्तु पिस माप्रा क कविं नै डो 2--
द्वे सुमिरन मः र्म घुलमे करेन कोय।
1 =
` पुमे जो षुमिस्न करतो दुख रारे करोदोथ॥
पससेक्योन रम खच ठी भगे सेहो अप कर्तय फर्म पाटन कररेताफिदसदुसञदैलमैफीनीवतदलेन थये)
॥
„ श८्-द्पिष्न्तानोकात्याग
्टत्मा फणाव् जव सय कायुन्ार यगनै चेत काट ठेतेये उर्वक्ता णीट। चीन छरा जाता था अर उन सेते म पशु- जगति थे अ(र.जय डते फ अव दससेतर्मे कोल्यकार ए मदी स्हातववे पक प्प़्फण पीनं कर अयना निर्याहि ग कुरते ये, ध्ये उना नाम उषाट ( अर्थान् "कणन् द कणाद, कण यीन बीन दत्य सानेवादा = कणाद) टया। मित्ते मदान्ना यवना निर्याहि चरने जीर हमारे चयि धि वर्णन, जैखा रक विनय सिने जास्ये कष उठा कर के, जिच को ्म आज पठते मी नदीं हे ! यै महात्मा केवल ~रं एक खेरी छगये नङ्ग् धडद्ध यन में रटा कासते थे ; लिख वन भँ ये रहा कर्ते ये, जच उस चन के सज्ञा कै, स्वर पदुन्धी पि सापे सज्य में प्रू मटा्मा इस धक्यरः ष फर्म है व्वैर गास में च्िखाद्दै कियदि फिसौ रजा ज्यं मँ कतो चचा मदात्मा किन रहे द्रौ राजा सा सपं
भ
11 द्ष्टण्न्त-सःगर--प्रथ्म गाम
सज्य तथा पुश्य, छान, श्वर्म, तप, सव का समी ल दोना ह 1 येखाजानरला जी ने गने कपमद्ामके ह्य ङु द्रव्य महात्मा करणार की सेवा जेजा । ये क्मद्रार' चाक्र द्रव्यले स मरः खडे दहदौ यथे । जव क्न क च्छे पव्यात् सदसा र ध्णन से पाद सोखेरोपूउा-'तुम केत, भौर कटाः आभे हौ ९ कामदार र कदा--""मदध्यज आपके दिथि यहा ख राजा सण्टवमे दुख द्रय येजा र; सहात्माजी म 7टा~ “तुम आर किसी कगरेकोदै दो 1" कामदार यह् ग्रं शुन हैरान ये कि इख मदात्मा के पासं नट एक खगो द चर यह कहता है कि तुम यद द्रव्य जाकर किसी कगे कोटे डो 1 कामदे" नै यजा से भाकर देसी कह दिया } सजा ने इस बात सो अपनी समभा मै उपस्थित क्यः । वु य निश्चय इया कि रजा स्ष्ट्य की सयत के जनुसन्र यहः सल्यार नं धा, रस दिधरे मदत्मायरी ने दौरा द्विया हैः) कसा स्मच कर उसद्रव्यकोदशुण क्र षुत कमदारो दध्र सादय मै येता । पर मदत्मायीने किर यी ग्रही कलास तुम जाक्रकिन्मी कगखे के.द दे) र्जा सादय मे पुन" इस यात क्ती सभामे तगदः श्वय । जय की चन्र यह् निशया कि राजा सारद सयसेव इसका चोशना तरव्ये मर दहना सामण् दुसट आदि टे कर जाय ओर पनाप्तो हत्य | स्वं साज स्दाटय पुत्रे ओर उन्होञ सव सापम्रात यदात्मा जीद सन्श्ुख उपसि ' तिया तो महान न कदय" तमय सपान कनै जाकर किसी च्गटेकोदटैदो 1" गजा चै हाथ लोड चर रुहा--*“मद स्मान, परध छम द्यो सपरत पोल क्वाय पक क्गोटी के अर र दो दीपना हीन चसा दमन सामान के च्वि यद कट््देेकि तुम जाठर निनी करिटेकोदैदो छमेत्मेनपसे विद्दि च्छ अकर कर
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्६-मल्यत्पा कैयट काद्या ४६
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दीखता नही । महात्मा नै किर वही कदा "कि तुमं जाकर पिसगैकगछेितरोदे दो) राध्या विवश द्ये दोर भाया भौरजय रत मै भपनी निचस्ारी एर जाकर स्खानो उसनै भपनी सनी से सपर्ण वृत्तन्त का । रानौजी > कहा रि जापनेवडी भूत की। पेते विदान तन्यदशीं कोभापद्र्य योर दुशाके दिषत्यानै गष थे | उनके पास त्म, नदी? थर दूसरी भूल यदकीि पेते महण्तमा के पास पटुय कर ऊठ रायन विया) सीम यत्ते जिससे करिः राञ्यङेसैरुडो गमो शाकामचटखना। इस सेचवभीकुश्ल रै, जप महात्मा पग्स जाकर पूउथ,इये । सधी तका समये | राजाउन। सव्र उठछस महसः जी के पास गश्रा । स्येह राजाजी पटुये किमहणतानी नपु “पेन है 7ः"सजानेउत्तर रिय, फि~- "चही मिनिवाद। भापका सधक राजा र 1" मद सा। 5 कह-- "जाप इननेसमय क्या आधि ?"" गजा मे कदा-""मडरःज, हमतराअपरणधश्चमषलो जो दमे सापकरो अपनी दौल- दिग्माते रहे । अय हमें यप कोईरेसी स्सायन विव्य वता दे जिसवे हमरेराज्य > दीनो कापण्टनः हो नीर दम् भौर वहुन णु पुण्य दन कर समे ।' मटग्त्या ञी से कष्ट प्यज्ञ, मेँ दिन में नरे ववाज्ञे नही मथा, ठऊैकिन अव आधी सात का समये गोरच्मेरै द््रसि साहे | जव वन्खाकिमे जगङाह्यानकगटा है १" गजग साह्य महात्पा फे चरणौ परः क्िरनवाक्लमग मायी । पुन, महाद्मा २ पजा को रखायन चिदा यानी चल विद्या का उपदे किया अर विपथ सीदे को सोना वनाना दता दिया 1
र
१९-पद्ाससा यट का तयाम समार में देया कीन व्यक्ति टीगाजौ महत्मा सीयन्सेभिन
१
य् दृष्रप्त खागर प्रथम भाग ।
नाह विशे सुरराजवजान्न ज्यक्लश्ूलान यमप्य दण्डात् । , नामेन मोमो न र्वित्रतापात् णसाम्यह व्रह्मकुलापपानात।॥ अश्व इन्द्र ने चञ्रसे नदी डरना आर नमहदैवके तरिर हो से डरता ह्र, न यमराजके दण्ड ही से डरता, सथघ्चिसे्ौरनचन्मासे नस्यं से, इनमे से किंसी से भिचित् मार भी नही स्ता, सुभे डर है तो कैव इनन पि कही ब्राह्मणि के करका सुक से अपमान न दी जायः। यह नही चद्फि देस्िये रामचन्छ ने कदा है - विवभमादात् धरणुीधरो ऽह) विषपरमादात् कपलादराऽं । िपर्मष्दत् अनि्जितोऽ रिपप्रमादात् पपमाय्, नाम ॥ अनै-त्राह्यणें ही के भरसलगद् से य वर गीध्रर दुभा भौर व्राह्मभे ही कै प्रताप से धन्चुप तड सीता कौ व्याह, चिप्र कै ही प्रसाद् से छट फतेह को ओर ब्राह्मणिटीक प्रसद् सै हमारा गाम नाम दै) तथा तुलसी ठण्ल ने भी कहा द--- कवच अभेद विपृ-पद-परूना ' यश मम पिजय उपायनदूना॥ परन्तु मनत क्क नो निमन्नग आमे पर यह्च्णा दोनी दै ञन्नाङिएकवग् पक ब्राह्मण ङे घर पर निमजण आयातो उल न्रसगके खर ने कटा -- उवं गन्छन्ति ठकार अथो वायुनं गच्छति ।, निपनरामणतं द्धे र कमेमि पितामह ॥ र्य-खटौ ठकार ऊपर को मर्दी है, नीचे मपान वायु
निर्खनी नरी निमत्रण दुरा दस्एञे पर भाय, पिताजी प्य् क्रे ? भच पिता ष्या उत्तर सुन्वि--
चान वचन स्रा निमय मन्प्ते युवम् । , ` 'ृरुलन्५ : धुले परान्नच दुनेमम् ॥
॥
५
ष्या करे इर्सत नी मिरती ५४
॥;
ॐ कदा फि--""को$ सपनी चील दीजिधे? मदायाज जनक ने यहा क्रि--'हमारे पास हमारी चीज आर क्या है?" महान अष्रावक्र ने महा कि-~"जाप अपना मन दमे दै द्टीिये तो हम, आवक ईश्वर से मिला दे 1" बस्त जहा मटग्याज जनक ने अपना मन उद्या वहीँ महाराज कौ ब्रह्मानन्द का अयुमव हीने खगा संर वडा दी सायन्द प्रा हज, वयो फिकटोपनिषदु मे कदा मी
पनमेवेदमापव्यं नेडनानाऽसिङ्गिचन । =", मृस्योसमृयुपाप्नोत्ति य इह नानेव पश्यतां ॥ ` अर्थात्-शुदध मन से ही परमेश्वर प्रस हो सकता है १ '
=+ ५ ड ~~ १७-क्या करं फुरसत न्ट मिल्लती ' प्क खाखुजौ से पक्त महात्मा जयौ जच कभी यह् कते कि स्छालाजै फ सन्ध्या, गायची, होम, यक्ञ पर्येश्वरः का भजन {करो तवतव ख्काजी तुरन्तहो यह् उन्तर्दे देते येः ष्क्या, कररजनव फुरसत नदी मिल री 1“ महरम! ने सोचा कि यद हस नरहन मनिगा अन पक दिन खांखाजो जव कि पासि जा स्हैये, मटत््ाजी नै गावर्मे जाकर यद् शोर कर 'दिय'. पिठर शौन शस किरम का (वस इस किम फे वर्णने सहस्रा जतै खखाक्तौ सव हुलिया वर्णन कर दी) भाया उस्ने "कई समीप २ कै ग्नो मेँ कितने ही मदपय मार डाके मौर सबा गया नौर वह् दीवान अगर गाव में घुस जाता ह तो फिर निकर नद्यं निकखता है इस लिये सव गाव कै छोगतैष्यःस्से भो । प्रसर गायवाे कोर्लाठी, कोट ण्डा, कोईठेञेखेदध वैय्यभ्र टो गमे सीर जयो दयी खालाजी जप्ये तो गाव के ऊोगोनि न्म रोयेदद्र पीरा 1 छारी मै खव कुठ कु किः म दसी ४
४ २१-जतिधि-सत्ार पथ
~~~ -.
छन नप्यान्दराभतेतु दुका यामिन यथावि । छे कुडव सन्ये उगभसतत तपस्विनः ॥
॥ ४ ध यण्वमेत प्रर अम ६०
भअव--न्प मीर वञ्चित सर्फ द्ह्यवभोनर क्रये विचार्मेहीथाकिःए्ननेमन छग युलाक्टौ भानि दधार पर कुठ मादर् ह 1 जान पडा पि फो अनिधि जभ्यायनरै। यदि भौरक्मोईटोतातते केदेसमपरदुञजाता जीर कविता न सख्त, परल्तु दापोती उस धिङ्द्ध पनन दु । उसमे म्प छार पवो दिया भौर अतियि रौ उरे ष्द्ररे ङषीमे लवा लाया । ब्राग को सर्ग॑पराय से अचित कर भोजने शिण निवेदन दिया । मत्तिथिके जेस दिनिकाभूस्व सासा परित्ार घने से ठ्कगया 1 ज्यं वर्मणा रौ वटी मय्या है फ्रि घम्यागत उो नाने ॐ पी थर वाठे भोजने करे । कपोनी मे अपने भाग मे सत् उस पनियिके भोजनार्थं पस्तेसर दिये जिनं व् र्यते री चाट गया आर उसा पेरन भरा । अतिथि की गीर इच्छा डेल कपोती चिचासो ठकगाक्ि भयकहुसेदियाजायजो गद ट्फद्ी। कती स्तो निन्ताङुक देप्र उस फी वीर पल्लो बद्मणी न कदा-- ^ मदारजञ, क्वौ चिन्ता कस्तेष्टी? मेयभागमभी दै दीजिये ।" यह खन कञः म्र दछ्यणचदुकडउटा। चह जानता था कि उ्समीषेिचनिकी भूर्य ६1 कपोती कमै रमा किमार्य, परुतोतुम खद्धो तिस पर आपत्कारमें चथाचमय अन्न नपनैसेषश च्यस्टीदी। ठुम्दारौ आरति पर श्रम ओर ग्छानि भासित .धोवी है । मास तुम्दारे शरीर पर नदीं गदा, कैव भस्य चर्म॑ अचभिष्ठ र् शौर तुम उटमे वरन मेँ संपित क्खेवरहो रही हटौ अनपव तुम्ाय भाग देते हय के म्कानिद्ोती दहै । पेरू , सीर दुसरे जानवर कै मादा भी ` चचानै भौर पाटन कने
॥
पष दन्ति सारर--यथम माग योग्य हते हे, कारण क्रि खन्तानोत्यत्ति की भूमि नारो दे। उरी से नसेंन्ता पान ह्लोता भौर खोक परतो फ़ संग्वन्धी स्य चयने ह |
नवेति कर्व॑ते भ्म र्तथे यो त्तम एमन्। अयफी पाय्य परप्ताति नराश्च गन्लति ॥ अर्थ॑--सो पुटप खं कौ रक्षा सने मँ असमथ तादे
ह वहा जप्म पताह जर नरको में मेजा जाता | यह
स्युन कर द्ध तपशस्िनी नै उत्तर दिय्ा--
सतयुर्ता सा तच प्राह पर्ता्थागो समोद्िन ।
स्वत प्रस्य चतुग शरृहशेम प्रदमे॥ `, सन्य रतिश्च वमेव स्वगेश्च गुशुनिजितः। ख्ीणा पतिक्षपाधीन कांद्नित च द्विनपम् ॥ शुुर्भता पिता वीय देवत परमं , पतिः । “ भत्सु प्सदानरीण्ा रति पुत्र फठ तथा ॥ पादमाद्नि परतस्त्व मे भर्ताक्ति सरशाचमे।
पुवदं नद्रारदास्तम्पास्पच्ून प्रयच्छ मे ॥,
. स्थरे दिजश्रे्ठ! मेख आर सपका धर्म चाथ है| स्व, के चत धर्मं पति के अश्वीन रोते है) आलु माता पिर योज परम द्रेवता पति धम नासनं चटा है । भक्तिषी पं प्ररूणद्र् से रमी ष्से छख मोर पुत्र खान दोताषै । ते आप पाटन नस्ते ह इत कारम पत्ति, सीर अस्य दरसेसैभसः कै, जीर घुल देर मे वेरदाप) "र! सो र्या सत्तमो क
, देना स्मीच्छार करे । अभ्यागत कामन शुहस्थके घटसे अरसं
साना शार-चिरुद् ष्ट, अत्तप्य मेरे जवन मस्गक्रा चिचार ~ प्छोड अनिधिक् वत्त कीजिये (4 ५५ ॥
॥
च ५9 वम्तुत, विदध -दद्यगी चम वह उक्त धर्मसद्ोदर श ` भप ्ाह्यग को -ऋ$ वात द्ोहरने योग्य प्रत्रीन नदीं द्र । सचमुच र्मम पुख्पका सन्न जीर साभा ह, दसी क्ताग्ण पह अरध्रोद्भनी उ्टाती हं। लिवाहकंसमय सोम शऊनिन्द् , चारमलेमानसें भेचेठ खी पुरप यही प्रतिजग् क्रते. कि दोना पक यन सोर रहैगे, परर.रपकदुखरेच्छी ऽ्सनतासय कां करगे सौर चर्म के केः मे समानलासे श्म च्य) पनिमे नयना आह र जनिचि न्तो सिन्वाद्वाहे चह ~व क धरिम तक अप्येनप्रमे क जघ्रुनम्र भोतत गदा जर खम्तय) पतिभूपतन्ते यङ्क र्द सखा पेट बस्वर सुत वरे ठ स्मच य् रान पतिनपा दामी स्मे पिरी परार स्वीकार य २5) उखने, उपना भन अदिधि को सिखा दिया । परन्द इना पग भी चिधि की उदरदरी न भरी, तयद्रष्छय मौर ताद्य्यी सोच प्रं पडे । भाला पिदा को सौय चिच टरा जान न्तन पिरुमक्त पाक्षाकारो दुन अ अपना भा देने दगा॥ उसने षम यात एर पिस्विर् ध्यान न दिया करि मेरा धष रहेगाया प्रसायन कर जायेगा, च्छ मातासे।सा' कट् चरर धकारण फी श्वक्ति र्गी वा नस्ये । पिताक प्रण रहना च॑ द्दिये । पिताने जिस यर्तिथि को सादर डुखाया वह टी खभ जायगा, यह वडी ग्नि खैर मानद्यनि यी ततद] पिता प्सा पुत्र क्न स्गा-- सक्त निमान् प्रग तदेष पिप्राय सत्तष्। ह्येव एस्त सन्ये तप्मद्विवत् करोम्यहम् ॥ भवान्हि परखिपास्याम् सवदे पनत । ` वना कान्ति यम्माचितुरदय परालनम् ॥ एनम ` विहितो चप रर्ये पररिपलानम् ।
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(2 ++
दरश्न्त लासर--धथयं भाय ॥ि
= 4
म्रविषाद्वि पिव जि लोकषु शान्ती ५
4 रन सत्तभोंकोभीजामेरे भाग के है अनिधिगो चिच्छा दीजिये, दसन मँ परम उत मानता ह-। आपने मुभे पारग सीर खदा स्श्वः की, वर् फएसेरञ्याप्लोका यिता की आज्ञा वा पाखन व रना गिष्ट सम्भल ष्ट पु कहो खव धयोलन धी 2 क्रि वह् इड पितसे की सेवा करे, श्रुति , निरन्तर दीना दोस के स्थि यह) उयदैण कस्तीहै
॥
पुत्र चमी अमायिक भक्त नौर, करान भरे वचन उन कयचृद्ध पिक की यपं डवडचा याड ! वर स्मेचताद किथाज भाष्टार न मिलने से पुय की घागामि पष्काचछचक १२ दिनिक्रामन्तरः'
डेगा, इस चौच यदि चिर्ङीवि षी कु अनिष्ट भातम् पुतरभ्न कहा कर किख प्रकार वह् दिग्बाऊमाक्नोर यहं च्ह्धगी गकेसक! भह देख जीवन धारण करेगी ? बुद्धापि मे एक मात्र न्धे की यष्टी ठकडी ₹, पुतमधू कमो जवानी कौ नदी पार ७ करने कौ यदी नाव रहै मीर पने वणी माव्री उनतिका यही मागं ह । पुन्न की शमङ्गख वार्वा जान उसकी वधूभी प्राण चिलर्जन करेगी । संसार में मेख यपयनन गा । मैरी स कात्ताया य्या सुभे टोडउजायगा1सैरिस पसमार प्राण
¦ स्क्खू'गा? वृषे की अखे अभे अँधेरा छा गया । पुव निजन वार्ताके स्मस्णने उसे फिर पञापएन्न दीका दिया, मने खमन देख कर नीद खुखो द्यो । इड्टे मे आल उठा फर देखा त्तौ पुन्न सत्तू चयि दाथ जेदे खडा । वठ् उसे जस पाड फ^्ड कर देखने खगा 1 पुत्र रो अतत देख पिताक दादस अपया अपर कषान ऋ तेज उसके इदरय धर फिर अपना भभाच करने ङ्गा 1 तपस्वी को कीरज इया क्षानिये परममी कसो भक्नान साक्मण कस्तादहै" पृरन्तुवेक्षण रहीम
^
२४-अ{नयि सकार ४६
सचेत दो जति दे, कयेभि उनमा माका चल्षान होता है। पह मात्मिक उच्नचि प्रष्यीन समये हमारे द्र मे वटुत थी। "यदि पेलानहोनानो रान फमौ वनी न जाते एव लक्ष्मण जाउस भोर पिएनि मे उना सभन देते, न टरिथन्् अने मूत पुत्र को गोद मे चिये चरी माया से कर मागतः सस्तु पिना ने चैनन्यटो पुत्रको आशीर्वाद दते हएङ्ह क्षि--*प्राण प्रिय दोधय टोरर खुपुनोंको उत्यन करेवा हो । पुन से अन्य पुत्रो फी उत्पत्ति होने पर पिता रतषटय शेना रै भिन्तु तेरे भूखे ग्दभे से वरुष्य लगा भौर मामि ल्द स्कर जावेगा । चालक की भूष्व वलवती होती & । भक्ढमह। सुके क्षुर बहुन नीं सततो । मै चिरफारमै शाटुर पे मे उपे्ना करता आया ह इल कारण भूख प्यास २ मे सहनशीख हो गया ह । तेर रहते टप सु मस्मेका भय गीर सोच नही {* पाटकर चिच्ारिये तो सही, जितनी कटिन बान दि पिना
सपने पुन को, नही नही जयने ह्ृ्िरड को श्रूवा देसे जी
भागों से गधि प्यारे का भाग सहसा किख को दैदे। पश प्ली तके -मपने चच्चै कनै चरतिरं कया पुल्पय्प्रास्रो सासः भगवम् स्ना मेँ गोते खा रट है । पिना को. चमे सकट प्रहा देख पुज किर कटा--
अष्त्यपरस्मत सस्छाणात्पु् इतःग्रत । । ` , आत्परासतृस्तस्या चहयात्मान्मिह सना ॥, य्यं- हे परिता । में तेरो सन्तान ह, पताकी रस्ाकस्मैही सेच पुत्र कटाताै। मात्मा दी पुत्र कद्ध घुः गीर मै तेसा आत्मा हश्स कारण थान्मा ही से भत्मा का चाण दीना चाहिये । यद् धाक वचन पिता फे मनम वेड गयः । उसका मात्मा पमं से जात्रत वा । दूभस्थ ने मोर् मणना ड यक करी रका
॥ 1
% ॥
६९ नदद्वन्त खाय घ्थमश्नागं ज `
दे लिप विश्वामित्र के साथ रामको करदियाथा तो इस नपस्मी कपोती चै सी धरण्पेपम पुत्र का बारह दिन तरुषः पुयेडित ग्टना स्वीकार किया किन्नु अत्तिथी चमे सन्त क्सने
सेमुहने मोड!" ठेसतेद्धसते। पुत्रका मागमी भभ्पागतं फ खिदा दिया किन्तु मत्तिथी न जान कव का शूलाधा यह) खत्तू पो छ कर ख, गया परन्तु उसकी भूख न गई । "' कपोती छल्िन नैर वि{दत हा । अतिथी कौ तृत कास्ता यर्म रै सिसे चिये द्राह्यण अपना रीर अपनी धिय भार्या फोामागद् शुक्ाहै भ्रागप्रिय पुत्र की होनहार गति ी कुछ भी चिन्ता भं कास्य उसा भागभी सिखा दिया) सत्य परिवार सिस प्रसार दिन कष्टम, इयसा जी उने कुठ सोन नही है सोच हे ने फेचख दस चातका फियनियी भगवान स्टै। यही यान डते -याङ्ठ करग्ही द| न्यं तपर्यी क्य 1 फपौती य सोन स्हाथा कि उसङो खाभ्यी पुत्रवधू खःङुख जरुर उ सिवद! सज्नासरे उसमे नोती रै, सतत् री पौरय, दष्थमें रै, नघ्ननाक्तेि णरीर भुर सहादे, न उर)ोको दस खम भष्य देन आये शख खुगने कौ चिन्ता हुं पतिन्त तपस्पिी देगदुमीडैकिउसफेखससखउुर ने जगना अप्रनाः भग अन्तिचिः खी खःनन्ट चिदा दिया है, पतिदेवनेभो देट-मीदट क़्ीड अयना हिस्ख, जनिमा दिया है (फर यह साती कपर्द सकूती है ? वद भी अपने पत्ति की अलुतासिनी दै खास सुरं की मर्यादा पर चल्चेवाखो है । पु चु च हत्य जोडकय्कटा' प--“ये पावसेर् सत्न मेरे पार है इन्द मः यनिथी को चिल उप खन्तुष्र पोलिये 1" दृद्ध दयद्धुर उखक्ते याटएनि दग दया सैः मन्दिरमे जातापसटसा कुठ कटने फी नमथ नद्धा सा नाना प्रकार कौ ग्ब्ाद्य वरस्तु से खड खाने योग्य है रका दादधार पस्ण कसयुसरे यो ददा दते रकी तानद्
' २०१-ततिय संस्कार ६१
शनो चह तेरी का दिलीनासो यन्य जो रते मचुष्य का मन जह्य पुन्ना किर चूतो का भोजन द्धन कर अगरिषयित कौ दे ना परेता देगस सीर कठोरग्यापार है, पिक्चेवनासो जानि काजो अपने -बय्रयहै। पुवरययु ने जडे परवाञ्चय सन्य नहुष उस्ने उदा गि-
' ` -याचातप पिणीखशिं लाविग्ां निचये । दित्सु व्रताधघरे ल्लुध'बिदन चेतसम् ॥ स्य रतून दीव्यामि भूतया पर्वे 1 पस्याण् दत्ते दर्पा भेयत्व चपरि ॥ पष्ट कासि तती णौचशीदत्तपणन्विता) सन्त ृत्तिनिषादाराद्रद्याणि त्वाक्य शुभे॥ चला लु गर्ता नारी च रत्यात्व सततं चया 1 उपम प्द्ाना षवदि दाधमननिरिनी ॥
' अ्े-हे प्यार धू, शूप से फुम्टखाई हर् कजा्व॑ती चन स्पततिषे समानम तुको उदास दना ह चत आचार कग्ने चरते तेरा भो लन शो ले गया! भूत से नेय चिच्च विहिल छल्ित द्यवा 2 । निगाहार रच्छ त्रत करने से तेरे हाड निवे चये ह मसकेलन्वमैदखेह्ाथो की रगे खुल रदो 1 वाखा, श्वुवातं गौर मारी होनेसेत् निर्नर द्या पाप्री दै तिस पर छ दिन कै उपवास से परिश्ातदी रही दै भेरा घात्तक कर किख धकार देर सत्तु ओ को च्रह्ण फेरे तुको खाग्रहन कगना दिये ! $
शख उत्तर ऊ पुत्रवधं ने कस! धर्मं सम्मत चचन कपर्द जी मारी प्यासो बहनो करे ध्यान देने यम्य है दे दस थादृशं
॥ ॥
६२ द्र्टन्त सागर प्रथस भाग
मे सपना सुख देखें धीर विचाग्वरे क्रि टम.रे वोच धर्मक भाव पितिनादैए्दमक्रहां नक यास सद्र कीआतायाननी हैदर कितना परति के कहे पर खनी डैः?
गुम गुरुष्त् वे यतो देउत दयम् द्गत्तदैतर तह्न ष्व सदतूनावम भभो॥ ` ,। दद पराण धर्मश्च शुष वमद रसौ । ।
तव वप सादन ताकान्पाप्यापहे शुभम् ॥
यर्थ यह् नै घडी नश्चनता सरे उतर द्विया दै महयन {` आप मेरे गुरू फे शुर देः (यदह उना सफेन पति की कशोर था ध्थौव् आप मेरे पति कै पन्य अथवाग्युपष्टोनेसे गुरुके शरु है) इसी प्रकारं देवताथो ऊ देवतां! हे गुरी वेद भीर प्राण म्य आपकी सेवा ते चयि है धर्म का फट भी आप्र निमित्त ह माप्छी प्रसप्रता दी से उत्तम ल्मेको- की शु प्रातो रे, एस कार्ण सत्तू अतिथी फो पिला दीजिये । ५
मेम, भक्ति पव धर्मस्ते भरे वहू फे वचन सुन सर सषुर ' चौ हदय उमड़ भाया । उसकी साखी से पवित मरेमाश्च चल ने कमे भोर कर्ठावसेध्रद्धो यया वृद्ध ने आपने की वहन सर्टाट कर गङ्ग चर्ठ से इतनां हो कटा कि-- ^त् वम~ सुचि भौर वड" कौ सेवा के ल्यि अमायिक मावस सथय्दै पु श्राणो".से चम अरतिक प्रिय है इस ारण सत्तू स्यीफार प्स्ताष्ट))' चष्टक्ह् दर यधूकेषिये सतू रतिधि को खिदा दरे! उसने खन्तष्ट टीरर यदत आशीर्वाद द्विया । ब्राग ख परिवार की टेवता मौर-ऋपिया नेग्रण्साकी। धमश्र
^ षुदपो' नै विमध्नारूढ द्वर उल्त पयपुष्यद्रष्टिकी। ` ` पादकः । चिरस्य, प्रानोन ससवस्साथा ? घ्म को
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२१-अनिधि सत्कार द
धागे भी अर चाहमेव छोग उपस्थित थे। उनकी प्रतिष्ठा गोरं ध्रतला भी शुद्ध माव से लोग करतेये। पुष्पव ओर साधुवाठ से धर्मात! का मान! कप अद्भुत समरथ था जय भाग्त-जननी की येष मे रेस पुरू रन सेला करते थे । पुन यमके चिप्र प्रण दे को तत्पर हैम" खड देवरहीहै चका पेद चुनना.दे पर पिके णिच नदी कस्नी अर चदतेनवहैकवेदेको वापसु्रना चाहराहैतो मे मुह देती रै, फटती है "रेके च यञणङ) ही रटने दम । नदी पडता तो बनदी भक, हे, गुल्जी मारय नही 1 ' जव चियां च गााधरार्णव्यःक ललन कौ यड दशाह ते सच्चा धर्मात्मिः। वनना पिनन। कटिन है 4 भारत वामक मुपुरो' से वित हयो गया । र्द घण्डा का जीवन मसज द्रौ र्हा है तैर मरना तो इनको आत्ता नही दे । दश वा ध्म के वारपे पूवज! क्वे प्राण ठेना यना श्रा देस दए न्न इस समय प्रथी के आतिथ्य समार पिरछा ठौ"कदान्वित थि 1 नीन स्तै बस्त हये स्मका वेदिशे ईयत जव अपनी प्रजाकी जप्य कै चिरे सेतर कल कर निक्छा थातो क्षधा्दं छने पर उखे वदे > महायै सै पिया शे चिथे का, चेय्तु शरसी ने उसरी दीन चथा पर, स्मरन करी | अन्तकरो वड्ण्ठ गसेव किसान घर गया य् पटा प्त थक गयः ह आर मुग्के महि अध्रमसद्ोस्दाष् शग करके सुरे घ्रा की यातय उरमैकी भाता दीजिये फलत किसानने उसका चानिथ्य क्रप्रार किया जिस के तद्रे चन्शाह ने जन्म भर उसङ्गे परिवार का पान सिया ।चूनान फे भ्रलिद्धः विद्धान् सौव नै टेदिया कै वादश्ाह छोखस से णक छटसेकी इस चात ष्ठी वी परणंखा कीथी किञारवीस निगारो खणे भावेन मिलने पर आपदी अपनो मौ को गाडी मन्द्र त पीच ठेयये। चष दे इन्टिख नटे
॥
+ श
४ दष्ान्द-साशर--प्रधममभंग ~
५ # 1 1
~-------
हैकिभारनक्तेसपुतो ने माना पिता कै वचन सीर व्रत प्रान क । चयि जले दे दी । धन्य आ्यभृमि } यौर घन्य जारि !†,
रर्-धारपिक राज्य । पर सुसल्मान कादराह नै हिन्दुस्तान के प्क दश्चिणी गस्य पर चार कौ जीरसज्य के शुर पर प्रह कर अपना पक्त दून ` जा कै पाक्त मजा आर यदह सन्देणा कूदखा मजा सि“ या नो त. जपना सास्य ग्ब्धी क्रदेयामेरे साथ युद्ध वरते वभे सैयार ह जा "' राजा मै यड् सन्देश शुन दत से का भेजा क~; हम राज्य को अपने सुख कै लिये नदीः कस्ते किन्त, प्रजाङे सुख क्ते चयि करने है मीरनितान्त बचमपूरंफ हीरय कायं हेता रै ! यदि इस भति चेम्दयरा चष्ट गाह कसना स्त्री कारक.रे ता ट्म राज्यदछाटने द्ध च्य तय हमद्दरक्यः मद्चष्या कां घछ्त नहा कस्ना चारते {** दू उने यह् सस्पृणयुताःते जाकर बादशाह से ख्ख ! बादशाहः उस खजा की. न्यायत चार्ता छन कर अटान्त प्रस हना अर उसष्धे ठ्य मेंस सजा {मिटे को अ{मल्लपा उत्पन्न हेष शेर चट स्यथ गजा न्ी सभा थ्पतरर उपस्थित टा । सना लगी हु श्वी सप दा इषवो का ऊभियेम घदविष् था । अर्चिथ्ग यट था किपः सपकनेदृखरे छण ॐ दाथ उपनी ऊ भूषि विक्त्य की, यी, छ्छ क्टके उवयन्त उस येक्रय की हः भूमिये ष्ट्क यदा भार पौष लनिर्खौ, तव तो मोद सेनेवष्टा छक येचरमेव से से कमे खता पि सषपती मूमिनें ए५-द)ोय निका दै म्म चद् अपना कप यपं = क्स के सोजियै, क्थेगक्तिषमनेस्य केवरुभूमि मोरुखौष्टैनफिकोप1 इन्र पर टिन्प्य क्यौ याच्य यक कष्टता है धि यद्वि भूमि चेन्नने ते पदर हमारी असि ददे रप देप निकटतः न््लिखस्देद् बद यैर चदय
रए-अहिसा (2
~~~ ~= न था, पग्न्तु जच हमने वह रभि सापको चच दी तव वद केप भीमपकाषीदै रजानेरन दोन वादी प्रतनिवाद्धियैषका पृ निणय क्रिया कि--"तुम दीनम जिस किसी के खडा ओर ज्ञिम किसी के खडी षो परस्पेग उपकाव्याट् कर यह सम्पूण कोप उन छट चडकी चो दं टौ 1" उादशग्ह इस म्याय के देश क्म ह गया । राजा ने उदगाद् से पूा वि~
„किये, आपङ्धौ राय मरं यद न्याय कैसा भा ११ यादरगोद * पाहा" धह विलङ्ु चादियात भा %' राजा तै फटा -- "मते, याप शमे पमा परते ?" वादुशाद्र मे कषा क्रि- “दम त श्न दोना को कारणारमे मेज सम्पूर्णं कोप पते कौषमे भन् दते 1" यह् सुन राजा > पृ-उा--*"मद्धा नापके ग्ज्य पानी बगमना है, जाड गर्मी गदि छुं ठीक ठीक समय न दोनी ठ, मन्न आदि उत्पम छेते र?" वादशा नै पदा येसय होतराह ।', सजाने पूढा कि--“यापके सत्यं कग तुष्य टी रहते ई या ओर कट पशु, पक्षी यदिमौ र्ते ६ यद्रशाह् ने फहा--""सयर जीव रदते ई ?"? तव रजाने फा फि-"उन्दीं पशु परक्षियि कते माग्य से चाषे प छ यहा र्या, जाडा, गर्मी, भन्न धादि भरले दी होते हो , नही नो जापर चा मापे सद्र आपकी प्रजा के भाग्य खे तो वहा पप, जडा, गर्मी, अन यादि रोते की सुरे आशा नदीं ।
` २द्--अहिमा , जिम समय मद्ासराणी न्ती दुस्साशान ने मत्वाचारः कस्ये पर पमे पर्चि पुतं कोके राजा विराट के पक धाममें्ी यौः उख समय चटा पर दूएनव द्रसधरकषर कादधगा करता थाच सम्पूर्ण प्राम दे प्राम नष्ट किये देता "या। यद् उपदन ॥
४
द द्िषठन्त-सागर- प्रथम मम्ग
~~
देख प्रामवाले ने यद नियम करछियाश्वा किटमम्सेक नित्य मापक्ने पास आ जाया करेला, पर भाप णेसा उपवन करे किणएकदयौदिनमे्राम का तराम नष्ट करटः आर द्रम चां ने भपनी अपनी चारौ क्रमपूर्वक वांयरी शरौ ।। एक दिनि पक बुद्धया -बह्मणी की, जिसके एकरष्ीयेराथाः वरी आई मीरः महाराणी छन्ती उस्र दिवस किसी प्रयोमनाधं खुद्धिया के यहः गद | युद्धिया को रोते सटसणी छन्त ने उसे रोने का कारण पूत्प्र । वुदिया ने सम्पूर्णं दृत्तन्त कह सुनाया । मह्राणी कुन्ती ने बुद्धिया को मस्यन्तं दुखो द खटा कि--^तेरे पक ही धेटाद्धै पर मैरे प्ीचष्) जजर्मै तेरे वेदे के यवके भपनेवेटेकोमजदृगी ! तूडुखीनदे।*' पर बुद्धिया के चिश्वास न आता था कि मखा पेखा कन होगा मिः जा अयने वच्चे को दूसरे कै चच्चेके खयि मरवा ङा) चुद्धिया यद सीचही र्टो थी कितने में मदा्दणी क्न्ती मे अपने पोच पुरो को दुखा यष् वृचान्व ' कदा } पुभरोमेंसे प्रत्येयः जनेस्तो उत था! महासाणी इन्त नै भौम कमो अक्षा दी । मीम गठाखेढठो धटे पहलेन्तेजा विसमे) ,
ग्रामव्ि कः यदह मी ननिवम था पि उस हानय क पूजा के चे बहुन सै नर नःसै घौ, गड, वनाशे, द्यरी २ पून खख गक अदि ठे जाते थे मौर यह् भौ सय देराव जिस जगह दानव अता था पलदी से जाकर एश्चद्ेिरदैये । म्म यहीं पटुचा भीरः उन सयसे पू, यद्या खव घयो वैदो! रोगे ने उन्तरदियाकि--“श्टमं छोय यर सकम्तामान कै टालन षी पूजा कर्ने भाथे ह" मौमके कलटा--' हम उसके खाते श्लिप मचे & सो तुम रोग चनो वयर्थ यरे री? ये सामान सयति स्येपन सिलादौ ? जव दानव हमें सत्यगा तो यड खष्मान भी
॥ 7 ज ~
ज्थ-मर्िसा 29
उस पे पेट में पदुच जायगा!" गावयतिा ने वेला दी कया!
भीमने सम्पूणं ती, गुडयदमे,पू जे. युटणुके सपे मीर व्यो दानव साया स्मे उसका एक चर्व हाथमे, णस पैर
ह्यथ में पफ उसकी दयि फार गदा उरा गजहा भाताङ द्धस्ण पमनिको नाहर प्रणाम कर यटा--"माता उमैतोमे तन्म भर के {खपे जत आया," माताने जाशीर्यार दा, परन्तु युष्ठिया कै दयम यट दरा उत्पन्न दु । त्त भीम मीन के भसे भग या है, वन ठान फतेपित माता सिगा सौर मेरे घच्चे षे घ्रा जायगा। महटायप्यी तुन्ती ने फटा--श्ुद्िया, तेरे ये षया विचर द। यद् सिदनियि ङ यच्चेदं दा तुके यद् मान्य नदीं रोता किजे दूसरे के वस्ने कैः दिष्ट जपन यच्चा भेजे उस एर कभौ आंच ना सक्ती है? युदिया नाच्यय चकित गह ग 1
शाञ्च कल वसस, पंडा, खुभर, सुगा आदि के वच्चे मरवा यार तोम पने वन्यौ का कल्याण चासते दं । दाय री भार यी सनिदा। कहँ महासणी छन्ती सरोसी माताये, भोम सरोम पुत्र तीर कडा गज घर धर हन्यारे पेद भार्त मेग्यून प्र्वर वर स्त ठ] शून मृढों को यष्ट नही सकता क्किजवषक सं भे ददं होतः दै तो चाषे कितने टी उपाय कसो दूलरी अंगुली में वन्द न दो खकतः, नो दूसरे के वध्वे कटाने से दमारा चया कैसे अच्छा दो जायगा? गच्छतो दरकिनार हय मर अवण्य,जायगा । पवोकि का द
. लोश्रौर सचेत बुर) उसकाभी देताहै धुरा । जो न्नी. के मारे हरी) उपक मी लगता छश ॥
1 ॥ ----------* ` ॥
॥ अलम
;
€८ द्वष्रान्त-सागर-थमनाय
।
-------~
~ --------- -----------~----- ---~) ॥
२९ -प्ररिकि -' ४
यूनन के चादशाह कै यदा यदे नियम था कि यदि की मदष्य बसो अप्यच कश्ता थरा दो किसी सिह को'पिजइ म वद्ध बर कई दिन भूषा रप उस भूस सिह ॐ सामने उस पुरुप को (सद्व पर छोड सह् से ।खिखा दिया जाता धा प्क भचुप्य ने बादशाह के यदा पक वडाभारो भवसध क्रिया आर वा से अग सद्य हु जीर भग कर वद पक वृदे भयङ्कर बन मे जा च्छिपा । उस चन भँ ए. सिंह जिसमे ध में एक वडा-चिकराल कौँराखग जानै कै काग्ण ` उसका पर् पक गया था भोर वह् वेचारा अयन्त ही दुखिन था चैर उटावि मुख मलोन किये खडाथा। इस अपराकी मै चुपके चुप पीचेसेजाशेरके पैर काकाँरा निकाल दिवा| शेरकी ग्तनाखुा हाकि जैसे को जननि कलते णटजान डा दे । शेरने अगल उशा कर उख पुख्य कौ भीर देखा गीर ५३ उसी के पीठे परे वनमे फिसते खा एक दिन वह् धवराधरी उख बन से पकड भाया चादुणाद् ने कदा-.“्पङ शोर जद्नय से पकड़ खाली 1 दै गति, वद्ध शेर पकड गाया आर उने स्म दिवस भूखा र्पख उस नपसधी.कोो ओर फे सामरे टा शेर उख २ ष्टोडा गया । शेर 'चग्धाडन हुभा उस अपनी फर द्टा पर प्राक्त जाकर डव अपरायी षो पहिचानातीं
तेर उम्नस्ने चर्मेष पर लोचने कणा ! धन्य हो अषि पादज्जलि, आपने श्ना री सच का है ॥
अटिमा प्रतिपा त्त्छन्निभो वेरस्पाम । "`
॥
= ८ ' रथ-माति-भक्तण फर चौये जी मदाय पटक मुसल्मपएन चदसीरदार खाद कै
क नः क ~ क
स्द-दिम्मत नौरध पि ६६
रक भौर हमसुख थे भौर मजहवौ वहरीरातर भी उनकी डी सच थीं! आपने चीवैजी से वार्ताखाप कस्ते हष्टयट प्न धिग्रा कि--“न्वौपैजी, आप यपने को देवता ओर वेश्च फणे कहते हौ ५ यह सुन चीवेजी महाराज वके कि - मना भैया की ञे चनी रहै, यज्ञमान तुम शिद्रीसनिनये स किष म्ले कटति खे ।'' तव तो तदसीलदार साह्य न सकर पूछाक्जि--“्चोपेजी, सिद्धी फिसश्तो गरसते ६? पधेी ने कहा, जे हो जमना मैया की, यजमान मध गायन कमै कहते ट 1" नहसीटदार खादव नै उदरः ऊर जव गेया फि--""सौवेजो, गेषण्नदो ठन भी खतेहो क्योकि एरक भाजी मौर अन्ना वगर्द में तुम भी जीच मानने दौ इस पर नोयेजी ने कदा फि-- "यजमान की जै वनी रदे,“हम ना अन्नादि खाते है चद शु ज ले उत्पन्न दोता र यीर वम ना मास साति ही वह मून से चैदा दोता दै। गस दमम भौर भाप मै वनः ही मेद रहै, मिना मन ओर जम! इसी लिपु, हम देवता ओर भप स्टेष्च टै 1"
२६--हिम्मत भोर धृती
एस तर प्सियास्मे किसके कटने ठप यदटशन्े सन स्या कि-- "हिम्मत मदा" मव्द् खदा 1" उसमे चने अनना यादथ उना छि शतै टर वारम भरँ वह अग्नी सौ सियारिन खे. कद्ध दिया करल वा कफि-- ष्िम्मन मर मदद खषा 1११ कु धिनो के बाद उसकी स्रो सियारिन गर्भिणी हई 1 उसने जपने पति नियार से कटा सि" शुके कटी ठेसे स्थात रखे चन्ये जहा म जपने वयो को अच्छी तड् ते उत्यन्न ६: नोर सुक सुख धिके 1" किय ग सियासिनि सतो लेजाक्स्णक
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७ दरष्ान्त सगर-प्रथमय मायं - “
सिह की खथसो में जद्यां सिंह मै अदत भराम >े दिए एय, फशल चिदा कर रज्या धा, ठहराया ओर कहा--“त् गदा जपने चच्ये उत्यन्च कर!" रोर क दिन उच्छ न आया। एते मे लियः रित रै चच्चे उत्पन्न किमे रत्न द्धिन क्ियार भौर सिंथासिनि मप अयने नवो के वैञेदीये जि इतने में सिंह उदेकता हमा आया] सिध्रारने यैर मा आति देख अप्रनी खी क्तियारिनसे कडा कि-"“अपयै वर्ध शीन्र उठा कर चर, जल्दी भग चरे ।* म्नियारिन से कदा कि-"“भाज चह "हिम्मत मदा मदद सुषा कदां या १ सियार को वडी शर्म म्म हई सौर बह भने अगेकतेद्रोने पैर वर को उदा खडा हो गया । शेर इसे देख हैन था करि यट कौन दहै) यद्यपिर्मे रातत दिनि जंग में रदता ओर जगर का साजा हं पर देखा जन्त मैने. आज तंक न्य देख" ^ इतने मै सियार अयनी स्रो स्लियारिन से वोट कि--““अरी वनचर श्री ?” चिगरारिन ने उच्तर दिथि--"कटो, सय जग कै वेसो ""यह् न्द् पुन सिंहले द्योण दवास उड गये आर बह सोचते खभाकषिसव जग्मेतोमै भीष अरेयदहकोः यङा वद्वा. जन्तु दै । पेखा समक सिहं भग खडा दुभा. ल्ियार के सन्मुख से सिद भगते देख जगल भर क्र जीवौं की साच्यं हु पि माज गरजव दहौ गया फ सिया के सन्धुख खसिट् गने खगे 1 णक चंदस् ज्ये यद चरित्र देखस्टाथा, चनद शेर के सन्प्ु जा हाय जोड वोरा फि--""मह्षराज यह् सिथर, लिखे सामने सै उप भगे जाते ह 1" ओेर नं क ~ त् चिलङ्ल भ्रुट ऊट रद! रै षमा सियार मनि देते नदय ? {[सयार पेखा नदौ हता ।? चन्द्रने कटा-- “महाराज, यष ऊषरं क्यं चर उड ग्ड था 1 जाय चद्िवे, वद् अभो मग जायगा । श्न्छद फे दुत फुछ सम्ताने पर शेरे यन्दर से का-्मच्या तू. चन त्ती चू" उन्वररन्पे यह् निश्चय जानदाषटी धा
1 १
भ६-दहिम्मत थीरधृनी ७१
सि वहा सियार & चह निमय अगे चद्टा । चियार् मेलान्न क यह् चन्द्र जान का घात्तर हुआ, लेकिन अपने उस वापर कोयाद् कर कि हिम्मस मर्द मदद सुदा फिरसदा टो यपा। जवे बन्दर भीर शेर दोनो शु समीप पट्च तव फिर सियार न॑ कहा- - जरी वनरुङ्धरी 1 सियारिन मे कूटा" कटो सय जे वैरो 1" खियार ने कष्टा--' तेरे उच्चे प्रमो रोते दै ^” -सियासिनि मै कएा--* "मेरे चच्चे ओर यानै को म^गने दे ।' "वन- रज गेग यद् सुन कर फिर भग खडा हना । बन्दर यट दृशा देष हैरान था कि जव शेर इस सियार फे सन्मुख से भागता हे नो हम लोगो फा फैसे जास दोगा, अन चन्द्र फिरशेर के पीर पटा यीर हाथ जोड कर चोखा पिः "महाराज, सपव्यर्थं भाग उरते टो 1 चहं निश्चय सियार ष, नापकै चटनेखे्टी चग जायगा 1" लिह नै कला पि-' “सियार > चच्चे कष्ठीं सिद वाने को मारते हे ९, वन्दर ने यटा--मद्ाराज, यही तो गीदृड सयकी छै "अत, शेर फो वन्दर ने जव वदु समाया तो ओर ने कहा-^'यव की वार दम तच चरेगे जव मेरी पूचसेन् सपनी पृच्छवाध भीरत् भागे चट । नटी त् जात का वन्द्र, यडा चाद्धाक, तेस कया ठीक । मु वहा मौत कै सुखम भोकि भग सदा हो '' बन्दर की कुक भय हो था ही नही उसने वैसा ही किया घौर दोनों चेर च्म सथरी की ओर चट । जवस्ियारः ने इन दोनों कौ इसा चि खाते रेखा तो कहा “यव कि प्राण गये यश नही घचं सरता ।"'परन्तु इसे अपनी कहावत फिर याद् या कि-"दहिभ्मत मर्द मबद सुदा ।** यन यदह फिर उसीभातति खडा द्य गया शतौर सियारिन से चोटा~'अरी चनदकरी ।** \ सियासत नै का" कदऽसव अग के वैरी ।" सियार ने का "तेरे वच्चे पीं सोते ह १?” खिथासिन ने कदा-““भेरे चच्चे शेर दम ने मान्ति 2 1 सियार रै जहाते नु. शस्ता चरो
६. ७ द्णन्ते सगर प्रथम भग
॥ ॥
व दोनी है 2" सियारिनि रे कहा--' इख चिथ कि वन्दर्फौ मेत ाञ्जिनोगेरलेभा सोश्रथमतो वहअआयाही वडीदैगमे है दृलरेदोके वव्ठेपएकहयीपूचरेवाध करलायाहै |“ शेय इतना सुनने दही चन्द्र की पूछ तक उखाड करे मणे खड्ाहुध्रा सच है, हिम्मत मदां मद्द् खदा!
वद्न से मदुष्य आप्ति ने प्रर कए मेँ भिर पडते, अरर सास्ते, च्छो आग खण्नै पर कोन मे घुल पडते; कोई निक एर रस्ता भू श्ण दे देने, किते ह्य तेर ओर मष्ट वानाम सुन काठ ऊ खिलौने से खड रह जाते ओर उर आकरवचैसाभो जति, फिचने ही धवसे पथिर्मोषे समद दो चार डऊभोसे कट च्िये जाते, पर पङ धीर पुय निह पे चवक छुडा देता दै । चिस ने ठीक कदा है--
स्याञ्यन वेयं विधुरपि क्ते पे गहसद।चिन् स्थिति मप्तुपासः। यथा सपरेऽपे च पोत्तमगो, सायात्रि को वाच्छति त्तु मेध ॥
मर्थं आपत्ति ता समय अस्मै पर भो धेयं नही छोडना ्ादिये, व्यो कि.कदाचित् वेयं से खिति ्रम्ि हो जपय जेते कि समुद्र मे जदाज्ञ चने का समय आ जानै पर भी 'उयोगं चरमे पररचच जातादै)
"°-च्मा ४ पक मना नामक सादु द्यम सल्यत्त सदाचारी पु पौत्रो से शुक्त सीर वडा धनाटक पिस प्राये रटता धा। उसखकै ध्रस्ञेपासजय दौ चार पङोसी स्मैथे यै सवके “ स्वमी मदान् दुष्रवररुति>ेभे भौर उसके ध्वन रेष्व्यं तथा प्रतिष्ठा कदरे छदा क्स्तेयै जीर खश्च इसी चिन्मे निघ्न रटने. किसी च कितो साति समना कमो कठा
श ५ 1 ॥ न |
1" ्ज्र्मा [1
4 पट्च मर कमी कमी वे सपनी आभाकौ पृसोभौ कर ल्वा करने ये { चिगेव रूहा तक छिपा जाय विचर मयनाथ की वदी दशा थी जैसो कि दका मध्य चिभीपगने ' शखेमान से अपनी दशा कही वी- एन एवनसूत रहनि हमारी } जिमिदशनन किच जाप किव गी ॥ रसौ भाति साधु समनाथ रदा कस्ते यै भीर ये दु इन्दे सद्व कडु वाश्च थौरः गाछि प्रदानं नवां पेते एसे भडद्ध सगथ रहते ये कि रामनाथ वोधे मीर वे इन पूरी पूरौ ` खवर र) प्ररन्तुखाधु रामनाथको उवं दुं लोग गालि भरदा करते नो वे उसे उत्तर मे कदा रसे थे कि-- ` देदतु ददतु ग्तिर्गललिवन्तो भवत) भयमिप तद्भावाद् मालिद् मेप्यशक्ता । ' ` जगति तिदित मेतद् दीयते विते तन) , , महि शशक वपाण् कोपि कम ददाति ॥ १ अर्थेच देव गङ्ी आप गाछिवन्त है । कौ धनयन्त , होना रे, कौ वलपन्त होता है, आप गालिवन्त है । पर मेरे पास लो गाचियि का अभावदै, कटासेदु, भौर सम्बारमे ह् चात विदित है किजो वस्तु श्जिस कै पास होती हे वटी मचष्य दूसरे को दै सकता, न होने से केसेडे? सरीश , भपने सौग किसी को क्सो नद्यं देता । सपा में भी कदा द-~ जाके हि चहुं गाली होः सोहं गानी देहै। “ गाततीनातो श्राप कटै, इमो का वटि नै६॥ ` परण्तु वे दस वाश्च कै यनुसार-- .\ , मबुना पिचयेन्निम्ब निम्बः कि मघुरायते । „ जातिघ्ठभाव दोषोऽ कडत्खं न एंचति ॥ -
९७ टृ्स्त खासर--प्रथमे मां
यम--नाकरीनेमीटेवद्ुै नहिनोवसे। जीप न भीट) होय तिचे गुड धैवते) †° ययोग कर सिक्ख भी वचा ओर कई वार्चोासे
स्ख्ङिकचरचोरी नीकरादा परन्तु पाप जाननेदै पि श्चमारहित पुन्या रा स्वभाव उम पाती भरे करोर के सनः सेना दै लिखे ऊढ दालते रौ उसका पप्नी निर्न रगनाहै,' छल्नतु मापान् पुष्यं का समव सखभुद्र कफे खमान गम्मर ह्येव र च्वि खा उसमे पहाङ वै पाद् आ पड तौ भी चह टना वदना नही वया जैवे गजराज के पीके नारे फते ही त्ते ममो करे तो ची वह चिचलित नहीं लोचा। 1"
अस्ततोगत्ा उन द के दुष्ट रमो के अनुलार उनकी यह ' दश्वा टई स्वि उनको द्रश्द्िताने आसर रेखा घे क्षि वे सवके, सभी द्त्ना द्वानाको दुखी हीनये वीर भूखों मरने लगे । यद् चश देख सु खमनाथ को द्या जाई ये (उन महातमा फी भानि जनकता कि पक नदरी-तट पर सभ्न करते समय जलनं पकाप्पक विच्छ दृष्टि पडत शौरये दैया परवश"उसेष्टाथ से पड छट से वण्टरः वरना चाहते {कि विच्छ भभम सभाया खुसर उनक्षेदा्यमेडकमर्टाथस्तेषुन नद्रीकेजाभिसो स्दस्वेब्रषरभ्यार उसने जलसे वार {निकग्टते समीर व्क सष्र मर सखम जा पडना, इस चर्व्य देस पस प्राह्वण ' नै उनसे कहा कि--“जाने दीजिये महाराज! ये दुष्ट जीव है 1" लिखकै, उत्तरम मटपत्मा उने व्राह्मण सते बाह्य था क्रि--ध्यदिं यद अपने ख्भाचुनार उक्त मारना नटीं द्योउतातौ हम अयने स्वाभाज्ुसार इसका परित्राण करना क्यों छोड १५) उन्टे भोजन टेन ठने' गौर छु चन कौ सदायता कर -उनं सदव छो उमम दषा द्वियः! परन्तु इन दु ने अपनी
॥
> ऊस्मा ७
7 क 09
2 इध महति अव भी न छोडी । र दिवस साघु रामनाथ चः ,एक यार्ह चप्र का पुन गेख्ते सस्ते ण्डवन मं जो प्रामक्ते समीप ही धा पट्चा । इन दृष्ट पडोसियेा ने उसे मार उसके भषण आभृपण उतार चये । इसका पता साधु रामनाथ को पणरुप सै न्निल् गयः । चिन्त जव वे दुष्ट रामनाथ जी की शरण ' सये गीर उन्दने कहा कि दम कमी अय णेला न करगे, दमने "नो कुन्रकिया वदुत ही बुरा किया, अव वाप ष्मा करनी रस कपि चानन > यदुसार-- ‹ कोह तृता पथि रोहित युचिना । दुपयेन श्न म्धुरप प विर्न मथित तथाप यसन भुदूमिरति ॥ ~ ~ यथात्त-सर्घथा मधुर रस कै ग्रहण दस्मै वाट महोञ्यन्टं दृध की वयाव्रौ कीन कट खत्ता है ? को न्दी, परनोफिघसे चाहे कोई कितना ही तपावे, नाहे कितना री चिरूत कर थर जितना ही मथे तिस पर भौ प्रसारो को सहतः षुभा प्रह्यार- कर्ताधो ऊ चिये चह स्मेद चिकनाई धी टी धता अर्थान् भभु पर भे बह सेद् करता है साधु सामनाय भै उन सव परदेयाकी। „ उन सपृणं दुरो ने खरी आयु खु रामनाथ पर चोरे च, पस्तु इव कचि वाय के अनुसार ' श्तणो पृर्तिनो ` बन्दि स्यमेनोप्ाम्यति । ` प्तमाखग क्रे य्य फ करिष्थति टुभैना ॥ धे दुर्जन उमा नूह न कार सङ 1 , भषटान्मा युद्ध को एर पुश्य ने एक दिनि माकर वद्नं सती भर्लिया छनं । जय महात्मा युद्ध उस ठिन गलिः फोसुन म पोषे तो दूलरे दिन उसनै माकर दूनी गारियां सुनाई योर जेब दुमद दिन भो महात्मान बोले तो तीरे द्विनि निगुनो
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७६ दष्टान्त-सःगर--्थम नाग ` \
ख्प्रैर ञ्य उस दिन भी महात्मा जौ न वोचे ते चौथे दिन यौषनी गलियां सुनाई ओर जव मदात्माजी फिरमीनवोठेत्येर्पायः ये दिन दह् पुखप जाकर ्टात्मा के पास दुष्क से खडादी गया। तव महात्म बुद्ध ने उससे कहा फि--“"्वेया थदि कु जौर भी तेरो इस पेररूपी यैरीमें हो तो उसे भी ददै ।"तव उसे कदा कि--^आअव तो जो कुक था वह सव मनेः सुन! धिया पर श्तनी गाली. खनने पर मौ आपने कौ जवाव नद्यै दिया ।' ° महात्मा ने कहा कि--""जवाव ठो मँ पके दूगा परद्ससे पह तुन मेरे एक सवार् का जवाच दरे दे | यह् कट कर मह्यत्पा ने का कि--“कोई किसी के पास यदि किसी वस्तु की भद्र दै जाय उपर वष्ट उसे खीकार न करे तो उसा मालिक कोन सेना रै?" उसमे कहा कि“ वही, जिसकी , वद् वस्तु अथवा जो उसे खाया है 1" ,।
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मम-दम : (^ एक वार महामा जनक के पास पर ्राद्यणने जाकर करा पि-"मदहासाञ, यह् पापी चञ्चल भन इम फो अयने आरे निशिदिन नवाया करता र हम बहुत वहत जोर खगत रै पयः यह् पापो हमको नदी छो डता +" यदात्मा जने क नै यद्र सुनते । ह्म पक दश्च फो पकड खिया खोर चोठे कि--^ अगर यद् वृश्च ्मेखोटदेतोष्टम यापक प्रश्न का उत्तर्दे दै ।*व्राह्यगणसजा सनक की यह दशा द्रे देखन ह गया सि यदौ राजा जनक 2 लिससी सछवचिद्यामे रसा? एकर वृश्च को पकडषहट्ण ह् स्याद क्कियदि यद खोड तोहस तुन्दे प्रश्न का उत्तर द । रेस्या रयन पे योढे कि--""मटासाज, जड उक्ष सपक ध्या पडडखक्मारदर? पद्ध खरम पकडे इद. ्षाप
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॥ क,
। २द६-एक महात्मा ७७
खोड द सो वह माप ष्टी छट जाय 1 मदात्मा जनक ने फदा- ` वमे दढ चिग्वास है क्रि छट जायगा ?” ब्राह्मण ने ऊदा-- ` यह नो गरिदङृख परव्यश्च दी है कि आप छोड दे तो द्ृट जाय । मदात्मा जनक मे कहा-- "वस्र, शसो माति मन जद, वह विचारा जीवात्मा को व्या नचा सकता रै ? जैसे हम दृक्ष को पकड ये उसी भाति आप मन को पकडे हष हैँ । यदि मन को चोढदेः मौर दस फन्दो मेन आये तो मनक नदीं कर सक्ता--यगनी दस जड मन को चाहे माप खुभा्गं भ चरूये नाहे मार्ग मँ । यह मापके मीन दै । यह" तो सव कहने फी घाति हैकि मन वड़ा चच्चलदह, छुमागं मं जाता द| वने चके मने संकटप नदीं दो सक्ते 1“
॥
२९-एङ पहाता
एर महात्मा पक पसे सेजक की चिन्तां ये जो चिना चतन छथि) उनश्ना काम ष्ठरे। यदह चात प्रसिद्ध हैकि भजिन खोजा तिन पाठय मष्टास्मा के सेवक मिरु गया, एर सेषकयेमदात्मा जी से यह अतिक्लाकसाखी फि""ापदमकी सर्व पोप चतलति र्हं, यदि आपने नसी समय कामन पताया तो हम नापको चिना पीडे न छोडेगे 1 मदात्मा मै भर्वि्राकरङो { सेव समे क्र कि (मदात्माजी काम दतखादये' मदतत्माजीतै करा किच के ल्ि लेटे में पानी टेभ। ब रङे मायः । मदण्त्मः ने कटा दमे का, यन्त धावन >» स्तान् करा” उखने वद भो क्र दिये ¡ मदात्म( न कदा-- * यद् खेगोरी फीच डां । उसने छेगोदी मी बो-उ्ली । खगोरी धो सेवक मे कदा- “मदात्मा जी सीर 1” मदपत्मास्प मे फ्टा--+ अव ठरे इस समय चोर काम दृष्टि नरी पडता 1,"
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७८ देएटान्त-सागर-प्रथ्-भागं #
महात्मा दे यह शब्द् कतै टी सेव कमे म्नोटा उदा धमा-वौकटी ' सचानी भारस्म की । महात्माजी रते ह्ण पूजा पार छीड मग सड ह्वे । सेवसने सोंटा छे डनका पीदा र्था फु ग्रूर चल महासमर को प्यक अर महासमा मिरे । शन्द्धने भने ' र टी शीघ्र २ दूसरे महात्मा को सम्पूणं गरत्तान्त रुनाया " मदात्पा नै कद्ा- वसं दसौ दिये आप भगे फिस्ते ई चिस समय शग्पके यटा को$ काम न र्हे इससे कष दिया कीजिये कपरः कम्पा कस रे शरा । जव छेभवि तय कहना दसै गाड “व गाड दु तच, कदन किं जय तक हम दसस काम न यत खें तव तक दसं परः चदा उतरः कर । मदातामे पसा ही किया । स्यान परमा भापने सव काम ्ठस्पा कन एक ठकम्वा यास मर॑गवा कर टा. जव तक हम दुस्तस काम न वता दसी परः यदा उतर कर 1 वल, सवक ज्यौँदीः दो चार चार्! व्या उत्तया क्रि धक कर रिथ छे वौला--"महत्मा जी यती चढा उतरा नदं जातः 1“ +
शसक रटान्त यदह ₹ फि जीचाल्मास्पी मदुप्ठ्मा की पम पदैतनिक्र सेवर की सावस्यरुता दोमै पर द्से मनर्पी वेदाम, , 7 श्स्यमनिखा । पर्छ इख मन मे जीवात्मा से यह् अतिशा क्ली यी किर्मकी सर्य च्ताम ताते रटना भर्धात्सकव कथम में छगाये रखना, नहीं दम पीट वधात मल जये काम से ररित दौ दारी हेमा उद्धससय फुमागं मे जप्यमा सौर अपने सप्थ जीचात्मा को के दुस्ता करयेग । दस प्रकार मन छाटीहीने पर जीच फो कुमाय चयि ये खेद र्हा था श जीवाव्मारुप महास्मा -व्याछ्ल्ट या ' कि शत्मे म धूसर अटात्मा चऋछपि ने उपदेशा क्या कि-- ।
प्रच्छर्दन विधार्णाम्या वा पाकस्य | ।
३१- तीच ७६
सुम खख प्ररर्ग॑स रुग 2+स गाड जव यह मन टालीःहौ चचजताकरेतो इस पर्च्हानो उनाये। यस, तीनचास्यार धाणायाम फन सैमन निधि गया नीरसा चंचल यना द्र भया), ॥ ; २०-स्तय ^ 4 ति र ८.) । समम्तेष प्रतिष्ठया म्वरत्नो उपस्थानम् । ` ' पक वालक निलय पाञशाला जाया करता धा। णर पवस पाडश्ाखा से वद् पिस विया्थी स्तो पुष्ठ र घुया टाया। स्डफे यी माताम पुल्लक चिक्य करञसे जग गामे कोले विये । श्सी भाँति कसते यर्ते छ दिवस मे वदं चेरे का ॥ िसेमणि हय गया 1 एर दिन वह खोरी फरते समय राजा कै सद्धा पकडा गयाः आर् उको राजा के गरासेखरीषएे यर की आशा हुई ) सुखी धर चदते समय किन ही पुर उस वाल ये धवो श्ननाथं आये भीर चारक की मालाम ` सय पुरे फे साध याक की दरैखते जई । वारम नेअरपनी माता सेषु पार्त कसमै की जाता मागी ओर माता केकान मे वानां कसमै वैः समय उखङे नाक कान दों द कार चयि नच दो भाता बलत ष्टी दुरे ई । सन्पूणं एुन्प य दथा देख चारक कौ धिक्षास्मे न्यमे। त दाकुकने ण्या ~""धापकेग वस्ते दुः पट्तु यटि सुमे यट चरौ च सिखी त्मे णज सुले काखमव्र च अग्ता 4" ग द ' बल्ल, जापन्नोग खम छे कि चसौ एत्वी धुरी चोीच्रदै, दी कफे त्याय को स्मेव कते ६ १
३१- शुच शदेवायेव गौचाना भथ ` रोच प्र स्मृवम् 1 ` अविशुचिःमशुदिःनगृदव्रारिशुचिःशुच ॥
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<० दरष्ःन्त-सागर--प्रथम भाग
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णक गावे टो सगे भार थक् धक् रहा घ.रते थे। उन
से णकभ तो वादय शुद्धि यथैतत् रैव, ठन्तव्ावन, स्नान धादि ओर दुगेन हने पर मो दूसरे तोखरे दिन अपने वसधा {खया करता थ प्वं जहा जिस स्यान ये वह् वैद रो उस अत्यन्त खच्छ स्पताया स्पेर भीत्रकायी क्यटीनेथा जिससे कि उसरी बुद्धि भी अत्यन्तं तीच, चट नै यडे गम्भर विपथे को चहज हा मे समन को समर्थी मौर इसा मन भो वड़े पुष्यं मं था, ज्या यह जा कर वेठता सपनी धरसत् रहते, सौर दुसरा भादः यद्यपि वडा धनवान् वा परन्तु ज्यत ह्री मिन या, दन्तष्छवन स्मनादि कातो यर महीन नमं हीन जनता, मुहमें दुर्गन्ध आती, सैर था दमेदमे { फट गये थे ओर फटे इरे चख अनि मैने जिनमे मक्न्विया भिनलफ सही धीं पिरे हपट पेद सौ कपर फी पनि, सध्व "मनस्यन्यत् चस्यन्यत् कर्मख्यन्यत् दुरान्मन. के अदुसार दी इसकी चार्ता भी र्ती थी, यानी कहते छु जाते कीं, दन सेष््नकोनत्ते कोई वात द्धी मानता था जोर जिदक्ते प्रासः भे जाकर यैरते वद् इनसे अतीव श्या कर्त खा कमै चुट गँ भो यद् बुद्ध घे, श्छ कारेण भग, तम्याक्र ञ्पदिनगो नो आपके पक्र मान्न भूद्रणये {इनके स्दने कास्पन-सीच्डयषी श्रष्टरहना थाश कारण कमी द्गः एरभ्रूये मेँ दणड कमी गर्दृखीन भँ दरड, कमी सुद धनो सता मार द्ध द्र रोने ने मनमानी ध्रूस केके नवाह कर्द्धिया) युक दृनक्णे ग्दन स्पदनले द्तयी उ्ण्तिष्टा कै कारण मी इनके सव व्ययहाग पवय स्ेगये, अन्त भं यष्टोनक दुमा कि श्नयेचारेकोषमषक दि क चदा पडगयै 1 इस्प सोकर सोगह दशा षटु परो चा दन्वर जामे । परन्तु उक्ते दुरे अदू पीखम्पू्णं पुय ध्रलिा रने नथ शव्द पातभ्यै नलतेये न्तर प्द्धिष्ेरिण्नो
२य-एन्दिय निश्रर ८
>+". ~~~ मन्िह्त चुहू कि विरुघ्षण थौ, यदह अपनी पिसीन । सिसो युन्नि से पक राजा ॐ पास पटुच गया । राजा इसके उपर अति प्रसते भा नौर बहुत दी चाने लगा! भौर शयीडे ही काठ भे राता मे उसे अपना मत्र नियत पिया! पुन ' योगाष्ि साभन करने से जव इमङ्ती आत्मामं वुद्धि का काणं हभातोगसा-ी नीक्सी छोड पुकान्त वन मे जाकर ध्यान । करने छरा । यह् सय वसी पत्रता का कारण रं । ` ‡ देर्दद्धिय-निश्रद णक भिया किख गावे सकुटुम्य रहा करते यै शीर माजौ कायः पूर उपै यथवा नाउतौं का काम किया कस प्र। पतर उरर चरति में मियासीकीतिदरी करददिनिसे टवसस्दी शरौ ! भियां की चोयोमे कदा कि~"भिया, जस इस सूयण को गन्द चर दीजिये ।' मिया जीने कटा शि--प्वन्द् करः दमे, मी परपाभरभरहेः?" इतनेमेमियांजीकौ कीस भारम धृता जाया जीर मिया पर वकरर्सवक्रो खी द्ुरी छे चच के ओर मिया जी कौ वीती भी चुपके से पीठे२ दस लिण चटनी दई फिदैषतू भुना कैसे कास्ता] मियाजी वदा भाक्रर दुम से भृमि पठने लगे मौर पढते जाने भे ङि जय दानो उखदरि र्थी, चाधीं जक की का, जस मीरा सैयद धू नूम को वो्ाई"-तथा- “काश वधि , पाता वधू दै तडाकद् ।' इतमे मँ वीयी मे पीछे से क्त चपत दे तडा शी घोर कटा बा, यदा =च्छाश पाता वांधता है, प्रर मेरा सूरक्रजो तिदस खपकस्दएथा सोतोतैगे वधरेनर्येतातयत् सको पाना द्वा वापेगा १ । ‡ इसका टारन्तरयो दै किव श्ल जीवात्मार्य मिया दन्दरियस्पी दूय शरीर स्पी तिदरीके न वारे पधे तो कौन
1
८ द्न्त-सागर--्रयम भाय,“ ; "
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भव्य-समाज का प्रचार करेगय ? पतन सनातनम का शगः करेया? कीन दैश भर मेँख्द पचार कूटा? द्धन लदास मरप्तक्शेगा? क्सिसे माश्ाकीजाय? ',- ' |
३३--ध प किसी ण्न शंवमेंदौो स्मे भा र्ते थे । उसमे से ण्डा वेचारा खष्डारण उदू" चा योडी खो अगरेरी वा साधारण मावः जानता या मौर छोरा भाई पूण खस्कृतक्त था परन्तु चूड पृख दुद्ू धा । बहे भके गोरं ॐ दिन समीपना र्ये ॐ गोर उन्न कौ ष्टक अभियोग होने के कारण न्यायाख्य में जप्ना या, यत वडा भादू अपनी ससुरा नदीं जा सकरता 7५ इ कारण उसने अपने छोटे भ् से कहा फ्रि "तुम अमुक त्तथि पर जाकर अपनी भावज को विद्रा करा खाना व्यौ मे उसी स्यि पर अशुक सभियोग जें न्यायष्यरय जना परन्तु, ह्य जरर छीर तीरसे चात च्वीत करना अर्धात् हाके्यनमें हां सर गही के स्थान भं नद्यै । शन्न
, कटा कि“ इतना दृश्या किमुभेन्दानहीकामी ज्ञान
नही १, चञे ने कदा-'"तुरह इन सो है परन्तु मै वडा ष्च
` चिप लमाना मेरा वर्म था, इततते सममा दिया ।* परन्तु खोर
हा नको सिरसिष्ेवार छिस यानी पथम हा पीछेनाही, भावज को चिष्ा कराने चछे। ये ज्योही उस गव के धुर पर , पचे तो इनके भदू कौ ससुराल के कग भिरे मौर इनसे पू कि“ भको, ,उम्दारे गांव मे कुगल ई १ कष्टा-"ह्रं 1*' पुदा~ * लम्दारे भेजी सो सच्छे है ९, कटा "नादे 1 पुच्रा~' दया ङ चीमार ई?" कहा षदा ।'' पूजा किः कछ कीपिधिद-प
- द £" का~ '्नष्ध 1" पुन, कटा “वना वहत् वीमार द्वु * ,
क < 0 कद्या-दा ]'' थद् सुन धयड। कर परूउा शि "ववम धी उम्मेः दैया नादा?" का~ "नाहं ।'' कहा पि स्या ष्रतमे सक वमर दै १," कटा-- द 1" पुन, पूता कि -' मौजूद रगा न्धा १ कहा-"नाहीं ।' इतन। सुन से म वड़े जार ञोर सनेलगे नौरसवश्ागेना सुनयेभी रौनेखे। अरतौ सवेष न्मैरभी निश्चय षो गयां किश्नकते भद नदी रतै! भातकण्ल इन्डो ने कटा सि-- “क्था भावज ॐ विदा नही रागे ^ उन्न कारि ्ो द्वार दिनि जीर चूरी त्रि पदन (फर्तरोटम नेजद्धी देने! ससख उत्याय गह उर शुन यर् चापरिंस यये } जच घरमे इने उड भाई अये भार पृखाकि- "भवन क्ये विया चटी जस लये?" तर इन्टँ ने कदा कि-' चावज दो साड रोग, उस केले वि! ठाने ‹ ' भाई ने बहा", यह क्या कुचा है? टम वनहीरे चौर चष राड हो गई 1" सने उत्तर दिपा कि-- क्या दुभ न्द केनाहरह्ो?तुमवनेस्दे वु ग्रग्डहो गर्द! तुष उने ग्रे, साखी खड) ठुनवरदे वहा राद दग । तुभ वने रहे, चाची राहदी श । भावनके ट्ण तुप राउघ्येनैते मसे रो गावै?" तय नो भाई मे कदा -' उनानो चान्या चप रातं हु धों?" दव द्रमने सम्पूगे घृत्तान्त सा० न्ट सुनाया ! चदे भार्ई्ने थवनी सद्ुराल जा सको "7न्तदी।
मय दै, बुद्धि तेरी वड मदमा ह! >ेम्निथि-- व॒गधयैष्य वत तष्य गिवुदरे तु कुता वनम् । य्य निहो मदोन्मत्त शशञन निपातित ॥ म्थ॑-षक वार एक खरे से सिने श॒स्सा दे रद्ा-- ¢ हननी देर तू कहारहा 2" खरहे ने का -- महाराज, पकर प्रलय सिंह सदता थार्मे दल वनच्छा राजाह इ्ग्हात्प्ता
॥
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४ द्रष्रम्-सारर-- थम भग , ~
है? ' उप कदा-- चद, यिग्द्धा 1" प्ररत शुमा वला दिया भीर सहा--"द्मय रै 1" सिह र्प्या ही कासा उम क परारी भी मण्ट्म छु मौर उडीकने'पर नवाज म स^, अत ण में कुड पडा । कहा ह स 4 = थ > श समुपक्ेषु कार्येषु बुद्धयेश्य न ईयते । सत परवद नति जलन्थो वानरो यथा ॥ अथै- पक यार पक वन्द्र एरु नदौ में पड गया । उप
दप दा परूम-रने पकड़ छो । दृसरेने कदां हमने खटा श्रा ' ' उस्ने कदा--"“स्या भा, साने टकरडी पकडा है मीर समभता है कि बन्द्र की'टाग पडे 1" फेला सुन मगरे ग कोड दी पश्डरनदरी के पार आया। ।
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३४--विदया
"पक ठीन काश्तकार का रूडकरा नित्य पाटणा रे पटने ' जाया फरता था, परन्तु चह वहुनष्ी दीन था इस कारण वट अपने पदमे का सामान इका नही कर सकना श, यहा तकत कि दवन, मसोपा्र जीर कागज नी नहीं छेसकताशा नीर मोज्नी न> चिण् मी उसे पैर मर,सत्त नदी मिचसाश्यो सिसे चद् बटुनद्ध छर दहौर्डाथा सिन्तु पल्नेका उसे इतना व्यस्त श्वा प्िसममानोंकरेने दति ह्णभो वह वडे चावप साप्त) शा तीव्डपनी जश्न कटरोमें वडा दही वुद्धिमान् भीरवो ह्र प्रतीतदीताथा। श्मसी यह दग्ादेया अध्यापक ग्रे नित द्यान् थर्ड दीनि चास्मे सम्मति करसे चम्यया र्म्टकेके भोजन पा सामान दरदा करा दिया | यद्ध पने सपोचियों से वड मेत्ठ नोट रणता था, इससे कोटवार
1
- सहपराटी येखनी, मस्यीच, जोर पुस्तरे भदे दिया रस्ते चरे । षद्ल फे सित्रावट अवटे रनर धी षडा कसना पग्न्नु कभी फभी घरमे देना कारण नेटकाध्रवन्धन च्। मग्ने से यह् वयेजा ययतौ ( गुन) से पड भपनी शोपौ में र उनके प्रका मे नौर कमी वभी चासी च्््रमारके प्रकाणस्ते पदा करणाया । पस प्रकार वहे यद्ध पष्ट उठा उसमे चियःध्ाप्क्रौ तीरचिधामे पेत, निषु 1निरला कि जिससे ऋरग्रसरमार से वा पाठणाटा कषे निराक्षवे मे कटवार थने प्रकार के घडे यदे प्रसनीय प्रणमः नथा पार्नोपिक भी प्रात पिये । भवनो इसङी विद्या की नर्चा नरे मौर धूम धामे सम्य चिस्नृन हु) यानत रि दडेवडे राजा जेमी कर्न । तयन्नोइसे प्के राजान बुदा अरसी योग्य नुखःर खत यहां मन्त्री पद प्र नियते क्रिया । धन्य ह मद्यणी सरम्बनी । नगौ पार महिमा ह] मनै फिन्नेही मनासि लो राना जीर कितने धयो को महात्मा योनिज छ पेमुनि तपस्वी तथादरेयता तना ष्या नौर सुति तक प्राप्त करा । किसी कनिने कटा.
“विया नाम नरस्य रूपमधिक प्रच्छ रुपुवनम् |
, विया मोगरी यणः सुग्वस्री तिदराुरूकायुर ॥ ' ग्रा वन्धु जमो विदेशगमने प्रिया षर देवत्।
विवा राजघुप्ूलित न च धन विदादिहीनः परुः ॥
३-ोशरं कौ बात का तिरस्कारनन्रो , कमो सभिमानसनं पारस्द्ोदिकी वरात का निरम्श्ग्न करना चाद्िथे वनोसि कमी कमी छोटे कै ग्याटर्मे यह न भाजातीषैज्ञेः वड कोज्यप्नयें नी नदं सभी ।
८६ टटान्त खागर-प्रथम माग
नि व खण्डन दो महात्मा न्यूटन सते पेखा कोई शिश्चित् यन्नि शोगा जेः परिचित्तन दहो) सापकी विह्टीपाटने काव्डा णाम् य“ अनव भगयने स्मेसेवच्होदो दद्धि पाठ रसस्य धा ॐ न मरे स्मे इधर उधर घूमा रूरनी थीं आर राचर्मे मदात। न्यूटन सी च रा दे नीये आकर सौ सदनी धों।.इस कारण तमि न्यृध्नं जन रात अपने कमरे मै सोश्रा कस्तेयेते कमरे 7 पफचक्घां की जजीरन वन्द करके साधारणष् फिचाडे मड लिया करे धे फिलिसमे विद्यां सिचं 3. पीव कर छी चाये शीर विया भौ जव घूम कर वार सै भातं ल्मे द्वडि स्मेर अन्दर ने च्छो जाती धीं पर फिवडिप्फ ये खन्द चदौ कर सकती श्री किसिसस्ते वे सारी रतं जडाय करनी थीं । यहेण मडत्मान्धूटन नै सोचा किक ६; दन्तिजिम कर देना चदिये कि जिसमे चिद्धिया जडया: यरे । सते चि उर्दि यद विचा क्रि भर हम अपः कामरेके दोना क्विवर्धिामें दौ खेद यानौ छीरो विल्लौ फ कनीय च्वैर वशो के लिण्वदा करो दैः छीर कमरे कैः पिश्रडि वग जजीस्सोये के समय वन्द् कर लिय, करें तौ -चिद्धिय खण्ड से यन्य जम्येः । वख यह् गिन्षए्र वई कौ दुवा क प~ ' दवद] तुम खनते दैवो यह् जा टौ विद्धिय मसे पा रस्य) स्सेग्तये्मै ते योदीं सारण फिदाई मेदकर सं जानाह् नौर त्रिह्ियं ङु धूम र वाटर र अनीह तो पित्रा तो सोक कमी हं पर वंह कर सक्तं स्िमकि ये जडाय, करनी ष्ट! रो तुम शन हमारे कमरे 3 सेनि िचाहड्धामेद्धोकेद कर्द यानी छरी चिह्टी कै चिप स्रो आीरवडो विकरे निपटवरा ताक्धिमै श्वाम से पिव चक "रसौ जाया कङ् ।” दद्ध खन चउदने कदा ।क- ग्वतृर खमे च्िपटदीडेन ओ दोन किविष्डोंमं फस्मेकौ म्न
१. दन्य ८9
नर्स ण्म हीवडा कैदं णक किवाउमे कसमै नेये {निन जाया करेगी । › वदने वहुत कुछ समभ्माया पम युर ने न माना । न्व तौ वदे देर उरा शुूकिया गेन भम एक नाड मे वडा छेद करद दिवाडे मड दथ नीर “उस पक हीज्द्रिसे दना विद्धिये निकट ग्ट! यह दैष्य मदमा न्युखन उक पडे ओर वड़े ली प्रसन्न हये भौर पल को षदुन छ पारिवोषिक दिया । ठीक दै बलाद् पशरदरीतन्य युद्धुक्त भनीपिभिः।
, रवेर विषय कि पदीपस्व परकाशकमू ॥ 5, | ३६ -मध्य
"पक गजा द्धी एक यत्यन्त रग्य-पे सनो स्नान स्थिष्ुये महल की छतं पर केण दुखा र्दी व्लो दि पतेम ीवेने रसे भिर पर हग दिया । रली वो उदं रेस यडा द्धै फ्रोध भाया, ओौर वह् तुरन्त जा कर को पपन भं केट रली । महा- रम को यद रानी ष्टुत हो प्यःमो श्वी इन से मदने मातेही पनी पेन देख उन्न दासौ से ए-7-- "भाज रानीजी कय ९1१ दासी ने कटा-"मदाराज, रानीऽपे आज कोपमवन मेँ ६1" वेल कौपभवन सुन सकुचे रक ¡ भय वम अप ! परत न पाऊ।" परन्तु सीसे तैले गाजा नैवटा चर पटच रानी > फहा-"कषो प्यारी । यया हना, पि सनै तुम्दार साथ गदु (वते व्यबह्मर स्वया, किसे कार ने ्ाररचेय द १ खत ने कशा ~"मदाराज याज सँ मला की छत पर स्वान किये पे प छसारटी यी किर दुष्ट फौवेनेमेरे सिर पर द्ग
पिया, पो जय तका आप उस कवे को न मर्या डाले, मै म. उदण न करती 1४, भद्ारात मे दष्टा यरे खनी, रमी, पद्य पया धोध २ कि यह सनी ६ या साधर
॥
८८ ट्रान्त समर -- चरथ नाय, /
री है । उसने उडते हण स्धारणन. हौ दगा होगा भीर वट सरे खिर पर पडगयादहोणण। इसते तु द नहीं करना स्याट्यि । ' पर रानोने प्क नसयुनी यर व दुन कुठ दए किया नच राज नै कहा कि तुप उ कर यच र्लकरो, हमक प्रान फार सच -कौवो कौ पकडय। उन्न से उस भगराधी कये को मस्या ऊवे |" रानी यद सुनने ही मुस्क च् बड, लाज तपरे के साथ मलं सेटरूनी दु उडी । राज देख फुल गया । ञ्च दखरे दिन घात कार माया तो राज्ञा मे अपस भतयौ को याता दु कि~जाओ र हमारे राज्ये सव कौवेाको पकरुड लाघ ।*' श्खो नेषन ही किया । जवभ्रयौ मे भार यह कटा शि- "मदास॑ज सव कीवे आ गये ।' तव राजान षन कौर सै कदा "क्तो माई कौये, सत्र कीत उगये ?। तव त्ते सद चया ते जख पडनाएल कर कद् "भटा ए वैका नही स्याद, वाकी सव बा सये 1" राजा चे भृदयोतते. कहा-“"ययो, भाई ञे कौया, नीं साया, उदे मो णीघरी सभो ।'' श्तयो > का~ महागज हम उसे ई ' वेर बुदा नाये ६, माता ही दोणा 1» मौर दौधेाने नापस मै सम्मति की पि भदू फिसल कोपर ने.देख। भरी अपराध किया जिसके कवस्म भात चिसाच्सी भर को कट भिख र्हाहै ? कन्त . यह ष्दरीर्रिोन दौ वी कोवा अदराघी रै जे जच तकं मदद धाया है शायद चम -यपयाथी रै 1, फेना समकर यजः, , उम पर नव्यत्तद्टी केचिद ये पि दतनेमें वद्.कौयाखागया। ` समवे ने ते सी मद्प्सज्न का मेवे यदथा सि-न भार -मैये, ये फोर सर जमी मागयेथे, तुमने दतनौ देर यदद यी?" व्यौ ठ कदा "मद्धसन, कपय स्वणद्दो मेरे पास पफ न्याय धा या घा, उत्ते रने वगा, दस्ति देसे, ग" रजनि पद्ध या स्याय वा? ऊवे ने कदा -
1
॥ \ ध
14
॥
३६-पतय ८६
मदारन्.पकस्यौ मग्ने पनि सेव् कहती वोम मदृभर गेम ख ¡ नीर मदं कषर यामे मद ररि तृभेरीखं, ₹। मद् नाग ख, दुष्त दनररे पासश्ये नौरमदनेमुरुमेयः म्य स्यि( किमा न्मया, यहमेरौ खी सुसेकदनीर कित् मेमे खौ सीमं मदंहसोक्मौमर्दमीखीरोखयना र ?नवयमैनेकूराद्ाहो सकगाहैजञा मदं कामग्वले खी > अचित कद मे या जाय जीर उल केप चले वह् रगा ६।"* राजाते यह सुन सय शीव से कदा~गगे जानोगे कौवे, म सव भग जापो" राजाकी आह्ञापासय येते चि ये जय सनी ने यह वृत्तान्त शुना तो तुरन्त दी कोग्भवनमे ना चिरम । जवस्तिस्सोना महटयमें भोजन कसते यथान पन" न देख दासो से पू । दासो मे कहा (मदागाज, एनो जी पोभवन्मे र 1" सात्नाने वाजा वहत कु तमम्दायः प्रर रानी ने वाहा"! कौ चदे रम्ये नदी । टम या यदं मर जायं पर जय तस थाप उसन्दीवेकोन मरा डान चव चक अन्न जख प्रदग न ररसयौ ।'' राजान रनौ दा यिवेप दढ देख का~, हम फिरसत कोभ को युखा इसे मरघा उरे ! तुम उढ कर अन जख स्ये 1" रानी धुन, पसनन ठो उट खड़ी टद् । दुसरे द्विन धात“काच् दते दौ राजा १ पू्॑त् सय कौर पकड मगचये, परन्तु वह् कौवाफिस्भी नहीं नाया | दयं राजाने -महा कि~ “निश्चय वही कौवा भप रायौ, याति दौ उ कीतर को चिनावधकरये नदटोटगे ।* कीया ज्यो दी खाया राजा ने कदा--““ग्यो रे कौत, वृने नना दिटटम्य पर्नो करिया ० कवे ने ऊदा--स्महायान, अपराध भमादो एलन्यरायभागया था उसके खु सभम दनना विल्सन शे भया । द धुद्येः चं विवाद था, एक एक सेकटता वाक सा पु मयै ह, पानयाने च्छो “स्यान है 1 दुसरे ने कदा । [>
॥
६२ दृ्टान्त-सागर---प्रथम' भाग ५
क पर घ्रभियोगन च्छा। सेवक मे न्यागालय मे साफ साफ कह, द्विया करिष्ज.र हमरो एने जिख सुदासे गारी दु उस म्खदो हमपे कट दिया तथा जिन हारम सैमप्यवै टाधः' कट । पिसीकविनेक्रया द्धी खत्य चा ९-- - + कोहि श्नु" प्रथमा नाका देदस्थितौ देश पिनाणनायः यथा स्थितः स्तो दनि मणय दरिःदहतेव सष्म॥ ` अर्थ--मनुष्य ङे शमर छिग.बमा कोधरस प्रकारे के नाक्कादेवु स्विति दै जेसे षते भीतर छिपी दर् भाय जेष प्रस्वलित होने पर उसी को नष्ट कर देती है, इरि भानि, क्रोध प्रज्वच्छित दने पर फोधवरन्म चो ठे मस्ता] 'दुलरे,. सारभेणेसा को पुत्र चागडग्ठ नहोगा जञेाअपनी साताही खो खाजाय, पर यह चाण्डाट क्रोध जिच हदयर्भूमिरूपी माता से उत्पन्न छतां प्रथम उसे ॐ खता, दुमर्फो पीठे ! पुन. एष लि का खरस्य रे अन्वा करोमि सुन वेरो करोषि वीर् सचेतनमचेतनतां नयामि ।
रयन पज्यतिन येन हितं शरणो ततिधी मानवी उद्पिनपविपद्रधाति।, ॥
३८्-ध्रसतकथं घ्यश्य भोगने प्रगे , अद्वयमेव मोक्तव्य ठृत वर्मं शुमा्युभम् । .
नासुक्त त्तायते सपं (र्पकोटिणतेपि५ , , पकयाजापक्ाधीपरसदारः वदरी घप्र धामकेसाधचदा जाताः! परन्तु हाथो टुत द्यो इष्ट था) जिस समय.किसो' प्य्परेडनार्थ सजा दादी से उतस न्ति द्ाथी' विगड गया शौर राजा फे ऊपर सद प्रटारकयनै कते कीडा। यजादा्वीन्दी यद, वशा देख भग खडा हु सैर द्यथीनेभी राजा का्ष्छा,
र +
ट-अम्ह्मत्रम अवद्य भोगने पठने ६९
~ कषा यदा तक सि याजा को एकग अन्ये कुषटमेतेजा कर इला फि लिने पपन सिनारे पर पीपल काण्ड स्था नोभ की जड कुं यै भौनर फोर २ नित्चग्दीथ्यैये भ्य इण" तक केनो धीं । राजास कये म गिरते ष्य ठ्स प्र पीप फी जम दिखण यया। गद सजो उव सिर नीचे परपर उदर्य राकी दरष्ठिजवनीते को प्रडीत्ये ष्ठ 7 देता दू 0 प्य में दडेरवि तरा ककेर्सपविनत प्राद्र, क्युषेउन्ररो मृदयारहेट् सिन्दरेप सजा काप भया चि यद्द् जडसेमेसा पैर फङाचिह्टगया मेरे कुपः म गिखतो मुके यह् दुष मीय उसो समरमव्ग करजायंो। भ ऊपर शनै ओर उसने दि डरी तो देवा रि दो वृदे, पन सा नौर दूसर स्ने रिस जड मे उल्ला चैर दिक र्हा उसे खुतरस्दे सचि विदयाकिम यदि जड पकड पर.फिसी परमार उदर निक जाऊ तो मतवाच्छा दायो ठोकर वेगानि को ऊपर हौ खडा द कौर नीचे सर्गादि जन्तु रै भौर गड का यत्त रार हई] निडन सजाथोर्विरकिर्मे फसा । पण्न्तु स्त पीपल पै वृद्धम अरर णएदद की मदक्वियीने फक छता "गा स्वंस्र। ध! लिसते एक पतत च्^द श्दद् धीरे धीरे पकता चीरः वद् शदञ रभो कमा उन रजा समके सुषम जा गर्ता घा जिग्ये कि चद ेसा नपत्तिमे रते ह्ये भा न्यो नपिचछिये। शनो भृ वदद च्छे कता जीर यदातक स्यु उको चण्डे नै नातो जाताया किसे दन गापचर्था 7 पिरि व्य नहीं र्ता किदख जके, इयते म मेरो त्या दशय द्यो । ~
~ भियो, दन्त चो यद हुमा पर इख त्म दण्टन्नयें हरि जोपग्त्मादवी. साना कमरूपी दाथी पेर सवार द 1 चद
~,
॥ ६२ दृटन्त सागर-श्रधम भाग , ॥
र अभियोग दखा। सेवक ये स्यागाटय मे साफ सप कह दियाक्रिद्टजर दम कये इसमे चिम अुखसे गाली दी उस, म्खद्धो हममे पमट च्य तथा लिन दां सेभायवेद्ध ' कारि । पिस कवि ने स्याही सत्य का दै छ) क्रषोहि श्नु प्येष नराणा दहस्वित्ती दैद परिनाणनायर' यथा स्थितः शा्ठण्ताहि चनि मण्य चरिददृदतेच काषटम्॥'' अर्व-मखष्य के शमर मे च्छिण दुगा रोध रसप्रकास्द के ना्काद्ेत च्वितिषै जेस के नीतर छी हु जग, ज्ञा भरस्वकित रोमि पर उसी को चष्ट कर देती रै, दसी भानि न्तोध प्रज्वलित लेने धर फोधवार्त की ले.मर्ता ई! ,दुसगे न्नारमेपेला कोर पुत्र चाण्डण्टनटीगा ज्ञा अयनी साताही खो खाज्ञाय, परः यदह चाएडाट को य जिल ठद्यभूमि स्थी ' मावा से उत्पन्न सता ६" प्रथम उकसेप्ती खातादै, दु्तरेफी' पीके । पुन पप कचि का दाज्य,रै-- न्धा स्सोमि सुन् ववेरीकसोदि वीर रचेतनपरयेरनतं नयानि।
स्पन पश्पति नयेन दित शणो ति धी मानवी दमपिनपतिपतदाधराप्नि।
॥। र ॥ | ॥
. ई३८्-ध्रसतकं घ्दरय भोगने पमे अगश्यमेव भोक्तव्य कत कथं शुभाशुभम् । =,“ नोभुक्त क्तायते कमे -स्पकोटिगतेषपि ॥
पक गजा षक दग्धौ पर सवार वडी घूम खम के सपय उाताथा परन्तु हाथो बहव दी दुष्ट था; नजिख समय.किसी ,
' प्र्ोजनार्थं सजा हाथी से उतख स्वि एाथी विगड गया शीर ' सजा के ऊपर सुढ प्रहार करने द्धो दौडा। रालादाथीदीयदह ` द्णा देख नग खडा भा अर द्वाथी.ने भौ शनाका रा
॥
1 ष > |
“ ३८-गसश् गर्म अचदय भोगने पडे ६३
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कपा । यष्त्तर कि राजा-रो पकरेते यन्य कुष मेकेजा ठा मि जिसमे एप नार् पर पीपल ण्ठ षत था मौर णश्च कतौ जडे दुं ॐ भोतर फोठर निष्लग्डी थीय १ ष" त$कैलो श्वी । सजात युये मे निरते द्यी उसा पर पीयन्द थी जङ्क े दि्यम गया। यप भामते पा सिर नीचे नौर पैर अग्र मये] साता क्ले इष्टि जवनी को पद दो पटुक देखताषै सिद्ुप्पमे द>ैर२विरयल सषिरसपिन ' पाकर, कदु ऊदर दते गूटवा रहे ह जिन्रद्रेस सजा कात गयाक्रि यदि जडसै मेरा चैर रदा दरगार कुप गिनती मुके चद दुष्टर नीय उली सनरमक्ग करजायने। भय उपरक्त योर उस्ने द्रथिड्मीतोदेना रिदी नुदे, पक कान्या गौरदूलसा नेठ छिस जये उना चैर दिख र्हा हैउसतेखुनर रदे 2 । राजति चित्रारा कि यदि जड पकड फर् पिमो प्रकार ऊर निरूख जाड तो नवादा हायो ठोकरः स्गप्रेकोङपरहो सटा है शरैर तीचे सर्गटि जन्तु नौर मेडेषायते टार रै। निद्रान रजा घोरविपरचि्मे फसा) परन्तु भस पीपल.के चृ अरर शदद कीमवेखथेने प्क छत्ता रमा ग्कत( था जिते एकष्तच् द् शर धीरे धीरे स्पकता भष गीर वद् राद्ठ रमा कभा इन रजा सके मुलमें जः गिरना था जिमी कि वह् देखा आप्ति मे दोते हये भा ससे यापन्तिदे{ को मल बदद चःखते लगता सौर यदा तक उस यृ" वष्टतमे सन्ती जाताथः क्तिउसे श्न आपच्छर्यो को कि्विदमष् न्ये -यन.नदीं स्दता किदन जठउके द्यते प्ति मेरो उवा दश्वा दोग । \
~ भित्र, दन्त दौ यदुप परद्रसप्ा दातय दकि यद् जोचशस्माखवी सचा कर्मरूपी दस्यौ पर सवार दे । चदे
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श द्ठन्त सागर प्रथम भासः * ' ४
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यह् इखे शमाग से ठे जाय चाहे ऊुमाग से । परन्तु जिस समय इस कर्यन्य इथ से चह उस्ना हे खव समय कर्मरू7 दधी ्ख प्रर प्रदम कसमै दौडता ओर इसे सेद्कस्माच्ता के यभांशय सूरी अन्धे छ्य मँ ठे जाकर उष्टनाहै । उस छुये मे युर ` यृ्रकी जड मे इसा पैर दिखण स्दनः ह कीर जव यह उस जडे उद्या लटन दै (गर्मोश्ये प्रत्ये पर्प कास्तिय ,, नीचे गौरः चैर ऊपर हीते ई) जर कये मे नीचे संमास्को रेपनः है कलो दस मे वड चडे भय॑कर स्थ, चिसखापरे, दद्ध यानी काम कध खोष मोह अहंकार शर्या देप्ठण्याभादि खथ, , . क्टुभे सृष्टं फाडे ऊषर को. ताक रहै दै करि यह उपर से गिरे भीरः देम इस को अयना मक्ष्य चनादं । यह देग्व अपवङूप्र राजा अत्यन्त व्याङ्क दो नाहः जीर जव यह् ऊपर की अर टु डरता है सो इख फी मण्युरूप जड सयो दौ काले सफेद नुदे, चानी सफेढ ` चूहा दिन मौर काला चूहा रात, इसकी आयुसखपी जडाः समि + दखका पैर दिटग रै काट रहै सोर जय यद विचार्नादैकि यटि द्रस ऊय से म कमी प्रकार जड वड पकड करः मिकल जाड सो कर्मरूषी दाशी इसके ठो उर कगे छो ऊपर खडा र इस दशाम जो ममायीदप विषय का गदर (कव, रख, गन्धः शब्द्, स्वश) रै उखशूा आस्यादन.कस्तै म यह् ससा सिमश्च , दपजन्ताद्ंकि सारी भापत्िर्थो को भूल जाता है] ऽसै यह मी सुपर्ण नदीं दता कि आगयुरूपी जक अभी फटने वारी है ,. भन्ते भिर के इते सयं कद्युभों की गवर चनू"गा 1 ' इस ल्ियिष्मे स्योनयेसा क्म करे प्क कजिंससे दाधौ सेद कर एमे मर्म शयक्प कुष्ट जं न डार पष्य यर्थाद्टम सेय रेस - खद् कमं कर जिसमे गराणयो रुप उन्घे छुं में हयं न॑ सना नदे उपर रम मोक्ष ग्रप्तयर।
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५. स ् २६ -व्रह्यज्सय पके माली -रटो फीता साव दीज्ञाञार्दाथा। ण्न 'खाद्मीने एना ""मर, नं द्तनौ सीना से दौडे जास्टे , रो” माछोने कामे जात कः याड फूठ नौडने द + उस भयुप्यने पठा" गाडी फर तौड करे पया रोगो" , एते कहा --, इनता रस्त सीचेगे ।' उसने पूङा--"“रस मवीच अर शना क्सेम?" इसमे कला --' फिर रस को रस खी्मे 1” उसने पृ "फिर क्या क्रीगे?" कष्टा-किर कड् वार स्ख मगच कर श्र उनावेगे (*” उसमे पूढा कि-प्कई कद्ियिर्मे तन 1 इतर बनेगा?" दसरे कष्टाए इ शी ती ।, उप्ते कषा "छर इख दतर कंपे वना -कसेभे ° माली मै कदा -- "उसे गसो नेस्दवीत की न्यो मरे फर देने 1" उसने कदा भद चु खरीख्यभी कषटीमूवर्मकरेगा प्ति वरतनो शीधगसेदोडखा जा स्दुष्हु, फ्िम्यो सेवन तक करा नले, फिर दननासय यु परिनरम कर द्रूनर निनाय नखयोनमे फेरे । - भिं ह्छन्त क्ते यह दशा पर इसस्म दाान्द यहदहैवि स्पीयात्सनथी मादी दिन सान ददी गी्नगसे दौहस्डादह परन्तु शस्ते अ कमे महात्मा कता है श~ "क्हा जतिष्ट, खसो ।' तो यह कहना द -- "फुस्खद चं 1 चथेाकि कः म्यी फू यानी ताना प्रकार ऊं मन्नाद्धिक पदार्थं धम प्रा करना है, जिन चै लिप किरी कविने कलटारै-- छरन्यन्ति प्रायृन्वि रदा रोहन्ति वभ च गुणे रलन्ति । तक्षाम पिण्ड मद्ये लिहन्ति सै कक्मावरिति चति ॥ उति्रनं स्त्छलज) जहाति स्वक्रखच्य्पै द पुन् कुलीनः । रस्य पभा एंवरमातरेभात् दर्ये षद ।चच्छस् मास्तु ॥
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द हष्रास्खामर्-प्रश्रम सग
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तास्त पयसि पर शतानि घ भाज्जलरा, जदुतानि । स्कन्यादि सहार्ययंति घनान नान्यन्न नक्र कसति ॥ ,. मतापराधानपि दण्डय त कत,पराधानपि चं न्यछ्ति1'., , य न्तदित्ता [कवराजक्रीया "चत यस्यै पणिमद ॥ उपानहः द्यताडित ग॒ युशनभस्मिता. ऋाग्येहे निवा ।* यदेयं व्थास्लक्करा, स सहन्ते नायान् तभ्मे नमते नमते) यस कैरखषत वेरः के भस्मे केपः धनके दिष्ट कोग क्यार नरी करने) दवत दन रे महत्मः पूठतादहै, यन कमा कर क्या करोगे ? रन्नाद्विस'नाना भकार के पद्यं खरी समे । उन पदार्थो स्मरे केके क्ष्या ज्सेगे? स्स वने । उन रख का प्या रोगे? स्क चन्वेगे { स्क यना मै शपा करोगे गाक्त वनेम । मग्स वतः केः वया करोगे ? मज" वनाय । सखा घना के श्त्या करोगे 2 रदी चनाेगे रट चसा केन्य फयोगे? सर यनप्यंये । समर दनाः के प्या करो ?' वारय चनेन क्योकि शुश्रुतमेकिलःभोरहै-- - ` रनद ततो भसे पामन् मेद! पएनान्दै। ` मेदसोम्ति चतो मला. म्ना शुक्रस्य सेमर ॥ - ` र्ध-रसरसे स्क, रक्तसेमाख, मांससे ओन, तटा मज्ञा, मजा सैषष्ी ए्धीसेस्तार सार क्ते दीध्ये उतरा इ लम तपे सद्स्माने स्टा-णादियेपै भज्गधिनद पराथ म न योग्यं नपा है? एखन कष्ा--यद्रुतं टी धीदा । फिर उन्नेयः गसेमे? कूटा -र र्ये ची नस्दवीनस्यी भरस्य ये प्रमे, यव पं स्मरेण सोके कि जिस गश्चङ्गो श्राप क्रत रे दिनर ^ चप स्था स्विसमै पश्र सदै, पिर उम्नसे च्छ्य तति मै शिन ष् छट पुन रसदन प्रकार व्यर्थ पनित शष्ुव्यिवद
५ ग् ५ ध
‰‰०-चिना परीक्षा के व्याह ६9
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` ~ ४०-व्रिना परीक्ना ॐ वपा पर्य उनेतनेदैते देता । निनि दर देखे व्याह केटी 1 पकमेडजो मे जपनो कन्या जे जिमनी अवख आाटचपं सी यौ, चिरा कै लिपनाई्को मजा। नाई कु दूर चल ` फेर द्ुपरे गय ओँ पदुचा | चहापर खालाजीने ना कौ उछ ` रे ठि दही बूया.षिद्धा व्याह एनश्वय कर खोटा दिया, जय नान्मीदश्ररआया ती लालाजौ मै कदा धि~"^कदो नाञ- "दादर, विवार करः आधे ९ कदा--"ष्ां खादाजी, व्यद टीम हा गया 1", खालाजी ने कहा क्रि-- "वर फी यवः क्या है ९” भाजग्रह्कुरः न उत्तर दिया-- "लाखाजी, बस वीस वीस ।' खलानो च कदा-- नोर ध वन 2" नाङ्गराङ्कर नै रदा-- ` खाज, घन तौ इतना अधावुन्ध षै पिकी ऊप चिर जाना, कदां कोए चिद् जाना, पर वद कुउ देवते दी नद् 1, खानी नै पृा-"यौर एलन भल्मन्तो केसी है ?* नाठः सार ने कटा--“त्ाडासी, चर साद्मी हर समय साव च्चै ट, इञ्कन मरनाद् वपे क्या करना 1” कााजी नै का~ "मौर यर का सभाय श्ेखा ह ?" माऊयार नै कटा खःखा जीवव त शिकायत खावै खमते दी नटी । वड़ा सीया त्वमाव दै {"» लाच्छाजी ॐ खव सन्देह दूर ही गण शर व्यार ठीक गया नीरमी जा मध्य कौ रीं थीं सवं नाऊगाङर स्रवा याये । ज्व व्यद का दिन साया नर लडका मागि दै गया नो वरातव्रलि्यं से णकने उसे गोद्मे उशा पाटे पर दिखा दिया! चवल्ेलोीनेवरकौ रेष फष्--* नाञअयाद्धर, यद रू्ठका कैखा ? तुम तो कषटते धे क्म "चील. वर्ष् को है १, नाऊणङडर ने कदा--“खाखाजी, भापन समभ नो त मा कर, हमने नरी कदा था कि-- "बीस वीस जोर" पुन छाखाजीने कटा--ष्वह तो अन्धाभी दै 1" ना
॥
न 1
६८ टृ्टान्त-सायर-अथम भाग ` `
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मे कहा--, खरार हमने त्ते यष थी कष था ङ्धि उन्फेयराः से चाहे मोर ङ तै जाय, दैसते दी चीं 1" उय पर्डिते नं व॑र से वाहा-"जल ले चमन कीजिये 1" दरे गना दी सहा) नव खला जीनेकदधकि- ्यहतो रहियभो ह| नाने कहा "लालाजी) हमने तो कदा था भि उनसे चाह दो शितायन करे, सुनते ही नरी, स्वभाव के वड़सीधे दे 1" पुन पर्ट्तिते कहा--' भाप उ पष्टे पर जन्दये |" तय चार अद्मि न उठा यर विशता । तवं तौ खाटाजो कै कटा--* यद ती रंगा " नने कदा--न्लालाजौ, ग्या हमने बह्म कहायाफि च्वार आढमिये कै साथ दते दै, बह रेमे इड्त यर ई
१ ^ \
४९-जेसा करना वैसाभर्ना
प्क वैद्य जौ वड वनन टी करा दु प्रङ़निचाी धी। निशदिन न फु कामन काज, केत सवनो ससस रठड का उखका कोम उ ज्र यहां तक गपनी समस्त के सा अल्यान्ार करनी शी कि जपने उतार फटे परनि चसन उपक पहिनने की न्ीरप्प्सद्रतरे स्यो ग्बाट उसे ऊस्म दे रयसय श्यौ ओर खि स भोजने खवसे चुरा जताज सटा श्रु म्युनी चसौ टोती यी उखेरी रोचि ओर द्र सिदीकरेक्डा मे दिवा करनी थी । परन्तु ख चह केम एर खडक्ा था । जव यह लड स्ना क्षयाना आ ओर दसच्छा व्यष्दु हुमा ग्मीर उस्म खरी घर आददत मो च्हजपनौ ससकेसाथ तो दुष्ट व्यवहारः करली धी, प्रर भप्नी वह्र मे ददेष्यरसे स्पती धी। परन्तु छोरी चह अपनी सास कै व्यवहार ज्ञे चट अपनी साख सेक्रस्ती थौ नित्य देखा करदी थी । यर चटी बहु शपनी छने घर के आत्ते परः अयनी बुदिय्ा साख को इ्छी रे दय क सें
४ 1 1
॥ छर-म्रचं ६६
भोजन मैजती थौ सीर बह छीरी यह अपनी सास की चास ' यनी अलियान्गस को भाजन यिखाङ्कडेको दीवार्से बोरू दैती थी] दस थक्षार कस्ते कसर वदन ड जमा टो चये । प दिन इम छी वह की सास यानी बड़ी वहे कु डेदेय 'रो.वै पदुतसे नमादो गये ये, तयतो वद अगन पलोह चोरी बह से योटी--, चह, यद क्रे क्यो दकष स्रगी जानी रै तमाम जगह चेर गक्यी है, इन्दे पोडतौ कथे चरी जाती 1" \ उसने उत्तर दिया कि--.्मासजी, फिर तुम्द उनमें जरम गस्नन दिया चारूगी १ कटा से उतनेकृडेराङंगी? यरन्डुे भ्र बी वह > पनु व्यवहारा द्विया । चयं ह, नि ` कविने कह दै - " चच्चेष रना वाचा स्म् च चतुर्विधष 1
५
, प्रघाद्यति यो लोकत तं गोकोभवपदति ॥ ता
9 '. ध्-ग्रख
ुद्धयव विधा मना एनद्! शवुद्े विया विप्ताऽप्नभदा |
मृपाति मृदाश्तुते उगिनध्नण गता पदेशा तवना पृगपपि॥ _ यर्थै-चुद्धिदौ से विया खुफट होती ह भीर उदधिमे गदित चिदा व्यथं योती ई । यथा-- पफ ज्योनिषी, पक वैय, प्यक नेययिक, समीर प्क चैया कर्णी ये चाति व्य धराप्ठिकी चाशासे यिद्रेय को निकटे 1 थे चिं मनुष्य ययपि पण्डित थे तथापि बुद्धि से दन्य 1 चलते चटवे ज वे बहत दुर निकल कर पश्च साजा कः रान्य भूं षटचेतो भ्राम के वषर वैठ माप न्नं सम्मति फी किमु पूतं ध्राम मे चरन चाद्ये, सत सवेन कटाकि~म्महा सान श्योततिपी जौ कोई देखा अद्र निषालियि रिः जिसने
५ 1 ६०४ ह्र्यन्न-सायरः - प्रथम भर्ग ` = ~ ----- न्रे दी सिद्धिप्राघ्छचे।र ज्यीतिमीज्ते मरप्यजने मीनमेल / पय मिथुन दार क्य कि~““रात में दो वज तेस दतं है भि“ श्यल्यते ही कार्यं लिद्ध द्येमा 1 जय दौ बरज्ने खतं को चलता हनो क्रुष्ट याजनादि का प्रवन्ध करना चाद्दिये, अतः यहः स्भ््ति दुई कि मेलन कै टिप यैथजी चते भेजना (उचितैः ' ष्योकि वे सम्पूणं पदार्थो के गुण दोप जानते है, ससे ये . उचम पथ्य रूप भजन ला्येगे भौर यद् भी सम्मति हु किं साय मे नैयायिक जी कोजाना चादियै क्योंकि यदियं साध हमे तो त्क वितक॑ हो मेजन दीक थयेगा । पेसा सोच ईन सोम मद्यशयेा के माजन छेने के किए मेज । भवती वैद्यजी | सोयम न्को कि अमुर पदार्थ छे चलं नो वट रुफवरछंक है बौर अभु लेचङेतो वानबद्धशत द आर भसु ठे चकं नो वद पित्त, स्ह । यद सोचतेद्यीये फियैयजी कौ याद आयि "सवया गदरो निम्ब." इस लिए नैयायिक जी से कषट-''नीम" मने परते मर्वरोगनाशक दै, चचिये उन्दः तोडे।'" निदानदो गहु चास क्र पत्ते तो गये वैय जी ने कटा-"“जव तक मैन्दं चाध स्हयाहतवतकनपदारसेषघु! छेते भ्ये 1," नैयाविक जौ चूनलेनै गवै) टार सेधत केकर मांसम दले सततिधै ङि अनायास ही इतके मन मँ शङ्धुा उत्पन्न इह पि शुनाधारं पात यष्दुवा पाच्नाधास चुतं 1" ग्थीन् घुने के मावारः पात्रे यावत्रक्ैनाचःर घृनदह। पुन स्तवा सि प्रत्यक्षस्य कि श्रमाण १? यदह विचार तर पात्र तीया कर दिया ।' सम्पूर्ण शुगः रमि पर गिर प्रडा । कोरा पात्र ऊेकैथ क्ते पास भ्ये । यैव नै पूगा घुन ङे आभे-2 ' तव उन्दने सम्पूर्णं शचान्त यय स्पीखो कट खनि । दो नीम कै पत्तो केष क्िरपर ग्क्पे दुष्प पूं श्वा परश्रा विरते भय लीन तो सपना त्पना क्राम करः सुकते, रहे च्यागगी जी उश्च कदा गया किस्य याण इसे पजाध्ये ।' व्यान्स्णी जी छ्म्यार्फै
॥
४२ -मूर््यो दे खमातमे विदिते षसो दुर्गति १०१
पष्मद्तेष्रौ यदे लेकर सीर उन नीम के पत्ते गर यार ताग भरर"उन्मे ज दाल चमर उनरल्ने ठगे। ऊव नीम के पने शुरवुद घु यड" ्ुरने रणे, तनो व्याकरगी जी ने ऊटा-
अदुद्ध भ घक्तन्य, यशु नं वक्तव्य ।'' परन्तु जड नाद्या जदेक्तयापुनतारखे जुहोता, जब घह वड वड उड नोनादही गयाक्तो य्ाररणो जीजेक्रीधमेयापा भूमिम दै सास "पीर कदा "शुद्ध रि वक्तव्यं ५ मन, व्यभि तमाम दिन शृचेरहे। रातको दी यजे राजा के शा्रग्नष्ट का फारत "न्दर हो भया दुन प्सा देने गे । उम समय नफ सुदं -भाया। जय यद् चारा शदर फो चदे तो वहा फोरम के फिवद्धे भद् पाकरयोरे कि-- “काट की सििडकी समस्य तोडना नादिये, पयोसि दस साभतमे धयेराकरने से यडी छिदि प्रा होमो 1" मन चासि ज्योदी फाटक की मिडकीको तोडा योरौ राजदुत उन चासिं वो पकड ऊ गये शौर साज के यता
भास क्ता फरिन कारागार हभा। यर खिद्धि ध्र
ह्६। कष्टे, इनो चिद्या पदान से क्या फल प्रा हुचा क्सि भाषा कयि ने ठोक कट् दै--
५ एरे गन्धी पुर नर) अतर् छंघावत्त काह ‹ करं फलेन फो, आचमनः मीडे कदत सरादि ॥ , तब गन्धी ने कष्टा-- ।
= नहि गणा नह गोमती, नी राम सचार ।
तू कित पूली केतक्री, गीधी गाव गवार ॥
४३-मूखों के समाज मेँ विदानो की दुगि , प्क परिडितजो पद्धीसख वं काश्णीजी मे पड भाच परौ श्तौर्णं करथार्देथे। वे यक स॒र्पौ कफे गापर्मे से मानिकरे।
1
१०१ हान्त सागर--पथमं नागं ८
उम भ्रामङ्तवासी इनरी दोी श्रोनौचचननिटफ देयो ` छया आप परिडित ६ * उन्होनि कदा-- “हा परिडन ह । रूहा--"अप करटा से आरै हो” परि्डिनजी ने कहा ` "काश्तीजी से 1" पृद्ा-“"्ाप कतक पटे है? पर्डितजीः सहा--“मे आचारय परीक्षा उन्तीणं कर आया ह 1 प्रमि चपक्ति्यो ने कदा- "भाप हमारे परिडित छा पाडेजी से शाखाः
©
करेगे?" परिद्धितजो ने कादा कर्टगा, याप उनको वुरुष्ये ग्रामवासियो ने कदा-'भाई इस धकार नहीं, पदे यद प्रति दोजायकियदि जपजीततेतो हमरे परिदत खड पाडे व सम्पूणं पोथो पनचा ले लोजिदे मोर यदि हमारे परिडत = पाड जीत जाय तो आपके सम्पूर्ण पोयो पत्रा टे सै ।' पण्ड जीने कटा-- एेखही सही, माप कठा पांडेजी को छे मादये। ममवासी र्ठ पाडेजो को दसन्छोर की भत्ति-- ' , चटा घाता बड। पौथ। प्रहता पहा वडा ` । अन्तर नेय जानाति न पोडसखाय नमोनम ॥ , ' एटरचडी भारो घोती काशी ऊे पण्डितजी से चार अशुर नीची प्रा कर तथ वष्टत कु चदन तिलक चौ धिह मके की तस्ह रंग पण्डित फे समने काचे । काशो करै पण्डितजी मै कहा-- "पण्डितजी, नमस्कार ।' तय तौ कडा पाडेजी ने कहा "नमस्कार फमस्कार, टमस्कषर, गामरूकर 1» काशी जी कै पण्डित जी चट छन चुप हो गये फि चथा्थमें मै शस मृं से नद जीत खतः । लड पाडेजी ने कद्ा-- 'अच्ा घाप वड पाण्डो सो वताओ इसका क्याजर्थदहे-- .
(प्ल स्या मपा?
पर पण्डित जी चुपके चु ही र्दे ! गाववालो ने पडत रो चु देष लव पुस्तके छीन खो । तच तौ पण्डितजी चुपके
॥
1 =
४३ फ समासत मै चह्ठ। ३. टुगन्न ९.३
मं सोचते चनारे दष् च वरिये । ऊच ध्र पषचे तो इनका मा्ज्ञामर्यदामें टडापाडेका वाथ व, ह जातवम आयः भार यपनेभष्रसे मिल कर पू ठा कि" नाजौ भाप ठडामीन
पयो हं 1" भः ने सम्पूणं उत्तान काह सुनाया । यट घुनते ही प च्डापाडेमे नीची धौती, शचीपत पाय निकिदखयवच्णा प्फ वोरेमें पठ्की ईट गय पर भद्रम ॐ निर पर स्य पने से एक हाथ उवा ख्ख खा पाडेके याप जावि प्म वहा यद् दयया थो कि
, धर फी गाय गरदा खाच । बार वरर महुना तर जाय ॥ ,. अत. प्रामनासिये ने आर उनसे पृा--"ध्यवा प परि्डित (२ ५1 एन्दनि काणा ।* पूढा--“"कहा पष्ठ हौ ९" कदा--"नदिया शान्तीर्मै 1» करा--'"दमारे पर्डिन लया पाड शास्त्रं करगे?” क्टा---"श्वां दां, भौर विद्या किस चिपट पटौ ह ९, तव राघवा नै का भि--"शासार्थं से प्रथम यद प्रतिना हो जाय कि यद्वि मपल नो हमारे पण्डित ला माद्ेकीसवयापणोयी पत्रा कं नीर यदिख्ठा पटे जीनेे तते वट सय आपकी पुस्तकः छे तमे ।" इन्देने कदा-- मे स्वीकार है प कडा प्राडे च सदये 1” तव प्रामवासी रखा पडे का पूर्ववत सेषः चना चिप लये । आते दी चा पाड का ' नमस्कार, फमर मार, ठमर्ार, गमस्कारः ।*' हसने का~ नमरसार, फमरसार, ठमर्कुर , गमरुङार वमरकरार |" प प्रणाम दने फे पश्चात् ही ङ्य पाडेने कटा--"खरप्य मेयः 1 › इसने कहा ष्या मुरं ह, पदिक दी परस्मा दैया? पषठिरे जोतै जोतैया, चै वयैयः, सि सि चैया, गोड गोडया फरैकरटैया, मड मर्या, उरउदया, पिसै पिस्य, णय पवयः, ब पौरे भो स्त दया । * वम, यद् सुनने गात्वपटोचे कद |
+
१०६ दष्नन्न-सागर द्धन भाय ¢ 5
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कण्डे करयुला' मौर कटर उन्दी ते करदुररे तपा करदा पण्डित ञे के मस्त मे दगा दिये शरोर फिर पानि "पडत खवषश्दधषो ८ पण्ठितिजीमे सोचा फ्रि अववोटेतीवै सृन्े दो भौर छगणार्वेये । रेता समक्त पण्डित चिचारे युपर मयै । तत्र नहो ने कहा--““भय शद हीगयः ।* ॥ को जाह काक फाङुनस्य जते विसा ते कोङिलङ्कजिते तिमर! ' परस्पर सवदता बलानां पौन पिरे प्तं सुभ्रीभि ॥
एक मादा कचिमे नी छया दये अच्छा कदा है--
जादययो तद्धा यहा सय न कुल दोय कायर के सगर जामे पर भाने हे) पटने कौ वासना सुटास मरे बान पे फामिनी के सग काम साभ परजगेरहै॥ घ्र वसे घर पै चसो घर दरैरागं कहां काम कोच छीभ मी पये पर पाणं हे] काञर की कोठी तै खाखह सयानो जाग्र काजरकी प्क रेव रागे परक्छगे दे ॥
“ [9 4 ( ४५--ूखै उद्दा ही समता दै णकचरद्ध पण्डित अपने पुत्र फी पडढाते धे कि-- मन्तृपत् परदारेषु परद्रव्येषु काष्वन् । अषट्ययत् शवरभूतेषु य पश्यति स्र पण्डित ॥ पिता--पन्मे येदा पटी, मचवत् पर्दे 1 4 पुज--तो इसका स्या अर्थं हया ? त्पिना--पर स्य रो माता के समान जानना चादि । पुम-तवतो पिताजी मेसीस्नोभो यचापस्ती यवना द्यमी।
पिना--चछि. छि, छि" फा पला कना चादि ? पटी धमद्रन्येपु च्योएक्द्।
-, धभ-रूलं उल्टा ही समभा १०७ पुत्र-दसकः कवा अर्थं हज? ' पिता--पराई वस्तु जो मिटध)के देके समान जानना चारिये „ पु्र-तो यव दुष्ट हरगराई कौ मिठाई के ठाम नही दूगा, धरक्रि वरी पेडे मादि मिद्धी रे देके के सथान वस्तु केदाम (३। श्या? १, प्रिता--पिर मूख { अथिर समम्रके पद भाने मावार्थमे रषटदोजायमा। आगे फो पठ-- ` अतयत्स॑भूतेषु य प्रश्यति ख पर्डित 1" , पुर--दलकाष्या यर्थ? ॥पना-जे। थनेसमान सङो देवता, चह पण्डित दै) पु्न--तव तो जच्छ वात दै, पर की अपनेही मान सम गे परा्चस्तु भौर पराई खो भौ अपनी हौ समभना चाहिये 1 पिता--रे जा म्रणंकेमूर्ख! जसी बुद्धि पर धर्मशास पढना स्वीकार {सियार । इससे तौ खोनचा सपना सीख र्ता तो धर का पाटन तो होता? , पुत्र--दर ये भूखं पाजी,। “पितः ने धम्पड मारा अर पुत्र रुडकेमें देखने भग यया । पक नवयुचा खौ गगाजी को घडा ठेकर जल भरने जाती थी । नने में चद धर्मराख-श्िद्ित घालक नाया मौर उससे पोख। कि--'न्मम्मा, जसे अम्मा! स्र चोली-्वों बेटा, ा (मन ही मन) श्ल र्ठके फी केसो प्यारी बोधी है १ यारक--यो रौ भस्मा चीत खानेको पक पैसातोषै? स्मौ-वेटा, सै तो खाप दुखिया्र, पैसा कष्ठ से चज. घर धर पानौ भर कर पैट पानी ह वालक--यसे साड, चैसा क्ये नदो देती ? मरान्दती दे ते जत्दरी दे, नद्य तो पटना र ।
च 4
२५८ द्श्रान्त-सारर--त्रधम भग \
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सल,-- यद् कैसा वाख ईजा याच्यं देना! वालक नरी देती हसमजदी ? (छात् मासी अआौरः धडा प्तोड डाला 1) #
तने मे गह्भः खान से सीट कर उन चाखक का पिता यर ख्ये आताथा, सो यह चरित्र देख कर घोटा" रै वदमाश पु" पुत्र चोटा-- व्यहमेरीर्माहै, जेप कै खाथिया सरना द्र, स्तो$ इसके साथ वस्ता ह, प्योफि _ आपने सवे पया ही था क्ि--"प्माठ्वत्पस्दर्पु ` ओरखी की तरफ दिन कर वोला--""क्येरी म्मा, मेरे पिवाक्ये देख कयध्रूध
सही काठतौ ? उप्ानृमेरो माहे नोमेरेतागकीभी मोद आदमी आमी में अन्तर । बौ हीरा को ककर ॥ , ,
¢ पि 6 के) 1 ४६ -िपयाक्ति म भमर ` ष्फ गज्ञा दो मानास्ुननेकाचडारी फौकथा। जरो उननक्ते गास जाता या जिसे नह् नना रि अभ्नुक मचुष्य गाना गातादैत्तोउसेद्वलान्रगानः सुगला था। एवः चारफसुचम, कमे नुल्टा के सदा" "भरे न्सन्नेय।, कुठ गा्नांदी सुला? चमार योला-- “रे सरकारने गातु वावनु का जानौ. योर्ज सरकारकाद्फुचदयोेय सो भिज्िति वनाय खानों सग्छरार , मेारिकानाई माय जआचनिहै1*' साने का~ अचे गा, यडा द्सयाना।*' चमागने कटा--प्पहारम्ल ज सार जानत दै ।' भजा सै जद्टा--“"नदे साने क्टनः च सत्नतर? ग, मा। नमन ऋय ष्वसीचपस्यर, मं नाई जानत 1 स्याने य हा" साठे यतिमः या पिरया ४" चमार गावा -- -भनपमररिदसद्धस्गतातनिर । मोप मारिच्सुरयनातनिद्ै
_, ७-जिन्दे भौ गना मिलामो वौ काटने दीडनेरे १५६ -------*
रतने मे उख चमार की ररो पटुची भौर वह भी माकरः भपन पनि कपे चमश्रामे खगौ कि-- मनम द चादि पिद्ययन की । मनमा ह वादि पिटादय री ॥ गट खन चमार नै उत्तर गियान्ति णो सन्नुप तते सममत नाही, वुर मुरौ समम्नायति ह । मोर मारि मारि सद्ुर गवावनि रै ॥
` रजा गाना खुन वड यसन हुए सौर दोना को इनाम दै पर विता शिया । -
॥
1
५ --------~>
७-जिन् भौ एना हिखातो वद्य कारन दौडते
„ पक गडस्यि पिली मारी अपराध फं गयाथाजिस मज्ज खद उसे फा(म्रौ विने वाके ये । गेरि ने व्याक्ुरदो प्यक समदय कै पाक्षजा आना सासा दृत्तान्त कद् दनाय । उ लील सालय नै कहा--"भगर टम तुते फसोसे उवादगनो पय काग ख्पया सेने । गडेःरेये मे कषहा-- भा जो चाह वदे पर मेरी जान वचराहइये। जानेके नने एकान प्यायीतह । जपण्डलो खाक क, पर मर करौ वार वच्छ दीलिये 1" वकी साटव के कटा--'जय जवर नन सादयतुङ.से साट करे तवं तरस्िदाय भ्रमं भ वेः र दुख न कना 1 रत, दुसरे दिन जव गडेस्थि आ चभिग्रोग धनिष्ठ गा अर जज सदय मे कटा--' धनौं रे गदेस्यि, तने अशुक जप्रसाध किया?" गडेरिये ने जवपव दिया ५ 1 उजसारयने कटा--"्यवें फस्नादै याजोहम से ६, चर पतरखता है । गे वनै अपसघ स्तिथि? गदः प्पे तै {सर भी कामे" । जज खष्टव ने फदा-“न की
११० एष्न्द-सायर प्रथम भग ॥
साद्व, कया यद् पागल रे? वकर सहव ते कषहटा~'हुजुद - यिख्ुल पाग माद्यम देता ह 1 जज सादने गडेग्यिसे कहा-'अघे थवा तू पाग धै ? गडेरिये ने फिर कहा--म' । जज सादव ने एहा~'निकाखो इस यो यड पागख रै 1" गडरिया प्रसन्न सो कचेहरी से निस्ख आया मीर वकील साटयनेभी प्रसन्न री क्वयेदरी से निर गडेर्थि से कषक लीजिये, , भय तौ तुष्टारी जान वच गई । अप मेदनतानः दीजिये ।* गदेस्थिने का~" } वकी साहव गे कारे भग्र, हम समीरं, भरेरेसाष्यों कस्ते हो?" गडधेरियिने फिर कटा "म पुन चीख साहय ने वहत कु कहा तो गडेसिथि नै उत्तर दिया~'वकील खाद, धया आप पाग हुण ई? भला जिस भे" ने सुभे फासी सते वचाया क्वा वह सुभे एक खास रूपये सै न वचायेगी ? शस चिणः जाद्ये, शाप अपना काम कीजिये, भेहनताने का स्यार छोड दीजिये 7 उपाध्याये नटे भृते कुद्टिन्यान्च बह्शुते । त
एषु पाया न कततेव्या प यातिरेव सिर्पिता ॥ |
४८--सत्य वचन महाराज 14 पक पक्डित जी सव को कथा सुनाया करते थे, परन्तु खोग्ञो कुरु पण्डितजी कहा क्स्तेये हर उातर्मे "सत्य यचन महराज कट् दिया र्ते ये 1 क दिन पण्डित जीते सोचा कि ये सव-~सत्य वयनं महाराज" हयै क दिया करते हेया कछ संभव असभव कामी ख्याल करते दैः? यष सोच पण्डित जी वोरे-"जो है सो ष्टक समय के यीचमें पक पवत
म चिठ दीने से खरस मविखया निकलती भरं 1" रोगान कहा--"सल वचन महाराज 1' पण्डित जी पुने योर कि-~ न्यह् म्ली षसो चदासे निक मस्ति पक चैश्यकी
॥ #
६-भसमव कषा सभेव कर दिखानां १११
द्मान प्र ष्क पके गुड की मेखो पर चैट जाती भई ।' रोये ने षटदा--सव्य च न महस्य ।› पण्डित जी पुन वोले कि- "वह मक्पिया एक > शुड की भल कमो जिसिर पर वदरी धाकेखे कर उड जानौ भर, भनी मविन्दाय नमोनम ' खो तै का~ सस्य कचन मटाराज !' चस पण्डित जी नै यह सुन वर समभ छिया भिये सव युद्धि से शून्य निर बुद्ध है ।
वृचन्नैद क्त्य गपो पफ़षर भवेत् ।
प्यायी भवति च्यत राग गुद्कषटे पपा ॥
, ४ए९्-प्मभवक्ा समव कर दिाना
पफ युधे काण्नकारः ने जो अपने धर का अकेरादी थः मौर घर में उसके ए घोडा भीर कुछ असवा थ अपना सवाक कोटरी में चन्द् करके तीथं यात्रा कर्ने का चिचार रिया मौर अपना घोड़ा पक चैष्य रो सीप कर तीर्थंयाश्रा शो चटा गय । यदा वैश्य नै कापतकार का घोटा वेच पया ण्स स्धिया। जव पाच मास क वाद काट्नकार चटा ग उसमे सेठजो के णस जावद्ा-- 'सेटजी हमारा घोडा ॥409. सादये 8" सेठजी नै कदा--“गापका धोडामर गया नौण्वकरार चु { रह गया। परन्तु फु काट के वाट काण्तकार को १नादङगा कि उसका घोडा मरा नहीं षरदिक साह रारने येल खगा, मलः फातकार मे पुन सेठ सै कहा--“भ्िप्रामो, मया मोडा कषां पषा है?" सेट जी काण्तकार् फो ठे फर न ॐ गये, चं पक चैक मस पडा था, उसे दिश्वका थर रे--षदेनिकये, खाप क घोडा यह पडा ह 1“ सने चका फ-- "घोडे ॐ 'सोंग नदी दते, शसक तो सौय ह 1 घों दातिनो दोनो गोर होते टै, परष्सफे तो प्क. पी, स्र ५१ सेर जो तै कटा सि धयो क्त ससे वीमारी दो यरं सि २३ से र दो गया 1"
११२ द्ट्य खम्मर--प्रथमर नान ` ~
असमव हृदस्य सन्पत्ववप गम्मा दयुम (13, प्राया समापन द्िपत्तिङपते प्रिथाति पुंसा मजिनीम्ठति ॥
+~
४०-पापि द्द् म चली क्म् [ती नि एज सावर उम रडगा सेये सेख्ते एर कृष भं भिर पडा । सह परार डय के दुःषम भिये चमे गवर प्रास्र अपम घस्से प्क रस्साटेकग दौड सौर कुषः तै स्रा खदा फार वे से कहा--"चेा, इस रस्सेको अदनी कमर मे मजबूत वाध दै \ बेटे ने सर्स्ला नपि दिया ओर चपरम उसे कृण" से खी लिखा । छ दिन क पच्यात् प्प मसु पक चकन पर चह गया परन्तु चदनै. ष्टौ तौ चद गथा पर उतरन। उसे किन द गया ! गत. उसने हषा मचा खीगों क्तो दत्य काम्यो मे दस चन्न पर न्दे कते तो च गया ह पर उतस्ते नह वनन, उससे उपलो कृपा दक्र कोई पेसी युक्ति सोचें किखुेच्छनसो र यट से उक्र {खाऊ 1 लेने नै जपनी अपनी युक्तय चनलं परन्तु यद युक्तियां उस मबुष्यकेजो {5 चक्ष पस्चदाथासमक मेन आई, ेकिग वह् साहू खार सपदद. +जखद्ते कषम उस गस्सछावात ख्ष से1नक्राखा था चदा पटल्य रया भार. दसन कहा कि-- एक खन्या सन का ससख टद भगयलय मे दरया स्थी विना पितम के उतर ठैताष् 1 सोने इस रव्सा मया च्या 1 दस सण्टुकरके खडवौ ससध. टा मेंलेउपर का पज उख पुख्पसे सला पदावर दुम अपनो कमरे व्यो!" चुष्ष्स्य पुरूपं न रस्ते च समस्मे गधं खा 1 अवले स्कार कादेखादठरोनोष्टश्षिरो उस यस्स चो पव्मड न्ये गो सीमे खगः 1 छश्च पुरणद'यः
भ्यः यट क्माकच्सतेदधये, म गिसया!' सैर उ्खदै दनो दव्य खं
८ 1 ॥ ३ । +
५४-कचियुन १६३ "----~--------------~ ् ध ५ --~+ परर 7ष~गीडाखो पकरुडन्छी । जीर "महाराज ममि मडरातर पर भिर" रट करर घट चिह्ने दगा, परन्तु साहा क वेध नै उट ८-“ "याय निष्य रथिधै मिसे गही रस्सै मँगावकरसीयनातो हमारे वाप दा से वलग जाता हे" णना क्ट गरभस्ते सच छया भौर दशस्य पुरग नोचे गिस्ते हामर यया । सनेम ने रदा--न्यपतो ग्दतेयेक्षियदतो वापद्रारेसेचलो नी द, यतया हणा? यद दमो मर्
गथा { क्ा-- "यव क्खु गया 1" वलन परवत गति, ध कात् स्ददेठपगेष् हयातिनागम् 1
,ततलद्ायिति वाणा न्तार् नद करापुस्पाः पिनि ॥ ध ५१--ञज्तियुग ~ _ एकब्वैययी वडे दही योग्य र अपे त्राम कै नासो भोर धचिद्ध ये । चेरी ॐ टस पुज अव्यन्त हौ रूपान् अर तडा ष्टी चय या । वयजी मै अपने पुत्र के पढ़ाने का वहत कुर भन्न किया परन्तु उसने एक यश्रर भी न सीसा । छकारं ॐ प्रान् वरेद्यसाज का दैवद्टोर हौ गया, जिससे कि समया व्यार बद द्धो षया! अवदतो ग्ै्राज के पुत्र सोच्नेस्गोकि भ्न धमार् चैडे यैह कसे काम चेषा, दादाजी वाठा कोत्या मरथात् ओौपधियेा की पोय्ती मौजूददी हीर गहुीभी दादा ` ज कटी मौजूद ओर हाय मारे मौजूद फिर वयक कयो चन्दक्रदी जाय? यद्.विचार लोगेएको ओषधी देने स्ये, ? पचन्तु र टदा दोन खमा जदा चैयराजके. समय मेँजोग नीर से जञ गा कारते शै, चः इनकी आौवधि से मरने । न्यो मीर यह टोनाष्टी धा । नवतो ने यैयरातने पु भरे पहा--“महासज, चापकर विता के खमय सतौ खोग यच्छे
= ई पि
११४ दरष्रनन्त सामरा धथम भाय
-- ------~---------------* ------------ -- ˆ
हो जतिये, पर ज्वसे भाप मीयधि कसमै की तव सजित, कौ याप शीयधि करते है चट मर जाता है, यद क्वा वातद ' येधराज के पश्र ने उत्तर दिया कि-- "माई, मौला वही, ग्र! वही रेषिन मय कचियुग द गस लिये व्येन यथि मस्ते द ` स्येकि "न फार यमितो व्यापिनो निलयस्य सर्वसम्बन्ध्रात् । परन्तु याद् रतै कि फार सुख दुका पस्मह यदि क्षल, कारणदहैतो उस कारमेसवकी प्टकटशाद्योनी चाहिये पर यष नरौहेती सपे निश्चय कि काटदुख दुग काकोरण नर्हा कलियुग नौं कर्युग दै ये कर्फे तजरुया देप } , ष्वाखयस्ौदारो रा, एम दाथ व्रेउस काय्य ५
४ ) + ५२--गुरु-पवा ५ , \
प्क मौलौ सादय पटक सेट के खटके को पद्वाया कस्ते
ये । मौखयी खाद धच्चे सैका कसते ये-“ भवेन् कभी ऊक वयात सष " यश्चा उत्तर देता थ कि "मील्यी सादय, व्छउगा ।'” पक दिनि उस सेट के लटि फे य्टां सीर वा
गर भौर गचानकू एक कुत्ते ने आकरः चह गवीर जुशार छली. खन, जव सेट जी फा कडा मौलवी सहव फे यषां से पद खर छाया तो उस रुडफे की माता सेनी जनै का~ 'अआल लायो तो अपने मीखवी स्व फो खीर दे आसो 1" यच्येनै सहा- "लाभो वषत टौ अच्छा है, मोखयी खादय कौ खीर टे आवै ।'* साताने पक षडे में शौर परोसर कर देदौ | -यच्वा स्लीर् केकर मीरूवी साव के यहा पडत! मौरवी स्दादव खीर देश फर चद्टुन हौ प्रसन्न हो गये गौर खाने के खमय योक ग~ “यश्चा, या तुम्रो माँ मेरे ऊपर भर्शिक दो गजा चेसी
, अद्धिया खीर नैजो १," यश्चा योखा कि ' “नही, यद्ट यात नहीं
अल्कि याज मारे वषा यष्ट खीर पकी शौ पच्न्तुमेर माश
५ ^
ध । धदव-टेदी खीर ११५
काम कगमे लगी स्तै भे फते ने भाकर् इस खीर को जुरा धिया, स्तलिष मा मे कष्टा फि भाज यदह खीर मोखयी सहव षो गामो।" यद सुन करमीलवौ साषटयने क्रोधे धा गच्वे का खीर घाटाषुडाद्ननेजारसेफेकाकिसशापफट् गया, तौ मरय! जोर जोस्से रोने खगा तवतो मखी साहब ने फाहा--“'अवे कनो रोना है वव्रे ने कटा-'भरेरी भ! मार्गी 1" मीरघौ सायन फटा--" बच्चेटमतुभ्ेकरड भगवा देगे ^ बच्चे ने क्ा--““्ाप घा मगा दरगे हमाग श प्ली मे गोज पाले जाया करता धा ।'” यह खन मौरी साहे यहूत रमा गये ।
' गुरुषश्रुषया त्येव धर्षख न ठ पव् स्ख ।
-~------~ १ )
। ५२-टेदी खीर
। , , बिना जाने हितकारी वस्तु को छोड देना । भिति हि विवार द्यम बुश पपयैतहुभिस्तिरम्ठन च । इश भरण मात्र ऊेवनेच्छो, पुष पशव पराण को वि्ठोप ॥ \ पकस्यानमें पकः अन्धा्चैटा हुत्राथा। लोग उसके सामने "सीर की वहत कुक प्रशसा किया करते थे । न्धे नै कहा "भ खोर सौ हा क्तौ धै !"" लोगे नै उच्तर दिया सि~ "सफेव् स्तद्, अन्येन कष्ा-' सफोद् सफेद कैसी १ "लोए नै का--जैसे बगुखा 1” पुन" अन्धे ने कह्7-“'वगुका सा -षोना र १ सोने ने जिस प्रकार बशके कीटेढी गवन होतीदै भसौ हाथ क्र दिया। पुन अन्धेन कदा--ष्देखे कमी खीर कितो है 1" जच मन्ध नै उसको खेग्ला तो कष्टा" यर तो देशी लीर,यद् म कमे ला स्कगे ? यद तौ गले दिखेगी 1"
॥ र व) ५
1
धि 1
११६ दृष्न्लिखम्दर -भवमनप्ा
५४-भेच्च्छ्धी, , : कव्यरदिति हो वपर मनोरथ शाक्तेरदितिसे। : > रेवच साद्व फक स्टेशन पर रहा करते धै। पः दिनि एत मिथानो रेल सेपक राव करी गगरी ठेकरः उत्रेभो मेलचिद्धी से कष्ा--"थवे, इस घडे को शहर ले चकेगा? ेखचिही ने कदा-श्टा हल्र 1 ` भिर्या ने कटा-ष्टो वैस्ेमिरुंगे , शेत्रचिद्धी ने कदा--"दोर् देना ।' मिया ते शोवचिष्ी केसर पर घडा रसवा गे अगि आप -नीर पीछे पीठे शेलचिही चे । अव गेषनिह्धी की मन्छवेराज्ञी देखिये ) शेशच्िटी सोचना ३ पि दख घडे की शरे सपमा सुकते दोपे सिल उवदो यैस शी पक सुर्मीद्धूःमा अर जं सर्गी फ ध¬ नच्धेेे ती उश्द वेय कर एक बमसो लुग ओीरजय वये फ अण्डे चच्वेदहिगे ती उन्ह पैव कर एकन ष्रगा ओीरल्न गी के शण्डे चच्तरे गे रो उन्हें वेच करः एकस द्र गा मोरजवर्ेख के अण्डे वच्चे हमे तो उन्हें येन कर व्याह करूणा, {किर मेरे भी वख चच्वे द्रे भौप्ये वच्चे जव पुम से रगे किः दादा एमश्षो फला चील्खेदो तमे द्म कदिगे-- चा वरवेद् \' दख शन्द के जोरसे रहम खिर सेयडार्भिर गय। मौर गिर क्र फट गयः । यद देल भिप्राज्यी चो? ये नैज यट व्वा पिया घडा न्यौ फोड दिया? शे्लचिद्धौयषहत्र
ह-- अज्ञी मिया, भापशनो तो घडे क्फ पडी ‰,. यातो हृ सिया घर गया ।
् ४ 1
५ ' भ्भ्~-सूर्यताका'क््डी संवर पष राजासाहः जेयं पम महान्ता जी पटुत) सनालाष्वरैउनम्तेवद्ै स्तेपा फी ओर सचमदण्तस) जयी चने छनल राजा सार्व ने मदटात्माजी सो पक डी दकर क्या
॥
१
पदै-श्वर विश्वस्त पापन रेणा 5१9
महाराज, जप श्रमण दियावरतेरहै, दुनियामे जासन वक मूलं आषङो मिले, उसने हे यह भरी छडी दे देना ' त्मानीं छडी ऊेकरर नङ गधे ! वहग काठ के रव्यात् तव जाकेमरण का समय अश्या तो उक्त महालाजो सजासहय , यदा ष्तिर आये आर सजासषह्य पूता ~ रजासष्ट् ॑ यदे रज्य पष्ट च््ा आपद्रेसाव जाख्गा? गला कहा-- "न्दा { मात्मा ने,कहा--यह भह अखारी आप्ये साथ जेगी ?\ राजा ने कहानी !, मात्मा ने टःडा--'धन २श्पत्ति, मणिक मोनी सापकरे साव गायने ? राजा ने रहा- श मदात्मा ने कदा-+्यर् फौज फम्या टाथ घोडे क्मा साथ येगे! राजा ने कहा-- नही !* महात्माने ' कदा-"यदस्ौ भाद वन्धुतक्यानापके साथ जयेगे? सजाने कटा-- नही }' मदात्मा मै क्ा--ष्यद तैसा शरीर तैर लय जायगा !› सजा नै कदा-नदीं ।' मदात्मा ने फदा- फिर ते `सा भो फो जानेवाला हर करवा शिखी साधी की तृनेलसाग से लियाहै?' राजान कदा-भ्नदीं ।' दग दो मदात्मा ने कदा- किमा साद्व, यह पनी छडी ल्ीजिधे, नाप से शचि पृं मीर हमे नदी मिक सक्ता!" किसी कचि या वन है-- भनानि भूमौ परावर गोष्ठे नरौ गूहे ठन एपणाते । देदरचततया परढोक् मागे पूर्मुगो च्छति जीव एक ॥
। ८ क, ५६ विशासी पाप न करेगा पक शुरूफे पास दो म्प्य चेन्छा होने फो भये 1 युर जी फह(--""दम तुम दने कौ प्प प्ट स्विलाना दैतेयो तुम खिद्टीने फो केकर पेली जयद से जह्य कारन हौ नोर सामो, नमर हम सुमतो सपना चेरा चना रवेन! दत जपन
११८ दर्नन्त सागर--प्रयम्र भाय # ^ ।
१६
क | अपना सिद्धीना छेकर च> । एत्चेले नैनी ययजी कं मरेन के पटे जा चा तरफ च कमक देषा कि अम कीर नही यैर खिदीना तोड़ फर दाकर रख द्विया भौर दूसरे मे लिलत षो ठेडर खासा ससार उची से ऊयी पाड कौ चोटियां नौर गहरी सरे गदरो समुदको सतह मौर ्टकान्त से पक्रन्त बोोटरिया तथा वड़े यडे भयान यन गद् डे पण्यु ५ कीं पेखा स्यान न मिका जदा खिखीना तोड़ता भत्. षरे नै खिद्धीनः वैसा दी खाकर रख दिया । गुखुमै दोनों से पर किया कि--“पनो जी, भापको कषा पेखा स्थान मिला जष्ासे किरौना तोड जये?” पष्ठिटेने कटा-“गुरुजी मै तो माध मान ऊँ पीड गया, चहां कीर म था चस अनि खिकीना;तोड भापकते मागे लाकर रल द्विया 1" दूसरे से कहा. भा वमह को$ रेसा स्यान नहो भिका जदा से खिकछीना तोड़ छाति ' वमने वो छक्र वैखा ही, रस दिया " इस ' दूसरे नै उत्तः दिया कि-“मदाराज, मैने अवे सेऊचे पाड की सोती गहरी से गरी समुद की सतह, अंधेरी से भधेरी एकान्त भीर जडे डे भयानक जंगरू परमे परन्तु मु कही पेसा स्थान न मिला जहा दल न होता । महायन-- ` को देव सवभूतेषु गृह सर्वव्यापी सवुभुतान्तरात्मा 1 पर्माप्य्त सवभृत'दि बोस. पाती वेवा,केवन्मौ निश्च ॥ एकोहप्मीलय सात यत्वं कट्याण् भन्यसे। `" निस्य हदिवत्यष पण्य॒पपेत्िति ' मुनि. ॥ .' श्र सिये नही तोडा 1“ महात्मा ने श्से यै अपनः चे खताया रीर दूसरे से का--्वू जभी इस योग्य नदीं 1" । 1
र
1
५८--च्यर्थ विषाद् ११६
७ , '-, ५७-ग्यय् विवाद ?, एफ सुर दामाद दोनी किमी सेत मे ट चख रहै थे। सदर मे कदा--'भमुक ग्राम यदा सेध्योसहै।' दामादरने का तीन कोस है" ।" ससुर ने फटा नदी, चार कीस ।
मादर ने,कहा--"नदीं, तीन कोस 1 यख दोनो मेँ युका मास्म ठो गया । युद्ध हो षी रहा था करि इतने में उसरी डक जो भपने दामाद से नड र्ट श्। भा भीर चोली -- “पिताजो, च्या है १ चाप योटा--वेरी, अमुक घ्राम यदास चरको है ओर थह कता रै तीनटी कोस दहै, प्क कोल माण सुरू ही में लिये जाना ए ।' वेरी ने क्ट--*पिताजी, नापने तो दमे हमार व्याह मे वड़ो वड़ो चीं दी, मव फणा एक फो भीनष्टगे १ पिता वोखा-्रस तरह धक कौस फा बहे चा लेले, पर यष्ट तो सुक में ही चिये जाता था ॥
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ह भ्य--व्यथ परिवाद ` 1 प्क वरदो फातकार ग्तमव्चियो मे सलाह षौ कि यासो न खार हम लुम दोनों साफ सा ईप चवे । टीर्नो ने षदा-~"घहुत अच्छा । उसमें से प्क वोन कि--यारः दम "1 पक दख उसे सें नित्य चूला करगे 1' दूसरे ते कदा-- पार हम दो नित्य न्वूसा करगे ॥' पदे ने का्टा--ष्टम तीन अगे ।' धरे ने कषटा-तो हम चार चू तेगे 1" पदिटे ने कटा पतो दम पाच येज यूसेगे ।' उने कदा-'दम ६ रोज ।' उस ने कहा सारे, दम ५ सो । त् ६ षयो चूखेगा १ उस चै कक्ष साने, दूने प्नो कहा कि टम ५ रोज चूसेगे ” दल पकार दनो मै लूब ही चार युद्ध, सून खश्वर इमा ॥ यव , नवुलन म शुकदमा गायः तो मेजिर्ट ट ने रहा ठम च्छमं ‡
८ ॥
५५॥ २८२ द्रथन्तं सागर प्रथम भाय ८ मारो जमन भे न चोर पयृव ही व्यु, दस चण वीस सीस रुपये गान के टोनों दाजिल करौ । गत दान विद्दैत्त विकस्य सम्मतमूष् ` विना रेतुमच्छिनछ मितिपृखस्य ल्जेणम् ४ " - ५. = ~ स्प ( -ह ५९--मसुप्य पच त्म वन सद्द. पकर मानन्द् नायक्र पुर ऊं शरोड] री पदा दिख भी धना. वीन् श्र, डस {नज का मक्नभीन वा सीराः (वाये की षोटग्े से सी राज्य तने जैषुर की नोर से रश॑` भरता था। णत दिन उमरे प्राममेठो भवुष्यो मे क्छ कणर . होगहया बा। मदान्द् चीचरे ङञो उदा। तवो उन दोर भगा = महानद से कटा कि-तृ वर्हाका पचे जी चमे योखनतद्े? थद् जुन कर महानन्द् ने सोचा कि पच न्द् वज्यै जन्छी चीज रै' स यही से उसके हटयमे पश्च , * चनमै का गदया दगा श्रीर यर्दा तक कि पञ्च वनने उस्ने स्वाना पीना सोना सव ङु छोड द्विया मौर उदासीन . चत्त से वद् निशि दिन पञ्च बनने के उप्षथ सोचा करता ्। महानद कौ खीगे इया रौ यह दशा दैख रुदो कि--'खामिन्.' मव.मोजनन वस्मे, जलन पीने वान सोने य) दिन रात शौर मे रदे खे घोड़ी धनन यन जयम, शल द् प् ' अच्छो नर्द भोजन पगीलिये वभर प्रसन्न रहते इए मापी जो उपाय सच षं चर कीजिये, तय त पञ्च वो । मदाद् वोद्त न्दष्टमे द टीष्लं खद कहा-- त्रिय, वचदादयै घट व्वा उपय? खो ने कदः-"भाप नने निनके कामो अर्थान् भजन चर के उद्योण दुष्ट जित्तना समय नाचे चित, इनु ससय गै चाप निना । कसती ,जमने खाय के ऊपर परः
॥
५६--मटष्य ९ ऊस यन सद्तारी? $. न +> ~ ~~ ६ वाय नार संसारके उदकमरस्धेरल्णि सवना ह्नि गेजिये चत चद वना दुवासमपध्रामञे त्ये करे कमं पथ कीजिये) चस, ऊय चिं बाप पश्च वन जप्ये । नेद मे यहद्मन उरमरयरदलिया। मोनन त्रदे नेर जिता समय चवेना उस मेँ मदाद् यिम तिस काके यष्टा लडका लडकी का विवाह रोना जरर विता दै उसके काय र्ना । जा फु कमनिमें द्रव्य वचना र्यो ¶ दिया करता 1 किसी -े -योमार सुमना तो उम केपास प पटना । उसके काम सस्ना। च्छोईमर जप्य सौख प्य जाता, धाद जे परेन फिथास्स्याया । णक चिग् स, समयं भाया उस्म भ्रामरं णक ग्वननी ता वैया [पते घर षी -दसोद्धपनी भी भौर उसकिण्त्डीवेदयावा, त ही चमार रोया | दरम सन्नी के पुनन पास जितम गदिताः रहने श्वे उल सवशे यही निवत्त थ). नत्र यत् प्रीवा पुचच मर जःय तो व्य चप रमी लोका की मिह ट तम्राचार पिनक्ली घेनतस्चन्रनी सो स् चप हौ य, उस प्णेयुदियास यह सर द्त्तात ददा । युद्धि ^ टा स ग्राममें णके सनद नाम पुरपर्ट्तारे द्ाव्टात्तमै {वासे ६, यदि उनेखार सेय तो चह यप्पततेरुटमेकै ल स्देगा सौर यद्रे धन्य प्रकार कौ ननि का मजन्य सपा परनन मे यमी ङदियादे दषस मटानेद् कौ खयर, गदौ | मटानद आथरस््य त्यश्दग्यसे उश खन्न दे प गी ओपन आदित्ये खवा क्रमे पा । नथी नै
पुसेद्िनाद्धि सव चो निव वाहर किव । छक न्नित दे तेश्न्तोको पु मनच्छाष्ठो या त्वत्तो उनकेद्य मँ ग्र पया हया कि दस्मे हमरे पुजन वन कु्ना दे, जन इवे फुठ देना ऋरियै 7 यद् स्यच वट ६० हारः प, मह्न व देती सदी, पचतु म्फष्द्च उलन कत
१०२ एएःन्त-सामर-प्रधम याग प्र 1 षुद्ध पार्थनग कसे परसो न दिया यप उलक्ते पुव के षटदय, में यट भाव उत्त मा करि यदि म्ानन्द् रुपया नही केता नो गल छे उपकार का कु प्र्युकार करना चाहिये] यह श्ल उद्योग ह्मी था चि उस गी माच्छम हुमाफि महानन्द, हदय में पच्च चनने फा पथा ह । वस वरद् स्वश्रानी फे करो , पती पुत्रभे अपने मनम वद य्दा सि मँ उसे पच यनाङऊगा । सन्नानो का पुत्र राजाकी सभाक मेम्पर था सनप्व मव जितने भी मामले दरस खन्नौ फे पुन्नके यहा मरन, सव मे मदानन्द् को म्यस्य किया करता, इख अकाम नन्द की तमाम चत्तो मे गोहस्त हो गई ।-भव फा चारः जव राज्यम पद्चा का चुनाव ष्मा ठो महानन्द षान भाया, परन्तु कुछ रोगा मे महानन्द् के पंच वनने मेँ विरोध च्यः, इस कोरण यद पंच न यन खका । तवच छो ने मदा नन्व्जीसे कहा कि “अय भाप पय दनने का उद्योग छोड ट देखी भाया समवाया नस उच माप नदयो चुने गये.तो अच अपि पच नहीं घन सकते ।' मदानन्द ने कदा-'जदा हमें को पूउता हीन था चदा हस्मासा नाम तो जाया ओौर स सार यदिनाम साया ठो आभे पच भी चन जागा ।' मदानन्द् उसी भाति अपने काम करता रा । अगले वपं रोगे ने उसकी पंच चुन च्या 1 परन्तु छद रोगे ने सजा के वास जाऊर शिकायत परः शिरयत फी कि 'सदाराज, पंच क्म बडी जिम्मेदारी दै, सौर ऊेजेगने एरु मह्गनन्द् कौ, जिसके घरः' वार कुख महीं भौर जेः मदा कंग न ङु पढानचछिखा, पच च्ुनादहै। साजा यह् सुन क्र दैन इमा कि जव उसमे फोर् चान मदी फिर टे ने उसे पच कनो चुना ? मत, सजाने प्रामके खगे सै कर पू भ्ज्ञः चिदया टा ॐ ॥ 14119 ने खजा के उत्तर दिया कि--'निघया नो हम तदं देखते
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। , द६ग्-र्याथं अर परताप १२३
स अर हने उत से पड़ना होना आर यख हम तच देखते जव टमे
उनतत युङ करना होना आर ध्वन टम तव ठे पते जच हमे उस सेक लेना दोना, रे ते रेखा पच चाहिये जिसमे भजा कारित ष्ठौ. सन्या चः जत्र चिसीपरनष्टी सोयेगण महानन्दे कै वरवर् ग्राम भर मै किसी नदी 1" राजासणदय पभ मदानन्द ते गुण स्न कै वडा षी परेम दा। सजानेमहा "चन्द् चौ सुता वी चडी सेवा सी ओर १० मौमे जागीर काट परथे। परमानन्द जी सेते पषटरे पती दी पी फोपदे भ रहते थे मौर ५) ० माहवारी मे आपना निर्वाह कते ये खगौ प्रर करते गहे अर जागीरपटे १० गा्वोँमेंडा मूनापः होना, उक्ते यह् कट् कर करि यह जागीर शुम पजा- हिति कर्ने से मिरी 2, अत यह् मेरी नद, किन्तु परजा हित
कोह ध्रजाद्दिन फे काननें छगा देते! महानन्द का देल
चेतषि देग्व भगे वर मे.सच लोगे तथा सजा ने मनद जी को पच थया दिक सरपच नियत किया । पचभिः एद मन्तेन्य स्थातन्य प्चमि- सह ।
प्रचभि सह वक्तव्य म विरोवे पंवमि सई ॥
1
`. ६०-सवा्यं श्र परमेतापः पक्चप्यरजिनमा नाम खाता खार्थौमक धा. फसताद नामन भामङरदा कर्ते ये । लङा स्वार्थोमख चयथा नामा तया एणा ‹ सचि । देको एक कपडे की दृकान चीच पजर मेथी । "नका सदय यरी स्या र्दा करता था किःयधि किखीका भह द्रो भेयानण् दो शीर मेर कथडा चिङे। भनक कापर यद् था कि भ्रात जाल से जाकर दूष्ान पर विरस जाते सीर हासे ष्ठक मष्डा छे प्याधेश्याम राचेषयाम' जपा करने
१ ॥ ॥
14
१
१
षर दान्त सायर प्रथय साग ॥ि
~
ये । जव देते कि ब्रादक लोग जा रहे द 'दो "यड उस से "राधेष्याम' का मामत्र उन्वारम-व्पस्ते जिसे साधा हयो घाह्को कयै ह्रषटि खखा खाथीमल कीः सर जाती शो छ्सि समय ग्रा्के की डुदि इनकी अर पडतीतौयेषष उग गुथ के सेन से आहो का बुदा छया भरतव जय ग्रारक पास सनै सोये धू फस्तै करि--'कहां चतरा ॐ वे उत्तर देते-'कपडा लेने 1" दव सयाम -कहते गि ध्लोजिथे यह नो आपदो घर री दान द अमरैर बाजारभर तुम्हे एमा सस्ता कपड्ग नदी, भि सकन} दृत प्रकार यै ग्राहको को मरते आर जओ सद दूस दू-रमिप से कप देर नकी दूकान कफे सामे सेष्निखा, सूयते तो मी ह अपने महाम याव्रेश्वामः क उच्य स्वर से उयष्टण कस्ते । जय उनफी टट इनकी ओर पठती दो सेन से घारगा क युखा पूछते थे यद् पदा रितसे गज्ञ लाये ९ ज्य तम उत्तर देते फि इतने गज ।,तव लाखा स्वाथ मल -दुरा संह चनु वियकाति थे 1 "लव श्राहच्त रश्च चरते कि--्टाछाती, धौ है तो स्वाग्रीमरु उत्तरः दरेते कि अर, तुम्दषयी सुटि नि तुमि यह् कपडा चार घा, गजे भये । मरे यह स प यह £)॥ में ठे जाद्रये ।` कडा चे चार दही भनि ग का हो, परःलाटा खार्थीमट ऊ यद् युत थी फि एत अधि चार घाटा साकार भो ग्राहक अपनः चना छिया करते थे । एन श्रमार क्का खार्थीमख वड़े वनाव हौ गये । पय आप दोग की यौद रदे कि वर्मा मे लिखा ईै-- ; 3
। अ-यायोपाभित द्रव्य द्श वर्पाशि तिषवि। ',
- ` प्र्तितुः पोडपे वपे समूकं च विनश्यति ॥ ^ , अधर्म से जडा हमा चन् कभी टहर्ता न्धी । "पे की,
जी कभी किखी को नदी पचली है । अत कासा समार्य
1
- '' प्-स्वारथं मौर परसनाप १२५
॥.१ 1 स्ठनोनोमे च इ सजने उाडखिया, कु पूच्समेहाव सान्त किम + गडा रहाय सनि नै सादा फर क प्राम यनं गद् दमा हई पि क्ाखा खा्वीमट छो दोधत स मनदूपतै अगस्य । पस्नु काचा लार्थीमिछजी '"साशराद्धप्ो त थानेतनी द्रो, पत चर गवण्छव्णजी प्रभन्नहो कर चाच नि सता साफीनठ, पाये, ठम, जो छुञ वुम्दारी च्च्छरलो {* कठ म्म मागमे वाञे तो यह् ये सि-- मदय, दम पडि से सदैव दने रटे ।' पर मग यै हिः "टके पदिली सदैते रहं" साधारव्छनेखा्ी मग्रजौ कोष्ट र्या सर ददा भि--"जय तुष िस चीज मानग्यदनया धरे द् मस्ट जयन्तो सपूर्ण पदार्थं ठेगः मर पदी प्योञ तुमहदेताउनवे दूनी पानिय लौ ॥* जय चासा स्पदे चन्या क रास्ते मरे जाये ततौ स्यार हुभा- पय 1 हम रयेयाम नते स्या माँग सण्ये ति पडली रमते भनयदूनै जो अ । येफिनिजवदहमयनदास ग अज्नाये नो प्सरो तनिदूने रने चेदम व्नैदौ फी भर्गो करते शरे वटी कस्ते र्ट पर पडासी दीने 5१ जव ?चह् निचार पन्ययवा वके कोर्रा मे चन्दर त्या नर अग्नी ीखे कटा भ्व दमतो परै गोस्ो फ च्ि अक्तिष्पस्त ऊमीञस धरो न सोटखना। मव लना स्वर्वीमर पदेश चठ गये कीर खाकी कै यदा प द्विनसनिकोोकुखनस्दा खो य्ये इस भत्ति दौ प्रत ये नो उगमे नोच्छति करतो भरे यटा फुछ दै दी नदींरो गदो घाज्ञ जी यट च पडा हनाहैच्सैद्धी, दैव रुचंती (।न्वार श वैते मिट जयने जिससे पक नध्र र्नि का परह् होगा, फिर देवा जायया । इस स्यार को द्विकरः खी रैर प्तेा तते घटय वज्ञ सया, चख घंटे के 2
९
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3
१२४ दषान्त-सागर-प्रथयस्राय ,
.- ये 1 जव देखते कि आफ छोगज्ञारै ट तो बडे उच खर् स प्यश्ने्यामः' का महाम उष्वारम कस्तेःजिससे साधारणः हे प्रारदो की हृष्टि खात्वा स्या्थीमिल की आड् जातौ भरी जिस समय ग्राह वी दृष्टि इनकी आर पडती तो येष् उपर तैरुचये। ने सेत से भ्राहकों पे चखा छया तस्ते धै। सव प्राक घास स्ते तोये षू करै कि) कदा च चे चे उत्तर देते- व्पडा केने / तव स्वर्पीमट कहते हि ष्लोजियि यह नो आण्कै घर ते दवन द मौर वालारभरम लम्डे पप्छा खस्ता कपङ्ा नदी भिल लसता 1' दत्त भको प्राक फो मति रैर ये शसः दूसरी दूरम षसे कषरा चेर इनब्धी दू गान के रामम से विकला समे सो मौय अपने महाभच्र 'सप्रेष्यामः वो उच्च खर से उध्वारण, स्ते, जय उतरी दरि एनद्ी योर षदरती न्ये समेत सते प्रसमं चखा पृते थे~ यह चःपडा कितने गज खाये ? ज्य चाट उत्तर ठेते कि त्तमे गः! नव ला खा्थौमल ख सुट च विचरते थे ! तव प्राह प्रश्न सते कि--शटाङाली, ॥ दै? तो स्वार्थी उत्तर देते कि भाई, तुम्टारी रि फ्रि तुप्र यद् कपड़ा चार जाने याजके सनै | हमारे यदा ° चप यद्रो ठे जाद्रये ' कपड़ा चे न्यारी अतिगः का दहो, परख स्वा्थीमदं फी यह् युक्ति थी कि प्प भा यार घाडासाखर मी व्रा्टफ अपना चना चिया.कास्ते ये \ ६ अत्मार लाद स्वार्थौमरु चङे नाद्व हौ गये । घर आप ङ फो याद स्देरिघर्मशास्मे सिसा -- अन्यायोपाजित् प्न्य दण वर्षाणि तिति, पप्तेनु पोड्पे वप स्मृव च विनश्यति ॥ अयर्मसे जडा टुगा बन कभी रह्र्ता नैं ! पपे. पूजी कभी किखी को नदी पचरी ह ! अत छाखा सार्थम्
॥
॥। ॥। 9 द्र्-खयार्थं जीर परखनाप १२५५ न
(~=
मेवदादठनो -चोतो ल कू राजानि जाड चया, इछ
पूत यद्व साप्त + ग्य स्दावा वलि नै स्वद्दा रर
ना | अन्तये चद् दणा हद परिखा स्दार्वापिठ दो दो प्से {दन्य
प्म मतटूले भेये । परन्तु कान धमनी 'यध्राङष्स वरे ऽर्मसेनोत्रटोगप् तवर सावरष्सजञी ध्रस्न दो करर ये सि -, सवा सनल, माये तुम, जौ कु वुम्दासी व्यासो" दष्टा स्वा्रनख आगे चाति तो यष्ट थे सि मृठष्णज, हम दथ से रूठेव दने स्ट 1” पर माग चैह -तदणि "दूय पडासी खैर दूने र्दे 1" गधन्यनेखाथीं नदयो सूरो पपन चना सर या निचय वुरुड जिस चीज पै पपरन परै ह् वन्या -बवदो सपूर्ण पदां ठेमा "सोर सिनी च ठम्देरेनाउनते दूती पेक्तियेरं को 1" जय । च्छटा सवाशुुसद्य चन्या रे सास्ते म्ये तो प्या भा (टय 1 हम् रेन्याम खे चया माग मप्ये जि प्स हमसे ¦ सदृ म्द सर्जो कुरा । लेपन जव ठम न्टादी रः उपरमे नो षडास्यो रेते दू रनि। नेदमणो दौ दौ ~न कौ मयद्ूणे कस्ते चे वी कते स्ह पर पडली के , स्भेद्ते जाय ९" सह निचार चन्या वन त नोस में चन्र ! दिव मौर अथनी खी चे कटा शि" देख दमतो परेश नीको वै चवि जप्तेदे पर्त कभी शवधंेको न सोलना। "जचद दा स्मा्ीमल प्छेश चे गये नौर न्दराखाजी येया { १ खीन्ये उन भाति दोमत
¶ † पक दविनखानि कोष न सटा ग ते दी: सैर तो मेरे यदा ङ्ड ररष्धोनटीले
, स्येतो म्बे सोना कि मेर दै रीं , "नष्टौ नाज जी यदव पडा हनदह ष्ठौ वेच खव ती
हौ चष्ट धनि पेखेमिल ज्येन ज्ििससे प्क आश दिनि का ^ निर्मह सोमार देव्या जत्या 1 दस स्याल को ऊेकरः शनी - सेर्स-सोला ते चया चन गया, स घटे के वजति दी चर ॥ वि प |
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9१
१२६ हृ्ान्खागर-प्थम साय , ` ।ग
अमे इसे मिल यये सौर थाड ० थ ना पडासियर फो भिटे।। दरस प्रक्लारजवसखो कादा चार दिन चैवे सिरत सह वा्म नेस्मभफलिपः फियदप्रटेष्धीङेगुणरे, यत्त खा प्र, घटादे बैठी नीर वेदी कि श्वटे्वर आज टम काम, बाम मिख जाय ।'' दस उखे मिरे 1 इसमे -तहा-'या "यदध" मधरा नियण्डा मकान चन जाय 1" दसा , तिखण्डा शीर, पासि के सनग्ण्डे घन गये । सने क्या धनदः हमारे यदा तनो पज हे जाय ।” लिंतनी इसके यदा {उस से दूनी पदडेसिये > यद्दा रि गई } सने कटा-~ष्या टेश हमरे दुर्बाजे इनमे इतने घरे।डि हाथी द जा 1 चितम स यदा टये उस दूने पडेसिथें कै वहां हुये । अय खो ,१ सेच कि जवग्रर मे एतना देवरं है तता मेगा पति पथो ददते खी मजदृरी करे । अत. पनिकेपन किला कि" स्वामिन अ क घरमे सनव कुछ मौजूउ है यप मौकररी कड कर चे भमै त्फला स्मार्दमर के पच पद्वते हो यदस्य इध्ण १ जान पडता है स्ति हमने यन्टा वजा दिया! नही स पर्तना पेष्चर्य्य इतने दिन मै कद से था गया ° कर्यो फिञयने चर्य दशा लाखा सादय भदो भांति जानते ये परन्छु सेष्वा ङि चखश्र देसे क्या ह । जव धर माये ते देखा कि दमाय दि खण्डा मान यना सौरपडेस्िथां का सतखण्डा, यद देस पत्थर में अपना सिरदे मोरा आौर कटः शा! रमार देष्नते > पडेसी दुमे ।" इस नि भपने दख ब्राम अर पञ्चास्यो वीस वीस देख कर गिग सिर पटने रमे 1 एसी भाति दधी चण्डा फौज मादि पदार्थं पदेः के दमे देख स्वार्थामिः क्तिर पर्त रदे भौर खी का वदः फःजीता तया किन्त घट क्ये वताय १ गन्त मं भव खला र ग्थोमख दख दिवार्मे पदे किं इन पडेसिये7 का सव्यंपतश सिसत धरत ह|
भ ॥
१४५
+ (मोचने ोनते फ दा म्रार्थीम की समन्त मँ भा सया भीर स्मता ज्वार्योमिच टा नैकर यैदे उर वौे दिया "य्व, हप्राणे मर्या फट जाय।' णक नकी पूरो, ' पे सिथेष ती दोक गरं । एदे कदा-भ्या घटेभ्वर, मारा प्क सान वहय हो जाय ।' इनका एक फान बह हना, प्डसिरे, ॐ ठे । शन्देने कहा--"या चटेश्वर, एमासी प्यक ग्ट जाय [र्पकः टी शनक, दोना गहं पडेात्तिये न्दी! स्न यहा" चदेभ्वर ए शुषा नो हमारे , दसवां शद् जाय1' एफ़ शुद्र इनक दरवाजे, दो दो पदे्िवेःरे गय्ञे युद गये । अदव्योददी प्रान ऊन्दष्टुभाती लाला खा- भरद् पक काढ च्य दाग नथा पत्थरकी आख लगवा क च> फि पडोलियां कीदृशा ती देल धये, कैसे सरि आनन्द फररहेथे। पटोली थिर भन्ये, वदरे, सणडे धसिरते ष्टण भै व्ररमाज से पारमे आदि वौ निरस्ते ती कृर्जो मजा हुमा दलम शस्ते ये| यह 2ेवस्वार्योमलकी छाती उठी ह । नच दं, किसी जगद कः वृन्त है कि-- केष्त्व भद्र ख्डे स्वतेःपिह ङ घोरे वने स्थीयते 1 'णादलादिमिरेप सपिप्युभिः खायोऽरिस्याशया ॥ कम्पात् कएमिदे सया वप्त मयेह माह्माशिन ! , सुभ विङ्स्प जल्प सुप्र तेप्रन्त सर्वान् ति ॥
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(५ =$ रै , : ६१-खुदगरजी सँ सचनाश 'साप्ोग सदी भाति जानते दै ङि परमेश्वर मै ( सह, का नरथा यद णरीर वना सक्खा है । अगर श्ल शगार एम सगभ्भे सुदगाज करते शसरोरभर्कानशरहोजप्य !
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४
ष्र् एष्टन्त सायर - धम सा = + =
न | मै माम नूट मये । जयने न्ट वडा विस्तरत । च ीर्टेसदेच्छोभि-मेः म्युष्यदहातेः मागं पद्ध, परर 4 सुप्य दष्ट च भाया तेव इन्हे सोन सि दष सै मवसर के लिप रमार णास्नौँ अं उपरा दिपा है । "इन्दे याट वाया 1१- प्मदाजनेतं मेन गत्तस्स ग्या ' जिसमे महाजन व्दोग जाय .वह्। पन्थ ह 1 इवमे सै चार मचष्य णसु चि ण नि नधाने उनते पृ-आा--"भाई, ` धप कीन केण ह? न्ता फाहा--"मदाजन 1 न परिडित् निग उने के पीछे प्रीये प्ये भौर वारर स्पश्ट्न यिय जवै मुदा > गे पनते | -दा पव सर सेष्वने च्छो कि जवहम छेनिाान्वा यर्तञय २? दरे पेसे अवसरे चिप एमारे यसो मै का खि, ९१९ उन याद् याया सि--'रजद्रपर स्प््याने च ये। निष्ठनि ल नान्धव › राजा के दगया सोर शमशान भूमिमेंज। सदिति चह भाई । दधर उवरदरेातेा यदय पकर ग्रहा । नर् रद्य धा, उसे दने पारख्लिसे पडा गीर कया किय यवसा जार है । किर साचे -गे कि चवं देसे शाखी मे फा लखनौर दमायव्यार्तेव्यहे ते याद् सया कि~शष्ट धरण योजयेत्, माई क धर्मम छना ठनो चाद्धिये । करः सेचने खगे किधर्मक्याहै? नै उहह स्याल नादा कि-- धर्मस्य उदा गनि धर्मकी अंखकी नी चानरोतो है दैवयोगसे णफञट भो वर्दी लुग स्दाथः। यस्त इन दोनों ने अटक गट मे गधेक्ता ताध व्या । यदव द््रसो गध्या चैर फटफया सटा श्रा जरः हमेकः कर रदा था, उन्म द् शपनी मस्न दिक दिल्या ठर वलदल सदा श्वा खीर ये डा पण्डित यद पुव द्र्य भण सड दश श्रे । यन्यलखगने इन दुग से पूरा गह "वा सापनेया 8१, घे बराच भाई ये धरम् स द्वाचा है मयर नाप रोय पाद्ट्ड्त्यदरेच्ि)' ।
॥ र ^. $ “
४३ = धप--पतमरनि लमयक श्रौता १३३
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पिषएयाण्छेढनं नातिन नेतत घु एतेन)द्धयम। निगिफुकेन र्ता 1" उ न परिडन ॥
4 ¶ ९५ -पचेमोन मसयङे श्रोना प्क जङ् एनत पण्टवि कधा वचिस्दैये चत्नेसे श्रना कु च पतु उन्हीं ध्रोराओामे पएरन्खाजीभीये जे "पप द् ध 4! पण्डिनिनीमे क्त्य सुगाटलिरजायत' नि) याग उत्यनषोगी द । प ठल्यो मे समभा न क सुग्से प्गस्त्पत नी ह। अच इछ दिन क अपने धग मेणपत दृस्सरे थाम रो दले । ङाला पि दु्ा दहुन पिया स्ने ये जद इन्ोतै तम्ब मौर ट्म नोने ल्दो, पर द्विय.सव्टाद ऋ टव्वी दस ख्ये नदी भि ने सुय रस्या याकि जलगे घुख से गाग उत्पत होती है। इन्टने मोच्य मि दियासलषुटेवरध्याकरे, गहा नहाग निट जायगा चः प्यैलेगे । लएठाजा चते वछषे दोपहर वो प छप के पस पट्टे । वहा प्फ ओर खय फो इस्त पूर कि-- यात वपन है?" उत्ते करा ्क्लण ।* यस, न्यखाज्ये नै निन्य कर न्मयि, क्रि व भाग शृ जागी, क्क पानीको रसदं केला सोर उनरः ३ ॥ ष्य टाखाजीसे पण्डितजी नमी पठा क्ि-- भप गिन खोग ट 9 इना ते जदा-- म महत्ताज आयस्य । उलन ननी,परू छ पा होमे पय प्रात जी न्ये स गये क्योकि + जन माजन यार चुके ये ओ ख व्याम सूमन भोजन चरते गरे! जव भोजन च््चुक सो --खाजां स्मो दुक पा प्षुपकना दुष । अन इन्स नेतरे तम्य स्प, दल । ्ाखैब्राद्यण > पाच्च ज्ञा उस्र एत ओ ल्यः दियर] चदे ` नवः छमा रहे "वर यातन चिकी 1 नय सोचा किम
. एएान्त-सागर-- प्रथम श ध वि ् प मटक वाएर लानि ६, इस निरे साग नदीं निनम्यनौ, पेना विनारद्ाप्रालणरे सुह सें घतेड द्विया । र्ग भसन. उदरभ्रैग नीर लाना से पूता यद् क्यारसते दौ शला ' जीने उषा प्मदारान, दमे कथामे श्युनाद किव्रद्मग कः सुहने्गदैद्ाहोतदे सो गायके मुदे र्देष , योपि ठर, ददा पीने दने वे । ब्रह्मण मी दलस्य परशुसपर ` शा । उमे उखा जीकी सोव्डीर्मे दिया । लारा ` सी चोन -श्तिह यद प्य्रा करते द्रौ १ व्राह्मण ने कटा--ठष,, ायथदो, एस टि चटनी -गी दैश्वा तोडते ई धन्य श्रोतारो । वुद्धि फी वलिटारी है। (द. यप्व नान्त स्वय प्रज्ञा गराद्ु तन्य स्सोति किप् । ' लायनान्या बिपनम्य दूषणा मि करिप्पति ॥
प ६ ^ ६६ पे भवमर् कौ ति, , ` पयण पुरुष छ्ोमार या! उसने यकवै के पास भरर धरना उलटलज्ञ पूरा 1 यैद्यराज रै का फि--"तुम प्रथम: कप्बन्टो तव हम वुम्दासी दुगा करेगे ।* जुहाव छी दवा दरम चै्रयज >े कहा कि--"चने फो पिचडी साना 1" ,यद सचुष्य वचारा साध्रारण ही पदा हिसा था इसने कहा--वैच पज आपने स्ने को प्या चनदाया ? चद्यसाज मे कटा-- गडः यदह जान वद बीमार पुदप चै्यराज कौ प्रणाम कव ` अपन चरः उो चन्द् दिया, लकिनं वोडो एर चल कर्, यिचडी स्र गया, फर समोर क व्रे्र.य से पू चैद्यां पने , भवान + हं य्या बताया वा? चैदराज ते कदाचिच ।' "भव ट पुरर "विनी याथ्ट रो रसता ुया चरकी चदि अर शीतर रीन “तिचडा सिवदम" कटते जारा था | पस्तु
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छ ददप जवस की यात १३५
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शीघ्र यौन चिरूढी सिचद्ठी वहने पँ वट् पुखप पिचडी > स्यानभे "खानरिडो" र्यने कगा। यट "लाहिडी खाचिडी' रध्वा दमाजार्दाथा फि भागं ष्फ काण्तकार नैजे, सपने सन से चिडिया उडास्टाथा दसङ्घे मुख रै"साचिी णा चिडीग' शब्द् सुन से खूवही पीडा भोर का पि--मेती चििया उडा रहा हं शौर वे. क्ता ह "खा चिडीखा चिडौ १ इसने कहा--प्तो फिर म यया कद काणक ने कष्टा--+कषयो उड चिडी उड चिडी ।' अय यद् पुरुप "उद चिडो उड चिङो" र्टदा जा आये पो चला । ऊठ दूर पर पस वकखियाः चिडिया पड रहा था । यह पुरुप उर दो से "उड चिडी उड चङ" कहते णजा निरा 1 वहिलिये मे बोधम भा कर कहा-- देस तो इस -दमाश को, हन तो पकड रहे दं ओर ुष्यित्य से पर पः वच्य पकडे मिलती ट, पर यह् कता दै छि उड चिद उड उसने मी इसे गयृव ही पीटा । इसने रोते रोते चरैन्नयि से पु क्ि-- मई,
५ किर क्या वा ? वहेलिये ने यतया [करि कल्लो--“मायत जाच " पसि पसि जाय, गावत आच पलि पति जाय 1" भव यदी गते हप यह् पुरुप आने चला कि षर स्यान मँ चीर्चेयी कररहैये किदनमे तरे यद जाः निरूखा नर्स यद स्वाथ सि~ गायत ज्वं फंश्ि फसि जव, आंवति जावफसि फलि ,. जाच ।* चे ने कटा यह् यडा ल पाजीदह, देखो षम खगे ये तौ यी कटिनता से संघ खगा पठे गौर यद् कहता भि
" "भयत जाच फति पि जाय, -आचदजाय पचि 6 ध 'उन्हनेइते वष्टुतं पीटा, यह विचारा फिर सेतर खगा भीर चरि से पा" यच्छा, हम यव काक १ चैष वे व्म-चकटो टः
ॐ जच धदटिधरिजाच, ऊठ जाय चरिधरिमाव।' अय दस
स्रा दुखा यष पुख्प भागे चजातोचच वस्मर्ुष्यण्म भुर्दाल्वि
४
दद दष्राम्त-सागर--प्रधम भाग “<
2 ह पजान ये। यद् जपने ध्वनिमेर्डस्ा थार उाव धरि धरि याच, ठै ठै जाच धरि घरि अच।! यद शय सुनते दी उन व्याये पुख्येनेसमुडको रखकेश्ये खुवष् रस्त किया ओर कहा“ उल्क, हमारा तो नाश दही गया यस्त -ष्टयदहैश्-- यैर जच धि धरि धाव, ॐ ठै लाव शवरि शवरि जप्य ।' इम पुशूपनने रोते रप उन त्रायसे पूर--्दो मक्त्य, क्तिर इम कया क उस्ने कष्टा रकि तेम कदीम क्र फेना दिन कह न दोधय, संम कर पेमा
दिन क्वहू न दीय ।' अन यही रस्ते हुए यह प्क राजान,
च्राममेजा निकखा। चा तमाम उमरे सजा साहब दके द्य छडका हा प जिसको पसद्ता में नही चाभ गजि चजर्हे ये, कटी बन्दूङध तोपेनुररटी थौ, कदी यत्टोमद्े म्ह भ, फेस समय मे वह पुय यह् कते ए करिःसम देखा दिन कवह न होय, सम करै देखा हिन कव न दोय ।' मम््छा ग्मेर्ये श्ट सजात कान वक्त पट्च रयै] यानः ख्यक वनदे द्री दौ छो करवा दी गार कट~ पनरे मदयर, दमम उमरमं रमार लरश्बहव्ा तम।मगव प्रसन्नता मनवि नीर नू करता दै शि-रम करे फेस( ;दिन वहम टौय?' इ्वपुखप नै गोते हर फिरराञा स पू-ञा~जच्छामहा- राज, लो हय करदा कदे? रजा सहव मे चनङम्या किवम
करे जेरा दिन निन उयि दोय, रम करै ठेस द्रिन नित उठि
हो? जयदृ्वाच्यो रणते हपट यट पुदध्रच्छापिः पकम म खाग र्गी इई घौ, गवचारे.सभी विचारे, श्रापच्चिमेये सीर यद् पुरुप ० दये फि--र्म करे सेलादिन निनि टि दोय, राम कर फेला दिन निन उछि दोय! जा? ज तियत 1 छागे ने दे सूत मारा। चरम एल श्रज्नर ज्य गया, कटा प्रसकी दुटणा इई! दिखी कवि नेसत्य कदा दै |
॥ 2
६७ -- ठ {विना रुट््त कै सटी मानना १३७
अपात हादे चन वुद्रम्पति रपि व्रन् । लभते शट यन्नाने प्रपान चं पृष्कलम् ॥ अनमर च यदुक्त तेस्य मयति दस्यय)। रहसि प्रौढ वदू रति मये वेदपाठ य ॥
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', ,&७-शठ तिना शस्ता क नदरी माना +, प्रकवायाजी के पास छ छर्वग सी अररक्षिय पक
खोदे के संम यन्द थी! वाजी ने करली ती्ैयातच्रा कस्ने ` काविनार शिप उस तारण वावा ष्टछसैय्यी ने पस ' जाञ्रवोकरे कि--सेस्जो, जसा हमारा सौदा जवन स्म तोर्थयाच्ा करदो न वीं स्ये गये ।' सेमा वौरे--मटा रान, यदा सोद्धा द्ान्पयेष्छी उणह नही । पस्तु जत्र ' चममानी मै वहत क रहा लो येऽ जी > च्टा-- अच्छा सरा सज, जानो उख कोभ सै स्यदो, यव साना लव उया ले " सा्ृजीसौनश्ा र के चञे यतेः । परस्तु यदा सेनी स्वग सड रोज उस सट कौ उडा उठा भसन स्ट ओर आपस मे चहते धे छि सोडा भारी चह दै, उप चयो चात । सा कै ऊपर पन फु्टी जरी ह थी । सगत नै कागदम् , देना षै किदन सेशे मोन उद भररदःदोन टो यह "छुद्लो उपड कर देस चाहिये कि दस्र भीतर श्वा प #॥ । से ने दवा दै किया । जव फुद्धो उखाड़ तो उससे भीखी मखी अणरपित्यः गिर पटीं । सट मे अशरफ घर भेर । सोया पक हदिया । जव "कच कार फे पण्याद् साधृती ` खट गौर सेड खी क्ते दास सा चेदा मागा तौ यके ती सेचजीनै सापज्ञो को परिचानः दी नदी, जर पष्िवाना ता पोट 4 "आपस्ता जादा सो छन्दस ग्वा गड । साध्प्नीदुपस्ट गः
४३८ दरष्रान्न सायर द्धम नाय . 1
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समीर च्ठत्ी के पास से चकेगथे । येहि दिन वषु धुः माकर उसो गावें सथ्य वकी चन काम दसन वर से गाव ॐ, टदे साधृज्ी ऊ परास दष्टे स्मै अर उन ५ 7" लटका नो भते ल्यणा ङिन्न सेन्या ङदयुः्ठगो के नि द्विदाथा) ड दिनङे वाद सण्ररी च उस सेढ के लड सेख्टा कि--'देम्व, आज जयतु दृ्चीदंतेा अश्रु क, से रीर यन, अगरनन्पदाीर तृ यर चा यया ती सनमभःण्नाकितेमै साल सीच दुगा सेट.का रट येचरारा भय से ल्लौट थाया । साधी ने उरा कडके मे ण कफीठरो के मद्रवद कए द्विप्र गौर उसमे संशराः को रखद्वियाण्च लडकफे से कहा दि--“अगर त् चोखा त सलम्ल्न-च्िनृथादी नदी!" थोडी दैर सै, जव समः धिक व्यनोत हा धीर चङ्ग धरन यादा तै सेठजी : अपने लडउकेकीत्टाश की | जव डना न मिक्तः तै सेद अम्र सावृजी से पृछा | साधनी दौटे-- पाई, सथ उड से पृस, दमनेतेः उसे टे द्री, धर दमः नद्धं ` जानं ककि आपकरः ठटटकः चा गया? उवं ' सेरी मे. ठंडक ` पृते ख्टका ने कह कि--ष्टुमारे साथ फटा स्यान तः गया, {फर दम नदी जानते कि न्तस भया ?' सटी पि गरणरः उवर धुम कर सादज कै पासन माधे मौर वोच कि साधूकी ख्टका नीं मिन्नः, ज जाने क गया ? साधुर नै क्टा-यद्यत्ते ते! हमने रुठकेकेः छो ददी थी एन दा परूखछड~> काणक गिद्ध उसी चोभे ककड थे, ऊप क्ते चयि जगस्हाथा1' सेखनीने पुस्तिं दिणोरं सी श्रनिदपर मे श्यङेर पृछा सि-" समाधी" सेट का रद च्ता यः भयः % साधी ने कष्ा-'मने तो यदा से चुटी दे दी ६ ह स््डकेगसे प्रकर्यो ।' उव धानेरारे दासे 1 खुडक) स साक सदे दिया क्रि--""दनूर दमार उश्च
1 १] क
= ॐ
५ आ)
६<-शराद्ध करना ते सहे पर सौधा देना किन है १३६
श्यन् तक गया है, फिर हम नहीं जानते ॥ पुन सू 9 चोन पि--"यानेदार खाट, हां एर चात हमने देखी थौ के प्क गिद्ध पकर डके कौ चोटी पकडे उपर को छिव पीतता श्या 1" धनिदष्र ने कदा-कहीं गिद्ध रडके कौ चोरी कड केज्डास्देजासज्वाषै १ तदनो साधृजी ने कहा-- र्य शराठव णठ एव वेत्तिनेव। णो वेत्ति शठम्य शाट्म् । शदुन््ररी खादति लाषदण्ड कथन्न युद्धेन हतः कुमारः ॥ मरासज 1 "शर प्रति शठे कयात् सादरम् पति आद्ररम्" श्स कहावत के अनुसार जव तक गाढ कै साथ शठ्तान की जाय सव तक शार नही मानता 1 महासज, टन तीर्थं यात्रा जेति श्वमय इनके पास ए सद्धा रख गये थे जिसमे इतनी भशर यी, जव हमने जाकर इनसे सेग्टा मगा सतौ ्तेठ जी वोट कि श्छोदे का डर्डा ते छ्ुन्दगी खवा गई स्ते हञृर गगर न्रौ सोहे का डरूडा उमिखदै सी गिद्ध भी मेडका र्डका डा द्रेवे । यह् सुन सेढ ने सम्पूणं -अशरफिया मए दण्डे येः सापूजी के ओट कीः मौर साषूजीने सेढ का णदकया फेटरो से निकार दिया । सच है, किसी कचि नै हा ६. ¢ स्पिन यजा षत्वतेयो मयुप्ाप्तसिमिस् तथा वतितितव्यं स धमः ।
पपूचासे पापयाव्िितव्य, साध्वाचार' सधना प््युपेय ॥
९्म-भ्रा्ध करना तो सहज है पर सीया देना ' - ` " कजिन
णके सहोरने एक चार श्राद्ध करनी वा ^ ^ पसन सैयार कर पए परित केव चर्या 1 पणित जयन
१४० द्ृ्रान्त सागर प्रथम माग वि
॥)
॥ ॥
कहा कि "चौधरी स्व, जैसा हम तुमसे करट वैसा करो जाना + चौधरी साहक ने कहा--" वहन अच्छा" पण्डित जी नै कदा~रेव चिखभा मे जरू (' चौरी सहव ने रे फर का~ छेच चिख्मा मँ जल ।` परित जी बोले दम 'तुम से कर्त है ॥ चौधरी सादव ने कहा--"टम तुमसे कते दे !' पर्त पी मे कहा--"भवे सुनता नदीं 1" ची धरे स्यादय ने फट अपे घुन्ता नहीं ।' परिडितजो ने रश्सामेँ आ एक थप्ड चौधरी खाहव फे मार दिया आओौर रुहा कि-चहा मे जठ सेर आचमन क्र चौघ्सो सषटयने परिडि गनी छो उाकर द मासा भर पक्र घष्यड दण कर -हः--"चिरभा म अट
सेर आचमन खर ! अच तो परिषटित जी कैं आय क्रोधनी गया यौर >े-- ननि
लातत चषा कमर मध्ये चनं मुल भञ्जनम् 1 चर्ण॒दादी सप्र पयं वार वार कडाषट्म् ॥ ५ यद् के पदर जहीर छ पीट को 1 अदौर.ने मास्ते मग्स्ते परिडन की दद्धि दीो करदो । इस प्रकार देष ध हा । पथ्चात्, परित जी. क्ण्ते छू सते शप धर पद्ुतरे । पण्डितामी जो रस्ता दै र्दी थीं कि पण्डिता, श्रद्ध कमे गयेद्कि कु चिरिः यतिहोने 1 पण्डिन.जी की यदह दशा देख पण्डितानौ ने शाक पू! । पण्डित जी मे खन टक चना । यद्य चौधरीजीो अपने धर अप्ये ता चौश्रादनने पृ लि-"धाद्ध हे गया + चौधर नै कटा-- हा हा रया । न्छधराडन् ने कदा कि--'पण्टित जो का स्वोश्चा नहीं दिया
वीधरी योले--"क्या वलचं श्राद्ध ता देए ये तक हेतिः स्ट, पर् सीवान
का स्याल नदी रहा सच्छा, सव तुम जाकर पण्डित के सीध्वा दे यायो ।' चौध्रगादन या द्रा पौ ठेक्य प्य्ठी पडि कते मरन पर पच ते वहाः पर्टिंत भौर पडि"
यप्प्न देति प्रोोधमें जट ग्य, ग्न दरैनिषमे सिटम्यन्मीध
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ध
०-गेन्थि परस्परा १४१
पन केः सुय पीटा, पर चौश्रराश्न जु एस लिये न योटीं कि तनि सौधा शाय सौ धकार दिया जाता हे । जब्र चौ धरान वरर पिदाक्तेघम धा तता न्स से योटीं कि-चौधरी। श्राद्धः प्सा ते सदटजह, पर सीधा देना वेड कडिनदहे, अधर ठेम सौधा देने जते ते। माम हाना
६९-माग टेर श्राद्ध करना ण पकि्डित सेवट श्रद्ध दयी ष्टे हए ये ओर जहा करटी यष, भने, सुण्डन, क्णेद् या श्णगव्रत आदि वाचते जात पत वैवण्रे मीरनो छठ जानते दीन ये वही भपनी श्रद्धकौ
धौयी लील कर यड जाति । पक जगह सल्यरारायण की कथा
श्यौ षा से युन्दाया गायासो परिडित जी अपनी धाद्धकी प्ोथो सै जा धिसाजे। चदा जव सेव्यतारायण की कथा फेखान
स्ः सा पाड कसमेच्छमेतो एक जगद् निकर सि मपुसन्य शेन च चटा--'मदायज यह सल्यनासायण कौ कथाम वप्तव्यं, कैला १ ने पर्डित जी ने वह फि-"यट अल्याय कौ स्रननक्तदै, नोखो रधाृष्स कौ ते । दति प्रथमोऽच्यगय ।'
1
` , ७०~-द्न्ध-परम्परा पतयाग्यक सेन्यो > घस्में व्यष्द/ द्यैः रस्नीनी च मडवाी स्टा थ 1 लड ठडकी गांड जेर तथा सवाग भ्यजोके भागने धैदेद्पये किष ध कैधसभं पध बद्धो मर गई । भव चैखयी ने सोचा मि पेखे, समय ् नसो विला खमिदव{ करः वादु तनना जलुचिर दै? इससे सेढानी जी जे उख मरी विद्धो फो परू कषे फे नीचे श्रद्
दिया) यह् सम्पूण चष्टिच नेऽनी सै कडकौ सपने तापन
॥ 1
१४२ दृ्न्त-खागर--प्रथय भाग , + ^ ~र च # 4 | ` वैढौ वैरी देखती रौ । जव वह लडकी अपने सासु न |
सौर बहुत दिन कै पश्चात् उसके साखुर में जव" उसकी ननद
का च्याह् हु! शीर जव चरतावन होने छी ओर सव रोग व्गत मे भये तौ उसने अपनो साख से काभ णक चिद्धौ ती लाओ।' पूका--च्यों ? कह्ा--हमरि यदा मारक भ्लैवे के नीचे इस मौके पर मूद्री जातौ दे" सासने विह, सणादौ । चहनेसोटा टे चिष्छी को मारना प्रारम्म किया सव वदा शोर मचा । दसी भांति दमारे बहत से भाई भिना सममन बुरे बहन सौ वप्ता को सनातन समक्त चैठते्ह।, दानाय ली घुदतीय विपा चिन्ता, फन्रह्य वरवरणोषय । परोपकार वचामि यस्य घन्यञ्चिलावी ।तलङ. से एव ॥
+
६: ७१-क्या से किप मानम
प्क ब्राह्यग'की लडकी अन्मसेटौ बडी साध्वीं मीर भक
ॐ । निवि दिन भजन, ईश्वर में वृत्ति, गीता का पाठ नौः
दस महामे मा जाप क्रिया करनी थी कि-~ ¦ '
राम कृष्ण गोपाल दपोदर ' हरि माधव मकसूदन नाम् । कानीषदेने कषनिरुर्दन देपक्रिनन्दन, त्य शरणम् ॥ चक्रशणि वारा ,मृदीपति जलशायद् मगल करणम् ¦ पेते नाम जपो निजि वासर जन्म जन्प के मय दर्शम् । परन्तु जय यद ख्डकी कुच यडी हुई तो दस्ता व्याह ह खीर क्रिस पुरुष के साध सका व्या हुभा उसका नाम ४ देवन्दोनन्दन' था भौर दौ किक श्रथा यद ह पि खौ पनि च नाम नहीं लेतौ ई, एसंदिषट इय लडकी कय जिल तरो : स्प ्ना, उसके उस मामन के नजन मे दन्न पड मग्र
/
&र-घुशामदियें से दुर्दशा १४२
~---.~------------------------~--- भपोकिः उसके मामथ भं यद शब्द थाना धा कि "देव क्िनिदन चं शरणम् ' सीर यदी नाम उगके पति काया, शस कार्ण दने दल मामत्र का भजन ष्टी छोड दिया) परन्तु कुछ कार कै पश्चान् देवकीनन्दन की सी के पक लडकी उत्पञ दई { उसका नाम उख ठंडक, देवकीनन्दन फी शी, ने श्वयो" श्यावा । वंस उसी तासी से देवकीनन्दन कौ सनो कामदा- भ्र बिना पनि का नाम उश्ारण क्वि द्धी वन पया। जष्टं चष प्रथम कडा करनी थी क्रि-- राम इष्य गोपाल दमोदर दरिमायत्र भकख्दन नापर । काकमुदैन कंतनिकन्दन देवकिनन्दन स र्णम् ॥ अष् देखा कनै न्दगी सि-- गम् छ्य मोगल दमोदर ररिमिधव पक्चुदन > ।
कालाप ` कमनिर दुन चाके चाचा ल गणम् ॥
पिरे भजन ते चन गया पर उसे यर् परिशषयननं दभा गि प्रथम सें किन देवकीनन्दन का नजन यरतीधो भौर चपोके चयो कौन यानी रष्ण भगवान् के स्वान चंपो फे चाचाके सजन ्टोन्नै खे ॥ यस खममरो किह यासे श्यामान् चदे? 1 । (
+ ष ५ 11 #५१ 9 ७र-खुशामदिरया से इदस्य , >
पक राज्ञा फे यदा चत, खे खुश्वामदिये रदा र थे। रुशामदवियेों कौ वहत दिन से कोर यग्म नहीं जमी धीमत प्य ये छग यापख भ सम्मति करके कि सना साव से भव सुक छेना च्ादिये । राजा गण्डय दधेषासं पष्टवे जीर उन से च चकि ~ यल खादव, सीर तो उपने दुनियारमे खा फर सम्पूर्ण देश आराम कर ल्विथे, परु कमो भ्यते न्ट की पशा म्री पुरी है?” राजाने कटान, प्या दनद षमी पोशाक
#।
७२--खुशामद्थैं से दुर्द्ा ५ -खुयामव्चिंसे दना , १०४५.
खाली हाथ डाक फिर कहा-'“"याजां साहव, यह कमो पदि ' ^ सिये 1" फिर स्प ने कहा-्वाद वाट्] का लये अस कमौन्न " है 1" फिर सुशामदिये वोरे~"राजासाहव यह् चर्म पि ५ निये "फिर सभाङ्ते खोभेाने वाह बष्ं यमो ¡ ख॒शामत्रिया , ने कहा फि~"राजा माहव खलिये यह पामा, पहिनिये 1 ' "- फिर सव रोग मे नाद् वाह् की ) षस मानि संपूर्णं पोगाक्ष पिना राजा साहब से ऊहा-अव आप शहर की हवा खा आदये ।" राजा साद्व फिःन पर सारो नङ्क शहर धरूमने अ निगल - परन्तु शरम राजा साल्व चो य् णकः देल लोग वहते थे ध -““साजा क्या आज पागल दहे मया है जो शह्र्मेनद्धा धुम ' सदाह “' जव राजास सुना कि शर्वा हमे जद्धा कह हेतो यजानेकहा करि-भ्ये सव दोग है। जय शला साहव , श्र घूम जये तो सखयुशामदिवेशने कदा कि --"्यजा साह
जरा मद म भी हे आष नाकि इन्दरक, वेता स्ये र(ति- याभीदेखद्ध
। रजा सहव जव महल में पडुचे ते1 सानिया राजा के नह! देख खय यर उशर.मगते लगौ । साजा नेकहः कि तुम सच दयेए भगती हे ९" चानिदध रे कहा-म्टाराज आज ापकोच््ाहगयारैज्ञा नङ्क" किर रटे हे ९" सजा नोन | “कि त॒म सय दैगरो दो । हमद की पे।गाक्त पदिरग्टे है, मैः असर कग हौ दौखती है ठेगस्ा कैः नही!" सानियो
चै दा जाड जा साद्व से चार्थना.की सि~ "महारज शाप, चाद मीर सम्पूणं वेशा इन्द्रौ हौ पिनि प्रतु भ्योनी |
फेचल अपम देश की दी रिय \" देलौ ले दुर्दता जज कृ फे गवुशामदिथे रमारे भेष्टेभके भदयै कौ कश्य रहै ६&-- “ , ॥ (1 फ > व 1 1 † 1 | ४५ भावव वगु तीन जो, पिय योल भय यन") ^ .तेदिराना द्र अप्रदि दू, चेत वेम द नए ५.
1 ॥
५
२५५ दष्रन्त सगर प्रथय मा
ग इषान् ~ ---------- शरसी प्रप्र मिनी सस्ती दै |" सुशामदियें ने का हः सरमार मिलतो सन्ती ह पग उस सदं ज्यादा मीर कथ्निना से निल खरती दं 1 सजाने चदा -““द्सकी फुछ
प्ग्याट् न्दी, तुम वनाभो नो सदी किशन की पोशाक किस
पफ मिल सकती 1" सुशामदिचं तते कदा--*'मटायज
\,
दमे दूजा नपा जास से टिया जाय नी हम ोगजा भरछप्रायामें कग दी सग्ते दै ।' राजान उसी समय न्परहजार सपनका दुनकरः करा द्विया खुगरामदियाने दख , इनार खदया तते व्छाकर चर में गच्छ अर आप देमास द्रा उर चने रहे । जर द मप्लथ्यनीत दृण तो युश्ामदिये दषे वारे
, चन्द् पम्ठ। सन्दुर टेक राजा य समामरेञा दिर राज
सदद्न्रे द्वत वहे पधसनद्ण मर्यो पि-ग्क्डेावम
लोगे न्द्र की पोत ज्ये सुशामद्िये नै उचचर विया
पिशा सरकार, धन्द्र की पोशास तीले अरि परन्तु मद्सज दद्र यद् व्ह द्विपा कि पोशाक सस्ये कमि दील जायगी दोग कते कभी दीव नदो सर्त । » साजा ने कहा--"प्य समर जाप इसे गये 1" सुशामदियें तै कदा सि“ “प्रथम ¦ इष जपने पुराने कपडे खयफे खय उतार दीचिये । रजा से यैखा ही किया 1 खव खुशामदियेग मे खाढीः सन्द ख्ये, , चारी हाथ सन्टूक मे उल जीरः श्याखो ही तिकात्ठ चोल करि “राजा सहव, ये खोजिये इट क शोत, इसे पदिनिये आर शख पुरानी धोती के भी उतार दीजिये इ"'्यजा भुनी धीती मौ स्यो नदो गये । सभा ङ्के रोगं कोरे "वाद घाद क्या तो जच्छ श्र ली कामद घत दै 1" कयेकि खत्र दन्ते चे कि जगरः यह कट दिया-कि चोती योती नटी. हतो ्टमारी नख मँ ककलग
खादर मापतोनह्गं हलो ष्टम च्यत जायगा मौर दगु कदे यये । दी धकार खुशासदिथेः
॥ । १ +
१९६ टृ्न्त सागर--श्रथम माप ` ८
ष् ¢ द्--धृप्रभ्वरजा `, एम परिडत चड़ हौ भक्त जीरः शुद्धाचारौ यानी निः त्रातं फाल उर कै शौच दन्तधावनः खान् दुगापा्ह आटि कर्म किया छरते ये । परन्तु परिडिनिजौ को केयम् लने को आदत थौ 1 पकं दिन पर्डितजी मप्यज को कीं मग्ठ न मिखा मौर पण्डितजो स्लान करने जाते वे कि चक छोरी बरौ ज्ञा पण्डिनजो के पडोखी गी थौ ,उनके खा गहै) पण्डिनिजी ग॑डसः दे उसे यमपुर पटठया उधेषः ग्लाट छोट कर पण्डितानी से वोले,क्ि-- "छम तव तक वनाभो, मैं स्लान कर पाड करने जाना ह 17 पण्डित जी सान कर पाट करते सरी अर चद् वकर थाल में कटी शी मौर पष्डितानो सप्ला याट र्दी थो कि दतने पडो सिन कि जिसकी कि चह वकरो थी पण्डित के घर माभ आ । पण्डित दुर्गापाड कर गहे थे । पण्डिनजी पडोखिनक देष पाड करते हर प्रवाद मे पष्डितानी से चोट ।
। यदिव -घ्वं नेषु - चेतनेत्यभिधाप्ते। , ` नमस्तस्ये नमस्त्वे नयम्त्य् नूनम. ॥ , - पुनः इछ प्रचट मं च्ेटे-- 9 + ५
सागनियो सापनिया जिनकी दग्र मारी मेपरनिा स तौ, गदी आगनिया नपम्तन्यै नपम्त ये नमन्तम्ये नमोनम
" प्डितानीं जी शुक पटी दुई धी, "यद् पाठ सुनते ॥
उन्दने मास दक दिया) . ५
\ › पित्री 1 दयें धस शिमा-कर्म.करे छोड अदिस यनो अ
गक छोड परे साधु वनो 1 न
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(क इध्-गारु चेरा १४७
^ ~ , ७४--र चल्ञा
क्षत्रिय एक यार प्यक परएिदधैत फे चेला दोने गये । ६ जी खोर धोती, स्बडाॐं भादि सामान अट करपडिन जौ से "नमो भगवते चासुर पाय नम › य्ह मनर सुन चेखा हुए । पतु परिडित जीने दुन रम्या था कि इन चु्वरजीकीखो परी हो सन्दहे अन. पण्डित जी मष् गये यक से योल सि--"मापदी सल्लक चेटः दोना व्वादियि. अभीतो बाप माधे चेला हु है ' क्षी वचार सी स ये\ उन्दने कष्टा-~ "तो पण्डितजी अय क्वाही अव तो खम येटादहौ दुक (" पण्डित जीने कहा--“सो जभौ ज्या हुमा, हुम अपनो | रोको ऊ आशो, उसको हम फिरःमचर सदना द्गे 1 कुबरी न ष्णी लेभाकर पण्डितली से कदा- "गुरुजी महागजः वे भप ससे भी मं छनाये 1" गुरुजीने का --““खिधेग ये
मेन्नपरदेण इसका नदीं कियाजाता। इनका सच का मनुष्य न सुन सकेगा, इस लिप इन्दं प्कान्तभं संश्नोपदरेण पनी स्रौ को गुरना
करेगे ॥" कु"्वस्जीने यह टर आशा पा ~ग "फे साथ पर ्रोरसीर्मे एकान्त कर दिया नौर का सि- यब आप् चरसे मत्नोपदेश्त करदे 1" परन्तु छ्तराणी भीर शन)
दीनेः कुछ संस्कत पदे हण थे मीर यह चष्न गुरी को म्म
गी जीसे ञे नि--“्म
मथी! गुरजो कोटरी मश्व भूमिं गोकु मानयः इख भूमि कि-- "अह् छृप्य मने" जीर दम 1 ४ , कि--+ त्व माल्मानं राधा मन्यम्ब ' अधर दुम चने को साधा मानै । पुन चोरे -* विहारः कु" ओर ननाम विक कग । परन्तु यदद सय चार्ना सुवर्न सुनते जात थे} पण्डित तो खमभतेये कि फवर वद्य नीं द नीक य दियाथाकि
| १५८ टष्ान्त साप्स- प्रशम मातर
चये का म्नोपदेत आपको नही सुनना चाहिये, दर कुवः को पण्डिन जी के वर्ताव से पु शशय दोगया धा प्रस वे कोध्रो ॐ पास दी खन सहे ये वस इतन सुनति,हो ॐ १ जी फिवांडामे धका मर जाकर भीस् चोठे कि ' "अहम्प्रमरो गसमागतोदं इम य मद ण्डं विद्धिः अनेनदुधादन्य,। सर्वात् पै यमसोरु से वाया ह धीर यद यमदण्डं ६, सो
दससे यम व्ही भाद क्रि फेने रेस दुं कानाश करो । ''
१५ > > ५ न री ७५५--चत्तं का इस्तका . ' ' ण्म पण्डितजी सो ए दन्यने यवना शुरु सिया था जर उनत्ति ष्एककंटीली थो भौर देट। यन भक्ति किया कयना श्रा, परन्तु पण्डितजीको जदा कीं चे इ सामान भटना, चेन परो ख्डवात्तेये। इम धकार धीरे चेदि फे पसि चोभ्पा भ्धिकूरोग्याथा। चेदा से रेखन था पसन पण्डिनि जौ ने अर्थनीः व्वनि न ्ोडी । एर दिन चक्तते° गुर खादना परुषः परजा उनरे । चेके की कमर वोफेसे ररर रहौ थी, जच तक पण्डित जी षषे सिसीने उसी कुप पर मार्स् ओर पक्र खोदा धोनी दिया । गुरूनी लोर चेरा टे श्से मौर रणे 1" चेलेने दाहिने दाथ से कंश तोड गय # यटा कि" यह लीजिये, इसे लेकर आप फिसी ऊट कै वधिय जा भापका चेषा देवे, हमसे यद् वोभां नहीं चनः 1.4
५
1 1
५७६--माग्वादी , ` भक साधुजौ विचङ्कृक खुखं ये, लेकिन कुछ सन्यासी मदग माभ्यां वन उपदेश रवण कएने से उनङते ठदय म यह भाच उर््यम > मौना,पदना चादि । पाक दिन श्रना सप्दय
१
इद-- बार कारी
भगत त पते रमम पर दया पानि निकले । साधूजी ने
------ राता सहव
१४६
डो जनायेरा भीर द्य जोड ग्रडे सोगयरे । सजा स्व मेक “कषये -गप यमा चाहते र? खनो अष दूलनी नर छीफ उठा
[1
२३६१ सतहि ।' सावूजी न कद्ा-प्मदाराज हे पक गीना कौधोयी खेदो 1 राजा स्हयने कामदष्सि को जाना दी कि-
५१; (द द
प्म खाधू षो पक गीता की पुनत. दा
(1 दै च्ल गया तो उन्दने चो ड वधी ग॑ता कौ एक पुरतक उसे ख ५)
दुसरे दिन् उन्तम सुव | यह सधु
+ड । मुषं जिद् गीता वौ पार दन् खया मीर वाल गीता गाना गात, हम री गोचा |” कीर उस्टवर उस जिष्ट्की
जपनी छतो तं लगता मौर कहता था कि
गीता, वडी
गदे गोता, सी गोता ।' -पभी उसे चूमला यर कदता-
` गोता ।'* गीता छे जव यद माग चं आयामे कदा भि~ श्म मे चानेक न्विथे क्षो वसना खानी, चमन होना चादियै, नी तो दूषणौ लिटद् पिगड जायगी । ' निदान स्पू ने फपडा सररीद् उसमे गीता ददै कर रात को अपनी करी मै सस्या पयतु साव नं चूहे माकर उस वे गीता चठ गथे 1 जथ
प्रभात चा) व भात ष्टुभ ले सपू जी मे ज्यां टी, अयनी शाना
कौदेलाती
देते कथा दं कि उसे दे ऋाट गये 1 अव तो महत्माजी कं
प्रखल कषर द्धा! दूरे विनि सजने सोवाप्ती पवी यद्यपि यो ल्ली त स्के, पचे उमे किः ^ गये) ४ नौ तीखर विन म्ात्माजी देकर चडे.दुखीदुप। कलग से पूका-न्णारः सवा करः हमारे सीता क चाथो निव्य के खुनर जाते ६ 1" छोगेा ने कद्टा- "मारण प्म विह पादे
"नाचि चचह अपक पेथीनच्ुलर १ गदभन्म बद्धौ भोः पाटो, पस्तु चृत का टना प्तं वन्य „ चक् द्विनं उस चिद्धी नं वृह देषडे सिन्च ज्व द्र कमी तो उसमे वृष जा सेगेडनाप्व॑द् कर दियः।
५
{तिने पड ह्ला न्य
भूखे मर्ये सद्यात्मामै
१९५० ट छ्रान्त सागर-्रथमभाग
८५
फिर रोगे से पू्ा-- "ये भाई छोय, भव तो भिदलीमौ चदा नदीं ोडती ।” रोगं ने कहा मदात्मांजी. विह चृ कसे तोडे कुड खने गोभी पाती है? धि्ठी फी मापगाय् काद् पिलाग्रा करें किर मि वद कैसे, चूहा नदं नेषडत्मो भग्र तो भदात्माजोने चि के दूध पिखानं के चि घफ़गायमोलखो। महात्मान गाय इसि छी कि बिह गाय का दूध पौकर पुष दो मौर चदे नोडे ताकि चूदै गीत पुस्तक न काट । परन्तु गाय भौ टो 'रोजं दूध दै, तीस दिन लाते फेंकने कनी ! मदात्मा लोगं से योरे“ अवतोगायमभौ दुन देती सज्ञा चिह्धी पिव भौरव् सोडे. तामः गीता वचे ।» लोगे ने कटा--“गाय कौ $ स्विलातिमौ हो क्कि दूध्रहौ दे) इसे हरो घस खिलाया करो। भव महःत्मा जी को 1फ शर हई परि अगर पक मामी मिः जाय तो हरो हुरो घास छाय! कण्टे । इतने मेँ पर. खी मत दोन, जिस कौ अचख। चोवीस पश्चोस चरथं कौ थी, महाता के.पास भीख मापने आई 1 मडात्माने कहा--“अरो तू हार यर र कर इस गेया को हरी घस रोज पक्र ग्र ॐीः न्धायाकर हम तोय खने भर रो भजन दिया छरेगे । “ख्री,म स्वी मारः कर छिया नीर येज गाय को. हरी ह्रौ धार न्ख छती भीर ग्य को सेवा किया करनी थौ । सव तं मदत्माजो कौ गप्य सवद व देने कपो जिससे क्रि बि्ठीतं दध पौती ही थो ओर मदमा भौ सबूव र्यी डाय वरः धे नीर वचा चचायाख,भीखाङेता थीं परन्तु अश जानः ह ककिमटरजन्वृषारने क्दादैकि-- र भिक्ताऽण्न ति नीरपतमेक वार्, ` ` ^" “ " ‡ भय्या चभ. परिजनो निजदेह मानम 1. ~ यत्न च जारं रतखयड पलीनकन्या; ,
4 { (य
ग ~ षे ; हा तेषाप्रि दिया न पियिर्नि ॥ भिल्ला ही भिनकी बृत्ति दौ खीर निरस भोजन दिनभर
१९ चार मिक्ता हो जीर प्रवी ही जिनकी शय्या हो भौर त पुराने दज कड की जुडी हर युदडो पिरे ष
+ प्तौ जवसा मे मौ यह चिपय-व।सना नदौ छोडी 1
५ नीर भौ कहा है-- । द्णःकाण लज चअपृरस्तिपुन्धविकलो , ` कृणौ पूति त्िन्न रमिकुरमैराएृततद्च । लुषाद्घामी- जीर्णा < पिठगनकपालाऽपतगल »
शुलीमन्वेतिरए्वा हतमपि च द्त्येव मदन ॥ र मर्थ--महा दुवा, पक यांस फु दद् भरम साग्सि, छ करी टर, देद् मे वड़े, वडे फोड़ जिनमें कीरडा ऊ परिवार परिवार घुमे, क्षुधा से पीडित, घडे का येग गले म; पेखा क्ता भो ओय कृतिश्च क पीछे टीडता ई, तो रवडो पानेवषे शो तो चात वा १ चस, भहात्माजी उस घियासी सै रस गये } पुन, क-ख काल मेँ उसी धसियारी से मरात्माजी क पक रृद्का सौर पटक व्टडपी उत्पन्न रई । छु दिनके वाद् एक दिन महात्पाजी पक छंडका एस फन्ये पर यरण्क > इषे उस कन्ये पर, गीता फी पुल्ल वग भे. पीके पीठे परौ भौर उसके पीछे ग्य यरः साथ दी साय चिली नादि मपने सारे सामान से च्छे ञास्टै यै मौर उधर से उन्हीं जा माय की. सवारी जिन्न सहालाषोगतारेकीथी मा गे थी । सष. राजा खाय चराचर पर खयै सो उदनि मदात्मा कोः पदिन सीर उनकी यद दथा दख सगरो पदी कर उनसे पृा-'फषतो मारा, पीठा कितनी पदी १, भएय- एर पोर -ह्मयज, &८ अन्याय मं, फेन 4 सध्यत्य दष
॥ भ
छद-भार्वाही १५१
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१५२ हान्त सागर--प्रथम चामं ~
-- - - -----
रै ।' ददने कन्धेका दशाया करफेविः णक यध्यायय शार्यै कौ तरफ इयारा रफ कि दृखरा भध्याय यद्, पी तरफ शारा करके कि तीसरा यह, उखसे पीछे की नर 1 शासा करर कि यौधा यद् भौर चिह्टी की रदाय शर कि पाँचचा यट! जा यद् सुन चङे गये { ' ए.
" ५७७ -सरविाकी हठ.
श्ापप्यर रिष्णु ररिवियै चतुषेजम्। पपतवदनं ध्यायेत् प्रवे विप्नोपठातपे ॥ ' `"
द्सन्छोकेञर्धमे पम पदधितजौते ण्डराञा सादवको "पया वतखाया मीर दस प्रकार अर्थं पिया कि "शुह्धावरथर् , थानौ सपय सेद् सखफोद टोता दै, ग्दिष्णु" जे चर् यन्ररमे व्यक हो वह विष्णु कटवि, रपव दना बिसी का काम नटीं लता इससे व्यापक 2, अर 'ग्िवर्णः, वेष गेन चन्द्रमा) दोना टे, ष्वतुभलः चार वनो दोदर इसि, च्तेशेजभी हे, धरर चः्नः सौर द् "चमचमाता नी 2, 'ध्मायेत् उस सपय ऊ धारण कारये स सम्पूण चिन शान्त सो जति! उस दिनिसे च पण्डितं दन राजा साव ध पास जाता तो उत्सवे राजा साहव यही छी 5 पठा परनेभरे, शीर जन पडत इसको विष्णु की स्तुति जाता यानी ठीक ठीक र्थ क्ग्तातो राजा खण्ट्य कतेक यह् अर्थ गर्त है आर् गपने को तथा जवने गुर यते सहत ऊख चन्यवद्- दिया कस्ते थे! वतका बाट एङ ५ डित राजाकैपगसभाये।. उनम मतिीराजामे चही पश्च किया पेदितजो ने यजा कां च्पवरेचादखा शशं ज्ञान चियाय), इसलिये जाके पृद्धतेशटी कट
#।
1
[4 ७>-पविद्या कमे हठ १५३ दिया कि-मृदाराज, शस सा अथं खुपयःहै।' राजा वडाधरलय दुभा सीर फा--श्तने दिन पर हमारे गुर फे वादं दु्मगे पडति अपदो मिेष्टो।' तवतो इनदु सरे परि्डिन मै कटा- 'महाराज्ञ, सेका एक मर्थं हम देर पकौ वताचै ।' जे रोई ने जनता हो 1' साज, साहव नै कद्ा-- वताहयै 1 १६ितजो ने कहा कि--'श्सश्ना अर्थं ष्दहौवडा' भी छे सक्ता? देम "शु्ावरधर' दद्येवडा सफेद सफेद होता है, "विष्णुः ग्यक हही यानी सवं कोट्खाना दै ध्यशिवर्णः गोड गोर दत्र ही है, भ्वतुरभूजः चतुय के खने योभ्य अर्थात् चतुर ही "से सति रै, शसन पद्' पका हमा लता षी है पतै इसमे धारण ब्र्थान् खाने से सम्पूमं विघ्न शान्त दो जते ह| गया पद् मर्थं छन यडा टौ भरसन दुभा यर पण्डित को वदनछु रकषिणाद्रे विष्ठा किया । परन्तु यद पडे काथय करते यासा ण्डत चिद्ान् था, उसके छदय मे यर शोक हुमा दैखो पह गजा कसी भ्रखनः मं फसा है, अत इससे एसे निकाटना दाहिये । णखा विचार राजा के यद्वा उर कर साजा सादय को प्न खगा } घोडे काद्ध ओ राजा साद्व की यण्ठाध्यायी महा म्य नीरः दु काव्य पटा कर प्क दिन राजा सादवसे ष्ट्य कि-- ति . ' श्गुद्धपगधर विष्ठु शिरी चज म्1 परप्तपदुन व्यायेत् स्वं धिषनेपद्मतिये ॥ ? सुपथा यो द्ह्छीवडा ?' राजा सा भनसय लवा अथं र अर्थं सौ इन दौर्मोमें पनः
चह म्वराज, ई ० व न श} "वतय ने कष्टा कि--'्टम मधम यदि. श्मशा ॥२र अशं वनदते ची व्वा आप कभी मानने १
~ ९
५८ ४
१५५ हन्तसायर -तरवममाम ~
“भ८--ूनेध्नत् = र पन्राम ये डौ पुरुष पास टी पास रहते थे, उनम ९ का नाम मिद्टनला आर दूसरे का दीपचन्द था । इनमें महन् , खारकी ख( पदी छिखी, वड ही चतुर भौर सुशीला थी स्मर दीपनचन्व् की खरौ यद्यपि कुछ कम पद थो पर चालक शौर चतुराद्मे कमन थी । दौपचन्द् कीसी भिद्रनरन की खली खे हस्चान दी शख रकार चतुराई से पुती थी कि एस मेसीसखतोक्ेऊही पर उसे यहन माम पडे कि = स्गीखती ई ओर हर वान कै पून पर जव" वह वनला देती: तो यह कष दिया ऋस्ती कि "यह तो हमे पदिक ही से माम शा 1" मिदनलाल की विचारी सौधी खी यदतो जान दी लेती थी कि यह् चतुराई करती. है पर कुछ कती नहीं थी । इस धरफार हुत कार तक दीपएचन्द् की खनौ भिष्टनखार की खी धूर्दवा करती रहो । परन्तु क दिनि मिद्नखाल कौ स्री को क्रोध आया ओर उसने कष्टा कि दोपचन्द् की छ! सु से सीख जाती है ओर मानती नदी दरस लिये से इस की छत्तर का फल देना चाद्दिये । मिंहनराल की सनी यदह सोच ष्ठीरटी थो कि इनने मे दीपचन्द कौ खी आ पट्च, तच तो मिह्नटार को खौ बोखो--"वरिन, कख यभन त्योदार दै, इस ल्यि कट पूरनपूरो हा करतौ रै, सो तुम,भी (अपने करना 1' दौपचन्द् क खो ने पूउा-*वदिन, पूरनपूरी किंस नरह ष्टुमा कस्तो ई? उसके वनाने की ष्वा चिधिदहैर । भिहनन्यख की खौ ने ऊदान, जिस दिन पूरनपुगे फरना हो खुद. से उट के कड़े जगल दो, नासे सव वाट घनयटाे आतर् [फर कोयल्छा फीस कर स्रो देह् मेँ गवर गर तियो च्की माला चना के पिरे, फिर नभे ; होकर नंग चते दधमु यो डषठक्े आद मष्धे, फिर नगे नमे ह
अ~ एमनध्रना १११११
*=~~----------- ~ ~
------ , करे सीर भिस्त सै योने नहीं 1" दीपचन्द् की रपौ योखो- यह र्म पदटे से जानती भी 1) मिष्रनरालफीसरोने मन में हा नि~“जा राड, तु "यद तो प पके हौ सै जानती थीः कापत्ल यद मियेगा । अय दीपचन्द् कौ ख नै घर में मारर अपने पति से यदाप एमा यहा यमुक ,व्योटार दै, लो सुक मष्क ममुः चस्तु खा दे रीर दुपदर त घर ग आना प्याकिरमे पूरन करुगी ।' दीपचन्द नै सामान ला विया भव भाननफालमे वे अपने काम मे चरे गये । यदहादईनसैीखी गे कि जंगल ह, ना दै बुला सव सिर युद दिगा, फिर नेहा षर कोयला पीस सरे मारीरमे टमायः पुन ूतियोकी भ्ठ पदिन नह्घी हो दूध मे आटा सान नद्धौ नद्धौ पूडियां धनारदी थी कि दूनने चनं इसे वषट से तीन वज गये भर दम क्व परति ओ गया । ट् घर य किवाड चन्द् किये पृरनपूस्या धना ब्दी थौ । पत्ति ते द्रया से कई दार बुखाया.पर दमने वादे न समोते } ऽसे सदे हभ फि न जाने मेरी सनी मर गद्या उसे मर्पने कादा या फी जन्य^पुस्प मेरे धरमेदै, भरे श्रौ जपन पियाडे पयं नदीं स्शोठत्ी ? रेखा सोच णक
पो के मन्वान से लो फर जिसकी कि खत दख फी छत से मिखौ यी जपने चर पटच तो देखता या है पि यद् नद्धौ, सिर ुटाथे, सारे शारीर म कू्वद्धा खगाये, जूदियो का हार पर्ने पूरन कर र्दी ह 1 धथम तते पूनि को देष्वे दी यद प शप्र पुमे पति (५. फ्जासो चु, यह् ववा शाकल नई है ?चिन्तु य पूरनषूरौ कै ध्याम मस्न थी, इस कारण न् चोली । पतति ने कोडा छे इसकी साल सच दौ 1, तयत या चि "युम यद सव मिह्नरछार फी खी ने चतय था 1
म्नो कि उनश्चता ने यया दशा ऊर १ अच माप म्यों कि ठतश्नताये उमा श्या. इुद्शा = ् यह सयु ही गय कि मै मिद्धनलाल की ख ससी प्र धी] ५
॥
= ॥
4 ,
५६ दष्रान्तं सागर प्रथम भाग ।
9 ॥ि ट न्ध ७९--यमल्त के विना त्लोग पर्छ नह चतत प्टकनदी ॐ नद परष्टक मन्ध ओर णक ल्गडा वैठे ह्य ये । एक पथिक, नदी कै समीप पटच ओर अन्धे से पडा ञि, “नी फितनौ है १ अन्धे ने कदा -्मोटौ जा से1” पथिक ने कहा- "तुमने देसी ९ कहा मँ तो अन्धा हनँ कैते देखन लद्धडे से पृदा-“नदी कितनी है? कगडा वोला~+"कमरसे। पिक ने पुका-“तुमने मभार ?" इसमे कदा-°रमै तो ङ्गडा ह, कैर मकाता ।' यह न पयिक सशय मे थाकरिनदी के पार कैसे जार? जाने नद्यै सितनी गहरी, कहर से करैला स॑स्त। हो ? पथि यद् विचार हौ सदा था दतने मे प्ट पलि पुय ने नदी केखमोर हौ रटता धा तथा उसकी जादे" भर पैः दनि थे ओौर कट बार उखक्ोनडी माई दु$यी आय भोग चेठर नवी सेनि खा जौर उस पुरप से! संशय में रूटः था क्या क्ि~'"तुममो मेरे पोडेवेडर चङे आयो ।'सगयात्मा मुरुप उखकरे पचे चरु पडा आर नदी के। पारः कर यय । इसी धकार ज्ञिनक्े चुद्धिरप चश्च रे भीर काम कर्मे के! गक्तिरूप र हेः गीर माचरण ऊेद्धारो नदीरूगवेदो के] जिन्ट। नैर्मक्रायाष्ैउन्दीके पे मनुष्य चलद समते गोर जिनदनि केवल खना हो दै नीर बुद्धिरुय नेत्रो डे चन्धे ह उनी वात कोद नटीं मान स्वा; मौर न उन्दौ कौ वात $ मान सकता दै जिन्न बद्धिरूप चक्षुं से देखा तोह पर जो कम कर रप पयो खे लद्धदे खाचरण-गू्य पच श्रष्ठाचारी ह । इसदिथे अग् दुम दुनिया के खुधारन! या अच्छे याचरणों पर कना च्यादतेद्धते आवश्यकता हैक प्रथम हम सुधर स्तरः टम सपने माचर्णौ कौ अच्छा वनादै। = , । बिद ननता गुणने करति सपि नाकग्ये विवत् शुस्ते 1
८
९४-अदाठेतसे नाप १५७
1
भलपाटित भारत दुं ख विनष्ट स्यो भवित। कथमत्यनये ॥
च षे ८०--मेत्त स तताम ' . प्क पुरुप रै र वेदे थे । जचं वह मरै ठगा तो उसने भने नश वश्यो फो बुला एम रस्सो दौ मौरपक पक वैरेसे यथक यथक कटाक्रि तुम इते तोडो, परवद किसी सेनय सको! फिरपिनानेकदा भि तुम चास मिक कर इसरो तोडी । पर वह् किरभौनदट्रटमङी। फिर उसने कटा सवं इसं रस्सी | रौ धेड डालो जीर इसको पणर रको तोडो। वरथो ने श्यद्ीदरेरुमे रस्सो के कड नदे करदिये! तबपिताने हा श्जिदेषो षर त्तिनिसा तुम्ड् र्था मेँ पानी से नदी चचा सरता परन्तु जय तुर चुत खः पए इका करके छप्पर छ। चेतेहोतोब्रहवडी डी जल-वृष्टि से मी वचाता रै) सो जकार् जच तमतुमभापसे मिक स्दोगे वव तक कीर ठम्दय 3 न लर श्न ता पर ज्या तुम अलग हुए वहाय रस्सी की नरह दुक दुफडे कर दिये जाग । किसी कवि ने कदाद-- „ अत्पानामाप् वन्तू्य सरदति कार्यमा धकरा ।
` त्ण्वमापतरवध्यते मत्त दन्तिनि ॥
यहना चै सतवान प्रमवायेऽपि दनय ।
वरप 'धराधपे मेरतकैषपि , नि्रार्यते ॥
= ४ , ८१ -प्मदाठ्त प्त नशि पक चरमे चिद्धिया कष्य सै चार्सोयेकी सशयः उखा 1 परन्तु उनके परह्रर वाते सें कडा हुमा, गन दने निश्चयं कर थक यन्दर के पास जा कदा फरि--भाप्र चद
च्छ
॥।
१८६ द्रान्त सगर प्रथम भाग \ । (० स
ध
एग श व ७९-प्रमत्तके प्रिना लोग पीक्ते नहा वि , एक नदी ऊँ तर पर प्ठक मन्धा अर पस लद्गडा टे हये, ये । एकर पथय नदी के समीप पर्टुचे भीर अन्धे से पू मि, “नदौ कितनी है १" अन्धे ने कदा-"“मोटी जाघ्र से|” पथि, जे कदा- "तुमने देवी ? कदा मँ तौ अन्धा ह, मै से देता जद्कडे से पृढा-“नदी क्रितनी रै? रगडा चोला (करते पथिक ने पू.का-“तुमने माई ?' इसने कदा~' म तो लङ्गडी ह, कैर मेका यह खुन पथिक सशय थएकिनठी क पारकैते जा °जानेनटी फितनी गहरी, कष्ट से कैसा यस्त, हो ? पथिक यह् विचारहो रदा था रि दतने मे एक पला पुष्प ज्ञा नदी कै समोर दहो रदता चा तथा उसकी आः भीर प दनि ये ओग कद वार उकः नदी मकार हुई थी जाया भौ वेडर नदी ममान रुणा ओौर उस पुष से जे। सशय में प, या कदा कि~“तुमभो मेरे पीडचेडर चदे आभो | सशय पुश्प्र उसके पीछे चक पडा ओर नदी कै। पार कर् गथ । इसी धकार जिनके चुद्धिरूप च्च दे मौर काम कमे, फे गक्तिरूप चैर है मौर माचरण केदार) नदीरूय वैदो कै! जिनः नेर्मायादहै उन्दीके पे मेष्य चच्ट सकतेदै आौर जिन्दने केवल खना ष्टो ह मौर युद्धिरूप जेन्रों ॐ यन्धे है उनी बतं को नरीं मान सक्ता, मौर न उन्हीं की वात कमान सकत र जिन्हे बुद्धिरूप चक्षुं से देखा तो है पर जो कर्म क रूर पो से लद्धडे खाचरण-शूल्य प्य श्र्टचासो दः । ` दसद अगर हम् दुनिया के छधारना या अच्छे आचरणों पर कन न्ते ट तो याचश्यस्ता है कि प्रथम हम सुधर भीर टम सपने बाचरणों को अच्छा यनद । ।
नदृ जनता नृणुते कति चि नान्ये विधव दते }
<४-अद्रार्तसेनास १५३
~~ -------------- , कलिपाटिनि मारत दुं स्व पिनष्टि स्थो मधित कथ'सत्यनपे ॥ ५ = ८०--मलमे सप्ताम पक पुरु फेनरस्वेटे ये) जय वह मस्मै खगा तो उसने धने चारे व्च फो वुन्ाप्दमरस्सोदौओीरयक पक वेशेसे य॑य पधक कटाकि नुम इमे सोडो, पर वह क्रिस सेन मको । फिर्पितानेकदा्नि तुम चारा मिरु कर् इसको तोटो । पर चह फिर भो नद्ररभकी फिर उखने कहा अय इस रस्सा को उथेद दाख जीर सकी पकप टरको सोडो। वर्ने जस्दहो द्रम् ग्स्सो के टुकड़े ढुकदे करदिये। तव पिताने प्ाफिदरप्नो ण्नततिनिका वुम्दर पर्पामें पानौ से नही चना स्ता परन्तु तय चुम हुन सा एष कटां याये छप्पर खा मेते दो न चद यडी वशी जल-वृष्टि से भी केवाता ह । धसी मकार ज्ञ तङ तुम धापस्मे मिञ र्दोगे तव तक कोई तुम्हा उ नौ कररता पर जदा चुम अलग ह्ुप वदां रस्सी की त कड टुडे कर दिये जाभोगे 1 किसी कवि ने कदादै-- भरपानामःप् न्त् सरदि काय्य॑नाधिका 1
तृेयण्समापेध्य ते मत्त दन्तिनि ॥
बहना चव पदाना समगायेऽपि दनय ।
, , दपं धूराचते मेर्तूिपपि नितायते ॥ 5
(र ,=१ -मद्व््तिस नाश्य - प्फ चार्द्रौ चिद्धिया कीस चार सोयेकी "इ परन्तु उनकषे परस्पर वाटते मेँ मगडा इभा, निश्चय कर एर यन्दुर् कै पास जा कदा क्रि--"्यप चछ
खीद्या उठा अत्त दने
ह
११८ टष्न्त-सायर--प्रथम अगं
५८६ --------~
स न चर हमारे खोये कीटो वोदे |' चन्दर ने का~" लुम करीं से नराज् ले आसो । जच विद्धिवा वराजुटे णाः नो चन्स्मयेदो सोया एटम़ तराज् ® पड पर रक गर्द लो श्यः दूर पडे पर र्खौ । परन्छ पस पले कौ लोध्वः चनिस्यत दूसरे पछ की खोदयेा के छन भारी थौ, शख काय जव बन्दर ने तयू उखा४तो भारी छोद्ये वाखा प्ठडा कते वक गगरा । चन्द्र उसमे एक दीका मार सा गया विहय ने कदा--ध्यद त् उवा कम्ता ट, खाता द्यो है चन्दर सै कटा पि--श्य् कोरफोख है । जय यन्द्रने फ ताञ् उठाई तो अच यट पर्डा जिस्म हीसलानटी छणाया था सीचादो गया । चस वन्द्रने फीरन ही उस्म भी प्क दीका समाया ! चिद्धियो ने कदा-"यदं फा करता है ।' वन्दने का निः-भ्यह तलवाना रै । अय पटेवातछा लड कि नीचा हो गया, तो चन्द्र पुन उसमे दौकला मार खा'गया। चिद्धिये जे का कित् यद चारः वारः क्या करता । न्द्र ने कदा--"यर ट्जोना है { अव ए-कपलडा तौ चिलक्ः साफ दो गया सीर दुसरे मे,फुख खोया स्ह गया'। वन्पुर नै अच ऋी चार चिनौ हो तराजू उडाये वह् शेष खोयाभी ख दिया । चिद्धियेः ने कदा भ्य धया ? 'वन्दर ने कट +-- य शुरसनादहै। ४ असल यारो समर के नि सवात सयका सभी सफ क
देती है, वहा दोना के दते नाशा ह जाति है + सदि आप कोभं के यहा जैसी पुरानी प्रथा थी किमव सं पञ्च नियत ॥ सौर यी सव न्याय चव्य करतेथे चैसे ही पञ्च नियत वः
अपने मगडे घर ॐ घर ही में निपट ` दिय -कसे, कभी भूः क्रम्य अदालनमें न जाओ! ति
॥
सर~-भेडिया धमान एक महास्मण के पास कु तदि के वर्तन ये। मदात्पा जव याहुरध्रमग कामिल ते सचा भिये वर्तनकहाकदे २ फिरेशे, इस सिये न्दे शरीः रताद । यद् सेव मदात्माने चरनन जगम फक स्वान पर गाड व्यि मौर उखे ऊपर एम कूरो योध गहै ये जिसमे चिन्ह वतास्ठे भौर रौद करः वे अपने परतन सलदेकिदतनैर गायके कुककेर्यो नै मदात्माके नमस्म करी वनति देखा । महात्मा ते वाटर श्रमणकोा चये गये मीर सांवा ने यद निश्चय कयः फर गाध सेने कोर दुर जायं वह फला फला जग्मे ष्क कूरो अवश्य यना भाय “ ससे घडी सिद्ध भ्रातर हती है । वल, गाच सेजयफेरकटी जत्ता ते बही जहां मि मात्मा सुरो वना गये ये, णक रूरी चवा देता । इस प्रकारथेडेही दिनो में वदां नमामङ्कूरी ही कूरो ष्टो गहं । कुच काठ के वा जय मदात्मा जो खोटे भौर गदभ वर्तन खोढमे के लिये उस जप मे गये त्तौ वदा देखते पवा ६ कि नमाम पुरी ष्ठी करी वनी दै । मदात्मा यदत्र रे शने भि . गनद्गतिक्रो लोको न सोक प्रारमायक । पण्य लाक्म्य मूत हनमेताञ्रमा 1 , अर्थं दधौक बड दी जताछुगनिक स्थाति न शोण ह (५ यया हैरलोक फंरीमृतना देसी भि हमारे वर्तन षौ रे डाके 1 सव पना जान पडे कि गैनसो करो के चीञे हमारे तंन दे। , स्ज-मृलेश्वुर णमह >-टेक्डेटीखीधे खद, श्वर धतः निय
टृष्टान्त-सप्यर- प्रथम भग ^.
॥
।॥
सुज्ञ पाड किय करते ये! उनङे मकान के पीचे एक धोद मकान था, अत. पर्डित जी जव दिन में पृतना -दिथः 1 सीर अपना संल वजात ते सथ हौ उनके मसान क पी नि धवो क चर था उखा मधा सू चरन पाणडव ९ संल के साय हौ निन्य वोदा ऊर्ता था। पर््टितजी नेमे नित्य अपने संख के स्य चोरति देख सेवा कियद क, प् जन्म का महारमा जीच ह इस कारण परिडनजी नै उस कानाम "सेश्वर रत छोडा था 1 पटक दिन अनायासं महः राज सशेश्वर का देवरूोक होः गया । जव परिडितओ न ख .दिन दोपदर की पूज्ञाकी ओर सदेश्वर सथन वोठेते करः धोवो से पू कि~"ाज मदात्मा सं खेश्वर् का गये पण्डितजी. के पता लगा कि संसेभ्वर का देवलोक दय यस्ठितजी ने चाचा कि स्मेर यष्दि हम से ङु ख नी हेः सव तो खाभो मदात्मा सखेश्वरः के क में वाल ही वनवा षः यस पर्ितजी अपनी भु" दादी सिर सव धुद्चा सनानि: चनिये की दूकान पर कुछ सौदा लेने पटु । वन्य ने ¶: भमह्योज, आज वाट दौखे बनाये हो ।ग पण्डितजी नउ दिया कि-""पक महात्मा संसेभ्वर ये, उनका स्वर्गलोक दीः तो हमने फा कि महात्माभो के शौक मे यदि ओर क : हो खरता तो चाल ष्टी यनवा उषे इस द्टिये वाल चन, है 1" यनिये ने कदा ' ले महाराज, किये ते मदाव्म) कै मे हम भी यार वनवा. डा १२ परितज्य ने कहा उम षयए वात दै २, रल खेठजी भो घु चै । दूसरे चाजार के खोगेः ने सेडजी से पू फि- सेख्लपे अग्ने सीमे चनयाये ?"" सेउजी मकरः ।कि~ "एकः महातपा संसै उन रा देवलोक ढौ यया नो हमने स्योना कि धगर मह् कान दम से .गरिर कु नही ठो सना ने राख यी २
५
4 | ध प ४ क शद । द 4 ,9 न । चणक । वान्नास्वार्खोने नेसे कहा कितो खायो दमे -सवन्योग भो मदात्मा कै मोक वाल उनवा खास ।' सेखजी नकहा- द्धै भच्छरी धान दह! अव तौ खव वाज्ञारकीं वनाद घुर, चैडी 1 तीसरे द्विन पटथ्नफे छोग बाजार रदे सेने शायै । उन्हामै चाजारयष्टे से पू कि-श्यिं भाद् माज लुम सयलोग वाल कैमै यनवव्ये दो चाजारवालो ग जवापर दिया शिक मदात्मा का, जिनकानमि ससेश्वर भा, दवलोऊदैा गाद, हम लोगे जै सोचा करि मात्माजी शोष्धमंहम रोगों से ओर फु नरी षो सना तौ ट सौ यनव्रा टाख।' पद्टनवाले ने कदा शि "गर दम छोगभी मदात्मानी कै शेः वाल चनवाडष्टनो प्या बुखार पानायनाल्टो ने क्ा--"ाद बाद मदाराज धुरा करि वडुत ही यना है १ चस उन स्यो ने जाकर भपनी पटड्न भरे सख्पर्करःदी ए किर स्या था प्रद्यन कौ पटटन सिर. घुखा चयो । चये दिनि जर कान सार्व कवायद लेने आये तो पटेरन फी यद् भराय दे पटय्न कै खगे से पूवर डम नोने क्य, श्रिया! क्ये पक्डम सर रोगे ने अपना > यछ बनद्रा दिया? स्मन डराव दिया सि-हुजुरः चदा प्ट महान्मा सेश्वर हते पे, चद मर गये, इख सिये ठम सोमे उननने रज मेँ काठ बनाये दै" क्तान सखाहयने पृ ,यच्छा, वद् मदाच की सदसा डा चौर कोन ठा { खोगेने का~ द्ज्र दम नदीं जानते द्म द्रेचाने चाजशयमे छन।। यप्ाक म पिडका यन कददा-शवेक, डम सोम ड़ चनक्क डम, जय दम उसे जानद् नदं किर पूय भा बनवाया चचा चत्वा, हम दुम्दारे खाय गाजर चलेगा 1› जय कान खाहव दार पटच ते7 वानार धे से कदा जि डम रोने न ज्ञे हम.री पट्टेन के कोने से काह वद सखिश्वरमदाटमा स्परे द मर कं रदा? यज्ञारे चे चद नूर,
1 व~
१६२ दरष्रन्त-सायर-- प्रथम साम
॥
क दभ से दस वनियेने कदा । कप्ान खण्टव उस चनिवि क पास पडे र उस से पू कि-दुंमने जे! चार चनवाया ह, ओर सव छोगेए से कदा दै, दुम जना दै कि सेश्वर महार यन ई? वनियेने कदा--ुजूर, दमने अभरुक पण्डितसे सुना है ।' कान वोला-'मादयेग डैमपूट, ` टुमने विना जाने यार क्ये नवाया भौर दुखं से ष्यं कहा ? निदान चमनं साथ उस पण्डित के पास पहुचे ओर पून पर म्म हा कि मटात्मा सदधेश्वर एक धोधी का गश्वाथा। कक्चान बड शस्ता हो योला-'आश्चयौ काटा, डम पक, टम च्छोग चिर उत्टहै।' अवतो स्तबके सः विलकुरु शर्भिन्दा हयो गवे) ,
भादये, अच ता यह मेडयाघसानी सेड 1 दम अय भौ देपते हे कि जदा शे मे पस किवाडी सुरी उस मे सव घुसत चले जते रहै, चाहे पाह दुखा उच्चा स्कार सौं न पटा 1
५ | 1 ध
थ-माज्िन का देवता ` ^"
प्पकचारष्पफन्यानमें कडा भासो मेला खग ह्भाधा मेरे का प्रच्य दमारो गयसंमेर ने पुच्छिस वभैरा भेज क बहुच उत्तम कर रकया था 1 क्हीमी चेरी चदरमाश्ी नहु पातौ थो । खान् पर पुलीसभेन मौज थे । सडको पर केष पाणवाना वेशाय मेरे के मदर नद्य करने पाता था, परन्तु एः माचिन जा मेले रे जन्दरहौ एक जगद् श्रपनी पूरा की दुका यक्ते थी, उसे सुवदकेा पेा जोर पालानाख्गाकिच सडक पर अपनी दुकान के पास ह्य पाष्ठाना किसने कणी यह चरि दख पुलिस कै सिपाही मादनः को प्रकडने दौड मारिनिने देखा कि सु पुलिस कै सिपाही पकरडनै भक्ति ¦ उसने र पक दारू पुरलो का ठे पते पारद पर - डाः
१
<५-सुभाई ऋ व्वमावं १६३
पिया सीर उसो तरपः अपने हाथ जोड क्र चै यई} जव पनस के क्िप्डी उसे पास पटे भौर उससे पूता कि दू यहां पवा करती वी ? उसमे कहा सि-प्यहा णक रे भ्ये त वता रहते हे नकी पूजा कसमै से द्नसे किख प्रकर का फट श्त, पुञ्ज, सैष, धन, दल, विद्या सम्पूर्णं मनेष्कामनये ये प्ते करतेदे।! यह सुन कर पुटिख ऊ सिपादिवे ने भी मादिति ३ एकमे चते ष ए ओर दरुवप कौ एकान से कृञ बने वा ङ्ख पैक चदा किखीने स्या, करिलीने कका, न्स रको माणौ । एस घ्रमार पुटिखवप्लो केव टेम मेके जीर ने, ओर भीरा के दं भौर रोगान ग्ज पि दमम मे बदा लोधी, चाप्ये वैसे गीर पला के देर करिये! ददशा दै दिन्दु वेषे फि दमत्य द्वया 2, सुलन्मण्न यह हमारादवताद। जव दर्ण्मे वडा भगडा भाते रज्ञा फे पास यह् न्याय पटा 1 राजा ने क~ ग्ट चख फर देसे, नमरः वह छ पत्थर वभर स्या ए थतोचह दिन्दु्ं फा दैवता रं ्मोर लभ्यो लम्बी कथर् स नोदे( ते मुसखमनिा को देव्ता ॥ रानषनद्ाना दुर्वा प्यके मोक पर पट्च जर नद~ दयाके उध्रस सदय ठे, तक्ष, स्नोडी हद्रानो ।* छते ने द्टाना शुर शत्य! 1 पते २ वदा ज्ञा कुछ भसदो मष्ट वा वद् निल भाया। ह देप सय पारमा गये स्मर दनान इन्कार जिया ~प" देवता नदी । ४
स्प--सुभाई् का स्वभाव पक साजञा म्दय के गाली देने फी च माद्ती। पर पर राज्ञा साय केक बड भासे सस्य [समा] कैद्रन बनाये गये नौर उनसे कटा सया च्वि-"्यजा साव । आय से
१६४ दरग्नन्त-सायर-प्रथ्यमाण ॥
4
------------- साप इस सभा कै श्रव्रान वनये जति हा, एत, चि क्रिम्यीक गाली न देना ।' सजा साहव ने कहानी स हम †क्सी "सार" का गाधी नीं दंगे? ५
1 1 ॥
न्६्-नीच कौ नीचता _ ,.' य खमावोदि यस्यान्ते म्व दुरतिक्रषः । ` ` श्वा यदि त्रिप्ते राना फिनाग्न सुपाम् ॥
एकवार ष्क चमार फे धनिक टैनेके कारण एक पट जीसे यहा तर दोस्तो हो गई कि दिन गन दोना हमेशामा हीणा करते ये। एकवार षक क्षत्र फे यहां से उन पड जो के वहा निमन््रण आया ! पदितजी उस मारयो : अपने साथ श्ष्री जी के यदा मे जन करन दे गवे ओीय्यदन चमलाया क्रि वह चमार रे, पर मौका पेखा भय किं सव, पले पेर भे! री जी करे आगन में चदय पटुचा सीर ४४२ पर विड दिया गया । यव इस कै पीके जिनने पैर धुल! भन्द्र जते ये, यद चमार जिस पुरुष क्रो अतति दे८ताथ। सरिता जाता था श्नि उख) यह् आदते पडो हई २ यदा तक खकिखता रहा कि खनरेख्ते २ ज्दवीन परप गया } जब लोगेन इसे' वहन ज्यादा खकिलते दला . छोग चोर-"“तुम कैसे चमार को तरद् संिखते जाते ह, यह शब्द खुन चमार पडत से चोका ~ पडितज् ई जगनिग तयतोखोगेाकीक्ञान टशा पिः यद् अखन चमर} ` क्ठिच्री जीने उस क पूरो खयर ङे वाह्र निङाखा।
` म्छ-नाति कभी नरी चिपती "`
, निस व्वमथ भियाजी महरण्न का सुस्तखमानेा से यु
, ८स्--दिह्यी मम्बोख १६.
५ श्छ थालो शित्राजी ने अवने सरदासे मीर सिवादियेा को यट द्म दिया कि "उदां सुखखमान देखो मार ढौ ॥ यह यद (बहुत ते सुल मे चन्टन दीया पाटा जनेडः भौ पटिर †स्मिथे। दक यार् पक मुसलमान शिवाजी ॐ साम पडा । | भिराजी मै पृ्वा--^तु कौन हं" सते कहा--्वरेदमन ।› शृ--पीन वरेदमन " वहा-- सीड् ।' गिवज ने पृत्ा-- कान गोड १, वट् चला --या जला मौदा मे मी सौर” शितौ ने कहा-अरे मर मार, यद् बर्मन नदी तुर्कदै।
~ दुवि हि चननिनिन्य तर मस्य १ बुद्धिमन् ।
. विपि ची प्रच्छन्नो यग्द पाद् गदभ इत ॥
॥ ७प्-ठनगन (तक्रस्तूफ).
दो खुस्छमाने खाहव कहीं जा रहे थे, सत स्डेशन पर
शक छे प्ठेफनारम पर नोने माहव गाडी साने कयै चष्ट लने सगे । सिस खमयं ष्ठेरफारम यरः गाडी आरईभौर नने प समय आया तौ एक साह्य नै कष्टा--'चलिये, माप सवारः
जिये।'दूखरे ने कदा-+चचिये चच, माप सगर हजिये ।›
हे ने कषहा--मज्गी वाह् सरमे घा माप संवार. उद्ये 1
सरे ने क्ा--"कियला, जाप सखवार हजिये ।› वख शतन मेँ
गड सीरी 2 चक पडी, ये द्रोने सादय किवला मंदी ग्द
ये किसी शायर ने धया द्य सच कषा है--
है पार ककटलुफं मे तठ फ सरासर ।
आरसेभे दहनो तकस्लुफ न क्रते ॥
(८९--दिलगी मखल ` ५ प्क सुतर जादिख सुखरूमान सयषक दक स्य
ए हन्त सागर-प्रथम भाग , ध
से मिलने गये ] मौर्वी साहव इन फे पर्टुचते दौ उदकः खडहो गगरे भौर कहा--चाखेकम सलाम, आस्ये ज्रिवहा जीर दनद मोदे पर विटा क इनके तथा भौर जो मौली सग मौखवौ सगव फे पाल चै धे उनके लिये पान छे धर् गये । इनने भं दूसरे मौकवियें ने मलोट .से इस मुतलकर जादि से कषा कि-"बभी जो मौलवी सादयने थाप सेका था कि "आघ्ये फिवला' आप इसके माने भी समै" इन्द ने कहा- दम खुर माने च्या जाने, मानि चाने आप जानते गो 1 भला, कग माने है £" उर्मि कदा कि-“किवला मनि वेरीचेष्द् ।' अवते। ज्येाही मौर्वी साद्व पान रकरः धर से नक, वस इस जुतलक जादि नं काफि मौठवौ साव, आपने आज तो छिव! कह्!, अगर दूरे रेज क्रिया कटी ते मरे र्ट के सिर फे दगा र किवख। तू.भौर. तेरी मा किविचिया यर तराय विकथा ।' मैर्टवी , साहव कडा भाद) भाप किमा कष्ज के माने कया संम १ किगरछाच्क्ज्ञके ममेते वडेदहै।' ~ यदह दशा देख भौरमेखतो हस रै दन्द न कहा- वस, यवर वान न चनाइने सुरू चाहे कु कियटा विव कट कर चट दिया ।
थे 1 इस जुलक्र जा.
+ तम अपरे दुस्वाजे देखू ॥
1 कद् रो, जनाव देखू गा ।' यद
५ 1
॥,
1 \ ८
९०-कृट भय ने देन्भनिन्दा ' ,
= < ५ ह य पक्गाचङ़णक् पला दसि र्ता था करि जिसके घर शानध णक सरस् ॐ ओर कट नं श्रा ¡ पकार अनायास ' ध सा माया कि उस्र गाव मे आग लग गई अयतो "पटा भपना मूलल छे धरस्े निक रास्ते स्ते नाचने खगा
५
॥ &२-पयखा दम्प १9
॥ "न्ध "~~~ ~~_--~----------~--~~---~ -----~ -~~ आर बोला क्रि-- "भज दरिहुर स्मै भानो, अन्न दलि कामे आभो ।' यह् गाता दभा चदन दगा ] रेस को ही मूसरचन्दे कहा सस्ते ह फि माय के भयस सामनी नडे) पाखनेकी दिक्षतसेभेजनहयीन करे श्वा यह नक्लमन्ध्ै कौ वात द? नत प्रप्नोति निप ग णोाणेपणमनतप्षि ।
` , ११-विद्या का निन्दा
. पक सन्ती एक पण्डितजी फे द्र पर भिक्षा मापने प्थै। परिडित जी नै कहा-- “सदो सन्तज्ी, इछ पठे लिसे 7" सन्त जी ने कटः-- रे ब्य परनव्य तदपि मर्त्य ¦ पठितन्यं तदपि मर्त्य, फिर दन्त कयश्टेःने पि कव्यं ? १ परटडितिजी ने कहा क्रि यदि यदौ माना जाय तो "लानन्प द्पि मेध्यं न सातव्य तदपि मर्तव्य , फेर अज भसाभसेनि १, कतंव्य ” सन्तेजी फोधित दी शर चल र्वि 1
१२--विद्या-दम्म वियादेम्प क्तशभ्यायी षनदम्भ दिनतयम् ।
षक सादय केव दो शब्दे सौख आये ये, एर "दे दुसरा नन्मे गोयम्" वस्र अन नो इनसे जे कोर चोर्वा था ये अपम शद दो गन्द का धस्तेमा किया कर्ते थे भर न. मं शन्हो दौ शब्दौ की वदौकन मौटाना साल्व वन स ध पफ दविन पका अरव द रदनेधामे मीखानः सप्टव का ऊंट गया था योर घट् भपना ऊद ट"ढते टृ'ते इन डप य भौराना कै गाव दे जा निले रपर भयव के. व
स्ये ने इन दुखर्जौ पास मौलाना से पृत् "= ` ~
॥
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४१८ टृ्रान्त-सायर-द्रथधम म ^~ :
शाद = मेसा ऊंट देषा है १" इन्दा का~ दा दैवाद ग्व कै मौ्यानाने वद्य छुना स्न? = किधर गगा इन्दने कह ~नमे गेयम् = न वाङगा। तवःअरद्य मीन्ाना ने क्रहा-*ज्नय तृन खा हती पना नहीं दतवेगा 14 अरव फे मौर्या को वडा गुस्ता भा गया कि देपाद भ टना 8, नहीं च वाञगा । चस गुरते मे आ भरव के मलान ने दुखत्नी मौदधना कौ सूय पीदा भीर यद् वह ठ्न रा रानि भी रटते जाने "वन नमे गेयम् चये नमे गेयम् = ह, नदीं वनावेगे, देखा दै नौ चना्ेगे ।' त भस्यके म न जान {कया कि यह पोही पल जानता है 1 |
९३-एक भर्यय भोर उतर पग | न ॥ भावज कौ वाचा ^
पर नाय एतय क्रिमो च्म सहते ये दैवगतिः जेठ भाई का रेवलोक हुजा । न ङी भावज अयत् उन, भईकी सो, जिलजाको देवलोक भाथा, पोरःयिकाथ) इन्देन कष्टा ष्टम भा की अन्तये वैत रीतिसे नरे | चर आवय ने गरुडपुराण सुन र्वो थी. उसने करदा र
॥ +
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॥1
॥ [ उनः ,
4 1 ¢
द-प चायं तीर उष की पौराणिक भावज चार्ता १६६
त भङ्ग प्माणवाछे शरीर भे चदुखार माजी केके "दायोर्म तनौ मेप्टी पूछ फते पकडी जायगी ?
पन" नव दृशगप्वाद्वि कै वाद् एकादश कामिनि थायाते पवने सम्पूर्य वल्य अङ्ग", ऊव, धोनो, साक! गजर ‰\, पलद्ग वर्तन, हाथी घोडा सव ऊठ सदापाध् को देम रो कर पिया । भाने भपनी भावज्ञ से कहा सि~"सय अङ्गु (माण जीत का शारीर गरुणपुराण मे लिया तो रसे विष् ` आपने यह् माद्र तीच हाथ की चारपाई करो दी ? इस पर वद ' र प्रमाण कहा छो > फिरेया 2 भौर.यट पव टाथ रसा यदा चमो दया ? इसमे तो अनुष परमाण शरीर ठय चायम अर् लिख नी नटी सकेगा । जिस दिन जद यड. भोढेवर पदे वही ददप र्मा भौर दते दडा फर उसे पाथ सन चकेया ? फट कितने दान पथि जो दश पट उदा उ स्क प्तीर फिर सिर ली गेषं मथ पितना हषा, पिल ठेस गन्ञ फा सम्पः( यसे गामे ? भीर्पैर्मा छेष्टेखेष्टे भि पतिर यद् सेरद् अंगु च्चा लूना वह कीले पदनि? क पा मेभ पारीर मे जुति के पञ्ज ष्य में पडे र्हगे ।'
{ , भाषजें नै कद्ा-"साई, एमसे वस नं फट एनं करने टो |,
„ , पुन भर मे अपनौ.मावज से टा कि-- यै रथ, पार्था, धाड यर्तुन, यत्र जकर मो तनज जपते मदग्पात्र ची फस, ये वै सवय माई जी फो पहु ठी परन्तु रमार मा जी जक भौ खनसे जाधव भरोम भ इन सदम्यर मए्प्पाद -सीषो धोद दय विदानो सिस उन्हे शफीम गौ न भव्यं प्मोिविया नकी के उवद यहः तकन् ने उठा ददानया ।'आानतने बदा वहटनाणः 8] ण्खने भाधवन्य सप्तम संयाकरमदापादय से कदर्य)
द १७२ दरटन्तःसागर-- प्रथम भाग - „५ नि
इसे खाश्ये रमो कि इखके धिना मैरे पति कै वडा कष्ट हग, नही तो मैते जञ कु दिया है सब फेर ठगी ।' 'पुन भरने कटा-भैषज्ाई, तुम तो भाई जी को वडुत प्यारी थी, यहां तक „ कितुम षक क्षण मी भाईजी से अखादिदा हो जाती थौ तो भआई्जोकी वडा कष्ट दोता था, द्सलिपपतुमयी सहापात्रफे साथ जायो, जिसमें उन्द खौ भी मिल जाय, फवोकिं सरी के विना भारईजी कौ वडा होगा” । 19 वसं, भावज क्प समभ मे यदे सव आदस्बर आगया भार उसने मदापच से खर वापिख लिया । क
१४--एक घ्रां चू
एक मर्ययं यह एक पौराणिक महाशय के चरव्याह् कर गई ती पौराणित महाशय कै यहा पौराणिक प्रथा के अचुसर् (जैसे कि अव भी विय मे धराय भरव्येक स्यानं पर परचछन हानी है) परखन हानी थी, जन. उस बह की साख सुद को , सिध के बुद्ावा,दे अपे वरे मौर चह की गोजर क्षम्पृणं चर्यो फे सदि गाति चजानि ह्ये वेड वह कै रेकर ैवौके मन्दिरमे पटच 1 परन्तु देवी का मन्दिर धिचिच्च वना. दुभा श्रा, यानौ द्रैवी के मन्दिर के आगे दो पत्थर की विद्िये तस्वीर अव्यन्त ही शूर वनी हई थीं । देका माम होता थाकिमननं देने ापस मेँ ख्डरहीहै। उससे ङुष्ी दूर ल्द पतवर फ कुन्त की तस्वीर उनसे भी अनेाखी घनी थी । ओर वेसा जान पडता था किमालि कुत्ते भी काटने का दौड उञ्ते है 1 उससे ङु दी पी देव पत्थर के गोरा फी तसकीरं खव से नियद्धी शौर वडगी ही मनोदस्वनी इथं! शेर पूछ ऊपरको उडाये दये इख भाति गडैमे मानाद्टुट कर आद्भियों को मभौ भक्षण किये रेते ष । उस मन्दिर के
॥ । ५ ~ ६४-एफ़ भां य १७१
बहर विधिये कौ तसवीरेः के पाख ज्यों हम यद सायं बह पष्ट्नौ तो अपने पनि का इुवद्धा जिसमे कि इसकी याट वही थो परकुड कर यी हो ग् ओर भयभीत होकर भवनी सस से वोलो सिहं ह अम्मा, पिद्छियां खा जांयगौ ।› यद् पुन सास ने उत्तर दिया कि-- "बह त् कैसा खडकपन करती ह पस्यर कौ विया कही कारतो हे? बह चुपदौ कु भागे वदे त्योही उसे दो कुन्ता फी तसयीरं नजर आई । चस वह् फिर गाड जुरे डु गे को पकड करखडो हो गई मीर पहले से भो चिदोप डरकर सास से बोी- यरी अम्म।, कुरते "फाड़ सायगे ।' सास जने कहा वह, षया तूपगछी दहै, भला कीं पत्थर वै कुन्ते भो काटा करते है? यह खु खुपकी दयो कु मारे वदी किं छु दो दुर पर उत्ते दो शेर कौ तस पौरे इटि पड, यत वषट पुन अपने पच्च का गाखवाला डुग पकड करः खड हो डर फर जोर ओर रोनि गौ मीर अपनी खास से कदा कि-प्भरी शम्भ, ये शेरमुे खा जायगे 1" दस प्रसास ने घह'को डाटा भीर का सि~ त् वड़ो पाद भेदोषेर कद् चुकी .कि पत्र की तसयोरे है, यद काट नर्टी सतो मौरनये शेर खा सकते ह ॥ सास यमे कफर दते हेआति चद जव मन्दिर के भीतर देपिथै कै पस पटी नो उसकी सास ने देविये की पूतना कर रयन वेड खीर य ने वादा किर देविये ॐ वैरे निरी, यदी तुद वेदा देगी। यद खन कर मार्यं चह से य रदा गया जीर यद् भपनी सास सेबी किम जव क्वि पत्थर कौ विया ने मुके चिली चन बार नही फाटा, भौर परथर कै फुर ने फूसे चन फर् नदं काटा भरन पत्थर को शेय ने शेर द्यी यन कर पाया तो यह भयर की देवी सुरे कैसे वेया देगी रत हम शने ष्ठा गिरे १ एक है.
१३५२ दश्ान्त-सासर--प्थम भोय
लटिर्ली पिलिसखी चेरे सिय मि प्ली से मपल केसा दिया॥
ि = = 8 । ९५-प्रलछामियां भक्गत् _ `: पक वारण्क पण्डित जी प मुसकूमान साव की अपनी फथा चार्ता सुना कर उससे कोके किः-श्यलो यार, तुमं दम यैङ्कर्ट बत तमाशा दिखा खावें ।' सुसलमान सग्टव ने का~ "यलिये ।› तव तो पण्डितजी ने मुखलमान सादय से कटा "मचे अपनी मख" ओर पण्डिदजी भी आंख मीच शु जपते ष्टे किथोडो दी दरम पण्डितजो सादये मये उस असल मान भदै > वैङ्ण्ठ पहुचे 1 ये ठोनें वेङ्ख्ठ मे पक स्थान परर सदये किद्ग देर के चाद वा सं पक सवारी ,करेड़ा आदमियें ऊ सोथ वड धूम धामसे निररो पक पुय सिंटा- सन पर डैठा हुभष्या, ऊषर वरे हिल रही धौ, यजे -गंले। धा घटिया आदि स्थ यजते यले जाते धे । मुखम खादय ने कहा--भ्यद् फमा ट !' ये कीन "खादव गये ? पंडित ज्म ने कहा--"यदह रागचन्द्र जो महाराज हे ।' पुन" , थोडी दी देर कै वाद् पप रखवारी निकली । इसके साथ भो रासं खाद्मी चेन्जौर करई आदमी चोचे तखन पर् सेहरा डि सदुथ्रा पदिरे प वै घे, उपर खै च॑वरे रिक सदय थीं 1 यद् देख सुसरुमान साम मे पूडा--"पण्डितजी, यह कन टै" पण्डिती > कदा--भ्यद् आपमे हजरत मोहम्मद् साह्य जीय गाजीमियां दज्ञरत सखा व्रा 1"; पुम थोद्ी ही दैरके वाद फक अर सधरारो निकी यीर इसके साथ भी हज्ञारि खरम ये । यर भौ पक सरन् पर सवार, चंवर हिटती इद न्चद्धे गय । सुखयमान सदव ने कद्य-"पप्डितजो, ये स्ठीत दै
- ६६-तदयपदार्थ खी पुडिया १७३
' प्रण्डितसी ने काहा--'यद् दजगतं दसा मसीद र॥' शश्वते | यादपः युङडा सा मनुष्य दरा स्ये हृष प्फ मरी हः , नुवर्छघुंडिया परख वार मङेला निरखा । जन यद् भी निकल गया तौ सुखलमगन साहब ने पूगर--'पण्डितजी खाहव, यह मौन पे? पण्डितजी ने उन्तर दिया-- ह्वा मिया ये ।' सुमल- गात खादय मै फा -"यट् कैसा कि रामचन्द्र ॐ खाथ इतने चादमी शीर जरत मोदम्मद स्वं के खाथ द्रतने भौर हजरत ध्मामसोहकेसा रतने शीर महामिर्या अक्षञे ” पण्डितजी ते उर दविया--प्मा खान, दुनिया सर्म परस्त हो गर्दै ' दुनिया के जितने भोदमी थे वे सव उनके सप्थ हो गये, दख , सिम जह्ामिगा अक्रेटे ग्द मये 1" र , "मदम परस्तो के कारण पस्मेभ्वर की इवादत वा प्रार्थना
या परुम्बर फो सवे ने खुला दिया । भ
ति ॥
~ १
{ ५५. > . ` , ` १६--तचपदा की पुडिया प्क पाप्डिन १६ वषं काशी चै अध्ययन कस्ते र्दे । पक , द्विन पण्डितजी पक यै्ययाज धाम पष्ट जर इख दर स्ह तो चैडे छेडे षया टेखते से किः चैययाज ऊ पस जिवन नगो नाति है, वैयसाज श्रयम् सभी को दाय दिया कर्ते र पण्डित जी च सोचा कि जगरः स सार दौः नस्य पदः सौ यदी चु्धाव है 1 वसत पण्डित जी वैथयाज से दौ तीन \' , ज्ाच कोई सनाय का कौर अस्डी केतेख का" कोई जमाल , जणे का सीख अपने घर कौ चते मोये । ऽनके गाव न मति ` टी ग्रद दला मच गया कि मुक पर्षत् शद चप का्चीमें पट परर सौदा द भीर दधर् पर्डितजी ने भी अमलो सैयद फट् द्विया कि दम णठ देसी तस्य पदाय की पुडिया सीस जये
१ ५
१७६ द्रएन्त सागर प्रथम भाग
गह् सोच शच्च के अफसयाने प अपना जाद्ूल दम राजा की यह न{ कवायद देखने का बेजा । जाने जाकर देषा कि सयेने जलाय ॐ स्वादौ ओर साका द्वा रटैहै। जाखसने जाकर जपने दर्म ज्याही यट च्रत्तान्त कद्र व्योही उस सेना नै चदकर इसका विजय िय(। ` -
सच है, अन्ध विश्वास से नाण हेता है! हमारे यदा भी, सोमनाथ पटन के विद्रेधिये ने तत्पदार्थं छी पुडियाभेषही निश्चय से तेष्डा! किसी कवचिने सच कए रै-
न मूत पूर्वन कदापि च्छा ने श्रयते हेमम्यी कुरा । तथा ऽपितृप्णा रधुनदनन्य विनायशले विपरीत बद्र ॥ `
1 ॥
५--पर्द्रिसस ददशा ` , `, प्क ब्राद्यण् अपने घर में तीन भाई परे । उनमें लेटा. खच पदा छिखा था, इसे च्वि कयेहरी ऊा काम कियाक्रना था, मौर दौ भाई कक पटे सिसे नये इससे ये उरण्तवकारीका काम किथाकस्तेये। पकद्िन इन प्ेग्वं दौर्नेर मद्रयेनेपरस्प्ग सराह की 'फि-- भईरूजी चडे चाखाक है, मपतेादिनमभर कचेदरो का क्राम कस्ते, नाया में रहते हे ओर हम से वुमसे खेत काकामकेत्ते हैः । "गवव से हम चुम कचेहरी चख कटर अर भार सहर से कलमे प्क चुम दय जानने जनो । जब सप्यकार फायदे मूर जदुकसे सायै नौरव्रडान् चचेटरी से यग्यातेादधोरनें नेवड़ मादस कदा-नादईमणष्टय व्य आप दरुखे जाय नौर क्छसे दमम से एक कचेहसौ जायने \ यडे भाई ने वहत कुछ समक्रग्या शोर कष्ठ ` फि--"तुम पक सन्तर पटे नष, क्चेटय. जाकर च्या करोगे £ इन्हे काट --. षुः) हम्मेसेक्छमे एक कनेरी जायया ।' "दद भन
॥
६५--पदि्दास्य सै दुरणा १७४
------~----~-----------
५
नवह समक्नाया परये टोनें द्रे दिन.दवन के गये ! जच गह माते वैल संयेवेतेनो वट ववाया चख तर्छ चलनि सम गया ] प्व दन दने में से म्लान {जज भवने षड भाध्कीपोनाङ परिनि फयेदरो पहला । वहा चाद्शाद सुस मान था मोर उस समय वादशा सण्दव् चाल वनवा र्टैथे। पदमहं यष्दधादमे( देय मय विसि, करर्दसखने खगा ।
ससो यदान्दगो॥ घौर वादशा
णाप कयो ते ?" ,इलने कटा
-बाणाहमे पने अष्दभिरये वे वादा--'यट फोन शग
नै उससे पृा-- ठम
क-म वम्दासा कर्टीट।
सालिरदेस यट खधाल दभा ति अगर आपका कोर सिर फार डाल दे-पया पकड के उठा, रसो कि कपे चोरी चेटी त हेदी नक्षे। वादशेष्टने यद् गु्नाखी देख उसे ध नमय जेठ मेज द्विया नीर कदा शसन सुकुमा खरे दिन क्रमा पस्तु दुरे पिन उस मृं काखद्य भु 1 सुय यद् पहता तो वादश ने पूठा-"वुम कौन हे इने
कट (--टुजूर मं उसके भ
ह जिसके आपने कल क्ट
र्या दह) नदते चदशा न्न कटा-- “व्या जी ठम्दासाभार
चदरारी वेदम, यै कल ्टनामत् यनगार्दाथाकि दवन मे
विसि नद ल्नियिष्सा
उचिते चेदीक्तेः माप छदे हा मरी, पया पकडकं ड
५
यद् सुन यद दूखरः मप वषा
, {निर्म यानि नदीतः मुर चेष्ट गाह ने इ येय के सौ उखोके स्तनी नीसरे दिन उन दीनम् कचेद्र में उपया कस्तरा या पटच
सुम्ह्न नाद् आवा भौर पननाप्पक अ हिर रसने रषा हम उस तुरा <रपूता किवम ्थेंद्ते१ उसने जवाय
==
~ 1१७८ दृष्टान्त सागर-म्रथम भाग
करके भौर दात चीत करके मौका पा सोटा क्ि-ुजूर आपके यहा हमारे दी दो वेल कदं, जिनसे द्रौ टट बन्दर । याद्शाह् ने कषा सि--माज, क्या आसौ पागल गवै केसी वाते कर्तेद र्क्टीदोवैलोंसे दो हठ बन्द हुभा करते ई १" इन्देने कदा--"हुजुर, चह श्री क्रिस्म ॐ यैट् द । तय तो इन्हेने उन्छी मूर्खता का सारा समाचार वणन क्रिया किद्रल इस तरह उन दोनें मूर्बोने सुफे दल ज्ातने का मेजा आर उन दोना ने आपकी चिदमत भै आकर यह गुर्तो क । चादशाह ने उन्दै मखं जान ड द्विया। > मुरख का मुख बम्ब दै, निरूमत बचन श्रग । ताकी श्रौपधि मोन है, विप नहिं व्यापतं श्र॑ग ॥
८६--पहुत चाल्लाकौ से सवस नाश ''
पक स्यान से चार् मदमी बाहर व्यापारके लिये निकटे!
ङछ दिन बाहर रद कर चारों ने अच्छा चनेपाजंन किया । जिस समयवे चारो घरक ङौटेतो मार्गमे पटक सथान पर
घे रातमें ठहर गये। अव लिसः सरमय . भोजन भाजन कीं फिरते चति की यदसम्मनि पडीकिदो भद्मी जाकर
¡ मेज्ञन ठे आवं । अत उन्म सेदो मादमी माजन लेने गये
* 1 यौर दो स्यान पर असवम्ब ताक्ने में रटे । परन्तु अव वहा यह् दक्षा दुईक्रिजेः दो मादमी सजन, छने गये उन्देमे'तो
यदह सम्म्रति को फि--्वार देखा माजन छे चलो कि जिस्म उस भजन केष सण्कर वे दोनें मादमौ मर जाय भौर उनका , छव्यदम तुम आघ्रा याध चार खं!" यहु सोच चिपक डट्
ङे खयि + 1 ।: "ने यह् सम्मति की कि--""> त्यो जोजन 1 | प्वनग्कोजानकते मारदौो - ५ श 1 ¶ कः ॥॥
4 ॥
। ६६-अभ्यास १७६ न अ दोर्नोक्ाद्रव्य हम तुम दोनों वाट छ ।' निदान उन दोनो के - भरततिष्टी श्न स्थानिक दनी मै उन्हे तल््रार से मार दिया मौर उसकी द्रष्य ॐ चखने छी तैयारी की । जव चलने खगे तो सोना कि.यार यह भोऽन जो वे दोनो छाये धे र्मा है, इस लिये सां पथम भोजन कर रं फिर चे । परन्तु भोजनमें तो चरा चिष कै छड्ह ये 1 स्यो उन दोना बे रुडद्भ् साये क्ति ह्न देर कै चाद द्रौनै सो गये। * भव जाप सोचे फि चारा चे्या परिणाम निकला?
4
१९-- अभ्याम्
एक गदैरियि कै पाख दौ वडे शिकारी छूतते धे । गडरिया रोज उनः दो चार क्पे दौडाता था भौर साने को उन्हे मण्धारण हौ वेकड की सेस मीर मदा दिया सरताथा। प्फ़ साय बहादुर फे प्रास भीदोकुत्तेथे जिनके किस्य पहार सेज किया मगा मा सिया चरते ये भौर उनकी यड सजावट फे साथ रक्वा करते थे 1 प्म दनि गडेरिये कै, शतां प्रशसा घुनकरश्िये चदे शिकारी ई, सादये गडेरियि,को बुला कर कह्^-शि कार सन्ने मे टम अपने कुट दमरेकद्रो कै साठ छोडोगे ? गडेास्थेने का हां मौर अने चेका खाद्य वदादुर केसाथ छदे । गदेरियि केष मावे वहादुर से कत्ता से आने निकट गये । यद दस्त साहय वहू वहे गस्माथे मीर गदेरिये से वोदे ~ वख गडेसिया, टम भवने कटा को श्रवा विला है ८ गडेसियि ने जवाव दिया कि बेड की सेरी सौर महा » सादय वदादृरनै जाच कर ष दन्ा तो गदेस्ि वास्लधिकः मे वेभड कणे चेदधो भौर महा खखावा था साष्टव बदादुरने गदेस्थिसे का फि--
उम अपने दुद दमय टदे 1, गडेस्थि ने का~ टम अपने कुत्ते
„ 5
१८९ द्र्टान्त सागर-प्रथम भाग श ४
हजूर रो रमी नही दं सकते ।' तथ सहव वदुर नै कहा "यच्छा" धगरः डम डोनों इध नदे देखा रो फक सुद्धा हमर, के स्ट वडल डो 1" गडेरिये ने एर कुत्ता वद्लदिय। |, सहव का स्यार था किं यह कुता जव गडेप्यि ऊ यदा केनर वेड की सेरी आओौर महा पाना है, त्य तो एतना शि. कारी & ओर जव रोज कचिया पाथेगा तो वडा शिक्रारी दी जायगा । वस, साव वहादुर कुत्ते के के जाकर कृलिप। खिले खे, छेकिन कुत्ता साहव वहण्ठुर के यदद जंजीर वेधा रहना था ओर गंडेरिया साद्व बहादुर के कुते को अपने कर्नौ फे साथ रसद चार कोस दौडाना योर शिकार तोन शिरग्पलाना रहा । कुक थरसे के चाद साद्व वदुर गरेष्रयै से कटा सि--“जव द्म हमरे कष्टो केसा भने दुदर >डा।' गदेग्यिने फुतेक्रडेते गशेरिथेके दते फिर अगे निन गये! साहब फिर भी बडे शरमिन्दा द्ये गसि के! कुछ देर उसका दूस कृत्ता नी दन्द नैष ल्ियः.भौर दोन कुन्ता के खूब किया वगेगा ण्ठा तयार 0िया । केत्सिनि गद्धेरिप्रा साव कै प्रत्ता का ठे रोज दौीडाना वीर निहार क्रे वचना सिखाता रहा । उक द्विम मै साव सदेग्यि का बुखा र कटा कि-- यच्छा टम मय^ पते खुदा के हमर कु के साठ सष्ठ । परन्तु ।परर भो गधरे "न उपेते गपने कुन्त छे.टे, ते रसङे कृत्तं आगे निर द गय । सखन्व र न ॥ ८ ` अस्राम मदु नद ठाक्रऽस्मिन्न्तिप्नाधनम् ) अतः स्त एक कतेय्य मवद साधु वररमना ॥ -
\ १००--पथा गजा तथ पन -,'
णरा यदाष्टम र ग्पकप्डिः कर्दमे पधार
फ़
| ॥ १००--था राज्ञा तथ्राप्रज १८४ (----------~~-----------------~ ~ ¢ 'राजाने पडितिजो से पका कि-- "महाराज, दस समय रमर पक धोद भीर गाय दत्ते गभिंणी ह, यप वतार्वे कि दनि ाबययगी {पंडित ने उत्तर दिया सि--"महाराज, गम्य श्छष्ठा्मार घोडढी यछेडा व्यश्येमौ । पडित उनके व्याने के समय तक राजाके ष्टी या ठरे रहे । जिल सप्यवे दैन पयां ता राजा फै मर्वथा ने वञ्डि कोटा दर माके नीचे मौर बडे के उदा कर घडी ऊ नीचे कर द्विय शौर रा साह्य कै वचर दौ कि~महाराज, आपी गाय वछेडा गरी वडा ध्यायो है, याचल चरदेख स राजानं सकर दषवा ता गाय के नीचे वेड ओर चे्डी ॐ नीने ष्ठेडा धा! राजा ने कहा-- परिढनसी आप ता कदते ये भि.गाय यच्डा उर ये,ड वदेहा व्यग्येगी किन्तु यहाते भलया ष्टमा! यत अव आपका कीटो भी नदी दी जाय गी नौर आपव हुप्ररे सज्य सै "निर जाये 1 पारुडतसी चा कि आभिरः ते अव दपर गज्यसेजातेहयीर लानो हमारे कपड़े वहत यैक दा, गये रै, उन ने धुटारे। अतं उन ने जपने कपद्धे धोवौ क यर कते कौ दा । धोयी कर व्नितक कडा हौ देने न आया । जय पडितजी उस धौवी यषा अपने कपडे भागने गयै नो उसने व दहष्- मटःर पै कपदेतोमै नदी द चोन गयाथासो पानीमें आग लगने जल गये ।' यट सुन पडत मे राजा के यदा फरियाद् की । रज्रानेधोतीको युका कर क्ा--शव्वोरे, वृ. पडती जः कपडेषपों नहीं देता धोयी ने कटा मसग्काय, मै रड्ति वः कपडे गदी मं धोने ॐ गया ध! सो नद के पानो में मग लने कारण कथं जल गये ।› साजा ने -रटा-“न्येरे, कीं पान भी माग ख्ग्ती है £ नव'दो धोयी ने कदा
\ क
1
1
१८य् दन्न सामर--ग्रथम भाग ८
द्यए्वन्या जायते ब्रन्द्या काप्रथेतु तुरणमा 1 - ना जायते बन्दिः यथा गजा तथा प्रजा ॥ ^ "महाराज, अगर घ्रोडी वच्डाभ्यालकती दै गीरगै यजेह ष्या सकती द ते नदी में मी माय लग सती है|“ यस, राजा ने समक्त कर परिडत ॐ प्रति्ठपूवंक विद पिया सौर चयी ने उन फे कपटे भो देदिये।
---------~ ध ध ५ } ्
१०९-प्रशामं निराणा- ` `
पर पुरुप सन के चरौ को वडा सेदावना- भीरः उनके युष्म छा सुचण-कान्ति देख इस भ्रयेण्जन से उन सी सेवा
लगा क्रि जवये चक्ष इते सृ वकषूरन ह" मीर इनके पुष्वो की
यान्ति सुवर्ण के समान दै ता जाने इनके फल कैसे हैगे !
पर्तु बह जव सन के वृद के फल पुष हुये तो हयः चरने
पर चे द्ुननुषुनाने च्छो 1 यद देख उस पुरुप ने का-- 1
= १५
छमणे सथ पुष्प फे रं भावति! ' , ~ -
1
„. आशया सेवते हृत्त पथाद् छनहुनायते ॥ ',- ,
+ 9 +
` १०२्-बुद्धि प्नौर माम्य. ~;
प्क वार बुद्धि सौर भाग्य में कगडा हुता! घ्ुद्धि करती, शीमैचडो मीर मण्य दह यः गरँचद्ा। ब्ुद्धिने नव्यसः कऋष्टाकि-ध्यदितर् वडोदै ते यट गडरिया जे।.वत्रमे मेः न्य रद है, इसे विनामेग सदायनाके तृ वादशद वनादे तोर मान्छगीकित् बडौ दै ।' यदं सुन भाग्य ने उको वादशा उन्न सा परयत भ्रारस्म किया! मल्यने णर वदू खटा का जडा जिस्य खासा रुपये के जयादि जडे हुये ये खार्यः
गटस्यिके भगे रख दिय! गडरिया उस समे पिन करकि्ये
१०२- वुद्धि धीर माम्य १८३
चा | किर मन्यने पक सद्र नो वदा पटया दिया । सादर उन गदाउर्मो फो देख चक्षिन एतो गया भौर नस्थि बोला कि "तुम पदा का जारा चेष २" गडस्यि ते
| दद चमे 1" सौ ागरने फा" टाम लोचने ? गदिने कदा--भनीर दाम श्वा चना सु सेल सेरी कनेक रिप गावे जाना पडा ह अगर्तुमदो मन भुने ने एत प्रदाडै दे जादे की कीमत दे दती ग ~नेचयाफर {ऋादधपी लिया करसगा्तीरर्मा यजने न्मसे छदः नाङा।' यभिप्राय यद् है न्ति ष्ल गृव॒द्धि गहर्ि मै पी शमय खदा जिले णऊ पकलीरालापो सपयेज्ञाथादो मने शने चनम वेन उाली । यदद्ेव उर भाग्य ने गौर वल दिया, उस सीदागर श्रो एम नादृश्ादक् दर्वार में पटा दिया भिम समय वक्ष सीदरागर नै पडा यष्टश्वाद के नानेरकसी भादगाष देस खर चकित हो गया सौर उसने सीदागर से ग फि--“^तुमने यद् खदाउः स्ता जाड करा ये चिया ? माटागरने जाव दिया कि" णम वादशा मेख मिनद
नै ये खाऊ सुमे दी ह ।* यादसन्द्न पृञा--क्यारउस रदेणाह के पाख देखी मौर साड है 1" सदागर ने उत्तर दिया भि शा ट 1" यादयाद ने पूका--“क्या उस वादशा को ल्डकाभी ह्र? स्मीदागरमे कदा“ हा उसके खडा है 1* यह् सुन करःचादरश्राद ने कटा“ "जनाव मेरी कडकौ
कौ पगार उस वाद्शाद् के लडके से करा ठो 1" यह् सव बति भाग्य ऊेवलसेष्टं किन्तु सौदागर फो वादाद् कौ पिट) तान सुन कर बडा साश्चर्यं हना, षयेरंकि उसे छात था करि ग्डाऊं का ज्ञातो मैने गडस्थि सेख्या दैनकीई ४९
, न त्रादगाद् का डका । परन्तु इख मठ चात घो यज भश जाने से उसने सोचा फिं अथर शस समय म
१
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4 ८ "1 थय दन्त खार--पथमभेगर ____ । दन्त खागर प्रथम भाग |
ख.खका मेद् खोलता हतो बादशाह नं मणम स्या दण्डदर गा) वह साल कर उससे, चिचरर शिया कि जिन्त, तण्ड] सक्ष चादशाद् फे णर से निरु चना चाहिये । गत उस य.दशाह से कहा {क~ यै मापी क्डकी की सगर् कणे के लिप जाता द्र ।' यह कह् जिस ओर से' वह् धाय[ धा दसी सर फी पुन. स्बानादुगा1 जव रह् उस खान पर पहा अदां उसने गडरिथे कै देषाथा तोषा देखत कि व गडरिया उससे चिशेष सव्य का खडा का जाड पंहिन् रहा है सोदागर यद देख हैरान हो गया । उसने; सोचा कि यद को सिद्ध पुरप है जिसको इस प्रकार की वस्तुं कस्नसे भ्रप्न दो जानीदहै। उसे सोचा कि यहा, ठहर कर इस ए1 ह मालूम कर ऊेना चाहिये ¡ यद सो व कर उसमे वंदा उरे दिये । उसके पास ताथा लदा टमो था, उसे उत्तार कर उसनं शृक्षकेनीचे प्क जोर रल दिया। जव दोपदर हज तो गडरिया धूप का मारा उस गश्च के नीचे आया जहा तापे कै देरपडे्टप भे वह् उलद्ठेर्के सहारे अगनासिर खगाकरः सो गथा उच क्ति तस्मिया लगाने से भाग्य ने उस ताये को सेना कर परिया जय स्तौद्रागर ने यट देखा यव उसे ख्या भाया -किं जिस मनुप्य केसिरलणनिसे चावासोना द्यो जाता उसको चादर आह बनाना कौन वडी यात । यह् सोच र सीदागस्ने ॐ माव मोट छे च्यि ओर उन्. गावो सें दुग चनाना धार कर दिया भौर फर सेना भी रख खी { जव सव सामान तैयार गया नय उस गडस्यि को पकड़ कर दुगे मेँ छे गया मौर उर यच्छे चादशादौ कपडे पदनः द्विथे । मन्त्र सेव क़ भादि खभी स्ख दिये। पुग उस बाद्रशांह को चिही छिपी किमि खटा ने वापको ठड्क्मी कौ समाई खीकारः कर द्धी है जे तिथि चाप नियन करे" वरात उख दिन पटच जयं] वादशा
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१०२-यद्धि मौर भाग्य १८५
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------------- _-------- मर निय॑नं प्तिथि कर दि भेज । द्र व्या की सैश्रारिया दने खीं । एक द्विन जव द्वार टमा हा या लर मन्नी भाहि वे हुये २ गसि चादशादी नरु पर् तकिया टर य बाद वना वैद थाउस समय यड् स्थिनेसौद्ागर सेका पुम सुमे छोड दो देो मरी मडि किल र सेमेचर्लो .'तायगौ तो चंद सु पौडेगा1' यद खन रर खव लोग हन पदे भौर सौटांगर दिल मेँ सोचने गा, इसक्राघया इलाज किया जाय ! हीं उस यादृशाट् से इसने पेरू! क द्विया बे भरयोजन भारा जागा 1 पुन सौढागर नेरम्न गडप्यिसे का कि, अगर कुम फिर कमी ते श कलोगे तो तम्ड सखवार से मार दुगा, जो उछ कना हो मेरे कानमे कहना! निधान च्याह् च तिथी समो भागः । सौदागर वसात केकर र्मराना हयः | जव वादग्णाह ङ गदर के समीपा गया नीर । उधर से याद्श्ाह् का मनोव स समग्रो मौर सेना क सद्धिनं शगकानी (पेशवाई) कौ आया तौ उन्हे रेख कर गडरिथे पो पयार भाया क्रि शायद् मेरी अओड उनके सेल मजा पडीं , ममैरथेपरेरे पकाने को सये ह परन्तु बात. कान् मं षदे जनि के कारण किसी छो विदित न हुई मौर कगौ ने सौदा भर् खे पूरा न्मि- 'शदजष्दे सहव कथा कते &?' सौदागर जान् {दिया मिवने मनुष्य भगवानी फो अआ है सको पा पाच दास र्पया दिया जय 1" मौर खयो पाच पाच खाल सुपयः दथा गया } शर मेँ प्रसिद्ध हयेगधा किप वे भारी ` याद्रशाद् फा ख्डका व्याह द्धे दिप भया है ली श्रव्येका पुय - कौ लापो उपय दनामठेतादै सैकदा इज्ये कानाम् टी नद्ध ‡ जानता । चादशाद भी डया मैने वटे भासे याद्रणषट सम्बन्ध सोद या है पस्मेभ्यर श्रविष्ठा सन्ये ।उस गर्टसि
थे का ष्याद् वाठयाष्द फी खडकीन्ते हो ग्या ॥
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८८६ द न्त सागर-य्रधम भाग
यहां तक ते बुद्धिमान सौदागर के सिलसिछ ख म्य रनर हरं । परन्तु रात का जव गड्ेसिया धकेखा,.बदसाह महन भे सोया मीर वदां माड फानूस छम्य जते देते ती सक्ते गवया भाया करिजगठर्मे जे। भूतो की आग सुनीथ | यद यदी है । पसम जल ऊर मर जागर । वह गडेरिथ यह सोव्रही रहाथ। पि इतने वाद्शोह की छड्को गदेरिये क तरफ़ माई फर जव उसने जेवरों कौ आवा खनी तो उसे ख्याल आया छि कोर चुड्ल मेरे मारने के वास्ते रही ्ै। यद सोच कर वह् भप एङ द्वाज की.ओटमें कि" गया। शादजादीने देता कि शादज्ञादुः यद नही द, चह, दूसरे कमरे मे चरी गई 1. उसके जाते दी इसे ख्या भायाः ग्क.अभो पक चुडेर से यचाह न म्टम यद कितनी २ भौर . चलं म्व, इस लियि यदासेमाग चलना चाद्ये । यद सौचहोरदाथा किउसे एर जीना ऊरी स्फ देख पडा 1. वद् कट ऊपर चढ़ गया मौर उसने णक तरफ़ छने ' ये। हाथ डार कर नीचे कुद करः भागमे का , दृरादय, किया ¦ उख समय अक्छने भाग्यसे कटा कि--देल, तेरे वनानै से - चहं बादशाह न यना वदि सव गिर कर मरेगा 11, , ` † ''भमाने हम्त पादादौ. दैवाञ्यीने च चैमवे। ` यो निन्दा विन्दते नित्य समू इति कथ्यते ॥
1 ॥ प;
५१७ * ० 11 ॥६ , __ शन्दनाककी श्रोठभे परसेश्वर , दक्षिण देश की ओर प्रथम साज्ञामौ के यदा नाक, कान, हस्त पादादि छेदन का दण्ड दिया जाया कस्तथा दसी प्रथो" फ यजुखार पक यार वदा कै पक अष्रराधौको नाक्िक छेदन - पा दण्ड दिया गया । चद् मपराधौ राज्ञा मै फारक सैनिके
्
१
५ ॥
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१०३ नाक उत सौर में परमेभ्वर १८७
ही रुद् कर नप्चने जीर ताछियः पौर पीट वडा दी भ्रमय हण खगा । दोगो मै पू-उा~' त् इतना प्रसन्न कनौ दता हे?
` उसने कहा क्रि-"नाक दी ओट में परमेश्वर था. सो सुमे ती ` भफ करन से परयैग्यर दीखने खया ।' इस प्रकारे नाच > कर्
इसभे नाक कराने पर कई मचुप्यो को तैयार किय।। इसमे कदा जिस समय तुम नाक का लोगे ल परमेश्वर दीसखेणा 1 खोगेए त विश्वास पर आ चाके कडा खं । इस एक नकटेनाच नचान उन लोगे से कहा कि~*षनाखिरतो मव गाप सोमे कीनारकय हौ ग एस दिष्ट तुम मी नाचने टगे ओर कह गोपि हें भौ पस्मेभ्वर दसम खगा नहीं तो द्टोर्ेंवडी निदा देगी {! यह सुन वे करई मघुष्य नाचने अर यह कहने खगे भिदे भी नाध करमे से परमेश्वर दीलने लमा । दस धरर हतै २ चार. हजार नकट मचुध्यां का समुद्राय चन गया एक वार्थे नष्टे नायते २ एक राज्यम पहुचेतो राजा कीं खबर भिलोकिचारटनार नक्टेा प्रा शुण्ड.इस, भातिनाच ता {फरना है तीरे कते है कि नाक कौ भोट म परमेश्वर यास अय दौीखमं छग अत राजः नै उन सय को व्रुटा्या सीरः पूा--तेवे सर राजा-के सामन भी वैसेहयी नाचनेली सौर योरे फि-म्महाराज दमे प्रमैश्वर दीर्यत है याजाने बाहा "यर् पेसाहेतो टम मौ नाक कटने" अपने स्योतिपी जीसे राजन योदा कि--“्योनिपी जी, भाप पनाम देखिये मि हमारे चाक्र कटाने का महत्त कव वचता है? ल्योत्तिपी जो मे पा निका ओर मौन मेत कर कदा--*आपक्रे ना क़ करने कयो माच वदरी द्वी की श्रातं फट बहुन ही शच्छा ट धन्य च्योतिपौ चो, आपकर प्न मेँ नाक कटने य भीख र निका 1 चस्ते चाद् ते संकटे चले गये । साजा के द्रीयणन ध धग ज्ञा यद् चान जपने त्प सेकदी । उखङी उमर अस्म
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१८८ द्र्ठन्त-सायर--प्रधमं भाग
(न चर्फ कै करोध थो ओर वह ७० दर्पं तवा सजा कै यरा दीवान भीस्दचुराथा। बुदुदा यह खन दूसरे दिन साजा के यद
कर यजा कौ अभिवादन कर नाक कयते त्मा स्पृ नृत्तान्त पृ चोदा कि--"*अनदानाः, मैने जापका नमक पाना भाम उमर स्रायाटै भौर मे चुड्ढा भोह्व दसद्िर आप प्रथन मुनि नाक कटा कर देख छने द जिय, अगर सु न्क याने पर्परमेण्वर्दीपेतो भाप ताककडव नीतो पपन क्रद्यव। रसानाम यद् वात मन आ गई, अत उमते ज्योत्तिपोजीसे सदा श--'ज्यो तिष्ये ली, थव आप हमारे पुरै ठीचानजाक नाक रने का, सुहत्ते >ेनियै । सउ्योतिषाजोने छन पत्रा निकार सीन, मेव, चष, मिथुन कदा फि~'पुराने दीवानजी क नाद कान कटारा सुतं पौव खुदी पूषणिमा का अच्छा है। सजाने पौष खुरी पूर्णिमा के नगद के वुत्ा एक्स भिथा रैर दीचानजी को बुख्या उसमे -दः---ष्टो, - दनक नाक काटि सौर परमेश्वर द्िंणाओो ।› उन से ष्क सै हुत तीर सुखे दीवानजीकी नाय्त कादरी । दीवान जी किचरा की चडाद्ी कट जा ।' दीनान दाथ सै कटी नाक पकडके र्द गये । पुन नकट्टाने टौचःनजो की नक्त कार उन्सके फान से कटा सि--प्जद आपकी नाक तौ कट दहो गई है स चये तम भी नाचने क्रूयने कणो ओर यट कदने खरी -कि दमे प्ररपरेप्वरं दीना डदै नहीनोखोकर्ये, कवडी निन्दा लेगी 1 दीवंनज्ीने राजा से खाप कट दिया कि--श्ये सयवडदी धूं द, उन्दने हज सषठमियेा की व्यर्थं नाङत काट डान नदा करने परः पग्मेग्वर चस्मेश्वर् छुक्छ स्का नही दीखता यच्कि भभी नाक काट कग हमारे कान मे इन्दैभि'देखा पा वाह 1 सजाने यद मेर जान उन खव व्री पकटया > उचित गुर दे उम गिगेद की नेद! ~
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, १ए-दद्धम ्ो दरेभ्वत के व्रात र्यने मे साधन रं ४८६
॥ त ग्नेन हनि कायण द्विपे पिये केतने मते र भव प्रष्ट पाय। न्तिभ्रभि वृत् 1 1 भ दुलत) मधमि ष नि पन्थ) | भ प टि ) निषि सावर्द दिरदमे) लुप इति पद् जन्य 7
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१०९-प्रृति ही परमेश्वर # परनि करनि म साधनदै
पपार पस व्र्यण के पश्चील चपकी उघ्र म्र लटका | हरथ, परन्तु ठका धैवाष्ीनेकेद्सर्री दिन वर्ण अन्ना विदेश चला सथा नीर पच्चौस चथ पयन्तं चर् प्रायण पिद्लनर्दा, जग चर यदा दयन्न पुत्र पूर्णं युश या) मनन ाढी मृं सनी, निकर अष । कड कीवापकी चिह्न प्रनी यद्यपि जा करती थी पर व् अपने वापको पदिचागला नरी थ, प्योकि शले जन्म फेदटूसरेष्टी दिन वाप । विद्र च्ख्या गयाथ ओर न वाप ही दरस पदिचानना धा प्क ननि यह् युवः ठडका अपने ति सौ दायं के लिप किरी गव शो गया मौर जय उस फाय्ये के कासे खोधानो दुरे ।, कोरणरात च फिली यावर णर यश्य के धर पर शिक रटा। छतमे भ दसरद्धा याष भी, जा पष्यील चरथ यादस् रदा धा याक उसो चैन्य कै रग पर ठटरं गय कीर रत रये पिता पु ण ही साय लेषे स्ह, परन्तु एक दुसरे कन पद्दियान सके । चक्रा भान कां उड कट घर चदा अय् सरीर घाप मडि जट ऊला-दन्तथाथन करके छ देर चला, भल स खक्ष सेकु देर वादु आया॥ सडक मकार के न्द् पडा था । खडके ने रे देल कटा--*यदं कौन हमं चरम घुसा अला? मातानेपुतर द क्ा--पेटा, य तेठु्द
१६० टश्रन्त.साग्र--प्रथम माग ४ ¢ व पिता है।' पुन्न यह छन पिता कौ प्रणाम क्रिया भौर कदा "म, हम ओर पिताजी नो रात भरे कष्टो स्यान परल ग्द, पर एक दृसरे कौ न पर्िवान सके, आपङ़े यतानि से थ्व
जाना ह 1' सौर यही शव्द वापमैकटे।! ` ¢
इस टार्णाम्त यद है फि इख जोयात्मा रर पुत्र के जन्यते . हये पितता पस्मान्मा अखूग हो जाते अर यह सासखारि स परयत ' मे फंस रहता ह, परन्तु जिस रकार मादा जन पुत्र की पित का ` छान कराया या, इलो भाति जच प्रकृति माता पुश्च जीवात्मा ५1 पिन्। परमात्मा का वोध कराती ह तो यह् तुरन्तु उस पहिचान छता है जिसके लिपट उपनिषट् टथा शालो मे कदा है-- अनिस्ये दर्यः मान्रगा मपि नित्य मपि्रपुतरादुमयो दषतान |
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् । ॥ १०५-कल्लियग म॑ घ्रघमे ही कृत्तिना है ~. प्प णार मन ष्ट चश्च की दू-जानं थी । चैरय चेचास् बडा (1 यर्माच्मा, सीश्रा शौर सचा तथा ईश्वरभक्त था । भात.कान्टसे, उड यपे नियम ` धम का पान, खत्य योना, धर्म -ये' “ जीचिरा करनी जादि आदि सेखजी में चिचिन्न गुण ये, परन्तु मन प्रकारके व्यवदारसेसेठजीकी पैदा तो बहुत थोड़ी नदेपिन सेठज्गी भपनी खदुषृत्ति जीर सतोव से खुसी र्दा करते ये 1 कुछ कान के पनात् पक अद्यीरने वर सेजी की दूकान रे सामने जञा प्क दूसरी दृ कान मिसो हु पदी री उते ` च्ििययमेलेला । अद्धीरके पास उस समय क्षैवल १॥) की ख धुजोश्ी 1 महीर उसरी दिनदी चार ससे के चरनन भद ुम्दारके यएासेद्टा १}) स्प्येकादूवखाकर उसभ उननः खी पानी मिन्तातुध वेचनसर्पा षसभ्रकार द्ौक्री सायकः तो उस्र दिन दूने दपा नौमरेदिन च्छधस खाह्यने२॥) द° कए ,
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1 १६१ दथ ख उतना हौ पानौ मिला द्र वेच डाला! वतो 'ची नसो साहव के फिर भो एने ह्ये । इ भाति ङ्ड ही दिन म चोरौ स्वम कामाद है गये अर थोडे हो दिन पके जदा चौवरो एड खोरी टपषये किस्तेने वदा जन उनमे ठा हो निराच ्ो गये, यहा तक कि उस गिरी हुई इकान १. मोक छे छौध्ररौ छे मे तिखसूडा खडा करः दिये भीरः उनके उटुतसे नीर्स्चार्रभी रने खगे । खेड जी यद श्य दैव वडे दी चिरपय के प्र-स् हये अर मन मे कटने कगे.फि खेय जो कहा कस्ते है\ भ्या स अमु कचियुग मे यवमंही करने से श्ुख,मिटलता द { सेठ जी इन सक्र विकरस्मदीमे धे फिश्तन मं एक वड़े विद्धान् महात्मा उख ग्राम म परे। सेढ सौ मे जव -खुना कि यदा एक वड़े विद्धान् मदात्मा जये दणेषहैतोसेटजीये महात्मा की शरण, ॐ आ उनको दण्ड ˆ धणान कर कदा कि-- मदायज, चवा कलियुगे वधम ही करने से सुष्न मिता टे दलो हम निन्द प्रति काट उक्र शीच दन्तान पश्ग्र् कासेन भी किसी जीय (| चुप देना, सत्य वोव्धना भादि जादिनेम धर्ममेटी दिन व्यतकसरेहैसो मे तो खानिभगको अपी कथिनता स चटा होता दे नीर. पक सदीर ने हमारी दूकान के आगे भमो थोडे ौद्धिन से दक्तान र्पो. जिस सभय उसने दुकान स्फी ग्री, उमे पात कुल श्य) धा, छेकिन स्यसि उसने,दुधर्मे साधा पानी भिद्या मिला वेच भ्रारम्भ किया च्छि ररी रुपये का नी हो शया । दमस क्षात होता भर्व से ही उन्नति छती है 1' महत्या नै कदा--“सेट जी हम सकता उच्चर तुम्हे जाट गोज ॐ वष्ट दग 1 सीर मदात्मा नन भेजी से अट हाथ का गहयागदा सखोदवाक्रर सेटजा १ ॥1 ज्रम भीनर खडा च्लिया सीर को सेकटाचि तुम खण
१०५ कलियुग मे अधर्म दी फर्ता है स
।
४
~ ऋ -2: -9
६२ द्ान्त-खागर- प्रथम भव्य + ` `
- ------------------~ कुये से पानी भर भर क्रजराच्स गदैमेतोडाले जिस + समख उख सेड जी क याटौ तकर आया तमे मदत गे पृ ष्क सैट जी, जापको कुछ कष्ट तो नहीं माद्धम हो गा + सट, ङी नै कहा-"नहार^ज; असी तो कोद ज नद मलम देना, पन, महात्मा मे उरा गढ मे स वीस घडे एनी मीर दुदाय । जव जूके जी के स्मर तक आावा.लो (महरत्माने लटः से कहा-म्कले सेड जी, जञ द् कथ तो नदीं" चट जी जे कहाई क्ट नदे." पुनः महात्मा ने किर गदे - मौर जल छ्ुडवाया 1 जच जल सेट "वटौ ती तक आया तो ' पिर उनसे पूछा, पर सेठ ने फिर भो यदी उन्तर विया कि “कोई कट नहीं ।' महात्मा ने फिर कुछ जरू द्ुदवाय। । जय सेठजी ॐ कण्ठ तक जख आया तो महात्मा से पूजा किसे जी अव किये के कष तो नहीं? सेठ जी नैः कहा--'मदप राज, कोट कष नदीं! यच साप च्छेग विवार दे क्रि कण्ठ नक जट से इवा सेठ खडा है भौर कदनारै फि--^कोई कुष नही 1 प््तु अग्रकः वार महात्मान ज्येटी दस वीस घडे गढ मं गौर डढवाये कि थद से इवने छगे भौर उयासर्गीरे योरे-" महात्माजौ, दमे शीघ्र इस शदे से निकारो नद्ध नौ दम निक्कती है । मदात्माजी ने सेट जो कै निकाल करडनसे कटा क्ि-““जापर पने पणन का उत्तर समश गये १, सेय्जीमे षदा "महाज, नहीं समन्ते,+ › मदात्मन्नी स कट "जव आग्की | ग्ट तक पानौ माया अर मैने पूजा ने व्मपने ऊहा फ युके केद्कष्ट नहीं , पुन जव आपका कमर तक जल अय! नर् चैने पृते जपन कद शयु कार् कष् नदी" यषा तच्छ {कि आपके करटं तक जल आ गयः तैर १० ही घडे की कमो धां वि मप दुव जाति, पर् जपन कहा युके के प्रोष नटी ।' शख याति उस्सजरीर के यव कण्ट तक फापृ भर मये द}
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१०७-यद्चौ षी दर्मी बुर यनात दै १६३
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भर इक में फमी नहीं, परन्तु चमक वद खस मालदेम पडता हमीर उसेमी मष जाम पडना दद 1 किस्यी कविने ष्मा भव्यक्ह्यहै- ` अन्पायोषाञ्जित द्रव्य दशवर्षाणि तिष्ति। मर्ते प्राद्शे कवं सुले विनण्यति ॥ भथमे्वैधते तायने ततो भद्राणि पश्यति । ^ त्ते सपना जयति भमरलस्तु विनश्यति ॥ पतु ° ॥
(्द्-लुव्सुरती णोर बधि _ ५ १ नहस्ीट्द्रार उदी बुद्धिमान शे यटा तक कि उनसे द्वके णन वड़े वड मामखो भँ राय लिया करते ये, सनि यै यु चदधत थै । यदं देशव सादव कलटकटय ैउनसे 7 पिन मगपोध शिया क्ि-"मी तदमयीखदार खादय, जिल मय सुदा दा ूदग्नो वट र्दी थी तय आप काये?" हस्भीखदाग भै उच्चर दिया-~ उस समय जुरा युद्धि कट्स्ी ी परह्य या ।' यह सुन कलस्टर फग्भिन्या हौ गये ।
९ न [५ ५ यैः १०७. गो इम चुग वनात ई
दग होभे के समय.समपूरणं उव्यो की अत्तमत्ये शुध यर यितु कन्नौ ष, मा उप दी चाहे उचा को सत्यवचन हि खा चषि चेर, चाहे साद, चाहे व्यमिचारौ, चदे सन्यस्य श्रना ऊँ । यथा-- ^ _ ` '
पत प्रजप्य फे क शरढ चोरू लथा चख से ,वान करने यथन व, धन उखे चच्ये की सौ यादत्त खी द्यौ पमे गो 1 यापन क्तीन्ापि वा भी हमा यैम्याही दुधा जाना
शम भ से उदे उत उख ननखाख मेज द्विया । जव्रकृ क
२१६४ टण्नन्त समगर-प्रथमभाण ' ^
दिन के चांद यह पुरुप अदनी सद्यस् वच्चो के पास रया सो इसमे सोचा कि भदा चच्चे्ी परीक्चातोटें कि. इसका भर"ट योरना कहा त द्या है ? अत इसने कटा.गिः- चेटः खाज गंगाज्ती म प्क वडौ भासी पहाड़ी फट शिरी | -य॑छ्वा, योखा कि-ष्दादा, छे तो मेरे उदय भो आाहथीं।
१०८--${ठ क उदस्त \ ॥ प सेठने एक लोधेकतेष्टाथ पना गाडो वैल अपने लंडने की खवष्री के चिष्स्िसीगव की मेजा। वद गव सेटभ गावसे ० सोसकी दरी परया र रास्ता १० कौल पथा श्मीर १० कोस पक्ता था। गादी बहत दिन स्ते ऊगी टर्नयौ, दस कार्ण योती थी] प्ली सडक परतो गाडी. दरवर चोरती चटी मई परन्तु कच्च पर पहुची तो गाडो का वोता, / चन्द् दी गया 1 यह दैख न्योधेने गाडी फौरनद्ीख्डी कर दौ ओर गाडी का वांस पकड़ कर, रोने दगा, चोदा दाय तुमक्रा का-सोश्गा ? अवी तक तो ज्तुम “व्वालत्ति वत्तङात भच्चछो मरी ची आाद्रड, अय ज्जने तुमत स्वा होदगा ।' आनप्प्र रोधेन श्व के रोगे से पूउा क्रियो भाई, को चैयभीष्सगाचमें र्ता दै? छोगेने कट्" हा उस तरफ ददे £!" यह् जाकर यैटराज रे पास सेमे खा भीर वोधा कि भरट्याज, मै पन्यम माच से गाडी लेके चरो सो १०, पङ्ी सडक सड़क ते नीके चोखति वततखछात ची आद्ैपर सव न जानै का दोद्गा जेष वाहिकः ययन वन्द् -दोस्मा। वैद पज ने कहा शि-नाटिका दिलाई गी कु ह ?, उसने कटा- महाज, मोरे पा तौ गाडी वैख्या छोडि सीर यु्छ नदीं है 1" तय चैथयज वौके कि~"मच्छा यदि हमने नटिकामा दैग्यदौ तोजचतेरे पस पैसा नहीं ठो दथः काहि से विण?
ी 1
४;
,_ श्ष्ल-यककै वरणे उवाद द्ैदरमेसेयवादीगा 1
इममे ए नू दैक अपना वे डा कि लिखें दवा ङे न्विष भीदप्मसोज्ञाव ओर दमारा नजरा भी दी य । दम प्रकार प चैल नो चैद्ययाज नै वेचचा डा ओर गष्डीके पाख जाकर कदा फि आपकी गाडी मर ग्द । सो कुछ गेएदान दैनरणौ सकते छिया नौर श्रोडा सा एल नीचे रण माद्मीकौ भस्भनरिया चराई । धुन वदा कै पणितो ने इला भी वैल कचा कर द्शसाच् पएकादणट कयाकरः सवटेखिया ओर सपनी नेर्ही का पल्य सिसमे बाध्या विसान्े । उसे देष सेशजी ने पूञा--“गाडी पैल कहा क्रोडा रोधा चोला-- रोषाजी मै यहासे माडो टैक कल्या सो १जकीसर प्कीभरः नौ नीके च्यालत चत्त उई चली ग ज्ञा दष्ौ पर् पटच उनश्ना चनन वन्द दोसा सोया लरत देखायउ, एक यैखयंनिरे नौ गाडी की च्चाद्रारू धीर् फैनज राते माँ न्धो जौ दूमरे से गाडी यै अद्मि के दशमान् पकादश चै आद्र गयं 1" । =
१०९- प्क, थं # तमे क्या सगा ॥, प्क क यादशाहने अपन गन् मँ पकप
भख वपष ससाद पा था दूत भसः खये गाव भरके लोगे यौ जिनके यहा दुध्र होता था अनादी किष्यम एक श्रडा दूध मग्ने अपने चरः पधे भर उस ताटाव मरे खय डा भो | सदरलयोगे ने अयने अपने घर त्रे य रयन ग्वा शि जगरः रमष्पक यडा पानी का उ ज्येने ले तदाच अर द वया जान पडेगा । निदान खम कसय नेद के यजाय पानीष्टी षोऽ जर् नूषलय पानी गया । चव चादुशादने देगा स लर्ण दन सा 0
प्रस माति यदित्मै कष्द् क्िणषमेश्यः (1 ८
भक्रारदृससा फट् दषस श्वः सदा वमार २ {3
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१६९ 'दरष्ट7न्त सार प्रथम भागं
सहदे एकस भया, गर्जक्नि समौ एस भांति कदरे ती फी धमई कामहो ही नही सक्ता। र
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११०--पृड डं । `"
प-मय्ण्यरोज कथा सुनने को जाया करस्ते ये पक सोन मरेड जौ को दौ$ आवण्यसीय कार्य्या स्न क्रार्णवे कश भनजामद्े, गेन उन्होने अपने पुत्र से कहा दिय षहत्छा जगह कथा सुन आना. 1' लडका दथा सुनने कय! गे कथाम निकला कि यदधि क्य ग खातीलेती उसे म्र 1 दुरे दिनि सेठकाठ्डका दूकान पर वैदश्राश्रा आ अनष्नसत गौ भी याकर् सेट कीदरूमान प्रजो पल पनात ग्स्परे थे ग्या लगी, लेकिन खद्फेने गोक्पेन मारा । इस ले चाव्रट ऊक चिखर गये अर कुच मौ का ग । धोटी दरेरमें सेढ भ्या भौर अगम वेर से वौन्टा-- नोर ये चाचः कैसे विरे पडे दैः? उसन क्टा-- जापी दैत्यो क्ल फथा खुनभ मेना था, उसमे निरुखा श्वा रि अपर गौ की खानी होतो उसेन मारे" ब्पनें कदा--'चरे बेवकूफ, भमर टम् णेखो कथा म्माज्ञ तस रुनते तो आहे मये धर स्हना सौर स्रस जव कथा सुन गये तो नाद्र सा कोना कीर, दिया मीर अ ललने खये तो वहं माड द्विया ओर कट् †दया कि संडिनर्ज यट न्ट अपनी कथा|” <. ¢ ,॥4
॥
सक्त फ †» मृणपन्िणाच मिषन्न पान क्रमु गर्दभात् । अन्यन दीपे उधर्न्य गन्.मूद्म्यङ्गिम सृप्यापरमग. ॥
ध ११९--ाज कन्त क्म तम्रस्सुकं - म किमी शको वर मर भटी साकिम समीजे त्या संकरान
[य 1
र
११९ सघुडिया भाषा
1 साट जि सुत्रलिग रुपया णक दज अन राह जूतो पैल
रखा राम भवत्ता खे खजं लेकर च.जरूरत चहियान शुर फान तेकजान आतिश्वाडी मे सप् ठर दाये प्स्दाजास्गार -वसदु न करार चलि नकार उखटी ज्म सै च्खिदेताहं
क्षि सनद् ण्ट शीर चक्त जरूरत ङे कामन आवे जिसकी
मचे दस तरद से छादी क्रि स्पे छ चस्द् अनिमीन -अनि दगा, देच साट मीरु स्त वेदक का रथा बषूट न हो तो उस) हिरासत से चल कयि जरे । {' „प्क मसा हनी > षु3 किव ग्वोवाग । सोरह सैके „रद हर । उसरी वन्दा ना सार ।* जिन त्म मियाट श्न तर्द करर दरी ट कि मष्द'गये श्यीर सन् रदे निखके कातिय फरजात राम नाम स्यादा जिम किंग सुतान साव मान खौ सुंकिक मेदरवान चचूटे केः कठरस्टान कस्मपीड १ छ निशान दाम पिह 1 1 ' ' ~~~ ( 99 स-सुदडिया मपि ^ पक चर प्त वैश्यज्ी ने शदर मै सद्का भाच तेज ्टीने ५ पक चिद्धी अपने धरको इख मजमून कौ छिषी ला लो मजमेर गये हमद खट लानि तुमह शुषरन्व डो चटी को मेज देव ।'" दीगेग ने चह इन चटी "पदा कि" ाका तो भद्ध मरि गये हमह सोय लीन सम -रो छेव व्यैर बडी वह को मेज देव ।' व्च यह पढ यडोचड को मेज द्विया । वह रोती हर दुकान दधे जने आ खडा ए६। सेकजौ ने कद्ो-ध्यह फया, यदह चयो? त्वलो ज्ञाखोष दह के कषाय ये उन्देवने कदा~"लाखाःजो का तो देवल्नेक दोणया 1 , समेशेए ने कद्या~'“यह् प्या यस्ते्टौ ति यह कै खा
८
+ ४ ् 1 ५१. ॥
९४ द्र्रन्तलामर-प्रथम्र माग १ ४
कह दे एन सेश्व, गजं ङि सभो इस भाति कंद तकम ५.4 दीद कामदहो दी चटी सकता । ध । ५
॥ 1 1
११०--प्रलड भाड़ , ५
मद्य तेज कशा सुनने को जाया करस्ते थे पठ येज सेठ जो भ बो यावश्य मीय कार्य्य लां इसे कारण वे कथा ञनजा सके, अन उन्दने अपने पुत्र ले कदा सिध शोज पत्यं जगद कथा सुन आना 1' लडका रधा सुनने शय न्नाम निका करि यदि कहैमी खातीरो-नौ उसे न मर । दूर धिनि सेड का ठंडक दूमान पर यैश्रथाभीर अनष्णस गौ भी याकरस्तेठ कीदर्मान प्रजो पठ मे चानः गक प्रे गाने गो, ठेकिन ख्डफेनै गौ कोस मासा 1 इ खिर चाव कक विजर गवे भौर कु गौ ग्वा गई । धा रग में मेड आया ओर अपन वेड से वोन्दा--*क्योर ये चावः केसे चिखरे पड है 2 उखन कर, -- आपी से ता सल, पथ भ्युतन मैना था, उसने निकला या सि यर गौ कौ स्वानि होतोउसरेन मष्टे }; वापने करदारे मेवद्कूफ, गर टः णेस कथा आज तक रटुनने'तो साहे य धर रना, शीर मरः अव कया खुनने'गये तो चादर मा कोरा कैट, {देय ओर जः च्न्यने खगे तो वही ड़ दिया आर कह 1द्या कि पंडित हन्यै मनी कथा| मुन्छ' फ 0 मृनपद्तिफानःपि्ान्न पान क्रम गद्मानाम्
अन्यया ददः, वधर्न्य गन् म्रवस्यङ्गि णसुप्यापमग.
१११--गाज कन वम् तमस्छुदध' - र गक्ठतै वट मर भी साकिन मीस खा मका
[
१ ॐ ॐ
स्मष्जा करि सुवदिग सुपयाष्क टज अज्ञ राट् जूती पेनाग 'छाला समनवतःरः सन्न लिस्ट न जरूरत वदियात प्वुर,
फान नेकजमन जात्तिश्तवाजी मे सफ दर डि :ट्वाजाकरषर । भद न करार यलि इनव्वार उरी कटम् से ल््खिदरेताद्ट 'कि सनद् श्है ओर चकत _अरूरन ङे कामन नावे जिसकी "सचा श्ल तर्द से कपादी कि रूप्ये के वरट् अनिभीन , जनि दगा, छदा सदव मीसू सपन वेवकृफका सप्रथा
चू न ्टो.तेा उसको दिगसत से वसूल फे जवे ।
< प्क मसला हन्य के पूत सिवा न्योपार । लोग्ह सैके
- रहै जर 1 उसने वन्दा तैडा मार 1» जिसदही मिय ध्न
‹ठर्ह्धरभ्र दरौदैफिमष्िगये र सन् स्ट चिस सानिय 9 फर जति रामनाम स्व्रादा न्िसङे पि गवादि डलतान सखाय ईमान याँ सुशक जहररान चू के कथरदान करमफड पभवक्ती कै निश्तन दःम पिह ।
नक
॥ ११२-सुडिया भर्षा एङ वार प्क वैश्यजी ने गदर ञे शका भाव तेज केने के कारण णक चिद्री अधने धरको इन मजमून -गी लिखी क्रि--व्टाला'तो मजमेर गये दह सर न्मनि लुम र्रनेव सौर यदी बही को मेज देव 1" लेः ने वहा इ चिष्टी फी पष्ट कि--* खाटखा तो भा अरि गये हमह रोय छीन मुम
सेय र्व मौर यदी बहन को मेज देव । चत यह पद यदो षद् को मेज दिया । यह रोती शदुकानके पगे आ खट्ग {| सेरी ने कहो भ्य प्या, यद यथे 2 नयमो अालौणमह् कै क्नाय थे उन्हेष्ने कदा-"लप्त्यजौ चता तोषदग्लोर पप्य ।' सगर मे का~प्यट् क्या वर्तो" ता पह च
1 ग 4 ॥। १६८ द्व्त-सागर-- प्रथम माग 0»
५ 1
न [२ रोगे ने वहा-' यदह खो अधना पच्च परदे 1, उन्दने कटा ` "हमने ते यद् छिखा था 1 उन्दने कटा दमने ते। य । समन्ना शा 1" सवदै नरराक्षस निष्टसा ।' ` 34
११२--छग्रनो दे ज्ियक्रित ` पञगावके एकये पटे क्िमोश्ारने जिस के कसीर
वीर भो थी नपने छडके को ओय की दपाद्रेलौ भेगरेजौ पटाद परन्तु घाप जाने हे रसे के डके भद्धा ठेते मन छा कर चः पठते ९ । दन्न ऊक पटा ओर ऊठ शय की दवा खति ¦ श्रै! थोडे दिनम यद ववृ साद्व जव आपने घर येतो वही शेजी ट बोट, पतद्धूल, चूट, ' सिगरट पीते हप रहने खगे । एन दिन इस जिमीदार ॐ पास ऊ पदे किखे मर्युष्य शीर कुड ये पदे टस भित्र गण चै ये तनैर्मे जिणीदारके वेशने ज्योही आ. गुड मौर्वं" सिया पि किमीदार बोला, फि-'भाई, दमो टह! तो'खू अगरेजी पटि भारो ॥'
फे पास कै वैठनेवार मदप्यं ते कदा कि-जव आप पक भक्षर मी भेगरेजो नही पडे तो आपका शवा माद्धूम क्रि यह छडका सूर अगरेजी पड याया ।' जिमोदःर ने कदा कि--्टम तो यिस जान्ति कै पिह पक तौ कोटि ओर'पतल्छून पदिरेदै, दुसरे मुणड! जूना पिरे ई तिसरे फा साफ ङसिगसरट पियति द, चौशचे ठाडे स्नत्ति दै, पन्ये जूना पिरे चैक चरो जाति ठै, म नौ जदा चदु पदनि रहँ सदु देखि अये छेन खध्या, नै गम्यक्री, >दोम,, यय सदेव जै पितर सर्त कडनिदै कि परमेख्धर केहवेमा का सवनु दे; परमेखुर हयं नाह, सदर गि स्पिदट् जिदपिर वोल्दनि ह, नय -गव चाठेन कै चन रनई-यैठनिदहै, दे विग्र साति है, यहि जन्ति जह्ुष्मेएल्षछधवी पाखुदै 1 |. “'
अकः
\ ११९४ उद वीचयो १५८६
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स्व नरर पतलून दिव्य ग्य सुने चवलमद्ीय् । ते्युतताम शुभ मरीन चत्रू भव मलं पाम स्लीर्म् ॥
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र | , ˆ ११४--उद बीर .
` एक तदमीटरार्के नाम प्लवन साट ककरन) पेपकार से चक ह ङमनामा प्लिखचप्या दि" फला वारीव को गेमानरी दसि पर नीख या पन्चौस किदिव्ये, वैधार न सीर महष के फोषडे जा दसि्वि। के तिने ह उनको पटे फेक यादे । › यटा तदसीखदार खादवनै उसि पठा २ प्री या पश्चौस स्वि फला २ तारो ङो दस्थि क किनारे । सेयार् सवसो ओर दसियिा ये विनिरे ञे, महि के पड दै न्ट्फुत्यादौो ॥" वख ठरसीरदार सदय बीस पव्वौस ररेये बुव कर उन्हें सा उस तारौखको द्स्थिाके बिनारे दाक्ञिर टये र दस्यिष्क विनम्र ॐ सव मलर्दौ , के ङराष्डाको पुशवादिया। दशर जव खयदय करण मधेतता क्या दसत फ ष्कन् ८२ वदसीखदार बील पचचीख करिये टिके यें । लम्टव नै पू उा-- "वर नद्ला चदरर, यद फव। १, तदसोखरार ते कदा--' जरः का हुक्म याफिकड। तासोख के! वीख या प्यास काविथा दसि
के किनारे ्ैयार रक्ते ए" सृटयने वद वेश्कार, छमने नषसीख्द्ार के पयां हिला वा ° वेशका्र मबा च रोये
, कियन तिः लिखा था कि वौ यः पश्चीस किश्तिय तय रव्र्नो ।*° साद्व योखा -- स्र जपपते प्सा, च्या पिया ११
पेणकार ने कदा--“ुजूर उदुःभें ण्यं सा कस्य "पदा ला सकता । › थोडी देर ञे खदय.के चे मष्ट दाश
गे म ध भा सदर टये जौर योटे “ठु हम चोन > भ,
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पर सागरः 0 1 २०० दष्टार न-सागर--पथम-माग _ ," „~
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¢ ~~ सदस्तीख्दार सादय ने पु कचा दिये ।» " सादय -ठेकृर म यारा -““तदसीलदार, ठुमने इलने मेषपडे कथो फुकवाये ४ नदीटद्रार ने का फि-- हुजूर अआपने इम ष्देया धा 1\, पुन खारवन पेश्तकार से पका तो पेशकारने रहा कि-"टमने नो जरः यह लिता था कि महवह के फे।पडे फ कवादो,, प, ट्म दसा भी षहा जा सरता है 1'* साहवने कदा, वड़ो खव वप्त र 1" सस्छतमें मो का रै-- ए । अव्यक्ते शब्दै म्ले । '“ ' *, ।
शोक ई फिआज छोय सम्पूणं सचान की मा ओर सव
से शुद्ध भौर पवित्र भाषा को छोड इस पाक्यं के सूप क टै शि-- ५ ॥ च ॥ । ईश गिरजा कौ छोड शख भिरजां मँ जाय 'शडर खदेयी
स्छेग मिद्ठर ऊवेते । पधि कोष्ट पैण्ट कस्काटर दोषी कोट लाल्टङे पारय बाच टटका्येगे ॥ फिरेगे घमण्डौ वते ग्ण को पकडे दाथ पाकर चरर मौर दीश मेँ खक 1 फरसोकोकारस उदा सगरेनो पधि मानो देवनागरी स्तै नःम द्धी सिरखर्वमे ॥ ध
१९१५-६ से हानि ,
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1 नि
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॥; । ॥ (8 प्क नद्यण, पकः क्षयी आरणक नाई तीन कहीं को जा श्ट थे 1 सफर टा्राथा 1 रास्पें नीते प्लष्ठ तामे साधा मीर पक चमिष्तापालाटुचा चेतभौी एन तने द ष्टि खया। धन सीनेनेन्मचा सि म्रधमतो दस समय दस ज्म कीर नी गहीजेगहम ल्ेगेाको इस सेतसे चमे रपाडते हुपदेलटे, दूरे पदि को रेपभौ लगतेः दम लोग उनसे कट दुगे कि चर् ज) दमने भरूप्र के कारण थोडे श्रौद्ि यने च्येषे। वदद
॥
^ __ _ एएटतेष्ठनि _ २५ नपकञाट् काया आर दुपश्टका समयया] जाटतीने चा भि वुप्र्ासमयदैष्ेनपए च्छे षर चटन्र्देत हभ मोर फर ध्य शि जिसे ~) उुकुखान ने फर ।
, कर्नौ कन्प्रे पर ुल्टादः ग येत कौ सोर पयर! चरा
सवर्मा वेगे टै सि हारे सेन यै तीन जवान चमे उवे
द । जाट मे मोचा यगरं तुम एरण् श्न लीनो श्छपहनेषो तो प्रम नो यद् जद्भर, यटा फो नदी, दुलत ग भक्षे भीर यर तीन ई इसकिण युक्ति से काम र्ना चषि, मर जषटसोने तीर केवास जा प्रथथ्रा्न मद रनन्सेपृञाफि-जापकोन है? इन्नि उचर शरिया जि ष्ठम् ब्राह्मण र ' नय तो लाट जो नै कदा-मदा्यज, जपतो पसमेधयर -ी देह इः यापने वडो इयाकी भदा साप काहे फो भभौ समार चेत मे वाते । थ्न्य रो मरारण्ज, हमारा तो लेत पचितो गया । यदि आपको नीर दो चार ग्र चनेकी मवृण्यकना हो नो उसेड ठोजिये । आप्रमानोखेनदही है भ्सके पच्चात् जान जी नै पुव जो से पूरा फि~"महाराज, गाप फन्? उन्होने कदा--ष्टमती क्त्र? जास्ती पोये--धन्य दो भरारा कवर जी, आपने तो हमारे ऊपर च्डी ष्टी द्या ती । भक्छा त कमी हमारे यतत मँ काहे कमो
भते । गर्तिकारु की बात है । परो यदि स्मीरदी चार गष चेनेःकी सावद्य कता हो ठो थोडा वभर कै चिप्र इडया मगाद्ये ) जापका तौ खेत ४ 1, अव इसके पधात् ज्वार जी ने नसे यानी श्लाम जौ से पू क्विप कौन द? यट
स्य मै आयस्ता हनाम ह 1 जाट जौ बोट कि -शभल मगर् दन घ्रा जी ने चने उखेदे तो यह मारे पूजनीय छर काज फस देने,
सीर कभी कथा चार्चा सुना देते कमी व्याट् क भोर्ववरली ते उड वी यद नो दमारे याजा टदरे सीर कि निं ~
1 ्
#
२० द्रध्नन्त-सागर-प्रथममगि अ.
~ ॥
कभी हम रोगों पर आख्दनी दीम ठया कस्ते, दमःरी स्था, कर्ते, पर तूने सेचने क्यो उयेडे ? गधे फे लाये, नन्पप्ः मेन पुण्य ने।' पेख। कह जार जौ नै उतार अूता दस्म का चोद् काद दौ । जय दो ब्राह्मण सतौरक्षत्री दोन बोरे फ "यच्छा हुवा ज्ञा यद नभा पिर ग्या, यह् फु वदेमाश्ष भी था। इस सि फो जव कमी घर से याल चयनवाने की. वा त्ते वंदनं नरीं निकख्ता था, चो आज ' टीक हो गया ॥*उधर् नाईसोच्यैकया किमपि गया शौरये वच रये थे रोगं जाकर गाव मं करेगे कि देखे सथः पीस गया। पर्मेण्युर कद्यं इन दोनों फे भी चाद्ये ठस दस जूते रुगजोतेनो खीकदहो जाता । जय नना पिट पट के कु दूर जया दोजाद जौ वो क्रियो कषर जी, यह् खेत कोई मी दै, या सृषछन मे तैय्यार हुभाथा? भरल्या ब्राह्यग जी मै उसैडें ती चट् तो हमारे माननोय ठरे, पर आपने चे क्यों उखेडे पेखा कह जा जी मे उतार जृता इनस भी खोपडी लाल कर्धी भीर मरे वेतां के चयूतर काट दिये ।" अव्र तोत्रद्यण जी बोडे कि--"मच्छा हुमा, यट भी चडा दी खर्टवाज थ कभी सीधा वोल्वा दही न थः, , हमेशा अकड कै चलता था खाज ख।यसो भकड निकरु.ग ।' उधर क्ली मनम सोचनं . खगा कि देखे(दम दौ पिर गथे पर यह ब्राह्मग वव्र गय] यह गाच में जाकर केना कि नाः सौर क्नो दों सव पिट पर. मेश्वर फ शलके भी सिर मे दस जूते ठग जति नो ठीफ ही जाना । इल अकार जच ब्टुवर जी पिर शट फर चसे सौर कु दुर पडुचे तच जाट जो पूज्यमानो पूता हेतु उनकी भोर सुख्दातिय दुष्ट जीर गाह्य जी से कायो मदाय, यज पेत चख री तैच्यश्य दो गया था, इसमे मदन नही पडी यी + पवा साय सन्ज््चं याक्रथा चणम ग्रमे स्क छोट रते"
॥
1
(५ ११६-उजवफ़ यनद
"~----~------------ अरे षायै चपर पयो उलेडे? यह कहजायजी ने उनार लूता दनी भौ खोपडी साफ कर दी । नाई कौ कभी जरूरत
, क्ष नरद्खौ,1-'
', गव यापनल्टोग ननीजा निकार अगर ये तीन भापस मैन पुटनेतो तीन कौ चाद नकाटी जानी! सिचो, ठीक यही हमारी भापष्धी सवकी हाखतरै। क्वा इस पर अषप कोमौ दो भफसोख नद्य जो आपस में हमेशा अगुरु मशु जगह् पर, ए एक पने पर, पफ प्क सु पर निष्प्रयोजन परिन त्त चैर विसे भिया करते है । अव आप जरा सेच ५. भस्त पर पा कीजिये ।
६ ११६- उलकः ^ प्स् यार प्यक उजवक्रसीको यह सुम्ती कि किसी ध्ररमर रामचन्छ फे,दुान कर्ता चिप 1 उल धक जी दत ग्या म थेकिहमेकोीर् देखाशुर्मिल जाय किजो सदज मेषो कोट साधारण युक्ति वता दे ता चिना परित्रिम हयी रामदनलि जायं । उ्जवदा पने शठ की तटाशमें ही धे चि दएनको "या~ शशो शीलः गरवी लाद्रश खर वाहन ' के अनुसार पक घो घतत मि गये । दन्दाने घोघातलंत जी से कदा- महाराज ध्मे कोर देखी युक्ति यतानो सि सहजम दी सामवुन हो जाय ? धोचाधसत ये उपदेदा क्तिय कि--* जज से आप , उव भ्रात काल पाप्बानि जाया करे तो अपने छोटे मज्ञाजकभर कर पारे कै छिये ऊ जाति हे उसमे ष्वा फुछ नाचदस्त स्मि ' ` से यचा रय्या फते भर उसे ठम् नित्यग्रति बनू धर नटा दिगा कसे हल धरार कस्ते से तुमे थम नून भी ङे दयान शाने पश्चात् चे तुम समचन्ट के दर्ग फयायमे }* उजवरजा वही ब्रत चारण किया 1 उख विनेय इः से भाद दृस्तो नलेन ये पर सू पर चटाने केः क्षि सन एद
ी ी
२५४ दणन्त-सगर--- र भान्
च स्पते गौर सेज जल चाया करते ये । प्क दिन'एक बुदा पुरुप जिसङी ख्म्वीर् टादौ थी प्रात काट पाग्पाने भया ओर वद् उस यचरूक के उसे तर वत्र फी जड से मि र पाग्वेनि यै गया । माघ पूत का मह्ना था जाडा पूव पड रहा या ! इतने मेँ यद उञ्नवरू पालनं गय | यद कट पट पामि जद चदढानकेष्ास्म पुरे तीर सै भावञ्स्तनः न ङे छोषेमें आधा पानी वन्या उसी चन्र पर इस आरसा अर भधा छोटा जक जोर से फेज दिया। ॐर् चटनद्धी ड्डा था नीरः ज्यो उस वृदे के ऊपरज्ञा भरि वच्रूर की जड से भिंडा इश्रा उस ओर पाति वै थः पडासेा जल पठतेद्ी घुडूढा सरभसं कै उड यै51 1 यद द्रग्य दृस्ल उज्ञयकने ज्यो दैखाते। दसै च्या माद्र पडा कि यदह वन्रूल के यन्द्र से निरुला. दे ष्मेस्हयोनदो यही हनूपरनहैः। वस उज्ञवक न वरदासेः 1 र जाकर, उस दुड्ढे के पैर परुड लिये 1 बह चैचारा पाष्वान। पितरे दप धा दया कार्ण घोर से खच्चार था यर यह् उजयङ् वाखा सि महाराजं दहत दिन के वष्द भापके दृंन मिरे वेना चुड्दा वेने से ते टाचारः ही थापस्नतु टाथ दिलाता था ओर खक्ष से यद क्ता था सि~ तुभ्र अलग जानो] प्त वदे उ जव कहता था--"भ्वाह् गदाराज, लू र्दे, चर्द् वपं हमने.जव दनुज पर अल चडढाया है तव वाद् सुरु के पके दर्शन मिञे है सो सृाप-अखम र करते ट मरा जापका छेाड सकता २ यप ते हनन् ह ।! यद चुद्ढपए फिर दय दिखा र सकेत से केला कि-- ष्ठ हृ उ इ, ॐ हं!" यानी मै हनुमान् नद्य ह~ चुम सग द} इसने क&।--, यरे जाव, महाय, "अय पक वहीं व्यरूने की, दमने हुन दिन अँ मापे दसं पर्थ 'हई , साप रे भको से पद्टने पेखा कष्टा दौ करते ह । वेच घुददे का
५ । २ र ६-उञयर २०५
नः लना मुहाल ले गया । म प्रकार जव युद नेदेरा इससे पीछा छदना कठिन रै लो वोदा क्ि--"अच्छा, म पवमान लुप अरवा अभिभा करे, पनाह? शसने टाथ व (१ राये दर्शन कसो । बुद्दा क देयाना क्ति ध्ये रमचद्ध मे दशनं कासे षे परन्तु सनाया उसी समय चार सवार घौडे पर \ ० रजञाक पाख डाक दरि जनिये, जय वुद्ढे ने देखा १ ह करिणी अकार न भनेगा तौ उसने का--ष्देखे, वै सि भाई जा स्ह है भौर वोरा कि--
„आभि आगे राम सात ३, पीट लद्धिपन भई ।
, ' समके प द्धे भरत जात्तरै, प के-शयुष्न दिर ॥ उने यद खन ही उलव म बुड्े को छोड सि की तोर द5 1 । गमे तीन सव रतो जाने मस्ट गये, पीठेयके सगरव साथ चट् दजवकू जा चिर मौर वोरा कि~त कठ क चाद् दशन हट ।! सवार ने कदा--शवा दै, षया चिपटना है, प् कीन? यद् तीला--“मदयज, मै मापा भक्तह, छग मथि १२चपतो सने बव पर जर चदाया, तव तौ हनूमान्
जीये मापन्नो वताय ह । सवार नै कद्ा--' गर भष, टम सरकारो सवार है, उक लिय जति ह र्मे सुमते क्या समक की क्वा धोखा देते
रकया च 1" एसने कहा--'महासाज, दास
1 साप रा छर्रण भरत नुन्न चारो भाद 1 सारम पदा--प्नदी, इम स्वार दै 1", उस्ने काा--प्माप तो अथम् भको से देना ही कदा फस्वे है पि जिसमे दमे लड दसो हम अपप की छेगडभमेवाके "चष * सवार् नै जव देखा कियह स पक्रार पीछा न छडेगा मौर डाक फो शुम द्रर देती (3 से ठेदण्छ्र पीडने खगः सौर यद गिर पदा 1 पी सोल ~
॥ २०६ दान्त सागर-प्रथम भागे १ न
सारे यथे चाहे पीडे गये, दशन तो करष्टी लये \' सम्पादिता सपदि दुर दीरषनाद्या यलोक कव + सनानि निराछृतामि । निष्पीतमम्बु ` सवेण नतु दवनेया, £ = { क ¢ 1 । पन्य तेन भवता विहितो विवेक, 1 =,
५ | वि | ९१७--खियों के परदे से हानि ` ' ¦ विदाकःसये वस्व से आरे थे भीर दुसरे सेठ फानपुर अपनी चह की विद् कराये दश्चिण ेदयावाद् से खा रदै चे । दोसे का दखाहाचादे स्टेश्तन पर सज्धम हये गया, ओर दोन यये एक ही विस्तर पर वै गदं, परन्तु अब वात यद धी प्स्दा कै कारण न तो कानपुर सेड सपनो चह को पषठि- लाते थे भौर ल कङकचावारे सेट अपनी बह नो पष्ठिचानते ये 1 थे देर कै चाव् दोची मर खी जमिवाटी माडियेष फा निदान वष्ठी प्रर हुमा 1 सेटो ने बहुं से कषा कि वहुर्थो । सुम अस अखग सडी हा जायी तो हम "यस्वा खम्दारु ठं ।' ध्िफद यह दुभा कि करकन्ता के सेड की, यह कानपुग्चार्टो के साथ चरी माई मीर कानपुस्वालो की चष्ट कलकन्तेवले " फे साथ चटी गह । जय यदह द्ये कलकत्ता वीर कानपुर चार २ दिन स्ट चुकीं तो पौ मालूम हुम कि कलसे, क, हु कानपुर -भौर कानपुर की चद फठक्प्ता चल्डी गड } भन्तं नं यह हसा करका वारा कायपुर यपनी वष्ट फौ केने भाया स्र सपनी सनो उतेखस्तेमे हौ मार दिया! दुसरे ने कने.
फे से फानपुर जाकर यहीं उसे छे दिया कितु. दमाद् भप्र मीन! 1
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११६-पेद) स्ये फा मुष्यं ध्म २५७
9 ': ए-वरतेगान चयो कौ विचा + "ष्फ खटी ने भपने मायक्तेमेंरषह कर विचारोमेपञय पसा ज्ञा टर् भफार की नरुतीफा सद फर सी यपयै जे 1 भव यड् धियासी अपने सासुरे मरतो षते खौ तक गितती तोगातीन यी, शस कारण नयने स्पथोंकोदोदौ घरावर र लिया करतो थौ सौर जवष्टो दो वसथर्हो जतिथेतो समकलेतीयोकरि रमर पये पूरे है । परन्तु निलन यी भी यड हौ चुर थी, यद भीदोष्टी दो निकाखाकयनी थी । यहो नक किनि कखते निकूटते दस्त पास मेयर चवोस रपय रद् गये । परन्तु तव भी यड पने वरावरकर कती र कोहली चन्दो याह किः मेरे पूरेह। पङ दिन निकालनेवाल चै इसके यपये निकार रदौ थी कियद मा यई, श्च कारण निकालनेवालो ने षक ही सपय ।निकाख पाया । शमे रीर दो भप्ने रुपये को ददो वरापर किया परन्तु पक घट रहा तमे ग्रसे मालूम हुमा फिमेरी चारौ आदद गर्प1 तवतो प्सन्ती सास नै फटा किट मेँ ठेर रपयै निनद!" यद दौ दो घरायर फर दोलो. कि-*१) खप्या तो यदतः ह त् धिस्लका छ ख? अव माप स्यम सोच टं कि नके खपुद् मासो नय घर का कोरा सीर वार वच्चे दहै, पेस्सै खियेंकी
घन्तानं जितना भूर्खंन हो उतना द्धी याडाह।
क ११६-तेवा च्य का सख्य धम
पक धार कसी क्री रानी महासणी श मई ५
धान पर पक परिदडत क्ये कयाश्रयण करने गद । कथ्या
रस्ति जो नै पक दषटन्त का ि--प्दनयेव सिये फे मकर
व कि जव तक दना पति जीविव सदत है सव उकतो
०८ दुष्ान्त साग्र पश्मभगि
~-----~---
काची क्श्वी च्यूरिया चार न्रारयाद्ैकैचैसेकी पदिनती है अर जव पति मर जातादहैतये सोने या यादौीको गह्नाया पनस्य वस दस, वीस यौस, पचास पचास स्पयेका परहननी हे। महप्यणी टक्मण वारं ने परिडत्त जी कौ उननट द्विया कि~'मदाराज क्षमा कीजिये, जापते "टस मदटस को नर्द सममा । इसका मतखव यह दै कि जव तक इनका रिण्ता अपने पत्ति सेतो ये समती है किं पति का पाञ्चभौतिक भरनिलय क्छणभद्भुर शशसीर कच की क्श्ची चूरिथोंकीतग्ट जरः से श्वक्फेर्मे फुषटसे दो जचेवालीरै, एसटिपएये जवतक दनका रिता छम्दार फे कच्चे घडे फी तरह फटनेवाङे पति के रीर सरे रहता है तवः तक काच री कच्ची व्यूडिया पदनती दैः ओर जव पति मर गया तो थव नसाररमे इनका , ष्क उस पक्के परमांत्मासेजेा कमी भी द्ये पएरुयनेवादा ` मदीं सम्बन्ध हे जाता रै, इसलिये ये सोना चाँदी की एक्कौ चचूस्वां पष्ठिर ईवर-भक्ति में जपने जन्म को धिता देती द॥'
५ [भाता च ५) 7 ॥
९२०--्रसेभव कभी सच नर
एफ चार णक जगद गप्र उट र्टी थौ, तचत एक दूसरे राप्पीञाग्ये1 अयष्यावा श्गप्थी के घर गप्पी भये के ; भदुखलार जव गप्पिये के यहा गप्यी नपरे तो गप्प मारनेकी कमा कमी! यह् चोः कि--"दमारे छुरू तौ अपना सिर काद , चै भपने सिर के जु" बोन लिया कस्ते दै {" कृषरे ने कदा-- भ्भरासेतो सिरे खाय कट जाती हफिरखिरफेजू किम खे देखते दैः ? सने जपने स्ट में अपने दी दाच से एक धप्पड माय सौर कष्ा-- च, इतनी ही त्तो कटी निक गई, नदं मते सवं खष्वीष््ीयी!- ~ * ।
॥ वि १ 4 ५ ~ ॥
१ &~-दिना सम्बन्ध कै वार्वा २०६
` १२१-तन बदन का होश नदी प यई नपने वसे को कन्धरे पर रजवे हप उसे द दता कषिता था फि वस््ल। कदा गयः शौर दइवर उथर पिल पिलत >गर व्यकुर हो स्टा धा ! क्रिस मे कद्ा~'कन्धे पर ` यना है? वह् कट. उस पुख्प कते वैरो परगिर पडा ओर वोट क्ि-"वापनवता देते तो मरा वला मयय ही था1'
च द°
` प्र्द्न्चोरकीदादी भेषिनण प्पक वार षस मुष्यकेयदाचेरीदोगः थो । उसा प्रता छगना' कथन ले गया था। उस पुल्पने वादृश्टङे यहा प्रार्धना-की । वादनताह् का वजीर बडा री चतुर था. यह तमाम वद्मा भौर चे को इग करः वोदा फि-- ष्चेरौ दाहम त्तिनका ड अयतो जिस मदष्यने चेन । की थी, वह खपनी दादी देखने गा । वसत चज्ञोर नै रमभ विया पिः इसने चेरी की टे ।
१२३-घाज कत्त की सती धिरे खौ ने नपनी खास से पू-ढा ि-- सती केना मानि ह? उसमे जतःव दिया कि--'जिराने खाते गसम रिभ द, उसको सतो कते द ।› इममे परः उसमे फटा कि-- तेग लडका मेगः याय ससम ३ सास ने जयाय विय, कि--
नूर मच दूरे खत पर पदुम र्वा
- ष् भ
१२४--बिना सम्बन्ध कं वर्ता ण्दयैधजो णड सेमी को देखते गये भौर उनके लप्थ उनका पकर मुरख शिष्य मौ ययाः) देयजो व्यादी सगौ ॐपाम
^
२९० दृष्टान्त सागर--प्रथम भाग ' | 5 पटे तो चने के किखके इधर उधर पडे देव उंसकी चद्- परदेजी पर चिढ कर वोके कि-- तुम्दारी नारि मतो आाज्ञ चते उछ रषे हः ।' रोगी दाथ जाड चोखा--'महायन, आजं `. भू हौ ग, मैने दो भाक चाव किये, पर आइन्दा येसा कभी न गा !' थोडी देर पँ वैयराज चे याये । यस्ते मे.शिष्य , ने पूछा--"मद्ाराज, आपने यद कैसे जान लिया कि षसफी ` नाटिका चने कुद रदै दैः वै्यजी ने कदा कि---प्चर्मो > छिलञे उखकी चारपाई के पास पडे थे, दरसचिपः पेखा कद दिया ! दूसरे दिन जय' उख रोगी के घर के मनुष्य फिर वाने गये तो चैयसाज तो रोगी कौ वद्परदैजो से चिषये, दख कारणः आपने उसी शिप्य कौ मेज दिया कि जाभो उस सेमी को देख नामो! दने में सेगी के घर कोई उसन्ता मेद मान उट पर आया भौर छट की काटी रोगी की चारपाई के पाख र यैड गयः ! जय तक चै्यसाज्ञ के ' शिष्य रोग कौ , टेखनै पटचे । यद ऊट कौ काटी पास रक्ली देख रोग। की नाटि-का पकड ऊ योखे,कि--“भाज तो यद ऊट खा गया दै, इसकी वाचिका मे ऊंट कूद रहा !' रोगी ने धर के रोगे
नै कदटुा--'सवाना तो ह्ज्यि ४
अप्न्नरणभक्तर नास्ति नान्ति मृलपनौपधम् ) अयोग्य पुरुषो `नाप्ति योजकस्तच दुभा ॥
॥।
१२५४-िना योग्यता के काम
प्यः यै्यसज सपने न्तीकर को साथर वारर स्थी के पमिन्त चे, परन्वु उस देशा की प्रथा यद् धौ कि यगर रोई शेगी मरऋताथधा तो वैय क्तो रखाना "पडता या ! चैद्य
| ध शरदन्ते खोभखेष्ानि २११
५ भे चतुर भीर चाल्पक थे । हर चार शान उडाले भँ यमे कर क्ाननिगौ के स्तिरफी ओर मौर प पैकी शीर र्ट थे{ दैयराल जरा जहा उचा कसमै जानेधेवे प्राय सभी मर जाया कमे ये । भवक्ली वा वैधराञजप्पलरीगीकी व्वा करने गये ता नीकरते कदा कि-महाराज, नाटिका पे पडा, पहले यद उल्या लो कि नवक हम वैदे की मोर स्छेगे " यह् सुन व खे दोनो निका गये -- ,' सोमाद् कधा परभवति क्रोात् द्रोह परमते । ¦ रोहति नरक यान्ति गचननोऽपि विचक्षण! ॥
†
० : २्ध-प्रयन्तल्लोभरमे हानि प्क यार एक चेली. का हुत दिग से यर इयदा हरदा था षि भगर के सव मे यडा खायिवाखा त्ठाण मिलेतै णक ब्राह्मण चिदा । ययपि सेटजी धपे धर के बडे मालवा. परन्तु अत्यन्त छोभी हैमे के क्ारण्य उनश्ी यदह दथाथो नि यै चुन दिन तक देते धराय कतौ खोज र्दै। सेऽजी के वहस दिन तक दख ध्िचास्ं सदने कै कारण गावे व्राह्मभेाने पमभ् ख्यि था कि चतरं वन्न छोमी ई जीर सटी का दसा सा निखार टै । प्तक दिन सढजी से पक याचवले प्राह्मगमे वत्ती एं । सेठ जी ते पू-ञा--""्माप फितिना पते दमि ^ गह्मणने कष्ा--"दक छटा भर के करीश 1*” यद सुन सेठजी उसी समय उख घ्राह्मण के! दूखरे दिनके न्व न्योत दिया पीर द्यश्च से योद्धे कि-- ्णिटितजी, ओतो कट फराने पान मे सौदा चलनि जागा साप मे$ घर आकर भोजन फर मे {/ यपद्यणने कष्ा--"द्न यच्छा कषधाजी कौ यनो दै, दम नो मेशा मापी लोर्गी का क्ति है) यही समो
॥
1
०१९ द्रान्त-सनिर--म्रशम नाग ,
व चार सेमे अपने घर जाकर सेटानी जी से द दिया किरम
अमुर बाह्मण के कल कै दिप न्योत अथेह, स म"तो कल फला ग्यान मे सीर तुलनि जाडगा-यीर तुमरज्ञा जे व्राह्मण मगेनेादेदेना, च्येकिसेठजीनै यदत जान दी चियाथा कि जव परिडितजी जी-खयौक भर सुरार है तें मागिंदी गै क्या? दृखरे दिन सेड तो सौदा ठुटप्नै चके गथे ओर व्राह्मण ले आकर सेडान को आशीर्वाद द्विया । सेठानी यैलो कोभिनी न थीं भौरवडी स्वी, पतिना, नाद्य भक्त थीं । उसने पृ वेचि पडितजी, यापको क्या क्य! चादिये ?" दन्टेने कद्- ५९० मन अन्ड, २ मन घी, ४ मन शाक, २ सन शकरः पाच नेर नमक, २ सेर मखाटाकते घ्रर क्ते चिप 1" सेढानीजी ने पनि कथे आक्ञाजुसार खय. लिंक्खवा द्विया अर `परिडितजौ नै दस मामन को घर भेज सेटानौ जी से का चि“ हमारे स्प जघ्दौ चौका खगवानो 1, सेटौ जी ने चर पर चीका खगा परिडितज्ी को भन वनवपये । भेःडन करने छे धाद् प{णडत्ज। योरे क्रि खेडानी जी,. अव हमारी १०० अग्फिया जे। दक्चिणा की ाद्िये चट् नी मिखज्य ते हम ते आशीर्वाद दे घर चलें 1" सेठानीजीने १०० अशप्याभीोदेटीं। द्यम आशीर्वाद दे-चिद्ा दुभा अर अपते,र्न्नै जा पिकछछौराभोट पड रहा भीर अपनी खी (त्र दयगी) से बोक्छः ~ अगर सेट भ्रव ते तृरेने खुणना जर कदन जि पष्डितते जम से आपके धरसखेमे्यन क्रे थवेष्ट्तयसे दो यन सश्वकीमारः द चत्कि चने क मशानही ! च जनै जपन न्वा खिखादिया + दुर जव शाम टरो सेड द्विन भरर के भूल, (यरा तकः कि ये कभी कोभ से कंकडौ भर यड खार पानी भी चार नी धौ खर्ते ये) ,धर म नये तेष सेठानो से पू-उः-- ्राह्लगजो मेभजय कर गये?" सेढानी से कदय सि "ह, परिडि्जी ते ५
1 \
१०५७-क द्व्र {1 द
"तना इतना सामान घरे चिपट माया भौर १ सेर वकी
|
पृदधियः यहां घना के खादर ९०० अश्या दच्धिणाको नी चये 1" सेड यह् सुन भृ छत दगया । फाडी दर मे जय से
। फो भायात वह् उस द्रह्मग फे घर पचा । राड गी दर्वासि
प्र वैढी थी | सेने पूरा स्ति वाद्यम कँ है ?* यह् सुन
` ' व्रणो पड प्रर कर शाने रगी मौर योलो- उने ता जसे
भापके यदा से माजन कर आये षे न जाने मवा हेागया, चुन सरुनवीमारह, चर्कि वचने की अपा नही, त जने आपकर भ यमा खिखा द्विया? सेर ब्राह्यणो कै दाथ जञाडने खो नीर चौले क्रि--“चिहानो मत, दम २००) लुभ को ओर दिये जाने हं से उनकी दय! दारू करो, पर यद मत कटने कि सेश्जो कै भेर खाने गये येनेानजनेक्ाचिलादिया 1"
{॥
॥ ˆ १२७-ङ्कशा १
\ पस काक्ईशा चत्री टमेशा उरा वततव फिया करती धी'1 जा पतति सुख सखै जिक्सेउसके विरद कर 1 काम्या । -यदि पुरपः कद" कि इस सालय यथ ठगडणा ने यद् कती किं यछत रमौ न दोगा भीर क ुउएो। ५ ८ च अलमत -सरार्जपातो यद , नर पनि कता किं इख सण्ठ व छार कु ही । कहती वो व्रह्मनोजते कमी नद्या अर चा कुच निमे जय जान खया पिरयो खा यद सनात दौ दता बद शुक्ति से काम रेने ल्य, यानीजञेाये फु शख पुख्य का क 3 खै का उल्डाफदा करता या । यदिन गदिता सर्युध उस भ्या म यश, प्रह्मनेाज य॒श्च तेता तेः कना श्वा सन्ता ग् यथ, कमन रज ् त त कहती नि प्पैरब्यादेषुखनद्यद्र षत् चरू 1 < ट अचध््य हैया! यर जीर व्र्ठमेषज के दस सल अच्यत
1
1 1.
१४ इषटान्त-सायर- प्रथम माप 4 ॥
१ ~ ----- ----=------------= 1४1
श्न टषछठान्न के कलने का प्रयोजन यहद, निः अगरमयु् बुद्धिमाय् मौर युक्तिवान् रै ठो दए से द आर विरोधी ९ चिसेधी मचुष्य भी उसका ङ्ख नदी कर सकना | ^.
ध
४ २
ह । १रप्--ग्रज्बन्ह्य विज्ञा ` “^, पम सेठजी ने पर बदमाश को पक दजार सपथे कजे दिये । जख सेठजौ उस षदेमाश से चिखेय तक्राजा करने स सो सने पन्न धराज से जे¡ उसके पडेख ये रा कसते थ, सलाह पृी । चैधराज मे कहा कि--तुम यीमारौ का वदान कर मयने घर रौद्रो, तोहमसेऽफादो चार सौ' रुपया चिगाडवा देः 1" वद्माश से देखा हौ किया भौर गावें चैधरालने यह प्रगट कर दिया फि त्रसु वद्रमाश वहुत सवत यीमाग दै, माज दी कलमे मरम ह । अय सेद जी विचारी खा तफाजा तो भूल भया भौर वे दुत! उसे देपने भते थे कौर एसी कि में पठे कि फिसो तरद यर अच्छा षो जाय । सेटजो ने ङयराज स्ते पा कि किसी युक्ति सै यदं थच्छा भी द्धो सखकना दै? केदराजमे कहा कि--^"अगर अमेरिका चा उन्त्ू कहीं मि जाय भीर उसका करेला निका छर श्रसर्पे ददा यदाई जाय सो यद् आराम.होसकरता द । केचिन अमेरसिरू कद उच्ल्.'*००) पये मं पता 1" सेख्ञी रे स्वा पि आगर यद्व भर गया त्य तो एक कीडी भी वसूरनलोगी सरीर इल धकार अगसर८* ०१ उस्म चे जार्यगे तो ५०० ॥ नो निने । यत उन्देमि यद म्यच खकार फर चिया। थोडी दरगे दैरज्ञने उखी यद्माण के किसी सम्बन्धी को उच्छ केकर य्न मे वेचने > चयि मेन दिया भीर यह् कह दिमा क्रि दाजरर मेँ कना कि--्टयो जमेचिफि फे जमल
ए ।
॥
न
य्त् }""सथ्यन्धी बाजार मे जा योलने रणा छो स्चेरिष्ा के जंगल का उल 1* सटी चिचारे तौ भाखामरी की दौमारी से घषडः हौ रदे ये, उन्दने पुकारा“ न्मी अमेरिका $ेजगट कै उकर्ट्वाखे। उल यदा रे भा 1” जव वह् पास लाया तो सेठ जौ ने उसकी मत पूगी । उ्््वलिने कदा-"दांवसौ , रुपया 1» सेरी ने फौीरन ह्य ५००) उच्ल्वग्ठे को वे भौर यव्द् छे वद्मा ॐ दयं पच फर चै्राज स कदा--खो हम अमेरिका के जमर का उल ठे गाये 1*” तय तो चै्याज नै कष्टा कि---'"रोगी तो यच्छा [होगया, अष श्राप उद्द की फेय मावध्यकता ह, आप अपना उल्च छे जादे ।' अव तो सेय्जीनै इसको पक पिज्ठेमेंरण अपनी दुकान के सामने ` यग दिया सौर जञा कोर प्राक भाकर कतः था चि~्सेठ शी हरी है १, लो सेदजौ यते ये किसी दै भिरा है, धनिया ष, उर ट योर पटे-- भ्डी खाली ह ता
जबाय देते दै, मिस्व है, लाची ह । उददहै।'१ गर्ज नाम ठे पीठे
१२६ व्याड करनेषाञे की ददशा २१५ =
लायो छु पृषे तो ठो एक गीर चीर्जो फे कड् दिया करते ये “उव दं
ल यावत ीि्मवतलो रे यायत सवर्थ छु परयति ', ~ बर्हः सीरपय दष्ट्वा प्रिल्यलति भातम् ॥
॥
६५ ^ 7 | न. षप । ¢
९९-दो व्याह कलेवल के इदा "णक सेड द चरमं णक चोर चोरौ द्रे के निमि यडा ' परन्तु उस सेढ फे पाल दो 2 तरीं उर उसका घर दुखा
वना मा था, ष्क सस्त ञ्च चातीथी मौर णक उपर नो स्ह धो । परन्तु नीचे चे ऊपर दनि ने च्वि पाम दी ष्वः ष्विड्की थी, सेठ जी नीचे सोतं ञे! जय सतक नौचेसे
२१६ टर न्त.सागर--तथमभग
ह ॥
उट करङऊपरजनेखोतो नीचे की भतौरतनै तो, उमरे चैर पकड लिये अर ऊवस्वाली मै चोरी पकड खो. मौर दीनं अपन अरनी थोर यीचमे कमी, वैर सिप सनभस्यावती ` छ, चोर रतत भर तप्रष्ता देवते रहे। प्रतः कार चोरः परूड छिये गये मीर सेउजी उनङो साना के पासं ठे गये। राला ने चटा~"भ्योरा चो प्या सड होनी चाहिये, सजी ने यहा शि“ इनङ़े दो व्याह करदो । चोर वोर--दुजरः चाहे हतै फासोदै दौ जाय, पर्दो व्याहनं क्तियि जाय1' सजा नै छहा-“दयें ?" चोराने कष्टा- सेट से पृ कीलिये॥'
1 ४
१३०-रशडोन्न ो उपदेश ` `
एक" रण्डीवाज ने एक वार कु रखपया पक रण्डी कै यदा रक्वा! उसने खच कर डल।। रर्डोयाज रर्डी से माग रहय था गौर रण्डो कहनी थी कि--भेरे पास रुपया कटां ¢ तथ तक पक भञे खाद्मी पटच गये जौर उस्र रणएडीवाज्न से! चोठे किना, तुमने कभी इसके नामसेभी चीं विचारा। धरे मह्या, जा उनेवाखी तो जेष्ट हुआ कसती मौर जाडं टी
जैष्डध कस्तो दहै, यष तो है मासना। अफसोस माप (भसन से गास स्ते, . ॥ “
11 ~
वेश्या परो मननञ्वाला रूफमेन्धन समेषिना । कामिपियत्र हूयन्ते योवनानि ' घनानि च 11
१३१९-चार् श्रोता ` `
पक पण्ठितजी ने पक वार प्पक दष्छन्तं दिया कि श्रोत! चार प्रकार कै हा कर्ते द-प गपुभाः दूसरे तका, तीसरे छमा, चैये भकुमा 1 पणडितमौ चो फि गथुमा धीना यसे
द १३२-वद् सित सै दुरर्ो २१७ श्हलति र ज्ञा फथा में गप्पे खाये, मीर तुना वे जे यह गा स्ते है कि जव फे अच्छी चार्चा गधे ता स्युने, भीर समा रै ओ अर्थं र्खाप्सते षै, भौर भङ्थाचेज्ञा सथा
सो स्हा कस्ते टै 1 एकन कदि का वाक्य है--
` "भतिवुद्धे श्रोतरि उुपौवय प्रयाति वैफल्यम् । "' चेयगविहीने भकतंरि नाचरं विमेह संजनाज्ञीशुम् ॥
१३२-यद नियती से दूर रहो एक वेर ठायै सो वावन वीर रहषे। पैर "वेर उगावे सो गप्पूनाय द्टवे।॥
ण्कङ्प मे वदु सैर्गेढक, एकमे यौरणछर्लापि र्हा 1 मेढे के धरध्रानकानाम था यदेत मीर सतप का प्रियदर्शन तथा गोह का मद्रा । प्रियदर्शन कीर संगदतच्तमें नदद् दोस्ती थी खेकिन प्रियदेर्मन उन छर्गोकेमेदरौमे परमेढकरोज सखा चिय्। करता धा रौतरे रत्ति उस्तदङुप = समरेदक भियदर्दानिने खा चिथ मौर फक दिनम्ममय पमायाया कि परियदुरगन कै खाने ठो छ भीनर्दा। धियद्शान ने सोचा शि डान दहा साजे गमटत्तष्ीकोगनि क कामम काऊ। शाप जनते है किः मन को.मन खम जाना गगदेन्तमे समम्न्छिया इसने टमष्टे खय भप्ररयेो कोनो लाद डाला शीर खाख दज मन्न मुकर पर द्व स्फ करने का विवार दागः | यन गंगद्रत्त पम गद्नरमा पर्ञ्यो सा प्रियव्यान कै पान -द्चे तौ वीरे सिर, गाज मण्ड वरत खा यडा गकम ह शि हमार मदि मह तो निष्ट गायै यदि घाप नाज टमन्छीमी गाने तौ पफलसे भाप पि लाये १ पए्सदिण यद्वि यापि "णुकं थत्र पर् तो भाय
1
०१८ दरुएान्न-सागर--प्रधम मग “
ष्टो वदुत विन कै खभ फा एयन्धष्ो जाय ।' धिथदुर्शत कषहा--"वह प्या ? गंगदत्त चोला करि- यार ,पएकं वा मे मेरे यदुत से भार रहते रसो यदि धापमद्राको भषशशाद नौ बट अवनी पीठ पर चदा कर सुरे बाहर उतार माते भी सै स्ख ता कै सच र्मदमौंको लिघा काञ।' पेसा ही ुभा। प्रियदर्शन ने फौरनष्टीभद्राको साक्षाडेदी कि~तम गंग दन्त फो जपती पीड पर चष्टा कर बाहर उतार आयी. भ्रु ने पीर पर चदा गगदत्त खी बादर उतार दिया । उस समय गगद्रष्तं योखा कि--, 4" ४ पिषुक्तिव, किन्न करोति पपं क्षीण्। जनाः निष्करुणा मवति । स्व गच्छ भद्र प्रियदथैनाय न गणदत्ते पुमरेपि कूपम् ॥ अ्थ--भृखा क्वा पाप न्दी करता, उस क्षीण पुरुष. ट्या कहा सो ष्टेभद्धे। तुम तो भ्रियदशंन षे पास जाम, अय गगरत्त पिर कुप मँ न जायये | ` नोट--दन हृ्टन्तौं फो देख सदी अप दोग यह कुतक न उखाने रगे कि साप कीर गद मौर मेंटक भौ पाटी घौटा कर्ते ह ? नीं, चास्तव मे यद केवल मदुष्यों के साम्नि फे लिट सप, भेष, मेंढक के नामकेङे अलड्ुपर वाध करे गये ह । सलि कीई दोप नदी । यदिमे लिष्वताकि यदह सश्ा वाक्या है तो वेक शूठ था। वि
1
1 ५ १
~ ५ ष = + ८ , ` ष्द्र्-प्रमेश्वर कमौस्ता ,'. , पक दृक्ष फे ऊपर पक कबूतरी सौर एक कवूलर यैडे बु थे । इसने मेँ प्ट वदेदिया धलुप वाण स्यि इष शिकार को पड स्र इस कनरूनरी नीर दमूतर को वैटा, देख, अपनः
चनु वाण चद ष्की सर् पू निभाना खगा दिया ! धते
। देविना पसेक्ना का कामि २१६
मै परफो ओर उटनी हुवा वाजकींसेना रदा था, उसने भी शरपभी ध्वात गाई कि इम परं धावा करना वादये 1 पह दशा दैष-- ' , काले वक्ति कपुतररा फुनतया नायान्तकातेऽधुनो । “ व्थावोऽातूनकापमन्पितश्रा रनु से दस्यते ॥ ` -षवर पत्यऽहेना प्ट -पु- मेनाुतेना हया । तूती गतौ यमासय महो दैवी विक्त्रागति ॥ भशर सपने पति चे कद् नरी व्याकुल हकर चोटी किर भाश, काट सिर पर अ गया ठेखो नोचे दष्ट वदेचिय्रा धनुष पाण नद्ध पूरा एस निशाना कगे हण ऊपरकी भोर, ताक गद्है मौर" धनुयतसे वाण छोनेरी वाला सौर ऊपर क्षी भोर देपो वद वाज जो उड र्हा द वह भी पूरी पूरो वान खमे ए ह, यहा लक फ कष्या मारने दी वषा है । परन्तु ' हाना श्वा है पि वदहैल्धियेने व्योही पना वाण चोदना चारा, च्या उणकते वैरे पक खं चिपट गरा भौर उसने वहैलिये चा कार् याया जिससे उसका निशाना त्तिप्छा दा गयः -भैर ' मसा घ्राण ऊगन्धारे वाजे टगः जो कञुदर कवूतमे एर भष्यः मारने नारा था । चस घाज तयौ ऊपर मया जीर लि नोचे मद यया । परमेश्वर नेग मद्धिमा धन्य द!
---------~ब
१३४ त्रिना परीक्ता कारकम
पकः प्राह्यणोमे एकन्योखा पा ग्ला था जिसके चट् षदे श्य क्ते रमी थी । मित्य धरनि च्छो से भच्छो वस्तु उव ष किन््रया करनी ची 1 ण्डः दिन प्राह्यणौ सपने मासिकं नन्द् चाक को प्क री पर छिदा संसा-जछ भर्ने चस
२२०५ दन्त सागर-प्रयङर भयं
गई 1 .न्योखा ख्डकेकै पसेरेकेपास पैदा धा रि दने प सष उस छडके के काटने कै निमित्त भाया | न्योरेने संप छुचछतो खाखिया सौर कुक तोड मसेड वदी स्प दविया।ॐ न्योखा यर कन्तव्य अपना ब्राह्मणी कनो जताने के दिये उस पास डा चखा । न्योखा मायंमें चद्यगीक्े( मिला । ब्रह्मः ने उसे य॒ मे श्वून असा टम देख स्याल पिया कियर्दमे पुत्रको काटः कर भाया द | यह् स्यार कर्तेटी उसको क्तो भ। यथा तौर उसमे न्यो को वरी मर डाद( । पश्चत्. निः स्मय ब्राह्मणी अपने खान पर प्ुद्धीतो प्रमा टेती दै मेस वाक यनद खेन्वारपादूः पर खे रहा रै- थोर उ: चालत के खरौ कै पासी प्क सपं रुना हा पडा घ्राह्यगी चे जान लिया, कियद सपं मेरे कडञेफेा कान भाय था -भैरन्योखा हसे तोड मगेड सफे-यद रिखाने गयः था 7 दैप सैशे कटके कास्यं कारन भामाय उसेमेन्तिडमरो के र्य याष) पुन उद्यगी के यह् तसं प्थाताप हः पि जप पेखा व्पचः हितेषो\म्योदा मर गप्रा तो अप्रा नेसे ष्वा? इ्सलिष्ट कटा है रि ` : शरपाल्तिद न करेवा; कत्तव्य पु परएक्तिम् । प्रश्चाप्ववति सनाप, तरद्धाणं नङ्वार्म॑त ॥ "~,
यशथ--विना परी फिये कमी.को$ काथं च करना चाहिये नचि र काम कै भरी भाँति परील्ा क्र करना चाये
में नौ दसो धरार का पथ्चात्ताप प्र दोगा रील कि न्येर आसे व्रह्ममीकतो हुमा]
= २
श्देष्-विना दधि के बिध निप्फल-दै
अ क
9“) युद्ध 7 वियः निपत्य 5४
म ~~ --र ----- ज्ज फे जानयसे मे वडा उ्पद्रय किया करता था, यदा तक 'कषनासोषहष्टो लाधर जाचदर वा यीग तोड फोट टस
पिष दवा या । अन जदं कँ सम्पूण जनया ने सेक्मति कौ किम तुम मव मिल कर वनराओअ के प्रास चल सरस धाथ करे ऊ पेल करने से रपरा फा फल कि पपरान्पसोप्मीरमारे सष शस प्रकारटमसमय धुन अन्द् निप्र जयने, दसदिप समरः आपरकीरायहोतो धम दछोगघगनी अवनी सोखर वधं भीर एरु रोज आपके
धराल नखा भाया -तरे। शस भांति दम लयनी पु दिन जीवन रेभे भीर यापो भोजन भी वहत दिन तक मिखता रदेगा । नि भे जानवर -गी य्न राय स्वीकार करली गौर्पेसाही हेते र्णा, यानौ उनजानययेर्मे से ष्क रोज चाजाताथा सौरकिंदवपनी दृन्निकरः लियाकलस्ताय्या। ष्क दिन पमः गक वारौ नरं पर यह सिद के पाख टुत विलभ्व भ पष्टना । सिद बडा क्षुचित धीर गुभ्ते से जका मुज ध था 1 त्यास उखे सामने खरहा पटा नो वफ योटाफि-^ र ष्च इतरी दैर नफ कहा रहा?" खर ने उन्तर (1 मैनो यापकी सेवा वडे सेर आत्ता धा टेकिन मु दृसया सिंह भिक गथा आर वट् नौला 'फथेगे खरदै, तू कटा जाता ई?" मैने कदा~कि उस ननमे जो ट्मास्प चननं स्ना, म उखे पास जाना ह "लम
६ (० नोसिद्ने अरा ि-प्न्क उस सिद के दिगन्ता चह कष्टा 2? -वर्हेने यी दूरले जार सिटको पशुम मन्या जग कष्टा पि दमे र 1 ४ ध व्ये ए शुष ओं खायो नगा किषुण मेन ~ व माह । चि कमे यह निन्य दे गया कि दसन द यव्यं £| रस युमः सि युष्मे कृद पदा नीर सन्दे ने नयन ट स्म १ सनन्द (ऋ) ५ १ ॥
५२२ द्ान्त-सामर--प्थम भाग ~"
वर दुद्र न माविपाः विद्या बुद्धर्तमम् । ; दि ।वदा विनम्येव) यथाव रिह कारका ॥ ' `
1 ~~~
१दद्-मेषयारी . | ,
पक चिणो यडा ही दुष्ट ओर निभादिन व्व तोडा कनी थी, इस कारण इससे व्व भो रोप्रियारं षो गये थे सीर सके लामने कभी कोई चूदा परिल वाट नह -निरुखना शा। ल्व चिद्धीं नै देखा कि अय मेसा गप्फा नही जमता तौ उसने यह आडभ्वर स्वा फ छ दिन उसने चूहा तौडनः छोड द्विया भीर धरधर उधर सै रोगे के घर मे जा कहीं दुध, कटी भेदी, फट कुछ कीं ङ्ख उखाकर लाया कर्ती थो । क दिन के वद्र विद्धा एक घडे का वैरा सपने गले मँ पिर व्हा करे पासं जाकर वोटमे-श्चै केदारनाथ क गई थी, सो यद केदार क्ण पद्दिर याद ह्र उैर वहा स्कर मने, ,वडा तप किया अर चद प्रतिना फी कि म कमी दिखा न करूंगी भीर न कभौ किसी जोव च्छो सनाडगी सो व तुम दमसे वे पिम रौ, मै च ठको नहीं सताङगौ 1" च्चे यह सुन 'वेखटके षो गये ओर मय सव चेष विली के सामने निफरुने खगे, पर््द् चिष्टी पनस समय सव चूहे जत्ेये तो चुपचाप सीधी साध्यौ खडी सनो धो ओर जव चूहे निकल जति ये सो पी चे पकः उद्धा न्वयि कनी थौ! पक दिन प्व ने जंतर को कियो माई, यद् रिद्धी तो तौर्धवासिनौ सम तपस्विनी ट सथा क्रेदुारकद््ण भी पदिद हप. ह, श्ससे मा पक फा स्वयो कि माज यन्त शनम ठसक के खिपः ह्र शुनीम वैः चदे धटे म्यते चपदी णपनी कुरबानि मर्गे, , तः {उन न्यम
1
--_ गदऽ~पडीसौ शणदौोप जामिता रसद
९ शाण चदा चा) चाये ववे से कट। गय! चि माज जिख समय हम छोग श्िहो फे सष्मते से चलम खी वो पे आए पदे जाय ताकि पता खग जाय फियिष्टो रम कों को खात या नरह? चाये ने खीकार कर च्य जीर देखा हो हभ! चवे विह के सामने से सव चदे चे गये भौर वाणम गे र्द गयेतो यद्धे की चि्टो शीघ्र षी निगरू य 1 पन शृषरे दिन दिष्टी दै सामने बवे चुटे वोदे-- केदुर ककण कण्डे तीदवामा मदात् 1 „ पहल मत्य शते हिते उण्ड पुच्छ ने दपए ॥ : प्ति कण्ट मेते फेदार-क्डकुण पद्िरे रै जीर तत्थ ऋनिनौ तथा महातपरसिनी भी है पर दम सव पस दजार {1 उनसे ने १०० उड लिये र उस्सका शरमाण यदह ॥ नान दण नज्ञर नद्यं भति । १२७--प्डोसी यख दोप जानता हे , पग वार महाराञः रामचन्द्र तथा रक्परणजी दने चङे जारे यै 1 महात्मा रामचन्द्र पम्पाखर साठादर पए देल सारि ८ ~ ". पण्य सप् धार्यो चक णम् धार्मिक 1 , पन्दु मेन्द्र पद् धत्ते, जीषायां वधशक्रया ॥ जथ हे दक्ष्मण१ इमं पम्पस् ताच्धाव की देत 1 दस्मे गड रशा भीख चाभिकरै। देखिये कैसे धीरे ध्रेटयार्पा पर् दस्ता है चि कष्टं कोई जोीघनच मरः जाय! यदे दुन पड्टो शी कि ध वृ रं षरि रार तेनाह विक्री. । , ` दषटदु। प्विनयाकराद्3 उसि सदवासिना ॥
५
ट्त खार -प्रथस नर ।
४ ॐ
न सर्थ-हेराम। यगते कमी गाप प्रगंला करते दो, दमने
नो हमें निवंशी कर दिया । भगवन् ! - याप . घवा (जाने. ऊ" जिलके पान्न रहना द वह् उसक्रे गुण भ्य तरह जानता है। महाज, इस घुट तो इम अच्छो तरह जानती दै । ` नि
४ 1 1 1 \
१३य्-डपोत्त सख ॒ ˆ ` ' ` , पक्त वार पक्त बाह्मण धर से भरन की योज सँ निकटे , परन्तु चारों सोर संसार पर्यन कर भागे," पर की घन खीक न खगा । जनायासर एक महात्मा से इनको मुलाकात हे . गई भौर इन्दाने दण्डग्रणास के याद् अपनो सारी भवष्या ष्ट सुनाई । मदात्माने ब्राह्मण के विशेष दुखी देख इन्दं एक शस प्रकार की फाञ्वनीसुद्ा दी, ज सेन एर असर दिया करती थौ शीर पण्डितजी से कहा द्ि-ष्छर भाप श्रते जाय, यह् नित्य एक मस्रपुरी जाप दते दिया करेगी, जिससे आपका दु" दूर हा जभ्यगा। ज्ह्मण उस्रं कानी सुद्धा का व्देकर चरू दिये पञन्तु उ्कै दिले पूण सरूप सै विश्वास म गा क्रि यह काञ्चनी खोज्ञ यक असरफ देगो, इम लिये चित्तम यद् लगौ थी क कटी उतर मौर सान, पूनम करके इससे असरफी मागे फिर भरा दें कि यष्टवेतीह खा नष्ठी वरहमदेव ने पेसा ही किया 1 मागं त्रं एक गुव मिला जहा ण्क , शिवालय अरः छव यडा अच्छा वना या कीर पाख ही बनिये कौ दूकान थी । यह देख ्रह्देष जौ शित्राख्य मेँ उतर पडे सौर छण पर म्बान कर शिषे पून फरनेके 1 वरह पास कती दक्रान वाला वेनिया'भौ चैटा था । बरद्यदेव ने' पूजा कर „ उस काञ्चनी मुद्रासे कषा स्ि-भ्या काद्वमीमुद्रा महुासाणी 1
“ˆ अन पक असरफी दील्िथे1, यद खनते टौ काञ्चनीसुद्रा ने
ˆ! युक्त वसरण्मदरे दौ । चनिया देखकर दर्ग गया ञछ्ैर भ्ल क (
॥
११
१३८-उपोल सद्धू स
~ 9 लगा.ङि हम दिन भर मिनत् करते हँ सच यमु- ष नेमामदी तनि पैरे पैदा हेते दै ध्र यह काद्चनीमुद्रा वदुन दी घच्छौ रै क्षि पिना सिदनत एक यस्स दिय 1 है 1 यद खम चनिये नखान की फिर को वर्तनं का किसी भकार लेना चादिये ! अन दुरे वाद् जय गरव जी चहा से चखने ठग तो उस उमिये नै न्रह्यदेवजी > बहते छ खलो चम्पो की क्ि-पमह्यज, अमी धूप भीर पिनि गोड रै, का कुरर वसेर करते फिरोगे आर यदतो चापा चसर्दै, अायहमरे पूज्य, आएको सेवा करना मासा यमह, अठ) भपदेनेा की सेवा हं कहा मिट सरनी है, जापते यहा वपेई ,नक्टीपु च हने पचेय, अत्व आप भे काष्ट उट कर चे जगयेगा 1 यष्ट सुन उरे, व्रखिर छणष्टी ठरे, दया अग् सौर टहपदेव जी उदरः गये 1 पनि ले द्हयेव फे चडी सेवा की मौर जव रातकोये सा ये तेः सेठजी ने उत्त करदनीमुद्रा तो निकार ली मीर उमक्नौ जगह क दुक्लरी घद्धिया र्त दी} वहयदेव जौ प्रात ~ फाति उछ वमर चत पठे छेन दनक मन ई मी यद् सका र्गी गकि कंचनोमुरा फेमानहेा पिः ष्की विन असरफ कर रट् जाय अर दृलरे दिन न दे, से नहा उं सीर पूना फरक्ते अशारस्तों मपे, यह मेज की आश्रये दने यानो? नत हेन जटी भँ स्वान पर भीर पृक करोर दिः य कचनीभुदाः ठेयवणक अश्षस्फो दीजयि। श परन्तु नव व दे-कीन? काचनीघुद्वा ठा धौ षद् तो सेरक फास गई; उसङ्गे स्थाम स -पर्थर की ययियः थौ, चन्द यदे गखप्फो कव दै सकल यौ । जव क्ायनौशुदा नै उम रो गमरफो न रीतो चह्मेष मे लमका क्ति मद्रा शने दमार् सायन्वडा धोस करिया कादा कलिय फन कोमुदर
२६ ष्न्त-सगर--प्रथस भग ५
वुमकौ रोज एक अशसफुरी देगी, से यर कष्टौ दिन दैकरुरद )
म । यद सेच व्राह्मण फिर मदात्मा कै पास परुचा यौरः महात्मा से दाथ जाड बोला फि- "महाराज, सपने हमको घडा धस्य दिया । भाष कते ये कि यद् -कचनीमुद्रा भाप के रोज षक अशरफते देगी, से महाराज, इसने तो सिप एक ही दिन भशरफौ दी. दूसरे दिन इससे टम बहुत कुछ मागते र्दे पर द्रसने भशरो न दौ ।' महात्मा यद् सुन कर हैरान हि गये शर सेचनै खये किकास्णक्याहै जे रेखा ह्ुजा। पुन महात्मा ने व्राह्मण से पूछा रितम कहौं रास्ते भी उहरेये ? ब्रह्मम मे सारा माग का किस्सा महात्मा फो) कट सुनाया । मदात्मा ने सव रहस्य जान लिया सीर व्राह्मण कौ प्क सङ्कु दिया ओर कहा कि उसे ठे जाश्चो भौर जहा.जिस शिवान पर उस दफे ठरे ये यदी फिर उदरना ओौरचसे दी, पूना कयना जौ दस सद्भु से कपरफो मागना मौर रात की उल यनिये फे यहा दर जाना । यह् सद्धु लुम वह कचनी द्रात वनियेने तुम्दयसो वदरी है दिर देया श्रौ फिर ठम जव काचनीमुद्धा पा जाना तो सिवा चर फे मरः करीं न छढस्ना 1" ब्राह्म गने वैसा दही पिया । खछते चलते उसो शिकषटे परर आकर उदरा ओर छुप" पर स्नात कर पूना करने खगा सर फिर वही वनिया ह्मण छे पास माकर चैट गया रः पूजा देखने छग 1 ्रह्मय प्रूजा कर सदु से वोटा कि सदु" महाराज, अव दो अशरफ दौक्ञिये !' सद्धु वोरा रिकं चार इको दौ तेज की दै दंगा 1 पुन. जयं उह्ादैव चलने रगे तो वनिथे ने सपने मन मं-सोचा.कि कांचनी सुद्धा तोपरही अगशरफो से देती ह यहलोदो रोक्ञ देतादै, इस कारण व्राह्मण केव रतना चाहिये ! मत वनियेनेव्राह्यण की सशामद द्समद् कर प्र स्ख लिया भौर चसक यडी सेव! कौ । जव
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१३६-ननधिकारचेष्टा २०2
रषि को ब्राह्मण से गयासो सेने पहिञे कौ काञ्चनो सुदा षो उसके धास रख दी जीर सदु उडा दथा । जय प्रान कालं प्रस्य नो काञ्चनो मुद्रा स्वाना हमा, रहे सेठ, सा नहा धोब सद्धजी से योके फि --शवद्धुजी, कल चारः दैनेको , भब आज चार दीजिये 1" सहूजी योले--" कल आढ ।' जव दूसरे दिन सेठ ने का~'महासज, सद्धुजौ, भव भाद दीक्ञिये.।' तव सद्जी ने कहा-- करू सखद ।' जन तीसरे दिन सेने कहा फि--“सद्भुजी, मय भाज? ६दीजिये।' तो सुनी घोरे कि-- । नालाट काञ्चनीं मुद्रा सा गता पदमपसिनी । „ चरे खपोरप्खत्य न ददामि वदम्पहम् ॥ , भर्थ--षद् जे काञ्चनी सुद्धा पश्च मौर सद्र की देनेवाली थोसातो गर, जरम तो, डपोठसद्ु हं, कहता जार्जगा, प्र कृगा पक कीडटी नहीं । गिः
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अ. १३९--अनपिकार चेशं एक जङ्भल में प्क चार दो यदद पक शीम् कौ सिटी चीररदे थे वद राथ जव लक्रडी चीरा करते हैः तो भरे ॐ क्छ मने एक छोटा काट का सूष्टा सा डाक द्या कर्ते जिसको .खटकिद्ी कषटते ई । दोपदर मेः ककड चीस्ना चन्द् कर घदद येटी खाने चरे गये । शीशम को सिखी खरथिद्धी ठको षु धी जिससे कि'सिली केली , इर थी 1 ¶तने में पम वन्द्र सिद्धी पर ये की सोर आकर वैठ गया 1. यन्द्रष्म्रुडकोश सिखी फी दरक् के मीतर दा पये भौर चह उस खटकिष्टौ को पकड कर दिखाने खगा, श्सयिये खट किदौ पणर निक पडी नीर खिली के दोन पट्टे ओ पठे °
१८८ दट्प्रान्तःच्चागर-- प्रथम अर्, - ‰
ये परस्पर मिल गये, अत दन्दर दे अरडक्ाणः उस , सि की दराज के भोवर दव गये जिससे कि चन्द्र उसी समयः मर गया । सच कटा टै फि-- ॥
छरल्पाप रेषु व्यापार यो नन. कन्तुमिच्छति । ` `
मखल निधन याति कौलोलाटीय वान ॥ “ अर्थज्ञ मनुष्य बनधिकासी हा उस काम से ूरनै की इच्छा कस्ता है उखन्सी यही दशा हनी रै ऊस जद्धलकफी सिखी से कीरं उसाडने मे बन्दर कौ दुई "1
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१९०-विपत्ति मे बुद्धि वचाती ह
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१
एक वन्द्र एक वार पक दस्यम सैर रा था कि षनते ,,
मे उख बरिया कषे रुदनैवे घडियारु ने सकी खग पकड खी, तत्र तो दूरा वन्द्र जेाक्िठस्यि फे किनारे वैखाथा दरस वन्दर्को पंरने से ख्टरा टमा देख बोरा कि~-“्या हुर्था, क्यों खक गया? वन्द्र ने जवाव दिया फि-- वया वताव, पर घडियारने एक ककडी क्तेः शपते सह् मँ दाये समम रक्खा रै क्कि मेनि यन्दर कपी रंग पकड दी} यष्ट सुन घडि- याल ने चन्द्र की खग छोङ दो । सच है- , ~ उस्ने विषततषु, बुध्य ,न, हीयते ॥,, , „4 सरद दुग दक्ति.नलस्थो बानुगे यथ, ,- ्थ-मापच्ति.षे उत्पश्न हने पर पो.जिसकौ घुष नरीं
विगडदती वह् चड्यी, चढ़ी, कटिनाद्यें से तस्ता जैसे कि दसि से चन्दर तर भाया),
॥ ~^ ॥ + ्
, , १४१-य्के टकेकी जर-बततिं
, \ पञ्च चपदृ शा शिकार घेखने गया 1 दखौरते समय देये ,
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४८१ --टके एके -घी चार गोर्न 0 0. जने के कारण एस स्थान पर ठहर गया ! थोडी ठेर मेन्या पत्रा दै किं एव चान वनेवा च्छा वान उर यया है 1 तानवे ने अपनी खरी सै कटा कि--““अगरः यद मेरा वान द्षुरकादेतोमे तुमे क्न टे की चार वातं खुनाॐ+1* खी वाने सुरा कर कषा कि-"खव आपये चार वाते सुनाद्ये।" षृष्पने कहा कि--"पदिखी प्क यके कीवाततो यद हैष अयना काम किसी दूसरे ॐ भरसे न छोड ओर दूषसो वात यद्र हैकि अपनी ला को कमी मायकेने न रन्ते तीसरी शाते ब्रह टै कि कमीने कौ नौररी न करे भौर चौथौ वात यद् हे कि अपनी धरोहर कभी दूखरे के पास छिपा कर न यछ व्न चास वाती को -रादशाद ने,ध्यान सै खून कर मन मै सङकलप किया कि इन चरौ दातो की परोक्षा अय्य एसी धादियै । यह् सोच मातेही यपने रुच्य -सा सम्पूणं दाम मनी आदि कै सुपु सिया खीर कर् दिया कि "भय ऊ माम त मैराज्यकरा काम चि्छङख न फरूगा यहा तर कि ओ दस्त, क्र भौन करूगा ° यद् कट -सर चादर मरख मे स्ठने छः परन्तु धाद्शाषह की वयौ दादशाह की सष्ठुरखमें ही श, ध्तःचिप चाद्श्वाह् ने साचा पि ससुराल चखभ्योकामेय णना चिथ कि मायके में रहने से श्प टानिदेनौ हरणा चादशाद्ने प्क ष्टभार अशरफ कड भीर पत् स्याल नपनौ जा के अन्दर र मेष चदल सुराल का मायं छिया ष पर पटु करसराय मेँ जर उसा मीर सवनी, णक एल भशर चुपके खे मटियारिनि ॐ पास्ये शी भीग्डम से दा कि भावदयकता पडने परमे तुमसेङेद्ध्गा नीर ग्य रक महान् दीन का भष चना यान्त केवल चरा लोटो कला , षी देह छे यद्र क कतवा क परास ला-रर हुक भरे य रोषे टौ चर चैकरी कर खो ! उस कनद पाम
० दषान्तसाग्र- पयम् भाग |
वद्धणादकी खं; "जिसने कि दहुप्प्रायसनेमे नीक्यीकौ थी भाय। जाया कर्ती थी । एक रोज का बृचन्त ई कि दौ यानौ वह् भौरत मौर कोतवाल पक टी चारपाई पर केरे हष ` ये इनमे कानवाल ने टस दुष याक से कहा-"अवे हुक प्रठे जरा हुक्च भर करर जा।' ओर यह हका भर करः रखते गया वणदशादकी खौ इ्सरी ख्र्त देखकरसखमफगकि हौ नदौ यद मेख पत्तिं वदन्ता ह मेरा दार जानने के च्थिये ्सने फे! खाग सचा है भत" उस भौरत ने कोतवाठ से पठा
कि-~"“यद् आदमी भापने कय से नौकर रक्वा ह ? कोतवाल. स्मास नै उत्तर द्विया क्ि-"इसकेा रक्खे टये अमी तो दस पन्द्रह शिनि ष्टे दने ।' तवतो उस्र अीस्तनेकटा किद्रसे भाय मरवा दिये ' केतव नै बहुतेस कष्टा पि-“'इस वेचारेन तुम्हाय या किया ह खादी रोयियिय पर सारे दिन सि्टनत क्ियाकरः ना है चह येचारा बोखना भी तो नष्टौ जानता है फनोंकि वीस ह मौर न इख नता री रै ष्योकि बदरा है ।' परन्तु बद्शाह ~ मेख) कै वह्ुत द कस्ने, पर कोतवाल सादव ते विवहो कर ुयकेगाखे को जल्लाद के हवाले किया भीरं जद्छद्रो से कद या कि वसे जद्ुट मे मरकर डाक भाभी 1 उसो जघ्याठं नियरजद्धन में पहुचे ओर अपने हथियार निकार उन्दने उसे मारने ऋ द्ररादा किया । इतने में इख इुककै भरने चाले ने कष्टा कि~ “आप रोग मुस पक हजार अशररियां य छीजिये भौर शुभे छोड दीभ्यि' 1 वदत वाद् विघादकै पश्चात् जदि ने भापस में यदह निश्चय कर का कि--""क , हमार भश्ररक्ियां काद्य म सापके छेडदेभे 1" दुक्करेषाला जद क्ते छे सरयर्में मया भौर भरिथ्ारसिनिसे अपनी चये ह्र यश्नी एन रज्ञार अशरदिये मायी तवती भरिधारिनं नै डा कर कटा कि वरु चे भंडये, क तच्छ. ^तो हमरे
1
॥
१४२ खक र कीतर वतं ०६
क्ानचा सास्य सर्यि परनीकर रषा मौर यनेरल्गाये भूमन दा, तेरे पास अशरफ कहा से आदं । तव यहं पचना छाचारे हि। मपनी जाप से खाट निकार जस्स के : मनौ जान वना चर भाया मीर यदा सै कुठ दिनके वाद भग्ने ससुर ङा पत्र {खु कि“ फटा मिती के पिदा परान सापे! यह समाचार सुन उदताटादो कै कषत षुभ कि हमारे वादशा वह नही थै कि जिसके हममे शुभा ` घे मसला डाला ! वा्दशाहने चिदा का पन्च स्वीकार कर । "छया 1 वादेशाद नियत लिथौ परिदा करने पटच गया , भीर षो तीन दिन वादा गे जते रामाद् चती यडौ सातिर ` षी, परन्तु दामाद षुद्ध शम छम स" उदासीन दृचि धम्रण भिये रहा, क्योकि सक्षि पैर मरं दौ आग ही घात समाई ट्र थी 1 उसके नस्ुरने पू कि~"जाप उदासीन प्ये ट?भीरः भाले दस दुपते ठमसे फो चीज हीं मांगी मा जा पापकती 'ध्च्छाद से सौगिे ।' भपने मसर वादशाद् का विशेष भत्र दैष ख वादाद् भे कटा क्रि --'"हम!रे शर का प्रन्ध ठीक भद है इसलिप्र आप भपमे शदर फे दनचाङ को हमारे यदा भ्यन्ध क्ते कै चयि हमें दे दीजिये, गसशे मारोद की खण येनं वदी गडा मघी रटती हं दसल्ियि माय सपने यदा की फटा भदियास्नि छा भी ॐ श्रीजिये 1" यादशना कादामदुदा ~ देनो क जहेज मं उ विदा कसक रुषसत षटुया सीर सान यार वथः सदियए्रिन दैन सास्ते म वडे खु हेपि चे जप्ते
' दकि यय तो हमारी सूच दम मा षदा जाफरसेकटे7 4 भातदती से सहने मौर दसाय वड इज्जत तथा तस्यते इधर यादृश् मे पमे सदर यं डच रूर दरो रान लाम '
देश्याभ क्रिया आौर उन वान यटनेवारे ीर्नीखी जर्ण १
वुणषा कर पू स्वि" नास्त को पन मीने # पटः
॥
922 [रा खार प्रथम नाम ॥
न्वत जय तुमने मपना वान'उरभने प्र यपनौ खी-से वान स्वगा दनिं के'पवज ञं चार यके की चार वाते यना थां चे ब्दी सी चात" ई? यद् वेचासा डर द्धे मरे. चतरा. जरी लता था! घुन' चादशाद ने उसे धीरज देकर फा कि" ठम धवडाो नदी, वटिक धरस्रननता पूजन पनी बाते करौ 1" चानवानने ने कदा कि ्टुजुर,' पटली चान'तो ण सद वकि यदह थी कि धपनु काम किसी केभरोने प्रर न॑ छीडे। पुन. चदशा ने अव अपने दूर की जाच की तो वरटा ही यल पलट सौर वी गतिया पाई यटा तक कि "करोड पया रोग गवन "कर गये थे 1 चादशाद न उन सवक्षा उदित दर्ड दे वानवारे से कहा कि--“म्तुम्हासो यद वात ण्क प्के चती नही किन्तु एक खछाखको थी} पुन" चादशाद ने कटार आप अव भपनी दूसरौो बात सुमाद्ये । तय तो वानवारेने कदा कि--ष्जुर वुखरीर्वीत यद दै कि पनी खो कौ कमी पायक्षिनेनरग्ले।' तवतो वादशा ने थपरनीवेगमको दुर्वे घाम म चुखा कर कहा“ रामजादी । तूमायके मस्ट चार द्धातवाट से मोहव्वत करते हण सुभसे इतनी विर्यं गयी किमेरे मारडाख्ने काहुम्मटे दिया था? 'दृतना सह वादथ्नाहं ने गर्भ तेल दाराकर उसरी मूवेन्दिध्मे उदा कर जे भर्या टाला! भोग चानया से कर् फि-- प्तुम्दासं दुखरी वात पक्के ही नकम चरिक दकम स्पयेकी थो ॥ सवाप छरा कर ग्नो तौखपे चात सुदद्ये |" चाना मोला प्ति सरकार तीखरो वान.यदवो च्तिकमीनेक्री नीमो दभ, न कर 1 यः खन वदश्वदि ने केतव्राल स ह्व ता धुल कर चदा "््थेजो, जय मं आपजे यद्ादुच्यि पर नी मरा सोर दुका भस्ताग्यदो बार्न इस हयमञ्यदी के वदने पर जन जप फे यपु. द्ित गयाच परत्य धा? कानवा
1
' १९२-गजा यन सा विद्यान्न शीक् २३
"~~.
गागा व अ नीपं , उर प्यः दैत, सत. यादशाद् ने केतयाठ खाद्य कभी दकम रु्रीदर् किया सीर चाने से का कि--"ष्यह दस वौस्री चात प्फ द्रे कौ नरी चटिक तीन ख की
* थो भौरभय टपा फर भपनत चौथी चत्त छुना 1 ्रानवारः नै का~+प्मटाराज, नौ ची उत यद् ह कियपनी धरोर्मी के प्राप्न छिपा च्छ न स्यसे । षस चात का सुन कर चाह ने भदियासै फा वरुटा फर कहा क~ "दमने, जे(तिरे षास णक हजार अशगफियां दृ गर्त पर रयौ थीं कि समय पडभैयर सव्या, प्रर ज म ज्रि के साथतेरे प्रास अशरप्िया भागने गया तच दू साफ षन रार कर य भीर उपर सेमे
' शण्ड बण्ड याते सुनाई 1" भटियारी हाथ जाड धमा मगन ल्गौ | तव बादशाह ने कदा“ “उस समय चुके मैरो जन नही प्यास धौ तो प्स समय खु तेरी जान फयेष कर प्यारी ोसकली है, अत वादरशाद ने भटियारिन के कमर तपत मड़वा! कर. शिकारी घु-ते उस पर छोड उसे नेया! डान अगि घानवाङे खे कटा कि--"्ुम्दप्सी यद व्वीथी वात भी पक रफ गी नटं वहिक चार लाख कौ धौ ॥ दरस शरक वानव कदस ल्य दे विदा किया।
हार बद्वध केनपि तषे मकंटः । ` , क्ेदि जिघ्रति स्ति्य करासु्त माननम ॥ / ~ त ॥ -- 1 ट्र-राना भोज क्न विधा काशौक
साजा सेत दयहय 1 {उ वद्रुले
। |
॥ 3: २) \ „+ यद धात अदी मति थस्िखदे फणः भीन मलिता करक ठे ज्वा वाउ मह
4
२६ ह्वषन्तसगस्- प्रथम बोगं “= `
धरन दिया क्सतेये। धक धार चारमूरखोँते यह् धिचारकिथा कि बहुत से लोग कुछ न कुड कचिता चना जव मेहासजं परै ज कफे यहा से पुर्कल धने भतेहैतो्टम दुभौ कौट कविती, घना । सर्गा ने कष्टा, वात तो.खडपै सच्छा है । यव "सवष प्न कनिता वनते में पनुनष्टुये कि उनङेसे पक वोलाकि-- "मुसुन मुदुन स्द दा जुन्नाय' खो रमगरा तो धरन गया 1 दुलरा "वो [क -“तेखा का चैक खरो भुस खाय । मेसा भी वनं ऽप्य! 1 तीसस वोखा--"डगर चन्ते तर्स वन्द् 1 मेरभो घन गया । चैरेथा चोदा पि-" सजा. मेज है मूस चन्द ।'* . चेम्दारया सवका वन गयातोमेशाभी यन गया। उव्रतो प्यास की यदह सम्मति पडी कि यह् रुचिता चल कर महाराज । मेज को सुनें मीरयदह विचार कर चि महाराज मेोजकी ख्योद्ी पर पष्चे । परन्तु महासज मै की उयोद्री पर धायः महा कचि कालीदास भी रहा करते थे । इनं चाग नै कालोदास से कए कि~ष्टम खो बुःछ कचिता वना -करलटखये हसा सहारा का सुनाना चाहते दै ।' परन्तु कालीदास इनकी गछ देख चोटे-“"फ्वा कचिता चना कये दा जे महाराज के सुनाना - चावे ह १ धरथम इमे तो छुना ।' यर् खुन उसमे से धक । चोला किसुन सुदन, र्दा सु्ाय ` कालीदास ने का~ चम्दारौ कविता अच्छो ई ।' दमस धोटा-~तेली फा यैङखरी अम जाय 1, कालोदासं ने कदा-- तुम्हारी भी जच्छ है।., त्ोखस चोदा शि --'डगर् चठन्ते तरफस चन्द् 1 काोटामं ने कदा-- 'तुम्दयने भो अच्छी रहै । चौथा वौदा कि--न््याजा मेज ह मुखस्चन्द् ! काद ने कटा वुम्डासी कचिता खच्छो नदी है , द्सलिये तुम पेस्दा कनः कि--“ याजा मेज
समे शरद के चन्द्र ।' चीव रखने मान दिया भौर व्वा ' अदास भेज केः पा प~ षो दणड
१४१-राजा भोज फा चिया का रोक २३५
र बो कि--"मदहाराज, हम ठोग भापदो ङ कथिता नाने माये ह । महाराज उनकी शकल देख मौर इनके घुस से स शब् सुन बद र्व दे इनकी ओर मुखा्तिव ट बोले तुम लोग नपनी कविता खना 1 उनमे से एक योल्य #-- “युन सुचुन र्या सुन्नाय । मटारान नै एस विचारे का ह् सुनि ओर साहस्र देख श्जिःयय पि यट पडा नदी है पर प्मकी इस गोर रुचि सौर तना साहस त्ये धा कि एतन नमर् ज्ञाड हमरे पास तक् याया अन. मदाराज ने कषा भि ९५०) इले एारिनोपिक दिये जाये 1 दमस वोदा कि "तेल - वैल खरौ शख खाग्र । महारज नै इसे भी १००) स्पये फे पसनोर्िक षा न्रा । तीसरा चोलाकि "डगर चलन्ते रकस चन्द् 1 महागाज ने दस भी १००) स्परे पारितोषिक नकौ आष्ठा दी । चधा चोला कि~-राजा भज जैसे शस्द, - चैः । राजा भेषज ते यह खुन विचारा कि लका सायत न तीन मूर्वा का है मीस्यहभी कु-3 पडा छिमा नदीं मात्म › र है 1 दशाब्द क्डयीसेपागयाया किसीसें पृठमपया नद तो वैते न्दं यह् कभी नदी चवा सकता अतण्व गजा गगने कहा किदे पक वौडे मी नदी जाय । तसय. ११.बोला फि--मदारार रमारा छन्द कालीद्गस यै विग, रर। " मदराज मेज ने कटा कि “नच्छरा जे लुम वना लाये ध घट् कटा । तथ चद् चोला परक मारा छन्द पेखा वा --"याजाश्नेजषट सूमर चन्द् । मर्या ने क्य किय क &। भय दे २० ०) पारितोषिक दिये जयि । अन्यम ग्न मेज 1 अभागे भास्व। तेरे पै दिन जव कषा गये
॥
२३द् टष्पन्त-सग्गर--रयम भाग १
म ~+ -----------------
१४३ -पुरानि कात्त मे य ङा प्रचार.
लिख समय स॒दापज रामचन्द्र-मीर ठ पमण चन क जाग्दे- भे गोर प्ररत ऊर गयाश्वातोल्द्मगनेमदष्सन रामचन्द्र सै पूजा फ्रि 9 ©
किमव दृष्यते तात बूपपुञ्जायपग्रतः !' ` ` `
~ प्रयागा दृश्यते तात यजन्तेत्न हषर ॥ ' `. भट जी यह धु फी गुजारी जे आभ उट रही हैसेण^्वा दिखाई परता र ? महात्मा राम ने उत्तर दिया "भ, छट्मण यद धरयाग दिखाई पडता ह यदा अपिं लीग यन करस्टेहै उसा यहः धुआं है तचिङू प्रिय कश्मण् ध्सन्मो प्रयागं नामदहो एस चिथ पडा रै श्रङू्डेन यजसे यस्मिन ससस प्रयागः 1 जिसे प्ररगस्पर से यततटेा चङ् पाणं कंदर. । पुव किखी विने कद्यं दै यदि कदाऽपि पुरा पतिताश्रुरः श्रुतिगतं हिनानद शआऽरग्या। परमिय् वघ्रुध।अअ प्रिना क्नु परिनतश्नद्धंरित्चि वितत्राम् ॥ पुराने म्नि मरे यदि कममी किखी ॐे मग्ध निके पते
सोचल यद्ठेकैशुषटसे,नदयोतोप्रजाक्छी खों से कमी याह नदीं निन ए
` -१2४-पहलं हमार यह धम्य प्फ महत्य की षक व्राह्मण नेमन्यण चते गवै ततो मद्य स्मा ने एनकार् क्रिया । शुन. प्राद्ण मे कल ‡-- ` -
नमे घलेनो जनमद च कदर्यो. न मचपे । नानादितःम्विननिद्राच पपै ग च स्वैरिणी ॥
५ १५५ दार विवा २२७ ~~. _ " ्थं--मलासाजप न हमारे सहा कोई योर ॐ गोर म कोई ष्य अरात् नजूख न ततसायी आर न यद्धिलीन्नसैरहिव, भप्रूसम परर मध्यो मौस्व रिथ ली परपुल्म गासिनोर रयम उसारे चदा नोजन स्यते परं नहा चलमे ¶ य पु सुन मदात्यामरे लिन कष्वकिरक्र्जा दै भोजन न्तिया मर्जायरं य् हेखा किः सम्पूणं अप्य के घरों मे उनके ममृतनो षो चाक्र ुये खे काटी हि रदीथो।
1 , +
ˆ ` १४५ वाद [विवार - , , सेना = विग्जीयेत् जीवे दा दुवचैन्धियि ।.- - ‹ ,,, व्परस्यन्तयालाया -गर्भावान न ऊरयय् ॥ ५ पञ्चव्रन्ावजे यपे दत्यात् व्यष्दमारुहा नपस पर च्या । पद्ध अने घर का चनवन्द्यःमोर्एुउ पदा 7का भा श्रा षने कारण यह जवनो कन्या कौ सा पटाया करतात भाग न्ष दसन नो कर दाम दीन-देषनेकेकारण पछ फनाभेनो मर् य] -रद्यय का दामाद बडा ही छेल जीर गीय युष्डानथा उछ भौ था । सपने घाप से चिख्ङ्ख नहा दना. धा 1 वयश्ट हनि के वाद् सोकट -वपं खग्रातार्द यद परण म र्होौर प्राह्ण षी कन्या यदा. पढ चिणि कार वटुतषद् य्य एग | सोलह वरं के वाद् जव द्रप का दामाद नाया पर्ण ते दत रनौ वदे खात्तिर स्थ । तय, रात का समय प्या व्राह्मण खी खटडकी से उसकी सणी सहेलियों > सए व म्दारे परि धये ह, जाकर उन-रू सेव कते ।'' उसमे वियः क्रि. विसना पत्ति? मेया पनि वद गिज न्द 1 यमे कदानवो ९ पम तुम्दारेम शापन वुम्दाय ध्य् रक साथ नदर प्विया ९", टदड्को ने फटा स्तो वदमेेमां
॥॥
२३८ दरश्चस्त सागर ~~तथमम्राय
1
याप कै पत्ति दहोगि, मा चाप उनकी सेवा करट । ममे उग्पके साय
कोई धरनिता नदीं की 1" सख्यो ने र्ा-- “तुम छोरी थौ
याट नहो, तुमने छोषेपन मे प्रतिदा क्य ।' कडकी नै कषा
जवि यै अपे दखीकनदौकटोचद्वसम्दीनश्रौ नो यन्ता कैसी पुन जवये समाचार च्रह्यग मीर उसकीखरौ कै( माम हुआकतिा उन दनि मै जपनी खडकौ के यदुन समाया सौर. वके नि~ "वह विदा करे भये ह, तू पेसा कटसी रै" खडी ने चाप से कदा सि~ "ती नाप्त विटादहा के उसमेसाथ त्रस जाइये, वथेएकि आपने व्याट सिया सौर आप दीका वह् पत्ति ई 1* मा्िर यट सुक्ठमा ऊदण्छन वक्र परा, व साष्टव मजजिस्दर के पूछने पर खडकी, सै रुषा फरि--"मैय व्याह सुरे माम भी नी क्य हमा ओर फिसनै पतिता की । अव यष्ट मालुम चमैन कासे आ गधरा मेस वाप क्त] रै चिः तुम इसे साथ जानो, मने वुम्दाय इसके सश च्या कियाद । नो ्मैन चापरस्ते कष्टा कि जय तुमने विषाह् किया ते तुम्दं इसके साध पिगदेफे चे जाप, येमे पसक साथ रद दस्यर नष्दी किया 1) अग्र एुकर्या ससि हैव सयम जर ख्ड-न ति दुम दुध्या र चुम अपनः प्य् अप्रनी मरज्ञी फे सुमस्सिसकरसनतीष्। \ : ॥
॥
: १४६-प्रवेखिया की वीरता. ' ५ पूर छितर क चिदा मौर योग्यता से अरन्य के श्रन्थ अरे हष द. शर वेतो कनीन ध्य दामा ज नासन री छवो मामी यैवा, कयतिनी, सुरभा आदिश्यते उद्यत्विद्या' तया कैद अगचती, 1 ठमयादश्सी चीरना. पद्मावती सख्ौता, सादि को सतीत्व न जगत्ता छो 1 परन्तु द ॥ तो यद ६ कि जम गये शकर छमय मे चापे व
॥
त ४ श्४६-पू्यं सिधेः की,विया : प रा क) विचा: २१३ १३६
; 1, +, ~ -- ध ' स्प 'इतनी योभ्या प्रौ विदुषौ 'हेष्ती वी कि चिक दिपै पके स्यामने महांराण्यी विखोचमा ला चरित उपरित फर्ताह् ` -चिदयोक्तमा एक यडो षौ पठुयोम्य भीर तिदरपौ कना पौष , उसने एक चिद्या फ सन्नामेक्पी यथ स्व र्या था अर्ति, ' सतार भर यह विदापनदे रकया था. छे, कोई सुक , शर्य मँ धाकर जोतङेउसौ के साथमे पना व्याह करूगी , चको यदष्टक दी रूपवती थो दस कारण चे २.चिद्धानेा नैथायाकर खक्ष साथ शाखार्थं किये, परन्तु सनम मेवे पालित ह, अधन सा महये रे नखे गये । विद्योचमा इम ` शोकमे थो किया ससार सफ कोचर न मिलेगा । उन “ ्रसस्त पण्डितो ने यह् सम्मति कौ किः दसरा च्याहपेसे शु > साथ कराना चाहिये कि जेए ण सद्र.भी न जानता हौ । भत वेरभरखं कीषसोड चरै लगे । ष्टं जगह ठक-पुखप एक › रेश्वपर सिस दा्टी्पर् कैथा उसे दीष्काटस्दा था। परण्िनो दे यद् दर्ये चि वारः किया किष्सकते यडकरमूख श्णायुदर् मय ससारमस्चं ननिकेगा, मत,वियो चपा काव्या : दसी फन चाहिये "चख, परिडिते मे वि्ोत्तमा के सामने उस मुं की लेकर खडा सर दिया मीर कहा--'साप इसते -गा्राथं छ्षीजिदे †' चिदेचम्राने पफ उथुली उर् जिसमे माने यद्येभित्रद्म प्पछदैयादो? परिडितने दते समा रस यह कदत है {चै चेरी पक ल वह यंशुलो घुलेडर् पडटक्गा {तयतो वद् दौ भणुरो छा मनक वोता किय नू.मेस.षटस-वाख कतोडेमी तो म तेय दौम फीड दूषा जिल ` प्मा.अभिमाय पचित न यट खम्राया किकदना प्रजी फ णफ द्य) पुन विखेचमो जोन पाच वर्तये जार जिल स्य मर्य धा पि पाच इन्दिरे वम्डायो वमे पणिडशी ने उस्र भूस कहा न्निक्टनीषहंक्रि वप्पर मास्प (इसखूज
# \4
४१ दशान्तसलागर--प्रयम माम
----------~
“नेमूटी षाधकेषू खा ठढाया भीरमनमें वोधा फि गरत्, शप्यड मारेगी तो घूखा माणा 1 इतका मभिगराय परितो ` नै चिद्योत्तमा कतो समभाया कि कहता द स्ति पचि दद्धि, मेरेभ्रूढामे ह । जाश्चिर दिपो तयः सो व्याह उस मुखे काल्ेढात्त \ स्यो मया! जव रान मे येदोनें खः पुच्यदरुद्र ये तोभ यास प्स ऊट उस समय सिसी का द्द तर उदरवङाना जा, रहा था । मूखं कालीदास चोखा करि उदु उद्ुरड) यद् सुन | चियोत्तमा ने सममः छिया कि यर् मूर्खं द । महररयी वियो- ' न्तमा ने उस मेड के चरानेवाछे गटसयि मूर्यं काटीदास <) , इस ध्रकार पदाया फि वरौ कालीदासर रघुवंश जर मेदयदूल, सरसे कान्या का रव्रविता ह्न सौर संसार ने.उस्े महा कचि को उपाधि घ्रात कौ! सव उससो खखीकाषदहो प्रत था! पकमापाकविका वान्य ट क्ि--
दमयन्ति सीता गामी लीलादती विदारी ।
पियोत्तप। मन्दल यीं शाखशिन्ञा से भरी 1.
देसी विदुषी स्तयं भारत की मूष छेद
प्तरत दो नीं गो जान अपनी खो गई ॥ - -
५ ५
) 1
र ¬ # ५ ~ + १९७--अन्धर् नगर अनबुश गजा. प्र ग्राम वड्ाही स्मरणी ओर न्दर था) दशां धय ` ममौ चोज सदैव दके सेर विक्ताकरतीथो) फकः शुखं सीर"
उने दो चेल पस चार चरते चरते उक्ती गांव ने पटु गये यढ ने नाव के लोगे से पाभ, मस काव्या न्म हे? ल्नैगे ने क्ा-- भन्धेर नगर चीप साजा, स्के सेर लाजा स्के सेर खाज ॥'.सुकने काफि चट करोः दे कखः -नधरेर नगरी है जदा खव चीज दके सेर लि चिकी है 1. व
1
१४६--अन्धेर नगरी अनदूभ राजा २४१
गर्भा पार पटुवे ते-भनाजवार्खो से पा फि~'भाईजी कितने सेर? दुकानदार ने कहा--रफे सेर वीर ग्र टके सेर ` जोर चावल रे सेर मौर सरसे ।' पुन दल्याश्यें के पास । जाकूर पूञा-मरे मा{ दलवाई, चरफो, {एतन सेर ?" दलप , भे कदा---“<फ सेर मौर केडा टे सेर सौरः नाशा दके सेर। धु उजायो सपू माह वजाज, मारृरनि क्या माव? पना चोल "टैः सेर, माम रे से, रेशम टके सेर ।' पुत्र काचि के पास जा पू पाल्टन उपरा भाव यादी ोले--्टके सेर, णन टके सेर।› गुरु मे यह द्भादेष चे , से.कृडा-- वरे माई चेरोः छलो-- -टेदश्चदन चूत चम्पर वने म्ला कपिरद्रम 1
१ धमा दृप्त पदर कोकिल डले कारु निन्यादर" ५ । ^ २, ् ११ घ -मातनेन खरम्य समतुला कू, फा्या सयो । , - पएरायेग्र विचारणा गुधिजनो देय तम नम ॥ सेत सेन जह एककः दमि जथ कपा । "ताहि राञ्यपना करिव) भृटिकर त घाम ॥ दललिण दलम यरा सेमा चलाउन दो चेन्न सेयक चेन्मा योर -शुरु-र, मतो यदा सेन जामे, म्तंसे र्थ सेगमलाईदे टे उद्ादने 1 जीये पदा-*यच्छा चेरा यन
लो, पर पक चात दम यरे जाति हदि यद् ल्द शापरिभा पटे तीम बडु यर मं ग्ट, उम व चा पुन शुदनी चन्चेदाको लेव गपा दूषय वेदा फे देरमलास्याव्यन्यय ५ गविषो , गा दिक्तौग सो चित्रे बहुन ए कुचर स्ये त 1 सेषटेरनये, दरद्गचेटा तीक के यद ;
५५
२४२ दान्त-सापर- धयम भाग 4, र
आनक फिकरन धन सै चयार \ ६ धमधूषर कि स्वाट ॥ ,
परन्तु उछ दिन के वाद् जव वरत आई ततो पंकतेरी क्छ दीवार गिर पडी कि जिससे एरु गडेग्यि की मेड छुट, गई | दीवारवाे ने राजा के यदा जाकर नादिर की कि ' श्ुजृर गडेरियि की मेड ने मेरी दीवार क्तो दख ऊट 1 शाजाने गडेश्थि रो तखच जिया भीरः पूखा-'वमों रे गडेरिये, नेरी मेड ने तेली की दीवार को क्रिल तरह कुचर डाला ? गडेस््या वोङा-- टजुर य + ने दवार दी दखध्रकार की वनौ कि जञा मेड ने छन्र डाला, दसि सज क्ता छुचूर द ।'भव गडरिया गया ओर राज आया । राजान उससे पूरा पञ तूने तेरो जी कौचार किस तरह की दाद ञे दीवार , को मेडने छचटठ छाठा जीर टीवार भिर गई ? राज घोरा , जर, गरेवाल गे गाया दीका कर दिया, उखचियि गेष्टेयालों , का कसूर है !' भव साज्ञ गया यौर गारेवारे माये । राजा ने पृछा-+प्वोरे गेवारो, वुम खोगें ने माया क्ये ढीला क्तिचि क्ति जिखखे दीवार् सज से कमजोर चन ौर दवार् फो मेद् _ ने छख डाला ? गारिवालो.>े कहा कि-"हुजूर, दम प्यारे भिन्तीने पानी उ्याद्रा ङा दिय, सस्य भिश्नी न्ह फुखरः" है ।'“गारेवरर गये भिष्नी नाया । राजानि पू श्ये रेभिर्ती नमे गरिम पानी ज्वाद्ा क्पे डाङाजिससे ग्मसेवान्िसेभाग डौला द्धा गया खर् साज से दौवार कमजोर नी कि लिस्ट त रवार नन्त डौ ९ मिती ' खा-'हजुर, १ कर, पशाद्यारेने चद्धी चन्म कि जिस 'पन्नी उ्वष्दा य्य गखा' व गभेद्ती = ४ द्र छर दे 1 खव भिद्तौ ग यः मराकवपटटा ज्या । राजल पू --चक्येष्टे मशाकचले, तूने इनन भषतो मतम श्ये ददसि
रः ,#
{
१५७ -भन्पेर नगरी समबु सजा ०४३ जिखकते भिदती से पानौ अया गिर
ययाः आीर गारेवषि से गास दौला हष मया सीर राज से दीवार कमजोर वमी कि जिससे ग्डेसियि को जड ने तेखो की दीवार उनच्ल
डरी मगक्चठे ने कटा फि-दुजर, य व्ना कर अव स्मै टफे गदर के कलना नै शर खी सफाई अच्छी तस्ड नह यकर जिससे चडे > पशु मर गये ओर, मशक वडी चन मर दृसचिये कीतयाल का फुखूर टै 1 अच मश्कवाला यया ओर को तवा गाया । राजो ने पुखा--श्येाजौ कोतवाट, वुभने हल साक शर फी सफाई कये नहो कराई फि जिससे बडे २ पशु मर णये सीर मनन्त से माक चद्टी वन गदयीर भिम्ती (=| पानौ जयद गिर गयः जिंसते सावो से गग ढीला देष गथा ओर राज से दीवार कमजोर चनी. सिः जिससे गेरि की्भेठनेतेखी की दीवार क्षा कुचर ङा १ केनवाल कुक " च वोदा | राजा ने कोतवगनद के प्रकदम खली का ज्म विया , जवे जे ने कोतवार ची ऊ स्टी पयं चदावा भर कीत चाल कर दुवक देने कै कार्ण कासी दी शई नौ जलदे ने सजा से माकर फटा 0ि-टजुर, कतवा क्तो छेजाकर सूट्टी पर चाया लेकिय खली टीकी सती ह (क खन राजान चाा-लो, दमा फातीमेटा मागत) का मेॐो तारा आदमी भिके.नोलवष्ल पद मे चदा दिया ~ ् खाज्दू न तरं मेरा आदमी द दढ जाय ॥ यद् धराक्ञा पा रज शर, क । नियर \ उस जगन्म नारा भद्मीं क्म । व तो हयी . (1 व व के यमे पर जरी यथे ये थर शुर मे १ धि जो ख 1 द सेर मकार खे केकर उद्यमे ' चष्टाथाफिदट्मनो यद. य् हि ष सौर नसे करेगे याजद्त तते भिद गये । रदृ द्द् ध ५ लिये यच समाका पराको ना टृक्मर द ट ऋह्ा-“ा< भद्तोा शि र ^$ क द्य~मेसः +. उज्
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२५५४ दृटन्त-सागर--पशम याण , । व मः नयी, राजा की फास मोटा मागती दहै! अय .तोदन्दीने फीरन ष्टौ सुरु को खवर दी.) जिस दिन ये सलौ पर चद्ने च्छमी करि त्थोंही गुणनी सागये ।'इनसे पृछा यया किंम् किस्म से भित्यना चर्त दे ? इन्दीनि कठा कि-णटम'भपते गुर से मिता चादत्ते है }' अतः इन्दे गुरु खे मिलने की इजा जतौ गर जवये शुखं से मिख्नेग्येतो शुखुने नते खुप के से कद् दिया क्ि-तुम कहना दम फास चदे गे मौर ' दम करेगे हम चदे गे, उख तरद तुम्र्ठम से भगडना.तो हम फनी से वम्र ्रचाकेभे! षस पेखा टी दुगा किवी फोत्नदोने
मादने छे । चखा ज्दता थवा किम फासी.चढ. गा राढ यता थान्तिमं प्तास्ती चद्"गा) थह गडा रोजा के पास या । सजाने पूता किमा, तुम छोगक्येरं परस्पर छडते दे!" गुरुवा>ज--ष्ुजूर, याज देखा युद हैकि माजजेा न्हासी पर चिम नट उस जन्म पृथिवी भरदा रालाहैगा भौर
अन्ने सुकतिपदं शात करेगा ।' तव लो राजा गेकदा-' हयाभो ध्न" दमी चदे गे! मीर राजा स्वय द्धूखौ पर चदु गया !
॥)
` “'" ८्--स्रयोम्य श्रोता '., पफ खानप्ररष्टरु परिटित् वाट्मीक्लीयं सम्म छुनास्डे थे 1 अव रामपयग समन्द गरं तव धोता मे का कि-- "परिितजी, रमिष्यण ठो यापने सुनाई, परन्तु अव तक हम य न लम सि याम राक्षखये या रावण १ चव तो परिडित लौ ने उत्तर दिया कि माई, नरम राक्ष धे न साधन राश्नसत्तो दमदैञिन्टेनिचुमरूसीसे शेवा को कथा सुनाई ।
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१४६--उच्ह्ट् यमत २४५ परन्तु एलये मपने उच्दूरनेनि लने द्रव्य सा नाशन कर रिया ' ४ १५ किस्सरौ म्ना सौरव भूयो मसेन । स्योने बद्र कता पि छ व्योषा पिया करो, दत भरसार पति पार्द}, यद चोखा रि धच्छ नाज तोष्य उबर ननो, कटय) गार नयमा ।' धरस्रो प्रक्ास्यक्नित्य स्पा करपथा | णन पिनि उसी गी वैस मष पद्मो नदी दते ज्य सै उधर रे गाड १ भी यास्त पबहोदश्ता गो, नर उट् ब्लन्त ित डे) पोल, भि-तुमे भव्कृ्याल्नादैनोमै चास (छीट ला भीर उसे वेद ठा ग्रासय, मेकल पडती को युस सांग कर खा द्री । 0 ुरमी दे प्रात का सै दधर् उधर धमता घामता णया । न मर्चा ष्टमा १२ उञ चग मेपट्चा । पटा एर खान पर -पञ्दागरप्वुर सेतर तज कष्टने कणा दतती मेण वर ता निकला सोर उसमे कठा कि--शभैया सुस्यीसे नयक फाचतरे दाग चद सुखी कण्हरे यग्म कही -गापग्री 1)" श्र वोचा, केत कहीं दाथ र्या परते) "परेषो ये ही दुर गयाश्रा ति, नने मेद्वससा हष्य कट भ्या सीस ग्रटुदए्य फते थ्व रो खुएपी डाल सर वयोर क्ट नार जीद परैस दाय सेट फर उसके दर्ग गिर पडत नम्र दरहा {6 --"नद्ग्यज, भाप.तो -साक्चात पोभ्यप दै 1" _ उसने क्ा-'गस स्ष्या १ उद्दपुरखन्य वोव्या- यदि धप रम्मे भरः देत सो यद् प्रेव भागे मे जान छेते पिमे दष्क आयभा, मत्य याप कृपा कर र्ग य्दप्नोदें कि टम चय - मरे वनदे ते चह दुन फर खमन लिया सि यरद ख , पका चल्ट द्धो है । उसमे वाहा -पलि-- "जव तक दे डोर
नटी ्रच्ना तव तक दु त्यी देगा सौर ख चि के कोर ^ ह जायगा उसी दिनचरी व्रैणददै । वल घट उन्दचा
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० र दर्ान्त-खागर-- प्रथम भ्न ४
१५९-उप्ल् का दादा ररर्ला^॑ह
पक उ्ट् का ददा उल्द(सिद करे मशहूर था । उसका सेमर वहीं नदीं खगत था । एक् वकोक सहव, कानीकर की चादनाह् । दैवया से उस्टसिटको ताश कर उन्देति नौकर रप लिया 1 वकील सादव नै _कटा--- यर् ददी पहर सिपाही की रस्सी हसो लुम पदन खो 1" आर कोट पायजामा साक, तथा प्यक तखवार भी उसेडेदी कौर कद्या-मेरे सामने पदन चार दसमानो ।' उल उल्ल. ने कोट की नाषचैसे मं चद शीर खाप्ता कमरे वाध्यः चैजामा हाथो में पन छया व्यान पड्र गले के दाख रो ओर सललयार को पूता दसि नया चरते ह” वकयिर योला--प्यद उस वक्त कोम आअचिगी. जय कोर दम खे वोकेगा उसौ चकत सारे कौ मार देना, यदी वम्डारा साम दै । उछ. नते पनाय कौ दग चकौ सात ब हसे शीर उसे पटनना {स्विसाया 1 फक्त दिन उख -चकीरट मा साखा वादा मौर वह्नो से वपते कश्य ठना। 7 तद्धार निनार वर् पक पेलासात मास फि सष्ठ सदव क्ष दो टरुडे रो शे 1 वकनेख वःटा--श्ये यह व्वा किया व नना-- येग पया च्छस्य दै, -पपने कटा कि कौर खाल, दमस नटे, उसे मार देना, सो सारा तुमसे योढा था भन माग च्या दिर तो पुति मे श्ुठदमा कयन किया 1 वीखनै य्य. से नस्ल व्मदान उरा ख आरी किखु.गा + यः उद्र धद उवस्दे नः शि रर. उखपस्यनन दद सुपस उदा व्यद |" वतिव्य नोर प्छ के लीग हुम ट सीद + ट्या ष्तः य 1 १.५ ५ अः £ #॥ ॥
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६५१-दुनिया मँ सच से यद्टी वात १५९१-दुनिया ये संवस वड़ी बात
ए राजा जै भपने दीवान ॐ मस्मै के पश्चात् नियमा-- सार प्सैघ्ानके टटका के पठने क्ता पूण प्रवन्ध करः दीवान फा रपन।पन्न दुलसा दीवान उस खमय तकर क दिर नियत
९ पियासवसक पदं दोवान के ख्डङेपदलिय र्ट योग्यनदी जाय । करुउ कार कै पर्चातं जय पूर दीनं फे'ख्डकफे पठ हिलि कर योग्य हप तय शस स्थानापन्न दौ यान ने ६६ स्ट मुदा पूवं दीवान के नाय साज्ञाष्े खततिमे ठा दिये भौर जद राजा पूवं टौवात फे खडरक को द्धोयान पद् देमै खी तथ दस.दीवानने राजा केसमसित्रिसत्ताङे जाकर स्प दि्रा सौर कत्रा कि" गन्नहत्ता, दन व्यो के-वाप के नाम ६६ पद सुद्र खापकाग्दुभा दै, जव तक यदह सम्पूणं रप्या साप का ना चुद् तव तफ पद् हन्देन द्विया जचिराजाकीभी
' समम प्स्व हीमा गय यत सजाने खे से क~ \
, ५ च्छ तुम हमारा सव रपयान टे टौ, तव तया लुम घट पदन भिल्गा 1" पूर्वं दीवान कै लषठदःतोच्टेष्ी चतुर भौर सुद्धिनन ये यवण्य वच्चे ने कष्टा श्रीमान यदिद दरीमन पठ नही दियाजाटला क्ते जदनक दम दोना को कोड सन्यकाम दिखाते जिसके हमारे परमा पाठनदो मौर यापक ययया ' भ पटे 1 राजान दर्योग्मी धारना सखन प्ट यये चते तपनी खद्यो पर दरवान का कामं भौर दुरे केः दावीचेमें मात
' चाश्षामर > दियो 1 कच्चे चहुत दिनतक यद् दमम फसने रदे,
" परन्तु हन कम्ते म वव्वोके वेनन् केवरु उर्वनादी मिदताथा च जितने से उनङे पेट का पानपो सक्ते, ङ्म सोचा सिद पकार ती दमस््ेमोखेफमी भप नं दिया जाखर्ताटै णीरनदोवान ‹५९ रह `
|
॥ ॥ प # ४ 4. 3
१४८ दर्ान्त सरर-- प्रथम जप्य
१५९-उच्ल् छ दादा उच्लरनिह..
पफ उच्छ वा दादा उच्दटःखंह् करे मशद्र या 1 उसके रोजगार फरीं नही छगत्ता था । प-फ चकोल सादय फे नौ म की चाहना हु । दैप से उ्दक्िद्ट को तलाश कर उस्हैः मतौ मर रप ल्या । वरीर साव यै कदा-- यद वदी प्रहरे सिथादी की र्यी दसो वुम पहन खो 1 मौर कोट पायलाम सापः तथा ष्ट तखवार मी उसे ददौ सौर कदा- मेरे सामः पदन कर दिखाभो ।.उसख "उछ मे कोट की वहिवैरामेचटा सीर फा कमर मै वाथ छिया पैजामा टानों में प्ल दिय स्थान पः†उकरः रे फ़ डाक खी भौर तयार को पू-2ा- ^दसेर यपा करने £ ९ वकम वोदा--भ्यह उख यक्त कोम अवैर जव कोर दम से"चोटेगा उसी वक्त सादे को मारना, ' यदं तम्या काम दै ।' उछ. क प्न क्तौ दें वकी ना ग्र से शौर उसे पनन सिप 1 प्पक दिनि उस वकीः च्छा -र्ा भात्रा गौर चकोरुसे वक्तं समे सना उद्य, तखपार निना चर् एक फेला सष्य मारा कि सारे साय दो दुरे हे नये 1 चकीरं पोेकखा--"्थये यहु का किया शत्र नोव मेरा पयु कन्ब्र य, पने कहा कि कौ छाल दमः
गये, उने मार देना, आओ साट तुमसे चोका. या मनम
चि पिर सो पुलिने शूरम कयम किया { य्मैलः
उद्य, से व्यया कक्मया "उड, अयं चिणूया)।'यः
उदन् धर उव देर खा रि र. कदफदयन मद्धि त पुम उदा खारः 1 चरकी स् षुःखले षे" स्टोग दुमे स्मर गयटुया ग्क्त उन्भ्या | ' '
५ ५ ५ न + न \ न ५ ड ग्
१५१९-दनिया मँ खच सै वी यात २४६ ८. 3 9
१५१-टुनिया यँ सवे वड़ी वात
पफ राजा भपने दीवान के मरने के पश्चात् नियमा युखःर द्रीचान दे दमे के पठने का पूर्ण प्रबन्ध कर दीवान कारउनापन्त् दूखरा दवान उस्र समय तक कै छिषपनियत भिया त पृं दवान के छटक्गे पट लिय कर्द यरोग्यनदो जाय । हु कार के पण्चातं जय पूं दरकान् के कडॐे पठ लल कर योम्य हष तव शस र्यानापश्न दीवान नै ६६ सदस सुदा पूं दवान कै नाम रजा के प्यति डाठ दियै भौर जग्रराजापूंदौपात्नफेख्डमों को दीवान पद् देमेखोतयं श दवान ने राना के सममे पात्ता छे जाकर रत दिया यौः का कि" यन्ना, दन यच के-वाप के नाम ६६ पद खटा वष्पकफाषू्मरुभा दै, यद त यद सम्पूणं स्पय्ायावका ना सुमा दरः तव चक पद नदेन दिया जावे 1" राया कभी सममे पता ही खा गय, यत राजा मै ख्डकेय से कष्टा~ "यय तठ तुम मासा सव टपयान दे दोग, तव तका म्द यद पद् न भिङेमा 1" पूर्व दौवानके टके तौ दटे षी चर थौरः
गुष्दिान दे जनप्य चच्तेाने का~“ श्रीमान यदिष्टं द्रीयाप पर नहं दविधा जाना तो जव7करेम दोना कौ कोश धन्य काम दिया करे किलसे मारे वेदसा पालनी ओीस्यापकों दधया "मौ पटे 1", सान वों की रारन सुन प्ट यच्चेको थनी द्यी पर दर्वानो का काम भीरः दूर का वागीचे में माल का प्म द्वे दियौ । चच वडुल दिल चक यड् कन करने रदे, परन्तु दन स्मो मै वर्यो वेतन केव उतना दीभ्रिरुताथा @ जितने चे उनके पेट का पाटन टो सके, अग खड्ोने सोचा ॐ दख भरतस तो हम छोर सै कमी ९६ खख सपय नटी द्विषाजाखकनारनौरनद्ीवाचच्षृव् रीलिरसकका ई,
२५० दष्न्त-सागर-प्रथम भाय
दखलिप-को$ पेी युक्त स्मोयनी चहिये सि लियसे राजषयः छण से शीघ्र उच्छण हो दीवान पदर प्रास करे | यल" खटूकोने आपसे ङु सस्मति कर दूसरे दिन जव याजा साह ब्राग निक्केतो तड ठ्डकते दरवान मेपू ~" मदन. दुनिया मैसवसेथडोन्योत्र वणे? रनाने कटा "मद्समा उन्तर क दुला 1" दृस्रे दिन राजा ने धष्् कन्ठ दरवार मे सति छ शस यत्ति को सम्पूण खभा के, रोगः से पूजा क्ि-- "भाई, समा कै द्धो, दुनियां सहे यड योज्ञ क्सो मे कहा-- भन्नदप्ता, चसे वड़ा दायी ॥\ पिसी-
>» सवस वङ्ाट ।'° मिलीने दा" सवते चर '
खजूर 1" किखो ने कष्ट "ससे यडा ताड ' किसी नेका .
मसढसे वडा पाड !' सिसी मै नटरा-“सस््से कडा र्या फिसी ने कदा-"सयसे वडा चल ' ये रय उच्तर सजा दधानि सो दिये पर दुर्ननेहन्मेसेपक ममी नमान] जु सानाके
साप्य सम्पूणं भक्तप्य उत्तरे चुके तो याजा नेग्मोचराक्िशय् ' `
केवट हमरे घागीचै का माली शेगष्ै, उसे. श्रुला करपूना, - न्वादिये, दै चष क्या उक्तस देता । ध्त^साजनि पूर द्रीवान्न के छोटे पुत्र मान्नो ऊ चूला फर पूता दुतियामे, सेवसे यह्वी चीज च्छा है 2 ' उसने क!--' यदि रेरे बापेनामसे
३» सट रुपया काट द्विया जदि तो मं आप. प्रण्न का उत्तर, "1" भादी स्त दह चात सुन सज तथे सम्पूर्ण साक रीण
व्यकषित् दो ,गचे.) अन्तर मे सजाने कटा--‹ तुम्दारे वाप के नाम, ' गने उरे सद्र पया च्तार दिया लप्येगग, तुम् चताभो क्रि दुन््पिः भँ सवसेवसे चीज्ञम्याहै?' मखो नेकहा-- "दुनि से बड च्ीज्ञ दरै--"वान,! * वह उच्तर घन रना दः "भी मनम जिच त्तेयया च्छि सोकर च्छर् दन्दनने मौ मन ' “न्यां पुन दवान पृा किति" सदप्यसत्, रून्त्था स स्त्यसे
॥ 1 ४ -- ,~ & & [श १ य ध ब
` ~ 1 १2 -दुनियामें खयन पडी घात २८१
ध च याचतो पर् चद ष्टी सता है" सजाने विर वानले यही पहि सदतस उतत रल दुगणीप्सयना अ भ ग्र उसी नानि पृछा कि--वुनिया्े सवसै भः चोज चात नो द, पर चद् गतो कहग रै १ फिसौ ने कदा
, न्दता यनयानों के पास 1" रिस ते ददा--“वलवानों कपि 1" स्तिमि कहा--"विदानों ऊ पास ।* राजनि पूर भी भानि ये सय उत्तर दरवान को दिये, पर दु्वान ने प्क भी रनर स्पाकष्ट न द्विया! पुन साजा ने वागीचेसेमालीको धृखवा द् प्रघ्न किया कि" वुनिया मेँ सय से वड़ो चोज वानि द, पर र्ती फट ह ?"* सने क्ट शि-“महाराज २ भरन पिति निकटवा दीजिये !' राजाने यदं खुन तुर्तरी अन दा कि-^प्नाप उच्चर द ३२ सदस शौर निकाट दिये जेन 1" मन्म ्े उत्तर द्विया -^ इुनियामे सवसे वद्ध चीज्ञ यात है भोर ' भढप्दनी ६ धसीखो कै पास 1" उत्तर सुन कार राजा मे मान एना ओर रायाने दुर्यान फो वो उतर दिया, ददलिनेरभो रेगोकार त्विय । पुन" दर्यान ने राजा सादय सेप्रभ्न किया पिः '“उनि्रा मे सव से बडी चीज चान, रहती तो है बसीर्लो के पराम जोरि खाती क्या द्ध एण राजा ने कठ का वादु कर पुनं भाग्र दू्रे दिन सपनी खमा मे यह प्रष्न किया धश्च ^ पश्र ममा स्रकितद्े पर भीर एड काट तक तो सभौ मनि ~ “ म\य गते । पण्चात् कृ मादभि्ो ने खाद कर क्ा-- , मससज, कषम बात्त नी खाया करतौ दै १ *सजाने माली या कार पृछा क्सि--'्दुनिया म सय से वडी श्वीन्न रान, ^ रती नो धमीन्टो कै पास ह मौर साली च्या द १८ इसने रहा नि, धर मदश्न सपया जो मेरे पिता फे नामे वकी ह यदि फो काद्र यनद कि चद खाती श्या है ®" राजा
ते उम्र समय सोकर कर क्ट" शाप ड र् दीजिये 1“ इने
॥
॥
५०५ दरान्ते-सामर- प्रथम माय ˆ |
सक्लिष्प कोह पेली युक्ति स्मोेचनी चाहिये कि जिससे राजक, छण सै शीघ्र उण हो दीवान पद प्राप्त करं 1 भतत. सडको ने मरापसमेँ कुछ खस्म्रति कर दूसरे दिन जव साजा सावं चाहर ` निकरे तौ बहे लड़ने दरवान ने षढा क्रि“ मदस्य, दुनिया ' पिंखवयसे ष्टी चोजच््यारै ष्ट्रं रादाने कटान" यै र्सस् उचरः कर दुगा ॥" दुसरे दिन राजा ने घष्त कान देरवार्मे ययते छ हस वातं का सम्पूणं समा कै, चग से" या कि-- "साई, सभा के लोगो, दुनियामे सवकेवडो चीज काह किख ने कंदा--“ भन्नदाता, सवसे वडा र्यी ।*' किसी. नै कद्ा--» सदसे वडा उधर 1 ' पसीने कटा" सदसे यड सजूर 1" किखो ने करा--"खव्से ठंडा ताड” किंस ते कु "सचसे खडा पहाड !' किसी ने कटा“ सचसे धडा, साया किसी नै कदा-“खयसे.चड़ा चख ' ये सर उत्तर राजः मी दरवान: सरोर्दियेपर द्दोननेइनमे सेषटकनपरमी नमान । जव रान्ाके गज्यमे सम्पूणं भहुप्य उत्तरे केतो राता ने स्ोच्याक्रि भय) केयर हमरे धगीचै का माटी गेव, उसे.भी खुला करपूउना चाहिये, देगें वह कया उत्तर देता । छत ष्यजानि पू दौयाज्न कै छोटे पु मालो षे चखार ष्का दुनिया सनवसे ची चीजे कय र ९“ उस्ने कह्य--"यदि परैर प्के नामस ३०, स्वरस्म सपया कार द्विया जके दौ र आपसे प्रषनका उत्तरः }”भाली की चट .वात्र खुन राजग द्रथा सम्पूर्णं सभाकेखोग वक्ते हो गये} अन्त अँ राजाने कृद उम्दा बाय के माम से ३२ सरस रपय स्यद् द्विज ग्चेगुः, तुप वते ककि दुनिया मे सवखेयञी चोज्ञक््यरहै?१. गदौ ने च्छदः ~ दुनियौ - मे सव. चडी न्वी्ञ ह-"वानि 1* यह उच्चय सुन रा क. ओरी मनम निष्यय छ्छेगय कि दीक स्पेस दकनिनेमी मानः यया पुनं ददातत ने पूछा कि-"यद्प्यञ, टचि छसे
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५. ॥"2--दटनिधरामें जपते यही वाते ०१५१
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पडो चील वरात व ध स्टरी हा है" राजा ने फिर व हा किं मंदा उत्तर कल दगाण्मीर राजां सभा मैःगाकर उसी भानि पृष्टा कि---नियामे वसे पदी चोज व्रात तो दै, पर व रटनो चद है?" किस ने कटा शन्नद्राता धनवान के पास । ` किसने दुा-- + ११९ > --*श्रटयार्ना के पाम" किसीनि कहा विदा के पाम्द 1५ सजामि 'फीभौ दर्यान को धिये, घर दुर्यान भि ये संव उत्तर द् ? परदर्काननै पकक उत्तर सीकर न किया । पुन" सजाने चागीजरे से मण्ली को उच्य यरं प्रयन किया कि दुनिया खये वदी चौ , बाति द, धरः रहतो कां है" इमने कहा कि~“मदा्णजं श महंत फिरनिकलया दीजिये" राज नै णरद न तरन्तो नना दौ कि-माप उन्तर दे ३२ स सीर निकल दिये जाते 1 , मारौ ते उत्तर द ~“ डलिया सवने चट वीज यात मर पद रली ६ धसीखों के पास उर न जेमन लि ~रं साजा ने दर्वान को यदी उच् दिय, दिने मो सरोकार पिया । पुन" दर्वानने साजा खष्देव से ण्न किया यिः ` (नियं म खव से-वडी चीज चात स पास ९ दादी कया ह १" साजा 8 ` जाक ड द्धिन अपनी सथा रं य भण क्रिया ॥ मग्न कर लर! चले आर फु काव्य तकं तो समो भीन सत्र समभा चत्तो ख आदभिरयो ने -खलाद् कर काद 0 8 स्वायां कर्ती द { ' साजगने मृष्ट '। सहनी नो असीर के पष हमरो के न्म वाक ध ॥; ध खी मेरे भव 4; नि पवि" दर सदस्य कि वह स्वाती वया , चरभी ख्यादटेंती न व ० र ' `न द्धी समय स्यीकप्र
\ ५3 ध \ १, । (2
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)
२५२ दन्त साणर-प्रथ्सययाग #
3 2 का ्ि--“"महाराज, दुनिया सब से वड चीज वातै जो ` र्नो रै जसी के पाख, पर खाती द राम । रालामे मान सिया) पुन दूर्यायने सजा से प्श््न किया क्रि--ष्टुतिया मेँ सवते वड बात, र्टती "तो है भक्षी के प्रास गीर खाती है गम, पर करती स्या है 2" राननाने फित्स्मो "क कह कर " दूखरे ठन अपनी समामे यह् प्रथन किया । खमभाकैखोगं , श्योडी देर तो चुप रहै ओर पिर दोशे-“मराराज, वातं भी कही फाम द्विया कसती ह ९ राजाने पुन, यद्रपिचे से मखी , नदो बुला ससे शख प्रश्ने का उतर पुछा ] उसमे वाटा "मदा खज, -खचञ रारे चाप का दीचान पद हम दोन ष्योमेंसे किसी च्म दिया जाये क्योकि मापका ण जी पट गया, ओर" यह दीवान जो मेरे चाप फे स्यान पर है इसने मेरे वापने नाम ६६ सदस सपय विच्ुल खा उखा है, किप यह जरन्दुम रसीद कियाजवेतो र्ये मापकरे प्रष्न "सा उत्तस्दे सक्ता ह) ` सजाने सश्चा,दाल समभ खीक्रार रूर लिया मीर कदहा-- "भाव उतर दीजिये पेसा ह्यो होमा 1 माली ने कम~, मद्ा- प्प, दुनियः मेँ सच से वद्य चीज वातत है थर वहर्दती दै जसी फे पास तथव खारी है गम स्फर फरती है वद वह काम जो धन, धल विद्यास सेन द्ये 1 राजा जै उत्तर स्वीकार किय पोर इन स न्ते द्द पठ टे दीव कदन श्स्ीद् जिय । ५ # ४८, -
ण्च्मो यपीत् {जद जद्ुश्र पित्र बाध ॥ चिष्गरे दधमं प्रतत निदव्र मण् श्रग्प् ॥ ` ,
॥
९५३-- एङ पत्तितरता २५३
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"धे 1, सस्ते भँ जव मगाजी पड तो घाट परनावमषभे्ते कार्ण दौच सोच रे ये न्ति कय करना चाहिये, परन्तु कुछ चिचारमरंन थाया ! थोडी दरें रिन्दुनैतोकहारिभ्यैराम चन्द्री फी मतो लपे एक तरफ से मंभाता र, भीर वष पसे उथछे योर से शया शि पारी गया । घव मुसखसान सारय सोच्ौ गे किमे कैसे पार जाड? राम वो युभिरूया युदा चो । यह सौ चते सो चते म्॑राना प्रारम्भ कर द्यि गौर यष मश्ने य सयौ यद् विद्धार वरता जाता था क्वि-"सतकौ य् करुंयाखुदाकी ९, दस रमयुयुदया के कारण सका ध्याम पट रया यौर यद् गदरे में जाकर इक शयः ।
यख, समभ ली करि स्मयुदैयायालों की यही द्शाद्येती है पि थोडायष् ल @ेडा वर्, यद् क्रे याच् १ ' ' । ' १५३-एक पतिन्रता पफ सार किसी यादस रदाकस्तेये! उनकी सोती ची तुर धीर पतिन्रना थी किन्तु रट भत्यन्तही निम्मा गौर मह वा, यहा तक कि कठ फमाता ध्ङ्राता म् धा दिन भर पडे परे वनिं वनाया कसना चा नीरत विद्धासी दसै जद्रानदासते दध्र पुध्रारद्यादा न्विटाय्रा पर्तीधौ । यष्ट पुरुपण्कष्नि घानां द्दखने गया} वटापकयन-नतते पदन सीय्नचोम -एौनेष्ेवादे वपने दिसीनेक्टदियारि दसस सीरन् रली ष्पद यत यनै दसस वहा दिः ष्लमर्त् भप्नी न्पोरत वम सरे पास श्टादेन्सेय ए८०स्प्ये तुके स्या गहु परागं उख यवम यो सपने घर छे जाया भीर पपरी भौन चेका सि" शगरत चानद्सके सप्पन्नोर्दे सये सपणेद्ेणा इतो शिपर्मै द्मेलियाक्याष्ं। यष गुन दरम उषसे वहन हौ गद्रगण हट 1 सद दसम प्य
1», भ # 1
२५५६ छान्त सार द्रथम माण =
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{ ^ अच्तर तू प्रथम शसेदो सेद्ध वना ङे गिला, प्विर देगा जायगा [** आरत ने कठा चरखा सं दौ श्या चार चन्ना कर् चित्या दुगो 1" परन्तु गोर्न अपने पत्ति कमौयद हस्फत को भी मानि जाननी शी, इसलिये वदे. सी असमंज सें पड गं करि केसे समयमे इस दुष्ट से वच कर कैते पनित फीस्माहो, प्रत अमोरनमे यगमेपतिसेकदा-- वदरा रस्मेणक रम्या! न्वारगाये वन खगनिमे लिये ओर णक म्रलटनीन्नत्राछगने . केलिये के ध्ये रपति श्रस्का समव द्रर रायः दै, जयनक र दस मुलाक्िगकेन्विि मोरो कासन कपर ह नोदनं पावमरप्निरते मिसिर प्ररपीमतेखनी ओोस्द्रखफापनि ग्स्त सीर मस्त वेने चाज्ञार को, चला जय(]नोरठोदेष्मे), अहर सेन रुणो | मुलफिरने पृ्धा-; तृ ज्यो यतीह" सीन ने कदा--"्जनाव सेवी ऽसटियि ह क्रि यह जेया पति, चडाद्दीवव्मप्तर् ोस्प्सङोेो वर अटत विग्रह गेज' चाजार मे सखी न फिस्री सुलाफिर पो ठे रतिदे मौर अपने ध्रर्मे उस्यकै हाच पैर रस्ते से्व्रधि उस>-पास्वानै के मुद्धाम येमस्ये भरा कसना द्ुःक्नौर पोडमुसखट धुेटदैनाहैःसो देषििकरिभिरव.ती सुक से वय्नयाट पोखरी ओर ग्स्सा -परस्रलन्य्दट्य गयाथ, उस न्नर चाङर् गया श्वा म्नो दैप वह छ्िे न"रहा ट1*" यथन यद् दृण देखे त्ति वह चाद्प्य मे रस्सा नैर भस च्वियि श्रता दै निण्वास मान नलपडा। जच चह पुरुप लपने घर भायां ना अपनी म्यो से पठा कि-~ मुसफतस सस्या चखा गयः?" यस्त ने कदु ~यै ।मस्ने पीस बहौ शो सुम्ना कहन खगा क्रि यहं {म्र्चे जो तु-पौमयर्डा रै मणक्न्टिक्रे सुर वयेत्द्रेदे रने कडा“ क्स मिस्ते गप लेस कया कर्मे आप्येक्ते लिए पीच्चकी ए, रोस यना र्ग, तत्र चना ग'नन स्सीसै सर्ता दा-स्मजाचेदे। › पुयभे, 1>। ॥ ~ ५ ८
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। 1 1 । 1 ५५--चेरदमी २५ (१ = =-= । कटारे चुने मण निस्य क्यो नपेसे दीकिखदेदीः यच्छाखनलां तव द्ड़् -कर दे आ 1" भौर यह पुरुप मप मिसे के लिल्टे कर लनीडां सैर पुकाया कि--"“भो मिर्या येच्क्तिजाभो।' मिर्यते जाना कि यद मेरे पाग्यानिके सुराम । भूमिये मसने"जाता ह एस टिप मिथा भागे अर यद पीडे "दौड्)"त तो भियां कौ जर निथ्य दौ गया आर श्राण छोड भृग गये । _ - = ।
= 1 = नि ९५४--गृम सान् ८. यारक्िसी णस्सनेग्रण्न सिया चि--"्ये वनिये दने - मो व्यौ हीते दै?"".दुसरेने जवाय दिया {क-- श्ये देसी चम्तु ग्यनि है लिेनसारमें कोद नदी साता जौरनमानेताचरमें तुभे द्विसन्उः।!? अय चट् .दस' शख्स को लेकर गयां तरो कपाः | ' देना है पतिक पुखीसमैनने चनिये की दूकान पर्यादय रौर अच्तेमटिको कनां वकि सारे तने खलम चण्डी \ भि दे.भौर चटननोद.ने जमा का द्या ओं भिलायाष्ट ` मर्य क्रि पु्टोखमैनने सैको सान्ियं दौपर.चनिय्रान ' चनो) तव उस्ने उस ण्स सेका“ क्यों खाद्य 1 सममः
गधि? १५ } ॥ धः 5 ति =-= ति ४ १५४--गरहमे ४ क क्यु वहनी दीन उपर अत्यन्त वेचक श्म ण ~ ने साया सीर दिन्खी व्ली (वाजार् तं उसने जामुन चिकन दप देख शो ख पञ कि--“यद ज्या है?" लोगो ने कदा यट -। रिन्दु-तान फी नना ह 1" वे्ासा्या कड केसा पास त थण - ङ्स {ये लिय षो चा य मयान पूरते घम उद
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२५६ दरएान्त-सागर-त्रथप भय, ्।
सरल गे ए वारीचेमें पहुचा तो दाग मं केतको दे वक्षातथा अन्य पुञेष्टेप दक्षो परभौरे यूज रहेये। दसने समभाकि ये उसी छिदुस्ताम सीमेवाकेचक्तहैघीरष्नमेये फुटफल खग रहै षे गव. इसने भरि एकड पक्र कर साला आरम्भ फर द्विया ! परन्तु लिस समय यह भोर को पडता था तो भोरे खों चीं करते थे । काु्ो चोटा कि--" चाहे चं करो य!
म, साले काठे सके एक गरी ोडगा 1*"
। १५६--निन्यानवे का फर ^ '
एस सेठी वहुते धनवान् एकर शरमं र्टते थे भौर सेयं
दे लितण्डे मक्ानफेसमीपटी दीवार्से दीकारः मिली दुद पर दूसरे सेऽजो बहुत हो दीन थे, रदा करते ये 1 धनादय सेट , अपने धर भें ससव, से यराव साज की रोटी वनवत जर '
केव नमक ष्ट चाथ साया कस्ते घे खीर दीन सेड नित्य अपने
चर सीर परूडी हदु यच्डी अच्डी चीज्ं यनयतति थे। अभि.
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प्राय यह च्छ दीनं सेर च्छे कमम्तिये वह् श्फएपी उार्तेथे। ,
श्वनाढ्व सेड फी सखो यदह चरित्र देख, हैरान थी सर ' कटा करनी धौ --, शाय 1 हमरे यापने स्यो धनशटय से यहा व्याह श्या । पैरेधनसेष्एा, योनसोगा ययाम द्ि द्विया गया चसदैलाये सगषट टा बच्छ 1'' प्ट दिन् उस चनाद्व सैट . प्रीता > अप्त पतिम पद्य फि-' भापङे धनी दहोमैसे कपाठपननापखादहीक्तस्नेहै सौरनरकसो कोद सक्ते, म्ासेलो यट रपा दी यच्छा लिसङ्घे यदा सेन लुग पृ यारखीरप्यदाक्स्नोषहै 1" सेउने कष्टा यह् गभो निन्य म्मरेक् कप्य नी पदप जच्छ नाज्म तुते निन्यानधे प्या ह जरत् क्न यह सपय पश कपडे सं याथ दखदोन सेते घर डार देना 1“ धनस्यसेठ कीस्ो ने चहु ख्या
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४ ओर खारनोर २५० प्रक कवर मे याध द्रसरे क न ५ यदिमे वध दर्सरे दित दीन सेठ क्ते यदा => दीन नेऽ की सोय वद सपयो न्लौ पोख्से पाञरने पति न्मेदै ८ । पचि ने गितन तो रूपये निन्यानवे चे] उसमे सोचा कि अरर दो दिन दच्छुया पूञो स्वीरन सा्त्मेये पूरे सीद्येजाय पसादी ए, दूसरे दिन से दी च्छु ग षूद लीरन्ता दोन क हो गया गोर अधो षिनि मं सी चे मये । भव रसने सोचा दो दिम खोर न स्याऊू तो १०१ जाय 1 जवो षिन में १०२ षो गये ते सोचा कि दौ पिन भरना तो १०२ षो जायं । स यदद शा दज धनाट्य खड पनी सी सेका क्रिदेसी मव "यद् भौ निन्यानवे ॐ प्लेस पड गया सरीर इसी बो ^ निन्यानवे -काकैरः कते है । परमस्मा न करे रस निन्यानवे ेकफेस्मं पोट भी, पडे । ्
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द: ॥॥ मौ ५ १५७-तप्रखी भौ, चर् चार । प्त महासा चिस चनमेतव द्य श्रये 1 पपत दियत चे चार चोर प्च करमर चे यो> सि~ "नदासाज+ श्राय सो परोपकारी है चसे दमॐे खाच चन कार परो ्ररपर लीजिये 4 हपन्यी लो चे केन चल दिय योस्मनमे {य् सोचा किदन डी ख आज अपने परोपकार ता परिय ड बरला चादधिये-1 जय यद गष्टात्मा नोर्यप्तं चोरप्यक धनिक कमान पर पषये तो चोरोने चनि मकतानु मे नुव लग 9; से -कहा-"मरमसन, अय ञाव्र मै आते यत्िये 1" "मरा कौर चा चोर अस्दर्पदुग तोर छम चोर चता , कै यद्र इस मष्छ {निकालने लद. मसार्न त चद्वस्से णोर को जस्चटा दो 1 पाची प्य लाए पं चादस्ण्टन ~ ववलन्नु नदिया च्य वीं -गोर दी ोषस जरला „ मद् यावृद्धि च क्र कनन॑प्ये छीर स्वरति जीभ दुष्य +. ५
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२६० दृष्टान्त सःगर-प्रथन चानि - (॥
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स ह्मे ला ! अय बुङ्डे कौ यद् पडी सि अगर मेरे केषर
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उध्ररजवनौमखूय विय भोग कख । अन कडकेा रो उधर उधर जरेत दिया । उस दिन वुडढे ने व्वूत् ददुत्रा पडी सीर चनचा भोजन किया भौर यदह मना रहा ध्वा क्ति दिखी प्रकारः गात ञयेस्नी भी ( वना दभा यैका } ग्तरूव गद्वु करः दै रद्य थी 1 जव रातहुर्दतोखीये किव म^रएक श्रा खे बुधै को चारपाई से चाध गला द्वा पूरा कि चता तेस, धन कदां गडा रै? श्ुड्ढे ने जान ऊ मयस सव वता दिया) उसने सवक ग्वोर वद्टुत सा धन बाध एर सोर के युङ्टं सो चुन ही.पीया जौरः क्ता जाता वा, क््योरे मकार ! तेर्द क्म यैक तीन का] ' मौर इसे पीट पार धन ठ वैकवाटा चङ् दिया । जव दौ दिनं चाद् उस बुडडे के ख्डके भये तो लुड्ढे को चर॑था हुमा, साय दद् पूली हुई भर सव घर शुद्य हुभा देख,वे| खी इष ओर चाप स्ते चोके--यद च्या हुमा ? › युङ्ढे ने , कहा कि-
४ ५ ५
बह श्रौरते न.वी निर था वैलवाला। ' , मे गवर जते गयौ धनद साला ॥ र
सेने गपनेनापक्ी खोक दवा इछाज सिया जर फिर मारं जमा कस्मै कणे 1 कुछ. दिन वाटर चद् द्ैखसाला वैय,का भैप्र धर उसी गाने भा पिराजञा। यै चारय उम {किर उन, भ्याम के.यदां पुत्रे भीर दो रुपये जजर -सर कषा-- "मदा " पज, ठुमरे चाष चटुन चोमार ह, आप्र रुषा कीर उन्हे रख कर
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, देष चनि 1" स्यरज ने जकर दष, पर इसरो "तो सव
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= गाल्त्र धा अत इम्बने घुड्ढे के र्दन से कला फि~"जय > ५ दधिना उदस्दनव उरो आराम ह्यो सक्छ ६ चुत कै, कड मै र्दः ने जुम -बुल छ इथ पैर ओ मौर कटः
4 ~: ट ५ 1 & ॥ ५ ॥ | <
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+ ध दिवस उदर आश्य, हम घ्यायको भो मकि को दः भापहो था, श्यतःत्रे उर गये द्र दिन उ्दोति गव नदष काद दुर्फी प्रद सेर द्गयं षताकर चम थर् च दिया प्नौर सव युदा श्रक्षला रह् गया ता उमे
म एकक्षम्मेमे वाध उलसकागतादशकर पृद्ा
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भ भ च चचा चाया धन कहां रका £ १ धद (षने हि -देमन यच्चा पनाया घन मौ घता दिषा। इमे चण डद रो ८ ) ने खर धन ग्यद ध्रौग पक सोगले पुन भगृतोनका पोरा प्मौर कषमा ा--^कयेरि मदर, नेग्हका तीन का?" शौर सासा घ्न लेकर चला णया । जप बुद्े लागि य लेरूग प्ायेतो णप की ल द्णा देख 1 चेष 1 श्नौर न्ते सोच सममः उसी तारं स ठ
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॥ ५,“ ` - १५६-लाल बुशूक्ड
क मत्ते ्ोकर प्क दायी निकल. या प्रस्तके
५१ चक्ले पर भूमिम षन गये \ शोँचयान्नो ने फ्रा--
ारयेकदेकेचिम्द् द १" सवो ने श्रपती गमन्त केन्र
^ नारा, प्रर कोष चिनार । निष््व्यन द्या 1 प्रन्नभं सथकी
पररय ठः ना च्यपिये प्मौर उनसे 9 सै फिला बुभत्कछद्धको चुना पदि ४ पथे तो सर्थोति
प्रथकिथकादे ॐ नि त ध्य 1 च्चिन्दटहै। लश न्नाः युम 1 न कम--नशुर ! बदाप्नो, ये कदेक्े चिद {" लान
षुत 5 से सर्थोनि फटा-- प्मदाराज {शस सभय दा ष्टुत % || टु
घाः क्षयो लमत (9 ४ मि 2)" चाल धुक्क्कड् नेकदा ध निषे ककि प्य जोय दमा गिष्य देकर ओओ य्ठक्ञग सी पात
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२० दष्न्त सःगर--ग्रथम भनि ।
रहम [=
डमे खता । अव बुड्डे को यद् णडी क्रि अगर मेरे कृडति इधर , उवर्जायनो सू विपय भोग ऊरू । अत रडकें गो उधर उधर मेस दिया 1 उस दिन वुडे ने च्वूत पया पडी गवीर वनवा भोजन क्रिया भौर यष् मना र्दा धा कि किसी प्रकार- रात आयेद्ली भी (यना दुभा वेलवःखा } ग्तूच शद्रे फर' यड रही थी 1 जव रातदुर्तो लखी चे कियाद मारण रसा छे बुङ्दे कौ चास्पाई से बाध गला दवा पृछा कि चता तेसा, धन कदा गङ्ग है ?'' बु्दे गजान ॐ भय से सव वता, दिया 1 उसने सवो सीद् वष्टु सा धन द्र पक सोखा छे बुड्टे कौ चष्ुत ही पीरा भौर'कदता जाता था, ध्नोरे मक्ता 1 तरदं का : तीन का! जीर दसे पीट पार धन् छे मैखयाखा चर् दिथा। जय दौ दिन वाद् उस बुडडे के ख्डके शये तो नुदे को चथा द्मा, सव देह एकी हुई गौर सय घर सुद् छुभा देख वड़े टस इष्ट भौर वाप से वोक्ते-प्यह् क्वा हुमा? ' युड्हे ने का सि-- ¬+ ~ ।
# ॥ ५ ॥
1 चह ओोरत नथी नसि था वैलव्राला। ` गु गय्फरले गयो धनैसक्ना 1. _ चारे ये गपनेनापक्छे खोल दवा इलाज कितं आर फिर भाग जमा क्सने क्रो 1 छख दिन चार चद् चेखवाला चै का म श्वर उद्रो गपवुमे न्म पिराजः\ ये चारो रुग {कास्डन सेमे ऊ यदा पे सौर दौ रुपये गजर -सर् कषा-- *मह। सज, उग्रे चापर वडुन तोमार दै, याव ठदाक्र उन्दे दल कर द्वेग् कीक्तिगे 1 द्रजः मे जकर 2 ग्या, पर श्रातो तो रूवं ष गाप ध, यन, म्मे ठुद्ेकोरूटन्तेसे कटा रनज प > २५१ द्विप ठदरूनच इज्ये माराम द्रौ सवात 2, नद छर मे चययति वदन ऊच दाय चैर् जट ज कटा
४ < #४ त
1 र ॥ + - 4.
| १५६-लाल बुक २६१ -~~------~--~---~ भिष्या- हषा फर २५ दिय ख्दर जष्तये, हमघ्पपफीजो ¦ फीत होगीरेये प्रोर भापरही सेधा करेगे 1 वैचराजफातो ये श्ममिप्रापष्ठो था, श्रत व्र खुर ग्ये} दुनर दिन उन्न {बद चो नड़रोकादुर्दटुग दो श्ट ग्ट दुगाय दताकफर "रधर दघ मेज दिया प्नौर जव वुडूदा प्रकेला ग्द ग्याताउते उपक घरं पक शम्मेये वाघ उसका गना दशकर पधा कि-"्दना, श्रष पना परचाया धन फां गकला ह १५ घडे , ने पाण सत्ति देख मचा दन्मया धनं मौ धता दिषा। प्ल घन , { इन ए पलल } ने सत्र धन खोद ध्रौर पक सोटाले पुन बु्दे फो गदरष पीरा प्मौर फषना था-“वयेरि मारः तेग्दष्न वेततोनक्ञा 2 श्रीर सारा घ लेकर चत्वा गया! जयबुदढे कचो नड्केद्गलेकप्मयेतो पष्य ण्लदणादेखष्ड शोभित एष मौर ्रन्वर्मे सोच समसः उसी तारखसे ठगी चेहरी) ; |
- ` १५६-लाल बुभक्रड । क्वि गवये पोर एक द्धी निकल ¶या मोग उषे शोज गो चहल पेर भूमिम वन गये । गँवधानो ने कद
ष्पार्ये कादिके चिन्द ह?" सवोने श्रपकी समन्त के ध्यन्णर
विचार, चरको विचार निद्ययन दुश्रा। छन्त मे सवक्षी
य राय उदरी कि लान वुभयद्को बुला व्वद्धिये श्रौर उनसे पृ किमे कादिके चिद! वन्यत युक भाये तो सोने कफम --"शुस ¡ चताक्षा, येके व्ह 7 लात बुभ यध सुन र वषत भसे । सयनि क्ठा-- 'महाराज { शस समय भा ययो दने 77, लान रक ने कदा कि-“दम हसे धस कयि कि च पसोय दमे ^ द्ोकरमी यहजरासी दान
२६२ टणन्त-सामर---प्रधमस्िति , .' ^; व न जान सके +» पुन लाल वुमकड चदुन रोवा । सवो ने फा; प्महाराज, प्राप रोये करो?" लान गुकरद दोने फि--सेये नमे कि दमारे वादे तुम्द्र मौन प्सो पेसी याति वत्वेभा7 लो ष्व सुन भूतन नडी भाने घात दुफकड श्रीरच जने कोय। ममेच्छीर्वोधके, हिना ङु दय ॥" -, सर्योने का~" ठीकद।' 4 पलो प्रकार उत मरपवालों ते कभी फोट धह देखा थ| प्त श्रादमी श्यना "नोत जादे जाता धा, क्तेपिन उल्क गड फवे्न न चने वे चद उम कोरु को मय णडी के दुध गथा प्रव गवन्रातते उम्वा अरति किर हेखनी म पटे । पन्तं उन्ह लाल लुण् फो पुलारप पृछा सि--ममदायज, यद प्या है १ वास युभकड ने छएदा-- जाने शरन घुभक्ड घोर न छह जानी 1, पुनी दोऽ गईयेषुद्यकौतुरमादानी॥ \ ` सवोने फाटक महारा, ठीक,
1 +
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९६०-परम लाल्धवी , पद्त सेड जी षदे लाली थे, यद तक कि पने पेटः ' मदी मोत्तिखापीभी नकं सकतनेथे। पर् उनके कुम्ब एनक्र धक्तं सवनाव को च्छा चष्ट सण््तेथे प्मौर प्रपते सन् प्न्य धकार. स्माया पिथाकर्तेथे; चया दिनि खद्रदं भ्य भच पद्य, फोर हल्परा, कोर पृष्टो, फो लङ्क, ` -खीग, फोर र्वडी, कोर मल्पद वरर उङ्ास्देये, पतन्ते जी घर ध्य पहुचे पपर यदद ट्ण दे नाद् ऊ नीचे
५ ॥ ९ 1 1 ड धि
` , १६१-खशकषिस्मत रौनटै! २६३
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निकाक्ष कग पमे जगे ष्मौर कोते कफि-न्यग्भरषै तो भरमरे
सदी, दम भी श्राज मद्रा टौ पियेगे +° 1 मसी , वैदी 9हद् पर, पव गये लपटाय।
"~ क्षय मत्र भिर घुने, लालच दुर बलाय ॥
„ . १६१-खुशक्तिप्मत कोन है ? £ रफ पारयुसपश्क छिसी -दशादने एक व्ादमी से जिसका मे माम खाज्िन चा पूद्धा क्ति शायद मेरे वरवरतो इनियार्मे ोई एनुशकिम्म्रत न दोगा 1 सादिन नै पक महा कमाल शा नाम जै कदा--ण'हज्7 ! उसमे स्पादुा ययु गकिस्म॑त निषा प्मोर को नदीं है," वाद्शादने एदा -- “कयो? सानिन र भट ङि उगने पनी मासो घ्रयु सदाचार टी म व्यतीत ण्ठी दै मौर उल जिस यश्नार क किसी कलङ्क क्य धश न्दी प्नौर समाद मे उक्तता षश है ध्यौर जि समरप वद मरा निया उश लिप रोती थी}, वादा ने समस्तानि प्रग्र यदह चयस ज्यादा पशकिन्मतदैतो टा नम्बर भण दी होना, यदु समक्त कर पदा पि--“डमनक्ि याद् किर फोन ग्वुगक्तिम्यत ह £” दे प्क दुरे कड्वान्न का नाम ठो करा--"ज्र ! यद उनघेल्पादा घुभक्रिर्मन दै 1» उने ष्हा--दत्यो १" सालिन >े उतर विषा शद्तने जिस दैलिथल्मे प्रवने वापचे गृ्रथो पा पी, हवह घसो दो युद्स्थी स्ता दया पुत्र पव श्नाना प्रादि म क्ता रुरा, पर्मरेषटवर क। मजन कर्ता श्रा, ससास्फो घस्पूरौ प्रापत्तिरयो को केनत दुध्रा धराज प्रा सोता ६ । वघ प्म ध्रक्नार यदि ध्नापकी वदेश्ादत श्यन्त क यनी स्दयौर्य्े स्नेह श्वापि न चाये तो मे प्रापो भो सुुशद्धिस्मन रहना 11 वाद्शाद ने यद् छन कर सादिन पर क्रोधितो र्वे निश
> 1
मृ दषटन्त-सामग्--प्रथम भाग ' विः 2 2 जघा दिया । पुनः थोडे दी दिन भं नावास "उल घाटा के ' ऊपर प्क यादशाह चद आया श्रौर उणने खारा गजं पाट षछठीन ल्तिया श्रौर उवेक्रद कर्शयति राज्य लेया श्मौस् यदे दिनं उदि सूलोका हश दिष्रा 1 जच य् बाद्श्ाद सूली पर् चदटरनेत्तगातो रसनेव्डजोग् खे पूकाग करः कदा किला लिन { सालिन । सा्तिन !” तय ता चह वाक्य सुन उस घाद्- शाद्रेफि जिनमे एूप्को सूती दौ थी, पसक श्रपते पाक्च दुला फर फा किप प्राप दया क्रते हे ९, उसके पृद्धने पर द्मे त क्रिस्छा साजित श्मौर श्पनो सत चीत फा वर्पीनि किया चौर कहा कि" सालिन खोक कता था, देखिये ! द्धे दिनि हुए मै यादणाष्व धा प्रौर श्राज खली पर चद र्दाह, पल लिण मै सालिनफानाम वास्यार पुकारर्छ ह ।) यद सुनकर, , खादशषहके दोश इवास खीकः टो गये रोर उस? द्सपरो युल्तीसे ञुक्त फर साश् सज्ञपार लोटा दिषा। ५
1 ५
१६ २्-अयोग्य भन्त्री | पष वादश्याद् फे यहो पकः वड़ा हो योग्य मन््ी था, परन्तु दद् ्रपनी खरौ के विशेष चत्तीमूत था प्रौर टस सी खम मा विरक्त चेकार थाः+शत सखीन वादग्राद्ं चे फदर करः' , उश्छ योग्य मन्नी को दसा कर प्रपते नाई की नित्त कया श्रौर च्येपते भाई फो यह समक्का व्या कि तुम ब्रद्श्वाद छी श्याम ) | ष्ोकमोनततोदना, जेनाचेकहं चैखा दो करना] वाद्श्ाष्टने प्कवार इसन मघोन फटा फि--श्थाप १०००) खर्फा + न्प नोट चाजारसि से पाप्य (भये जव नरद क्िने गयेततीदक केः सननेजर > ददा कि-- १००९] का पक्ता जह द, पच पच स्ौकरेदो वदनो ज्ञे जानो \ ये वर्धसे ङौ प्रयि श्रोर
८ ॥
+ 1 ४
१६२-मारत के शुरवीर २६५
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रौ. य काद्श्द् से कदा फि-**९००] का प्क तो नदीं मिलक्ता था ,, पाच पांचसतौ के दो भिजते थे, इसलिर मे नदी नाया 1०, शाद्- शष्ट ने कक्ष कि--*मतलय ता पक द्री था, श्राप षरयोन लेते ध्य 2") युं दिन ङ वाद् शदृशाद क्यो सहृश्तो व्याद क योग्य "रदी धो, एतललिपः याद्याह न श्रनै कस्या क्षे विवाहा पक , रोऽ न मन्तो जी फो भेजना वादा गौर मन्ध जीसे कषा $~ “घाप पक पेना षर दढ निखङा कुन, शीत्त, समानता, मिच भादि वतं योष्य द नौर उमगपर वपसेफममद्ो।" तेथतो स सन्घ मह्वाराजञ ते कहा फि--“दुञ्र) प्रगर ग्यारह ग्यारद दर्पद दाहो“ बादशाह ने समक्त लिया करि यद मूते .६ श्चौर उक्तो उक्ती खपमरय निकाल पादरज्िया।
। १६३-भारतकते शूरवीर
प्फ वार किलो गततं दा उक्जियो मे परस्पर लड़ा ह) ण्कमे प्रयनो सुर चख शोर एुशेरे ने प्रपनी सखु कलाई । वद उनिकेरदाममे प्ठुडउछा फर कुता घा-'दणा सतिन भानेगा?'? शौर बद उवे स्दता वा-प्क्या सलि नीं मानिभा # श्तमेमेपकस्मो श्रः ग प्रौस्वोजो जि--“पस्मेश्वर खे करे, इ शूले ते शष्ठ उदे है 1» वदसे शयुस्वीस्वा श्रीद वद प्रादय ¶
१६४-प्राय फंसे
` पकार मुलजमानों ॐ तश्भिये हस्देये। वर्धः श्ल अश्नारभोद्धहा रै थो रि निकलने तक कामा न था। तमे जं दक्तकमोलमे प्क हिन्दू सि जा पर्हुवे । वहां सनर्मस्र
२६६ दान्त-पापरस--प्रथममाग- ` _ , सुसवपान ये श्नौर वे खवके सय उतो पीट पीट कर यरद; स्देभेक्षि-न्दाय दुस्सेन ! हाय द्ुस्पेन 1» यर देश दिन सी च्मपनी द्वाती पट पौर यद् षष्ठम लगा फि--धव्रायर्फेवे | श्रा फंसे!"
१६५--भरत "
पक सन्पाष्ठी पक महा सखुदसर-चनमें श्रङेलां रदता-धा। चह वत नाना घकार की प्रोषि प्मौर दसै रे घास से उप- खन सा कन स्दाथा ) सन्यासी उद्धो चनें नि सन्देद श्रौर निर खुलपूर्च-ह श्रयते दिवस व्यतीन करता था । उसी वनम पक प्रति मनोर ताल्लाव रवच्छं जलसेपृरितिथा। पङ दिङ्ि वह सयका क समय वृचित्त दो तदापि पर गया, वर्ह जं पान एरक्े तालाव कौ मनोहर णोभा फो ध्रवलोकन करने सेगा तो पया देखतादै ननि भर॑ति सोति क पक्षी ताके तदक दुष्त पर नाना प्रकार को खडवनो सग्राचनी नाशिर्यो से चद- यदप मामन वनदो गुजञा ण्डे मार पपत षिन भस्क्रे चे षये व्यासे प्वितष्डेद्धाय चषि मेष्वार कर कर खरि द्विन फेवियोगक् दुभ्त कते मिखाणग्हेद | दुत शरोर धनकः रेण भाकाश्तक्री प्सह्लिना म णपूर्धन्द्धका दरष्टा है) सन्यासी इन खव पदाथ पो विलोस्ता शरोर ख शोमा देख दित होरा था, इतने मे श्रा पर श्रदमनष चन्द्रमा यपौ नक्षत्रे ष्ठी सेनातते गड दत यनक साथ मकर धराभित इध्मा ष्म उखने सम्पूर्णं घ्यखमान पर श्रपना श्नचिन्नार जमाया धरौ. ` . च्यपनी-मन्द् मन्द् किरणों ठास पृथवी को ध्राल्लोङित किया 1 सांलादिकि सन श्रपतर छ्रपते क्षायो को स्थान द्ु्पूर्वत्र द्वित
` ~ दी प्रपनौ खी खदित य््कव टो ध्रानन्दित हप चौर लार दिनि "फी
= १ ॥ = 1
१
अ १६५- पार्त २६७ 1
पकावरन्को शान्त फस्नेछमे शप्र दो धरटेके समीपरातनि ग्यतीत हुई) सथ लय श्चपने श्रपये शयन करने छ प्रसन्धरे दं । जहां तं मनुष्य मरडली रभो तक नहं सो$ ई, कोर सेत धारकीतुरो भं मस्त फा श्रद्र पुस्तकों का पष्ठ कररदा
+ फो {यरा त्या प्रति को उपासना में निमग्न द प्नौरः उभर समय ॐ विन् तच्वक्षान श्यौर पसोपहार स्थाय रेन श्रयने क्वाथ तेंध्यादन वाक्पङश्रनुलार क्षि-व्लसधींदोपन पश्यति" कमे क्र्म, सय श््त्य हुं नही देन्ते। =
,“भद्ाणयो । इसी भरषसप्में वट सन्णघी भो विनार्ङ्गी सधुटमें गेत्ति लगारदाथा क्रि यक्रायक उम्का याना पष भगो करी श्योर परु गया । उमने वां जाक देषयामि यद का पूं टिका द, द्योकि दस्मे ष्डुनते रग विरणे पुष्प फन श्रादि व्रिदयमातष श्रौर चिज विचित्र शूषो से भूवि रोभादेस्टेषट। नि-गसतो प्षातष्टु्रा रि यद् घािक्ा किती ड दी नुद्धिणान् फी सुखल्िन की दुई दरि । दसचारिकाकी णोभा देख सन्णात्ती का चित्त चाया फि श्ये श्रण्दव देषा चादिथे । धह खन्पासी उनी मनोय वादिका की प्र देष्कोकी नाजस्त से-ताकर चारिक ङ पाल पचा वद कवा देदह पि चारिका दो चाश्दीवास वष्ुन दी ऊय ह श्रौर उल दद्रता तथा सुन्द्'ताभी चिनक्चयष्ो हं। त
"गहु सव दिष्य सन्यानी मदा फा चित्त धयटर जपते को चा, इस लिप सन्यास्ती जी वाधि का दरवाजा द्धन कमे, पतु तन्योने दर्व्ञा न पाया छु देर के दाद् उतो वक र वेर्य पटी कि जिनमे उल्ल चार्िक्षाम पानी जा 1 पद चचा उक्तो गरक तट पर दैठ मया शरीर श्नन्टर पन षे थल स्योने ज, दी विचार मे या क्रि यकाथकं उस पर
५
~ ॥ श
१६८ टृष्रान्त-पार--पथम भाम
न मिन्र प्रज मया जिलका नाम बुद्धि था । सन्यासी ने पने भि से निवेदन क्षिया क्र मुभे इस वाटिकः! ऊ देने फो पलक द्व क्ता थता्ये ! सन्थासौ ने श्चपने मित्र फी यहुत कान तकर रेषा ची, सउ मिच्रने उनका प्ता वतल्लाया । सन्यासी उस् फरक शती सुन्दस्ता देम महा सुखी हुश्रा । उक्ति मेहगव फी धका पेनी बुद्धिमत्ता से बनाई गक धीभिः ज्ि्लकतो मनादर फक श्यपूद शोमा दिखनास्दीथी श्रौर उन मेदगाव म न्ना प्रकार के उहुनूद्या चमी पत्यते से िन्कास ने खी चित्र विचि स्चनाकफीथींरि ज दिगक्रर को शिर्ण उख पर पड़ती थी, तो पेखा क्षातदहोता धारि मानो दुस्य सं द्वन मेयम चमकत रदा ६ सन्यासी षस शोभाको देखकर श्रायते या उसक भनित्रने फा "्वल्तिये, श्रमे तुमको चाटिक्रा दिषः क्षा +» सन्यासो भिन्न ङ्ते साथ प्रन्द्र न्या, पर पारक की ध्मपूच छंखा उक्ते श्रार कार याद् प्रती थी । कुं देर मेँ' व बाधिका पर्ट्चाता वादिका फो ध्चुपप्र छटा देख ्ररयन्ठ भ्रुटिन्तत षुश्रा । पुन प्यपने मिन्नत साथ इधर उध्ररः घु घारिकाफोदटेपा प्रर उल्तदी विचिन्ता से सन्धी दृष था । सर लिप ङि उवके सम्पू पशये ण्सी वुद्धिमत्ताकः साध दुनेयेषिण्म् पक्त को देल सन्यासी रकित था श्रौर जथ षटं उनी पनाव्रर परः श्यनो वुद्धि दीडाना, तो वाम कपे
व्ल मन्द मन्ड उन्मत्तता से समना प्रौर पश्ियों का नान
, “ अकार को प्यारी ष्यारी प्रवाजों का फरना, बुननघु्लो का पलं
प्र निर्न, पूना का द्िततना, नरणिक्च फ ननस्थाजी -छाि विचि तपे देल, सन्यासी ध्यप्ने प्रपि नशा | थोदे ~ दिन चद् उख दागने रहा, छनः बादर निकल अरमण करते लगा , चद्ुत दिन याद् उखे पूवं फो . दिश्या मे, पक व्वरदौवारो नजः श्रे जतो कि उने उख दाशमे देसी यी.चश्मा भौर नः
0 ॥
|
~ १६५-भास्त २६६
शते बदुत कम चोय परु दुवज्ञा खुला दुधायाभौर । दीवा मिरे पडी श्रौर र एूखो थो । चास श्र चे नये नये किप्मक्ते पथु पदी प्रमी जादि फर श्रते मन चष्ट , धर पराय निषरयतासेवेटेकार्देये परौरी तोषटतोषटने जा र्ध पे प्मौर दारिकाः वामतान सव गाद चिद्रषमे सो र्ध ध} सन्परसौने श्रपते पितम पृङा फि--*भ्यह ता मुके वदी पाटिका मते दोती रहै परन्तु नरी मालूम जि एस फी णद् दृषा करयो धिमाश्ननादौघारषएी ते पद् सु-द्रता दै पडतीदै,न द्उभिष्ठोेय्टशोनाषट, नदर्को पानी मी वला स्यच नदीं चर पना पहिष उखकफ स्थान परमरगदला मौर मदा मदन्ता जन वद् राद पस पर उस मिघ्रने बताया फि यद वह घारिफा नही है षटिक दु्तसे टे, यह ण्वम़में खनु से म्म रहो मौर समय क्रदेर कोप्यां परिव मे षर्वादधो षै । मरह द्रुन मन्पामी उत्त वागा ङ श्रदर जो गया तो उक्तगोधाग ¦, क कद् चिद दिप्रला व्यि, मगर्न घद स्वच्छता थो, न पद ध्न पदनष्टी थो, नदस्म॑दक्कुद पानी वदग्दाथा, सगय यद सपार श्योर सुन्दरता न थो । पज भितने थे स कुञ्हिगि श्रौर
. सरफाये टप पडे थे । अर्ह दान भपी दर्थिली से तर्द तर्द कफो छन्द्रता टिखलारी थो वहां पष ुष्कष्ो हो कर कालीषो रही है । जं इदः त्रिविध समीर शीतन मन्द् एग ध मन का परफक्ित करती थौ चदाँ श्रव प्रधी कोर मे दाकषाकार ५
। जक पिक प्मौर कायल श्चादि शपते च्यते प्य स्प्यो
फो श्यानन्दिति कर्ते ये, वहां भद नीच काक प्रर उदक
चयिन स्वरयो से चित्त फो दुखित फर रे दै । वद सन्यासी यद सव दैरता दटुश्रा नदर के तट पर पर्वा । वदँ कया देता है क्षि थोडे से मदा स्वरूपवान् नव्युवकन धुय ध्याकरः उती चर
\
1
७० दण्ान्त-पगर- प्यम् भम
~ --------------------~------- ~~~
ष ५ 1
मँ डुवश्षो लगा क मद्वा श्योर पानी पीने लगे जव्रवे वहा , खे निकनेताउननलो्ोंकी शकत परी षुं थो | नवदहधमः' मे, न वह् घल बुद्धि, न वद् शील समाव दी धा भौर प्लवके दोदोर्खगि लिन श्राचे रौर पक दूरे से दने लस 1 निसती
दा दाथ, वत्नी कापर श्नि ट्टे, यानी दसी भ्रक्नारं प्मह्तभ्यवा ' का सग्रात्त करस्ते सस्तेलाप्देरह)
॥
सन्यासी भास्नरूपो उपवन शो यद दुस्वस्था देख दुली श्रा श्रौर उक्तते स्ुखपूर्यफ रमश्र फ्मेअली भाग्त सत्मनकी
दुर्दशा देल उलतष्ल दिल भर श्रावः प्रौर ठो घ्यानं भा फर ` चोला--प्क्णा प्ल उपवन षा ष्टनारफ सोहै माली णवर
मेजेगा १
1
१६६-शील च पक प्राममे दोरा ङग्ते थे] उनम से पः प्रत्यन्तः
टी हिद्धान, मघुस्सापो, छन्ल यरौर्शान चया स्रिसली दुरति
लिने द्ाध छस्य या साधारणा ` यमाने पर् सेचास तकालदी- दथ जाना शा श्रौप्स्परैव पेलेस्थानमे वरटनाथा हि ञर्ससे कोन उखा सक्तः, प्रौर दुसरा निगस्तिर मद्धचार्य्य, श्रयस्न कद्रुः चाद कद्र खी नोाड़नेवाना श्नोर दुरे ऊ किचित् क्रोध पर उक्षा किर फ्तोह देनेवाला था 1 दन दोनो में परजा माद फन प्राम से जिस किमो क्राम > ल्िपकिषी ह पाक जक्तात लाम चरन्त षी इमन्ता खदायता श्सनेये पपौर जप यदुत ची कपास जातासो लोमषनवे बत्ती मो नगरं षएग्तेथे। प्त दरम मनै पष्ठ दिन पते मा से पूलस मार, चुम्दारे पणन दमो वधेन सी युक्किष्ै फिजिव्से मये खवसे सेल रदताह श्नौर
श्मप खय जगद् चे श्यना पान कर् लाते दै, पर एम जन्तं जा -
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1 1
॥
१६ ६-पन्तोप २७१
| चं लप्र हमसे वातत भो नदीं करते ५» मा ने उत्तर दिया- सक जमद ये कात फर नाना सो पषा वदिस चन्धस्तघ्य जतायते जलनिषिः खाये तद् क्षणात् } मेहः स्वन्यगिलायते परणपतैः सयः कुरणायते ॥ व्प्लो प्रसुखे विपप्मः पौयुपप्र्षायते । यस्यां ओोऽग्निललो कवस्लमतमं णीं सुमति ॥ धायं शराग्नि उन प्प ्ो जन्त ॐ मान जान पडती द र सुद्र स्यटग नदो सातथा मेद पवत स्यल्प रिलाके तुद्य शान पदता योर किह शोघ्र हौ उल शरागे वरिन वन जाता + पर्प उल्क किदफुतफी गाला व जाता द, परिष रसं उप्त पुष्पो पमरप दृष्टि रे ममान हो जाता है जिल पुर्षे श्रमे नमस्त जषत् पठा लादनेवाना शौन { न्ना ) भकाण- परान द ।गल, यदी युक्ति हि, सयो वाव सो धार्य काज्ञि । किसी मापा-क्चि का वाक्य द-- दो्ष~गिरि ते गिरि परितो भल, भले पकरिवो नाग । अमणि साट जरितो भक्ते, वरो शीनकौ त्याग ॥
॥
^ =, १६७-सन्तोष १ प्फ सेनो खंडे धनाख्य श्योर प्रयत पुखपार्वी, छु मे, मरे पुरे कश्राम मे साकाते थे श्मौर उनके स्ममीपषटी उनी शमम णक श्रनि दीन प्रा जिला विद्धान् व्राह्मण राक्ता था.) यच व्राह्यक सद्धा ष्ठो सहनसील भौर खनौ था, जा इछ' ्रपने परिम से उपारत कर्ता उक्ती भँ श्यानन्दित स्ता, ~ परण्तु सिट उ खदेव दष्याकी साद्धोमेषदी तति खाया फरते
+
२७२ दन्त-परागर--प्रयम भाम „५ [9्ककककककककककककककककककककककव व व स न ~= १.
ये 1 ल कास्य सेठजी यथे वादय से इटुत धतवान् मोर 1 परिश्रमौ थे तथापि एत कवि चाद्य फ घ्मचु्तार-- “८ "८
निभो वटि णते, शता दशशते, सत्त सहस्रधिपौ । ^. लक्तेशः क्तितिषालनां, स्ितिपतिषचरेय्वरस्वं पुन; ॥ ` ‹, चक्रेशः पुनरिन्द्रतां, सुपपततिव्रद्मस्पदं बन्ति । ह्या विष्णुपदं पुतः पुनरहो वएलवधि सो गः “ ' प्रौत्- निधन मनुष्य सौ सपय चाहता £, सौ वाना, संदल, सदस्वाना लक्ष, वन्तवाला सज्य, राजा चक्तवनीं एना चाहता दै, चक्रपदीं सद्र पदवो श्रौर द्र प्रह्या पद, षडा विष्णु पद्, प्र. द कृष्णा फा धन्त किसिने पया है द्रत ध्रययि फ) किने प्रा स्याद १ शसो प्रफारदसेरकफोभीदिनि रात यहो पड़ी रहती थी फिध्रधसौ केदोसोथ्नौररो लौके, चारम्नौक्रक्तं 1 खये सेडजी खाना पोना सोना ग्रच्छ दल प्नना रादि नमी वृष्णा कधी तस्न्नो प मूते रे घमौर दिनि रात दमी हाय दायरमे लगे स्ते थे ! एक दिन पदानी श्राङष सेड को नमति त्रया कि-"सेखजी, देवो सक्षारो मून ष्ठ, दलम मदुप्य श्रो कमो दुख नदीं मिक सकता ६, दां यदि फलं खख मिन्व खनाद्धै सो क्ेवन्न पक सतोपी पुर्प दही को । घाप मजी मति जानि दहै, कि चिप्तेष ख्वाहिर्णो का ददन दी मदष्य के'लिष मदान् दु-ल नोर वंन का देतु, । मयष्य धी जसे जनने खवादिश् षट़ती जाती है चैष सय घ उनके पूष करज ऋ प्रवल तगता है प्मौर उनके पूरो जानि,पर खष्ल च्रौर ध्या रहने जं सुप्य फो भ्ल इुध्राकस्तादै + पसन्द खेर जो का मन उख छम्य इन पातो पर नवेडा ! प्रव --वास सेट जे प्रपते धरे द्र.पर वेदे ये उनो पक्रायप यू
५ < 4 ध
+-5 ध
?६७-सन्तोप् २७३
1 न र ~ ~~~ ~
चभरना मिननोक्गि प्रापक ज्धकषपरे लका उत्पन्न ह्रः । मेदजी - य६ खनेना पा ्रत्यन्त दर्धिस षो रुहे थे । नाना प्रकार के यत्लाह उजोमनारदेयेङ््िषठनेषीमे घम सेदुषरो खयर ्राष ङि ना तड सा उत्प्त दुध्या चा चद श्यौ उसने माता दोनो का देव गफ दा गया। भउजी यद खरस सुनने द्वी मन् दु फ-सागर पक षये श्रौर् भि~ पक वड फ साने रे । हस विकलता ं सेवज्ो ष्डेष्टीथे कि श्रनायास यादो दीदेस्म परदूनने पक्र सद कषा कि प्रस वर्षमे जाश्रापनं प्रपुक माल पर क चिट्ीखाकोधा नद परा पापही कनाम पहरग्या प्नौर क नात्रा मात कद् हु श्राप श्ना जहाज श्रा रहाट । सेठ १ पुन. उस पौ सथा उसकी माता कष्टक भल पक नल्ासे । माल फी प्राप्ति फी प्रनन्नता्मे निमग्न परो म्ये प्मौरदृतसे श्ने्तर कर्मे जे कि जाल श्रव कदं तक्र भाया दाया, मने क छेडा था? -्दकडही र्हाशथा नि योह्नीही देरक द पकं दुष्य दुतने श्चाकः यद सदेवा दिथा कि बह जष्ाज्ञ 1 प्राप चिद्री अ जोतये, श्ना रहा धा, लेकिन पतां पदष्पेर फोन कफे ध्याने द्व गया। येद सुन फिर उलो दु ल-घागरः पद थे पौरः सोचने छग क्रि यथायमे सांनारिकि डगादिशों । चदा उनक्रो पूरक लिर्दृष्णा फौतग्ड्लो्मे पटनादुदष्ी ¡ फाव्यद्ै | सेठी मे उल्ल दिरसे उष्णा पिशाचिनी कोत्या तोप सपु शती रगा त्वी । किसी कवि ने सच कदा है क्रि-- न्तोषः प्रम लावः; सत्तोषः प्रमे धनप् | पन्तोपः प्ररमचायु; सत्तोषः प्रम सुखम् ॥ ्श्--खतोपष्ठी परमन ताभहै, सततपदो परम धनद तोष परम श्यायु द्र, सतोय दौ परपर सुख दै1
[कि {।॥
#
७४ दण्रन्म-तागर- यय् माप व
~~~ १६८-उव्वृपने से स्वरूप-विस्छत्ति ` प्या दार णक यैर ॐ वचे को पक गडरिया जगल, सेड लाया + उस को प्रपनो शे करे सथ रखने त्मा! शेस्का यन्वा मेड पष्ठ सदन खध्न कौ भाति रदा करता, भेडों दीक साथ चसा करता, जरां वे वेठतीं वदं वद् तटा दना, ` जह उरस चे चक देती चद भौ चल् देता, ञेमे चे शुश्ने सोड़ कर पानी पदीं वैसे दी पानी पीना, जच चे मिभियार्नी चेतेष्ठी वद भो दोला परता! गड्रिषा लिख प्रकार श्रपनी भेदो पर शासन रस्ता था ददी प्रस्तार शेर परभा शासन रवत श्या, यानी जिस समय गडरिष्ादृरद्ीसेेप्को ठट दतल्लाया फर्ता तो शयेर ल्टीमे चपिक्श्राचे्याग दीन दो चुपचचाप खडा हषो जाता चा1 चयः दन चे या किं एकः खरा वदा वचन् शै जगल नै जरह गुरिया मेड स्यास्दाया ध्वाया घनौर ध्याजरः, दतती जोर्त गरा पि र्दृस्थि्ौ खार "सेड भग गं श्रोर ग़ सिया मारि स्के प्क खश्च ऊ ऊपर चठ गय्। । चलं वलयान् यसम उन भागी द्र जें फा पीक किया। उन्दीके छुण्डमे चद येस्भी भागाजा रदाया जोकि चपन से ग्डेस्यिके 'दवादनन मेरो ऊ साय रदताचा। धोड़ीष्ी दुर फे वाद् पक लापय पदधा ! शेर उखे उद्धम प्र जनाशयके उश किनारे पर खद्षठोरदा रौर पौषे छो घोर देखने लशा नि तने रभे, . यद दुखस षजवान् शेर मौ जलाशय न्न दधस क फिनारि पर परटुच कर ददाङ़ने जगा 1 भद $ साथ रदनेशज्ने वेर्न जजन उक्त लद फी श्रोर पपन ठोर्नो की पकरूदी परक्तार की पण्डा देख सोचार्िमनै भोतो यहोष्ठजो यद दै, नै षो +भागता हं) षतत. ्नैमीतेयष्ी षहः यद व्यानशे दो इमे प्रपते भि ख्ये एकप चज चौर च्ययिङार का छान ना ग्रया च्मौर
॥ र 1
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† „ ` १६६-शन्तिमे लाम २७४ न , दृस्ते भद्द मासे 1 हषङ्त दाष माग्ते दी कह वल्लवान् शे ता दीना पड़ चमसे जोट पया, क्योकि उपने समक लिया , ननि यद सेरोकासभृदायनःत कि न्तु नियो का सघ्ुदाय है पौर भक मौ इतश ददाट सुन इनक साधते मग खड़ी हुई प्मौर । भक्स्य चवा ही सय करने कया ज्ञना इन पलवान ेर्से करता श्वा । कदँतो शख पर शासन करना धा श्रोर श्रपनौ 1 (डोर क स्ाशर द्रसफा ४वर उधर त्ुमाता या, कर्ष फिर उसके ` पाल मी जत्ति मे मय्यात दानि लमा) । । १६६ -~शान्ति से लान स्िफम्दूर यू-पन काष्छाद्रा दी दिगिजयौ श्रीर् प्रसिद्ध धादशाद धा | उनने श्खुना सि पुन स्थानमंप्क यदे ही पटच दप प्रसिद्ध यद्ध प्रा रदते दै, ्लिकन्दस उन मदात्मा फी परीक्षायै यी पथा श्मोर समीप प्राम भटर कर दन दूत श्द्ध सदन्तो भे्ाक्षिजाप्रा उनस्राघुते जदो जि--"दिगिविज्जयी -सिखन्दर शादय प्यायादहै पोर उवन श्रादन्त बुकायाद प्रणस श्यादनर्दी चलैत श्रापसमप्या देया 1 सद्वात्माने शचा क्ि-पपरिणिपजयी का श्रये भ्?" उलन फदा~्लवको सीतमोध्राला। सनको माप्फर चशे करनेवाला { मदतसानै छा कफि-नलिपन्देर निवना करोद्धदो छोड मन सादे चते कटा--ननही र्दी 1» तद महारा जे क्ा--^तोल्लाण छो लाम फ चचिवालातोष्टोद्यो गा? दूतेन फष्दा-'नरही मदासम, जगमग, प्राथ सेर", जितना क्वि श्चन्य लोग शतेष उतना दी अन ्तिद्न्ब्द ॐ द्यत द १५ नध्ुने कश चुम्दय वादणाद से ने य् छृन्न ्वच्डूः दईैजो विना शिली फी हिनापियि मेसचेदट अर्दना) ' दुत 1 जार चा
२७६ दषठान्त-तागर--प्रथम् भाग '
हो सिकन्दर वादणाद सेका 1 दूत के युल से, यद वाक्य
र
सुनते दी खिकन्दर ॐ रोमांच खड हौ गे मौर सिरुन्दग आकर ,.
उन मदास्मा साघु क चरणो एर गिर पडा श्रौर षोनाक्ि भभूजिख मिक्नद्र्मे षडे उड गजो ॐ शिर नीचे फिथ प्रधा चदेक सनां के भिर प्रपते चणो एर निर्वाय, ची सिक दर श्राज्ञ श्रापरी शान्ति फे सामनेशिप् क्ता । प्रापिक्ति , चस्णों पर रकवे दै 1" गभ
३
१७०-दो किसी के पाक्त नदीं श्राति राजा रणाजानसिद जः के पाल पक साचुग्ये प्मोर जाकर, यद कला फि-- "महागज दमने फमी श्रणरणती नदीं देर्ख, सौ च्माप कपा कर दमे प्रशरफो दवि्ल्लता दवे} सजा सादे ने, खुद श्वणसप्वि मदात्मा के सामनि रखा दीं । पुन छु देर छि पा मदात्माने राज्ञा सदव सेका ्मि-ध्खव्रये परश चित्य प्राप उदया ल्त साजा गाद ने फा कि ्मवये प्रणस्य प्सेत उडधा करर पया करना दै, पराप दी ते ज्ये 1१ प्मदामाजीने कदाभि-ष्ट्मत) सलन्पातनी है, दम दव्पन्दीं ५ + वजा ते छदा फि-""जिन पुस्पो प्त व्रदमाछान होता हैया जिनका सान्नायनिक छान होता, ये दो प्रकार क मदात्मा दम लोगों के , जतो क्षया विक क्षिसी ऊ मी दस्वाजे पर नदीं जाते!" ।
१.७१-चनात्रटी महात्मा । पक्त पाद्सो शादय पक शहर पे उपदेशाय गये । वद्या जाकर शतः मल्ली मेचनेनात्े ष? दुकान क स्वामने उपदेभा करने लगे, खं दे क चद् जय दूुकागवाक्ते का चित्त क्व द्रर उधर भा
र
८
१७२ से यों की ष्त्ता २७७
तो पादरो साह्य मञ्यलीवाले फो दूकान भे पक मद्धली सुय भपते पाकर में डाल कर चल दिवे । यष्ट चात दृफानय्े को मालूम क्षे मह । तव त्तो दूशभ्ानवानां घां से टीट पदरीजीके पाच्चप्या हाय जोष फर खष्ाष्टो जया प्रौर क्ाक्चि-"महाराओ पाठर साव, श्मापक्रे ठपदेण से तोसु श्वरः मिल गया प्रर यते उतरने लगीं । परनन प्रायत् यद उतरी दै कफ्रिभ्यातो भनी छसे चुरावै खा फिर पाण्ट पड़ी रखावे 1”
~ १७२-दुक्षे से स्यो की धर्मरक्षा
' मद्ाराज्ञ भोजके राज्य मे पक्ष वरसचि नामक चाह्यणं परिटठत ग्दताथा। श्छ व्राह्मण से फिलली श्चपयध ने के कार्ण राजान उसको निकली दिया बाह्या. जिस समश शाम दे जने लमा तो श्चपनी खी से कष गया क्षि~्येरा दता एतना खपया घ्यधुक सेर के यद जमा दै, प्रत. जघ एमे श्राइ- ए्यकता पे तव मगवा तेना ॥* जव घररण्चि ब्राह्मण साप्य खे तता गयातो कुद काते वाद् उक्ती लोमे श्रपनी दासी ने भेज खस संठसे सपया मंगधापा, -किन्तुयेटने दाप्तषीखे द्ा कि दले समय मेरी वदी ययोग सव राजा क यरा यल्ली ट, षन लिप सपय नदीं मिल सकता । दासी नै प्राकर पला क्षी वरचि की खी से कह दिया । ब्राह्मणौ शुन कर विग तो ष्वुप रदी 1 इख काल छः पश्यात् सरखचि धी खो श्रपनी गस के साध श्पनेप्रामकैसमीपजो नदी थी उस्तमं एक देन स्मान फरने ग ब्राह्मणी स्वान करू लोदी ध्चारदीथी फे एतत मं चद् सेठ जिकर पाख घरख्वि महारज फा सप्या तपा था मिन गवा प्मौर वग्चिदीखीफोदेख मोद वप्र
पतने दासी से पृदधा कियद किलक खी है दसी नै ह्य पि "्यद मक्षायत्त षरि फी खी है 1" तथत्तो सेर
१७२--दृटं से सतियो की प्ैक्ञ २७६
खेठने कषा फि--“्मै ना जा, यष फा कँ 1" ब्ा्फी ने कषा करि" दल स दुक मे दढ जाये 1 यद शुन सेढ सन्दर येढ णये । घ्राह्मणो नै सदुक्त बन्द फ कोतराल फो याड खोज प्नौर छुं चार्ता फे धाद कोनवान चे मी वेलाष्ठी फष्वा गि ~शयाप मकाल क प्रन्दर आये, श्नापश्धो यद दासी स्मान घभैरह करा तेव तमायेगौ 1 धल माति भाप शय हिय । पुन भे प्राऊगी ।* तव तो फोनवान् स्व घन्दर प्च रौर दासी ने ष्ठन् सदाम करा, लाल चेल नफ नरि शरीर मं मन दिया। पते प दीवान खाषटब प्ष्ुचे पौर पर्ुच फर दयन षी जै्नोर खट्टा । तव -गह्यणो ते पक्षा क्ि--न्फौन है? दीवान साष्टय ने कष फि--“मे दीत्यन 1" य सुन कोतवाल साष्टव र कदा फि--“व' मे कर्द ज, कवा करै, गरः दीवान जान गथा तो मेसीन्तो नोक्षरः लायमी १० घरस्चिको खी ले का कि--थ्राप शल खन्दुक्र.म वेट आद्रे 1” फोदवान सा्टद अय सन्दुक में वेठ गये तय घाह्मणी ने नद भी सन्दर यन्द फर दर्षाजे फे भ्िवाड दीवान को खोक दिये प्रौ दवान. ेमीष्सी प्रह्नार फा क्ि-"स्ाप ्च-द्र चल षर शुद्ध जिय पुन मै दितो | तय दोवान सादय पन्दुर पचे नादासी, ते स्नानादि फयाष्गके शसीर मर पे पोलेतेव फास्पम्ल दियाकिष्त पेन ष-यचि कौ खोरे कशा फि--ष्दपायः प प्मावुमा ध्वा सया, याप स्रा दख म दक्र मे येठ आाष्ये । पुन. ञे चापनो निकाल लेती 1" अव' दीवानजी नी सन्ृक् मं षेठ गये तय ्राह्मफी गोघ्न द्यी सन्दक्र बन्दे तष् डुषडात्यनसोारही श्नौर प्रात फाल धातत वी उसने या फे र्द सपिद नी कि-- न्प्र यष्ट चासो हा ग ।' अव्र राडाके यछसे निपाही मच्राप देष्छकते चाये सव्र ब्राह्णी मै छदा पि-- "निरा भतन इतना धन सोभ्बोरक्ेगये घनौर मेरषप्मे ये तीन लूक छदे,
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न टृष्न्त-तागर--प्रथम् भाय , ।
सो ज्ञे जश्ये\" रजदृत वे तीनो सन्दे श्रादमियों क सिर परः '
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त्तदा राङद्रशः में पचे शमर साथ दी वर्टचि, मह्मसाज षी, स्र भो पुल । सदाय मोजने पृछ क्रि तु कौन द क्या हुडा?» ब्राह्मणी ने उत्तर दिया किमद्य, र्म चरदवय ती रती ह, मेरे स्वामी ्रघुक पाध से जव ध्रापके साञ्य से निकाले सये तव यु खे कद गये थेकिम्रेसष्टतना' इतना रुपया श्यमुक्त सेड के पास 2, सो जव व॒म्द प्राचद्नयकता पटे तथ मेगालेना। सो मैने उन सेठ के यरद से रुपया भगाय परन्तु महाराज चद नाना प्रकार के वाने कर्ता है,“ रुपये न्दी देता मौर ख यातच्कौ मेरौ ये तीनों सम्दृ गवाद देम" राजा ते फा" यहं कैला ९, तवतो छन ने प्क सन्दुक परः दये सरथा कर कदा-- कदरे करिथा देव 1 मेसा तना खपया सेठ परष्ै यानीं तदतो खन्द फे भीतर से सेढ बेचारा रके कदवादै णह" इमी मति दूरे मे कहा कि पक्र पोने देव, मेया इतना रुपया सेड "पर हैया नदीं सने सो कदा सिह सी भति तीलरे पा भी पुस राला चद् ददप देष यडा प्याश्चर्यं श्रा | तव ब्रह्मणी राजास सय खथ्या पृत्तन्तं कह स्युनाया कि मष्ागज, जव मेय चति पङ्क राज्य खे निकाजा गया तो षक खट ॐ या इतना सपया तज्ञ मया था] जव मेने उलो रमेगाया तवते) स ने रयिः नदीं प्नौर पकर दिनिजन ने स्नानको गदतो सेर द्रौर श्रावक राञ्य ॐ फोतवाल श्चौर दीवान सुमे मिले शरीर चुर धिये देष्वातो मैने दन्द चुना स्योस्ये दीर्नोमेरेधर पर मेर लत तेने येथे, सतो मेने दख आति षद सको मं व कया, सो प्प शनं उचितदडद्ं 1 तथ रज्ञाने सन्दर ९ लीने दे का निकनवा उचित द्यड दथा! |
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१७३-सुशित्तित माता का वेय २८१
१७२-सुशिक्तित माता का बेटा . , प्रक वार् भदाराज मो श्रपने पाटणालामें चिदयार्थियो षौ परीक्ञा लेने गये | जव राजा सव ब्रह्म वार्यो व परीश्ना से चुके तो अन्तमं पक घरह्चःरी ॐ सामने गये । राजा उयोदी षटवे ता बरह्मचारी ने तुरन्त ष्टी श्लोक यना फर पढ़ा गि--
: स्वधशो जलधो भोज निप्रललनमयादिष ]
घूर्यन्टुविम्भमिपतो घते तुम्तिद्य नः ॥ श्र्य--मदागज, श्रापङे यशरूपी सपद मे वने ॐ भयस श्माक्षाण सूरय श्रौर चन्द्र एन दोनो फो तुंश थनाधन्नियना उक्त परक्तवार घ्रा)
त तो मधासज्नै-चालक फी दख खातुर्यताफौ देख प्एपापक मद्षानज से पृ कि-- "धीमान् पगिहतजी, श्ल वान क चिपप चतुर होने फाफार्ण क्या १ प्रघ्यापक्जी मै"उस्तर दिया ' फि--“्ाराज ` ल बालक की माता सरन पटर हरै" श्नौर श्लने धते धथम घर्मं दो क्ख साद्ित्प परायाद । 1
१७९-सब से वडा देवतः कोन ?
पफ साजा ने पकं सन्यासो महाराज से पूत्वा कि--नसदा- सज, म्नाप्मे सषसे घटा देवता पौन दै ९५ सन्यासो महा गाज्ञने साधारण ही राजा सादय फो शालिप्राम की पक काली सी यटियाच्छाष्रदैदो श्योर का~ “्यदी सधय षण्डे दधता ह ।* राजा स्ादह उक्त थयियाको श्रपने घरपतेग्ये भ्रौर उस टी नित्य पूजा फते तमे । प्क दिनि राजा सादवने णालिन्राम की यटिया पर् हु घ्नत का पदार्थं ' चटाया चा) इख क्यस्य षश्च घटिया पर एके ग्या प्राकर उसे.काने जगा । नद सजा
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श्य दण्स्त-तामर-- प्रथम भाय ०
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मे यद दण्य देखा तो कषा कि--“रालिघ्राम फो दम सय से
वद्धा देवता मानते ये, ध्याज तो दनक सिर पर चूहा चा ६,
पल चृ श सखव से यद्रा देदता है ।» पुन. राजा साव | फो पूञ्ञा करने लगे । छं काल क्ते पर्वात् पक -दिन, चूदा राजञा साष्टव क्षो पूडा फा सामान खा र्दा था कि इतने मवि घ्रा श्रोर विलीने व्चुदेको श्रोर ज्योती कपाटः मास ततो चूदा मगा! वल राजा सपने लमस् लिया व्यूहा नकी किन्हु विद्धोदी मष्षसे वडा दे्रतादहै श्रौर सजा सादय विषदी फ़ पूजा फरमे जगे । छु ष्ो दाल फे वाद् प्क दिन व्ही; गज्ञासादचके पूलाङ्क ष्दूष्धखा रीथ क्ति दते भँ'पक खत्ते मे चिह्धौ पर धावा किया श्नौर चि्ठी भागी । चल सजा खाहषर्ने खमरमः जिया पि विद्धो फा वर्क द्वाद संपसे बड़ा देवता मोर चे उखी ष्ठी पूजा कस्ते जरे । छ दिन & याद् पक दिन पेल्वादुश्ना कि राजा खादव फत्तिषतो प्रूलाफी तेच्धरीकरदीस्देथे फिश्तने में कुत्ता अटौ फि रानी साद भसतोर षना रदौ थीं चला गया, रानी सादवने पक यक्ताषठा उक्ष कृत्ते फे जमाया। शध्रवता सजा यद दृश्य देल दोनों छाथ जोड़ यनी फे पेते पट भ्ये श्रौर कष्टा भि-- प्रे बहधा दी धाक माज दम स्वथ प्रर उधर ददतेर्दे, रवसे षडा देधरतातो एमारि घर म दो मौजूद था प्यौर्उक्तदिगसे वे नित्य रानी मी पूजा फरणे ल्मे बुद्धं काले पशन्यत् याजो सादो सानी साद्कसे क्ती कामके विग जाने पर प्रो श्राया प्यौर राजा खाटव े, उठा रानी सादय के पच द्धै ददर स्सीद्, ~ \ किय! पुन सोचे पनि सनी प्या चदिक-सयसे वड़ा देधतात्तौ महे) श्छ साजा उखदिनिमे पनी दी ` पृञ्ञा वानी श्चच्छीः त स्वाने पीने जगे । छ कालं के चाद जव राजा साद्व „, बीमार पदर तो चिष्धिप कष्ट होने पर दन के सुख से निकमे सया-
१ ८ 2 1 /
। १७५-खदाको दीम खा २८३ 3 “धाराप्र 1५ वसत राजाने समस लियः किमे मी छद नदी, साग स्यसे वड़ा देवनाराप दै | राजा चाद उसी द्निमे शमर फो उपानय कण्ने लगे भौर पन्त में मोक्ष पात की ।
„, १७५-खुा को दीमक खा गई
- प्ापलोग सुनके चकितिष्टोगे क्रिखुदा का ठीमक् स्ता गर, यष कदा घ्मौर किष प्रकार खुदाको दीमक साग? छीनिये षनिये जिल प्रकार खुदा फो दीम खा गर-- ` पक्त महदेव का मन्दि जगलमे था) पक्त महाशय वहाँ प्च तो देषा क्रि मदिर तो धडा ध्रच्छावनादै, परश्समे सूति नष्ट । छर लोग वदां पशु चरा भ्देथे जव उनसेपूद्धा सो मण्दमद्टणा क्षिश्ममे चदन कण्टकी मूर्तियी, उसको दौमकसागरं। वारे -भडदेर] जर तुम ध्रपनेको दौमकष, सेनं च्चा सकफे, तो प्मपनै उपानर्णोफो कुरो देते मेवा? षस्य
१७६--शुद ही बुरे को शु कर् सकेता है पक वैशय को धक परिहनजी ने भागवत फी कथा पुना ।
सथ सप्ताह समाप्ता तोाचेय्यने कहा "कयो परिरतन्री क्षसा, रस भागयतफाता यष्ट महात्म्ये फिञो कया पने उफ जिए विमाने घ्यवे क्योकि जद श्चोशुफदेयजी ने राजा परीदितकफो कथा इ-र् थो तो उनके लिप चविनान द्याया श्या फिर दमारे लिये कयो नदी श्रषया'२ पथिदतजी ने कहा फि-५प्यय कलियुग दै शस छिद घ्व चनुरुणं धम फरनेये वष फल दाता है ए" पस्यने ३००] उनकया पर ब्दरभिये श्रत उक्त ते ९००) श्नौर जमा छर दिवे प्नौर कदा--५मदारडः सोन शर श्नौर सयुनादये / पदिदतमीने सेय्यो को कीन पार प्रौर सता नद, प्रर विमाने फिर मी.न श्राया 1 च्रवसो विच
२८४ ट्न्त-सागग--प्थम भाग , ` , ' , ,
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परिडत आभी व्ही चकर्मे पड़े किय कावद] तयतो परिडतजीसेटकफो लेक्तर एक मदात्पाफे पास पर्दचे,,1 श्रौर साग दृच्वान्त फष सुनाया पि -पमह्मयज) हन रेचन्ञीफो ' ) दमने लेष्र के श्ु्तार चार वार सप्ताह छुना, तव भी विमान ¦ न्याया, परर शुरुदरेवजी केतो पक द्धी वार सुनाने पर संजा पसः क्तिन क लिप विमान प्रायाथा 1» तः मदातमाजी ने इटकर उन , ‹ पथिदतत महाराज प्नौर् मेढ दोनो परो यध कर उाल दिया) ज्र १ चषटुनदेर्तक ठोर्नो देथेष्डेण्दे तो दोनो पकदृसरेफार्मुह "ताके चे) तव महामा फदा क्ि--व्र्यो पक दृष्रेका मद देखते दो, पोल न लो ? कदा--“महागाज, हम नही सौल सकते, प्राप षी कृपा कर्क दर्भे सोन दीजिये) मष्टा ने उम खोल दिया धनौर कदा--“देषा, जि भक्रार तुम् दोनो. यैे देते टये पक दृ्तरे को नीं सोन्न सकते थे, इसी धकार ' शुम दोनों च्पिवन-वात्तनाश्रोये वेषे हो, धवः पके दृक्तरे को ' खोल सुक्त नदी कर सकते, पर श्री्कदेव नी मदागज् णद्ध थे, ' विषयो चे मुर थे, इस लिण-परोकित फो खोल सके । ' नोट दान्ते बिलकुल श्रमम्मव है, यानो परीक्षित के लिप भी विमाम नदीं भ्राया, पर उपयोगी होनेक्षि कारण लिखा `
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4 < १७७-अघत नदी ,, ` ˆ प्क श्द्रेजने जलगडनमें यष स्छुना कि दिदुस्तान में पक ग्न नदी दै, रत उने षस नदी क्ते प्रत जल पान करने की प्रभिनापा से हिन्दुस्तान को पयान किया । "लिख समय घट लेयडन मे कलक मे प्राकर पटवः तो घं क लोमोंचे पृदया भि--कयो माघ्यो सरह पर प्रदतं नटो पौन सीष्ट?" “ जमो कषा क्रि-“यद धुन नदौ -तो हम लोपं ने छनो "मी " नरद पर गगा नी घ्यवश्यं दै । चन्र ने समस्ता शायद् गग! नदीं
शै ¢ हि ॥ ६९ ४
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८८ ५) अ त स्न ~ नदी ४1 ् ८५ । 1 "५ ` २, ५, "१४४ द्पह् सद (व ^ 0 व; ~ ~ 1
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ष्ठ नामं धमते गद ह, सेत चपतमे दवष पुपतकैरम्धि , ध दो तमा कायद् मूवन्ना सल या विष्ट प, उदः पान् सि ^ (चोर पद मि-+दद् चयस न्दी, नु स वदिति इते न्दः शद तो भ्रयद्द द घछष्ती 9 "सौर" उदाष्ात सष्षर तौर ४ ४ षृ्ठानीर सोदर्दाथ्या पिनि ष्वनी गृह्वे'दपयन्याया 1 दद्ध, , षि कति प्रर दय प्रं यरिदत गित 1 'पयिदच भ साघय-, ; ; श्र पो" उदासीन देष पा --भसाक्षय, याप, दरासीन शयो + दै! सीदयदे कहा {त महिष्दुसवानो लाम श्रे नूर एति दै 1. “ दरिदत्ने ' कदा-"कषयि ते. क एिन्दाानी क्रते सू पति , , ६४ शदेन प परखुशप निरता करः दिप फि-ष्देषो दसम =, द छुप, छि दिम्ुस्ता,म पर ्यमरृत नदी दै, स मेने स्ेत् , "पश्च पफदु{ पत न स्वगा पौर म तगत से यदध सक हेयम दुफोव्पये सवौ उठाया ए"परिदतने वदा किप प्ाप्ये दय, ^ श्रमो पदन नदो दिखलाचे ए" परिदितने स्मषदारुप्प्यो ' भषति. लार उवी भेभा क्षा जक. पिकायारनरस्ारह्व, ८ “हदु /कएः कि. “यद् कुद उत्ते, 1 नय परिंलर ' - छद, वि. ५थयाप एपाफ, पाका ~पर भत्ति पदि अं शाब दरिः पष्ट ता परि्डित ने ष्टा फि-- "दुल्, यद्या रोज पन् च्तोनियिषएिसादरने कष्ठ कि मयद् तो षटुत रो पश छल द 1" परिदेतो तने खादथ से प्रान कर "जप. गो परते लाकर जन् पिगोया त साद्ष ने पक +
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्ौँ चष ब्शक-धरव उल ह शौर ध शक पोतै धाश्च ॥ भन्वत-दोः कवा ध - ८४ "+ मुप, .. ५. गद्सक्ता दान्त यष पि सध
चषद्स्ने भजो ^“ “धस नद् चनी सो, अ यदक्षर सूद कि ध. क सी फोन न वर्थ कोः घत्ापा ने
गुद न धद प्तोक् हः ५, (0 पित किप पुन परितं > पुराणों
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-पथिडत भी बड़ी चकर्मे पड़े कियद कयावावहै! -तय तो परिडतजी सडको लेकर पक मदात्मा ॐ पास पपु श्रौर सारा वृत्तान्त कष्ट सुनापा कि -प्मद्वागज) दन सेठी को हमने जेर के ्रञुखार चार वार चाह छुना, , तव ' भी चिमान न श्राया, पर शुरुदेवजी के तो पक दी वार् सुनाने परराजा परी- तित क्रि लिप विमान प्रायाथ) }" तव मदाानीने डटरूर उन् पयिदत भदासज प्मौर सेड दोनों कते कध छर डाल दिया'। जव ष्टु देर त्फ दोनो वधे प्ड्टश्दे तोदोर्नां पकदसरेकारयह -ताक्षते ष्टे! तव महात्माने कदा फि-भ्कयो पक टृनरेका मद देखते, परोल न लो ए कदा--'“महाराज दम नदी गत्रो स्यकते, प्रापष्टी छपा फस्फे हने सोत दीजिये 1" महा ने उम्दे खोत्त दिया श्मरौर कंहा--“देखो, जिं प्रक्रार तुम दोर्गो येधेद्ोनेष्टुये एक दुलरेको नशं सोन सकते थे, सीं धकार त॒म दोनो दिषय-चा्तनाघ्रोमे वेघे्ो, रतः पकदुसरेफो, खोज मुक्त गर्द कर स्वके पर ध्रीुकदेवजी मदाग शुद्ध ये, चिपर्यो चे एुक्त थे, दस जिप परोद्धित फो सोल सक्ते ॥? । जोर--टण्ान्त विनष्ुल अम्म्भव दै, यानी परीक्षिते के लिप मरौ चिमाग नद्ध श्राया, पर उपयोगी हनि क्ष दास्य लिखा । ,
१,७७--्र्त नदी । “ प्क ेगरेजने नगडनमे यद छुना कि िःदुस्तान म पक ण्न नदी दै, प्रत, उल्ने षस दी कष श्यत जल पानं करने करो ्रमिजाषा से हिन्दुस्नान फौ पयान क्रिया । निस समय द दयन से छलकता में प्राकर परु तो वष्ट ऋ लोर्मो ने ` पा भि-- "कयो साध्यो यरद पर- पसन नष्ट फीन सदै? - ` लपे कदा (पदर प्ल नदो ने मयो ज ' शुनी भी न्दी पर्गमा नटी श्रद्व दै! पनेश्चने खद्भ्ता शापव् संगामदी
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;,". “ -, “१७७ ्मृत नदी _ र
षी चामं ष्रमरूत नदो द) श्च उसने वडा पुलफे नीचे ` ` ज्म भैमा धरामष्ा मैदा जका चिच्तूम उठा पान शिप शौर काकि" यमुन नडी नो नरी वदिस शे नगक चदौ-तो प्रयश्य कष सकन पः ध्मौर उदासीन होकर तीर ' "पटा प्यौर सोच स्हाथा क्रिमे इतनी दृरसे व्य स्माया 1 छु , द्ग जग्रने परमे प्क परित मिला! 'पयिडत ने साउव , चादर को ` उदासीन दे पूधा-"साषटव, घाप उदासीन यो , द!" सादयनें कहा नि“ हिन्डुसतानी जाग वदे मृष देते 1” परिहतने क्ा-"कदधिये तो किः दिन्दोस्तानी क्ते सठे ठति “है 1 स्नने पक प्रखकार निकाल कर दविधा किणो दर्भे } णद ऋष पि हिन्दुस्तान. पर श्त न्द दै, ख मेने सरघत् „ पृथया पकर तान कमा प्नोर मे जखडन दे यद्र तकत छर दुष्प) वपरस दनी उराया +› पतिटतने कदा कि "ध्ये दम “ श्याप् फो दढ जद दिष्लपवं ए" परिडत ने स्यदव शादु फो । कगषटुर से खाकर उष्ठी भगा सा उत्त पिलाया, तष साष्य ,, , स्कु ने.कएा किव कुद उनमे प्रच्छ द ।" त्य् परित , तेप कि~श््यापरूपाकग थोष्रा -प्मोर् रागे शरद्धिये जप स्रीएव ह्र पर्डुचे ता परिडत ने एषा, किड्) र्ध फा तन्त पान कौज्यि ए स्मादरने क्वा भि ्यदनो युती पच्छा जल, है \'' परिडतजी ने सदव से प्राधना फार जय बगोरी परत्ते जाकर स्कर पिलाया ते स्वये णडा धि ष्ं
४ प्त उवा ह भ्रोर द्भ पोनि ४ यथाथ मदुष्प
५ श्रू दे कता (" ति न |
\, म वगन्द यद् दै पिव चदाटुरने जो शिद्ासष
५५ नदन नट दुन थो, अव यद पाक्त पूयः पि यद शिष्ार्भे
६ = म्धतनको कोन, "तो लोर्मोने तरथो हो प्तजावा१ स्नोत \, "देख स्ादव ने वदा श्लोक अ्रक्ोरित ्िषा॥ पुन, परिदतने पुण
14; ~= 6 ' र
॥ 4 \ ४ ॥
- ग \ =
1 ॥ि ५ म्द दन्त-ष्ागस-पयम् भाग् ` __ १०
ङ्का दिलाया तो स्वने करदा ------- स ज किल दक्तभ्नं (भी घो व्-शिक्षा'
धुसी टै । पुन परिडत ने स्द्रतियो कौ दिष्लजाया, तव साय ने" फदा क्छ ये कुद पच्छ द, पर कुद दनापत प्चश दै पुनः परिडतजी ने उपनिषद् दिखलाई तो सात् फ भाला चुत शान्त ष्टुः भौर कदा यद वदा षौ उत्तम जलद! पुन प
जी ने गगो्ी घर्थात् वेदत दिलाया तव लो सांहव ते करदा
किदं यद बेशक श्रद्धत नदी है मौर इसे पीने मे मनुष्य प्मष्त दो सकता है , ._-------~ =
त ह ७ तनातनधम की गाडी ने छु लोगो फा छुण्ड सप्र करतेजा स्हा थार पर ५ मक्रखद् दुर हयेने के कास्णलोगोंने सोचा कि यद मा ५ लोग विना किसी तेज्ञ सधारोकतनकर सङगे प ध कि भाज कत सव स्तवारियो मे धगर कोह तेत संचारः , चै, धत. वदद सरड यद वि्यर स्टेशन पर पा (1 = तेकर माड पर सवार दुश्रा प गाडी न पसि ह । ् र चष्ुस काल तकत जय पक्चिनन लमा तथ कुला स जच द पड़े मोर घादस्तिकलो परः सवार दो चल, विय 1 दौर न चली "ती तोरा खो दाध्ि दन श्लय नाह्ी मं येयनेवा्ो से तो. चदी श्य जेष नाष ध कि रेट ठ चले गये, छतः यद, सोच धुर भ्कयाष्षाधो अ उतस्प्रौर दादो घोष्टषकी शम्यो पर शुद्ध धान क ० ध ` परु चद् मटोफिर भान स भ्य जाया पोको ४ तथन सोया मि म लोमे सेतो ध्य सद्एकेतो, का ग 01 पर सले गये} पुनः दश गा दी गाह इद अपार म श्योर तरा प्रौ उमरके चोन 1 > च्या धिष सोरम एछमरः कतय भं ष चत एन पर ङ सतोय चैयं मधा पर सयार प 1५ हि पा ध्य द स्र कि अव
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~, एद -एनातनध कौ पादी २८७
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चिक्र वराद भौर म गार पर व्ठरैँतो कमी न कमी वष ग्री चमेगी 1 दु कान क परात् यकत पलचिन ने कि सिम दो लति नाल णीन भागने रौर ` पक ष्या मीणा ऊपर छपा हुध्ायायदे जोरखेशाय दावने षुण प्राकरप्छचेमी चकर गारी लगाई नि रपा लपि श्री कु मिराद डर छर तर्प्रा कट गाडो सौटन नाय, वानी घौर्लोगवये शदे कुमुदो दरगे धाद् चह गाधी ग्रति कीं गाह श्रौर मर्धो खी सवारषालें को मिली } द्व तां प्रहरक श्रागे जाता देल मरो फी गाद तथा गवे फी वामे धालोने यद्रा दी पदवाताप ष्वा घुन यो दोदरवाल यद्) दरो घों शी बन्धियों ९ दप थे,गाङ़ी ने उदं मी पो पिया, तथतोउन नोस्भनेलोष्टा दी पट्चानाप प्रिया पुन यख दीदेस्के दगा ने "वासिक्ज्वानोंफा मोप कियातथतो वष्ट
सकतयाले मो पचिनत लभे सौग्मषके नव यद् सोचने नगे ' क प्र एम यष्ट जाम
तै से शाने निकल जायी पतो दय एसमे कमी = ५९ गाद सय निचे ० धमर ष्सते कमी न 'उनरतैः। प॑र प्रय यदित दाताप्ीक्याद्ै। ,
र्थन तो यषा, पर नक्त दत यद्व दै कियद् धृक पमनपौ गाह द्विम पि मम्पृणो लार कै मञुभ्य माक्पयौ भिन्न मद्रू क आने करे तिच. वटे थे षर उल 9.1 ५ पिन नदते कं कारण ( यानो म्यभार्त खव विद्वान नाण तो जने फ कोद
& गगना कोटि पञ्चिन श्रवन पिद्राच-न रदहा,या ) चाममार्म सपर् उतर चादनिषून पर् सवार द ' भ् योद् मतु हा जा ग्यट्ता पग्मोधरमेन की शा
+ च मवार ्ौ चक पड्था धुन जो दुखं यड दा 6 दा ^ शष पर चका या चद मर्व ललाम दौ चाड
छ कास्य" इय धद चम फी ग्ण छा! -
प्य दएान्प-एमरर---परयमर माम चम्दौ यानो सुदा प्रौर रत्न, धनदो को मानकरयल पड़ । पुनः दीनरा शछुयड तीन सैल कौ साड़ी चधा मधो की सचासीवाला देसाई मत धा, जिरूमे तीन भसों छो गारी पिच, पु, पविच्न प्राम गचे री सचारी प्रहि नकर चलने लगे । प्ट फलके चाद उम वैविकि ध्मणौ माड़ी में स्वामी दयानन्द यालब्रह्मचासे सूप पञ्जिन जिम दोन नेश्र खुर्ख प्रौर दिमाग विद्यासे सन्ञ यही पञ्डिने प्रि तीन भीन भे, हाच दाव करना उनका सस्छत्त भाषण श्रा, उस पिन को ठोरुर खुगडन मगडन थी जिसे फितने ष्ठी भयभीत षो फोर उन्हें प्रपा णहु समशः कोर दारं प्रादि सममत गाड़ी से उत्तर षषे प्रौरजो हिम्मत भ्यिचेेस्दे उन सवन्ये मय उत्त यारी के वष पञिन लेकर सथ खे प्राये निकूल गया | ध्यद तौ श्रपने घपने पेट चं सभी सतबादौ चदि उपर छक भीक परदल गदो में वैटनेषी च्छ फस्ते है, पर इ गाड़ी मे यद् भव -रदीक्जि ध्याने निक्त ' छनेघार्नो प्य न विटाल्ते } यदह पएञ्जिनिपेनाहै क्रि स्थान स्थानं पर सष्ाद्योहो धगेघाजे भाध्यो पो विठलावा जाताद्रै ध्मौर यदः दिनि घययेगा ज्ञप श्राप लेग ससारफो एसी सादे पर संश्वार देज्लगे।
तत्तनीफृ खो समाज के फेलाशो हर तफ - ,
ण्काप् ` वेद-पाक का पैचश्रो एर तरफ ॥ ,
संभारो १ ५ ६ व हो तुम सपूत \
मन्दान श्य प्पुतो केतुम् हो पत॥
दिखलादो धमे-एक्ति श्लो तुममें नो श । ठुभको न कोई द्द सदे फिर नियुग सपूत् ॥ `
इक इर नियम् यै जवक्ति इजरों शीद् ष्ठ । , , हव- जानना कि चापकते, जीवन पफ ह ।\
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